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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफे़सर मोहम्मद यूनुस जब चीन गए तो इस पर भारत की भी निगाहें रहीं.
फिर चाहे तीस्ता परियोजना हो या फिर कई प्रोजेक्टस, बांग्लादेश की ओर भारत और चीन दोनों की नज़र रहती है.
बीते साल जब बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए तो ऐसी कई रिपोर्ट्स आईं, जिनमें भारतीय अस्पतालों में बांग्लादेशी नागरिकों का इलाज करने से इनकार कर दिया गया.
बांग्लादेश से एक बड़ी संख्या में लोग इलाज करवाने भारत आते हैं.
अब यूनुस जब चीन से लौट आए हैं तो इसी से जुड़ा एक ऐसा समझौता है, जिसके बारे में पूछा जा रहा है कि क्या इसका असर भारत पर भी हो सकता है.
पिछले अगस्त में सत्ता परिवर्तन से पहले, कई बांग्लादेशी मेडिकल सुविधाओं के लिए भारत आते थे.
लेकिन सत्ता बदलने के बाद बांग्लादेशी नागरिकों को भारत में इलाज़ सहित सभी प्रकार के वीज़ा लेने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
शनिवार को मुख्य सलाहकार के प्रेस इकाई ने संबंधित चीनी अधिकारियों का हवाला देते हुए एक बयान में कहा कि चीन ने पहले ही कुनमिंग में चार अस्पताल विशेष रूप से बांग्लादेशी मरीजों के लिए आवंटित कर दिए हैं. कुनमिंग दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान प्रान्त की राजधानी है.
चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस बांग्लादेश के चटगांव से चीन के कुनमिंग तक फ़्लाइट चलाने की योजना बना रही है.
बयान में कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप पूर्वी बांग्लादेश के लोग कुनमिंग के अस्पतालों में आसानी से इलाज करा सकेंगे.
इसके अलावा, विश्लेषकों का कहना है कि प्रोफे़सर यूनुस की यात्रा के दौरान हुए नए घटनाक्रमों में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के कई मुद्दे शामिल हैं जिन पर पहले कभी इतने विस्तार से चर्चा नहीं हुई.
पूर्व राजदूत मुंशी फै़ज़ अहमद का कहना है, “ढाका में कुछ अस्पताल बनाने की बात हुई है. चीन ने रोबोटिक फ़िजियोथेरेपी की बात की है. उसने कार्डियोवस्कुलर सर्जरी और वाहन उपलब्ध कराने की बात की है. जो बहुत बड़ी बात नहीं हो सकती है, लेकिन इससे स्वास्थ्य क्षेत्र को आगे बढ़ाने में बहुत मदद मिलेगी.”
उन्होंने कहा, “अब से चीन में कुनमिंग को एक महत्वपूर्ण शहर के रूप में दिखाया जा रहा है. इससे एक नया आयाम पैदा हो रहा है. इसका मतलब यह नहीं है कि लोग भारत नहीं जाएंगे.”
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बांग्लादेश को क्या हासिल?
यूनुस की ये चार दिवसीय यात्रा 26 मार्च से 29 मार्च के बीच हुई थी.
इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौतों और सहमति ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए. इसके बाद संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों देश संबंधों को “नई ऊंचाइयों” पर ले जाएंगे.
यात्रा के तीसरे दिन यानी 28 मार्च को मोहम्मद यूनुस ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बीजिंग में मुलाक़ात की.
मुलाक़ात के बाद बांग्लादेश सरकार की तरफ़ से बताया गया कि शी जिनपिंग ने बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार के प्रति पूर्ण समर्थन व्यक्त किया और अंतरिम सरकार के कामों की तारीफ़ की.
यूनुस से पहले तत्कालीन अवामी लीग सरकार की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने सत्ता से बेदखल होने से ठीक पहले जुलाई, 2024 में चीन का दौरा किया था.
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जानकारों ने क्या कहा
विश्लेषकों का कहना है कि प्रोफे़सर यूनुस की चीन यात्रा ऐसे समय हुई जब बांग्लादेश और चीन अपने राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ मना रहे हैं.
साथ ही विश्लेषक कह रहे हैं कि मुख्य सलाहकार की यात्रा से यह संकेत मिलता है कि आने वाले दिनों में चीन के साथ बांग्लादेश के आपसी संबंध और समझ कैसी होगी.
अब तक जानकार इस यात्रा को एक सफल यात्रा मान रहे हैं.
उनका कहना है कि द्विपक्षीय यात्रा के दौरान दोनों देशों ने संयुक्त बयान जारी किए, एमओयू पर हस्ताक्षर किए, जिसकी उम्मीद भी थी.
प्रोफे़सर यूनुस की यात्रा के दौरान बांग्लादेश में चीनी निवेश, नदी प्रबंधन और रोहिंग्या संकट जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई.
हालांकि, बांग्लादेश के जल प्रबंधन पर चीन की सलाह लेने या अतीत में वन चाइना पॉलिसी पर बांग्लादेश के समर्थन के मुद्दे पर अलग-अलग विश्लेषण हो रहे हैं.
चीन जब भी किसी देश के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करता है तो उसकी सबसे अहम शर्त होती है ‘वन चाइना पॉलिसी’ यानी जो देश चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करेंगे वो ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दे सकते बल्कि उसे चीन का हिस्सा मानेंगे.
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व्यापार और चीनी निवेश
लोगों के विद्रोह के बाद प्रोफे़सर मोहम्मद यूनुस ने उस समय बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का कार्यभार संभाला जब देश की अर्थव्यवस्था अलग-अलग पक्षों से दबाव में थी.
इसके कारण आर्थिक स्थिति का प्रबंधन अंतरिम सरकार के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण मामलों में से एक बन गया है. इस यात्रा में प्रारंभिक चर्चा आर्थिक मोर्चे को लेकर ही हुई. बांग्लादेश और चीन के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.
इसके अलावा दोनों देशों ने साहित्य और प्रकाशन, सांस्कृतिक विरासत आदान-प्रदान और सहयोग, समाचार आदान-प्रदान, मीडिया, खेल और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आठ समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं.
सहाबुल हक़ बांग्लादेश-चीन एलुमनाई एसोसिएशन के सचिव और सिलहट के शाहजलाल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में राजनीतिक अध्ययन विभाग के प्रोफे़सर हैं.
प्रोफ़ेसर सहाबुल हक़ यात्रा के दौरान हुए समझौतों को आर्थिक दृष्टि से बांग्लादेश के लिए एक उपलब्धि के रूप में देखते हैं.
प्रोफे़सर हक़ ने बीबीसी बांग्ला को बताया, “इस यात्रा के दौरान चीन से प्राप्त 2.1 बिलियन डॉलर के निवेश और कर्ज के प्रस्ताव से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की गति और तेज़ होगी.”
वार्ता के दौरान चीन ने कहा कि वह मोंगला बंदरगाह को विकसित करने के लिए काम करेगा. हालांकि, चीन और भारत पहले से ही इस परियोजना में अलग-अलग भूमिकाओं में शामिल थे. विश्लेषकों का मानना है कि चीन अब पूरा काम नए सिरे से कर सकता है.
पूर्व राजनयिक मुंशी फ़ैज़ अहमद ने कहा, “इसके अलावा दो विशेष औद्योगिक क्षेत्रों में कुछ निवेश आ सकता है. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है. अगर इसे लागू किया जा सके तो यह एक अच्छा और सकारात्मक पहलू है.”
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तीस्ता नदी और भारत के साथ विवाद
बांग्लादेश की सरकारी समाचार एजेंसी बीएसएस के अनुसार, प्रोफे़सर यूनुस ने सैकड़ों विशाल नदियों और जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए चीन से 50 वर्षीय मास्टर प्लान मांगा है.
मुख्य सलाहकार की यात्रा के बाद बांग्लादेश और चीन की ओर से जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि बांग्लादेश तीस्ता नदी के प्रबंधन और पुनर्वास परियोजना में चीनी कंपनियों की भागीदारी का स्वागत करता है.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी में पानी के बंटवारे को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है.
यात्रा के दौरान जल संसाधन प्रबंधन में नदी प्रशासन और ड्रेज़िग (पानी के नीचे की मिट्टी, जैसे रेत या बजरी को निकालना) सहित कई मुद्दों पर चर्चा की गई. विश्लेषक इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं.
चीन ने बांग्लादेश सरकार के अनुरोध पर 2021 में तीस्ता नदी पर एक सर्वे किया था.
प्रोफे़सर सहाबुल हक़ कहते हैं, “भारत की आपत्ति के कारण उस समय इसे रोक दिया गया था. बाद में प्रोफे़सर यूनुस ने उनसे (चीन से) फिर से काम शुरू करने का अनुरोध किया है.”
इस बीच, पूर्व राजनयिक मुंशी फै़ज़ ने कहा कि तीस्ता मुद्दे पर चीन के साथ पहले से ही एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) है.
पूर्व राजनयिक कहते हैं, “यह भी नवीनीकरण का मामला था. इस बार चीन को यात्रा में ज़्यादा मौक़े नहीं दिए गए. अगर दिए जाते तो चीन ख़ुश होता, लेकिन संभवतः यह रणनीतिक कारणों से हुआ. जो मेरे विचार में सकारात्मक लगता है.”
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रोहिंग्या संकट के समाधान की उम्मीद
इस साल बांग्लादेश-चीन राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ या स्वर्ण जयंती है. विश्लेषक इसे दोनों देशों के बीच संबंधों में एक मील का पत्थर मानते हैं.
इस यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक में मुहम्मद यूनुस ने चीन से शांति, समृद्धि और स्थिरता स्थापित करने में अधिक मज़बूत भूमिका निभाने का आह्वान किया.
2017 में आठ लाख से अधिक रोहिंग्याओं के बांग्लादेश में प्रवेश के बाद, अलग-अलग समय पर पर बड़ी संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश पहुंचे हैं.
शेख हसीना की सरकार ने भी रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजने की पहल की थी, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली.
मुंशी फै़ज़ अहमद ने कहा, “इस यात्रा के दौरान रोहिंग्या मुद्दे पर भी बहुत गंभीरता से चर्चा हुई. लेकिन फिलहाल हमें कोई नई पहल के संकेत नहीं दिख रहे हैं. हालांकि, इसके जरिए निश्चित रूप से और अधिक चर्चाएं होंगी. हमें यह देखने के लिए थोड़ा और इंतज़ार करना होगा कि इसमें कुछ नया निकलकर आता है या नहीं.”
विश्लेषकों का कहना है कि चीन के म्यांमार के साथ अच्छे संबंध हैं. म्यांमार में चीन की कई परियोजनाएं हैं. ऐसी स्थिति में, यदि चीन को राज़ी किया जा सके तो बांग्लादेश में रोहिंग्या संकट का समाधान संभव है.
प्रोफे़सर सहाबुल हक़ मानते है कि चूंकि म्यांमार के चीन के साथ अच्छे संबंध हैं, इसलिए अगर चीन चाहे तो म्यांमार सरकार को मनाकर पहल कर सकता है.
उन्होंने कहा, “चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि वे दोनों पक्षों के साथ मिलकर यह पहल करेंगे. यदि चीन पहल करता है तो उचित समाधान संभव है.”
वन चाइना पॉलिसी और ताइवान का मुद्दा
मोहम्मद यूनुस और शी जिनपिंग के बीच बैठक के बाद जारी संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में दोनों देशों की क्षेत्रीय अखंडता के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया.
जबकि बांग्लादेश की ओर से ‘वन चाइना’ पॉलिसी के प्रति समर्थन व्यक्त करते हुए ताइवान को चीन का अभिन्न अंग बताया गया है.
ताइवान दक्षिण चीन सागर में एक द्वीप है और इसे लेकर बहस होती है कि ताइवान चीन का हिस्सा है या नहीं.
चीन की ओर से जारी संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि वह अन्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और बांग्लादेश की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध है.
बांग्लादेश ने हमेशा वन चाइना पॉलिसी का पालन किया है. इसलिए चीन में बांग्लादेश के पूर्व राजदूत मुंशी फै़ज़ अहमद का मानना है कि घोषणा में इसका ज़िक्र होना सामान्य है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.