अक्टूबर महीने की शुरुआत में इसराइल पर किए गए ईरान के मिसाइल हमले और अब ईरान पर इसराइल के हवाई हमलों के बाद दुनिया भर की नज़रें एक बार फिर मध्य पूर्व पर केंद्रित हो गई हैं जहां एक-एक हिंसक विवाद अब हर गुज़रते दिन के साथ और ख़तरनाक होता जा रहा है.
स्टॉक मार्केट्स से लेकर अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नज़र रखने वाले विश्लेषकों तक.. सभी मध्य पूर्व की ताज़ा स्थिति और विभिन्न पक्षों के अगले क़दम के बारे में बात करने की कोशिश कर रहे हैं. इन सब के बीच दुनिया की तीन बड़ी शक्तियां अमेरिका, चीन और रूस इस विवाद का हल तलाश करने में नाकाम दिखाई देती हैं.
हमास के इसराइल पर पिछले साल 7 अक्टूबर के हमले के बाद मध्य पूर्व में बढ़ने वाला तनाव अब ग़ज़ा, लेबनान और यमन के बाद ईरान तक फैलता हुआ नज़र आ रहा है. इसराइली हमले में अब तक हमास और हिज़्बुल्लाह के सीनियर नेताओं समेत हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं.
इस युद्ध के दौरान इसराइल अपने दुश्मनों, जिसमें हिज़्बुल्लाह, हमास और ईरान शामिल हैं, के ख़िलाफ़ कामयाब कार्रवाइयां करता हुआ नज़र आया है.
पिछले दिनों लेबनान में इसराइली हमले में हिज़्बुल्लाह के प्रमुख हसन नसरल्लाह समेत संगठन के कई नेता भी मारे गए हैं और उनके अलावा हिज़्बुल्लाह के कई सीनियर नेता पहले भी मारे जा चुके हैं.
इस साल ईरानी राजधानी तेहरान में जुलाई में हुए एक ऐसे ही हमले में हमास के प्रमुख इस्माइल हनिया भी मारे गए थे. इसराइल ने इस हमले की ज़िम्मेदारी तो क़बूल नहीं की थी लेकिन समझा यही जाता है कि इस हमले के पीछे तेल अवीव ही था.
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन में शामिल कई देश न केवल ग़ज़ा बल्कि लेबनान में भी युद्ध रोकने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह कोशिशें अब तक कारगर साबित नहीं हुई हैं.
अमेरिका समेत कई देशों को यह डर है कि ग़ज़ा और लेबनान में लड़ी जाने वाली जंग पूरे मध्य पूर्व में भी फैल सकती है. पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में अपने भाषण के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि युद्ध किसी के भी हित में नहीं है.
उन्होंने कहा था, “इस समस्या का कूटनीतिक हल अब भी मुमकिन है बल्कि दीर्घकालिक सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने का रास्ता भी यही है.”
लेकिन हर तरह की अपीलों के बावजूद इसराइल ने ग़ज़ा और लेबनान में अपने हमले जारी रखे हैं और ईरान के हमले के बाद इसराइल की ओर से ईरान पर हमले की धमकी दी गई थी.
7 अक्टूबर 2023 के बाद से ग़ज़ा पर इसराइल की लगातार बमबारी के नतीजे में ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार अब तक 40 हज़ार से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं. इसी तरह सितंबर 2024 में लेबनान पर इसराइली हवाई हमले में मारे जाने वालों की संख्या एक हज़ार से अधिक है.
दूसरी ओर ग़ज़ा पट्टी में पिछले एक साल से अधिक समय में हमास के ख़िलाफ़ की गई ज़मीनी कार्रवाइयों के दौरान इसराइल के दर्जनों सैनिक मारे गए और घायल हुए हैं. हिज़्बुल्लाह की ओर से 7 अक्टूबर के बाद से इसराइल पर रॉकेट दागे जाने का सिलसिला भी जारी रहा और इसराइली प्रधानमंत्री का दावा है कि पिछले एक साल के दौरान हिज़्बुल्लाह की ओर से इसराइल के विभिन्न इलाक़ों पर कुल मिलाकर आठ हज़ार से अधिक रॉकेट दागे जा चुके हैं.
यमन के हूती लड़ाके भी ग़ज़ा की लड़ाई की शुरुआत के बाद से लाल सागर में इसराइल आने और जाने वाले समुद्री जहाज़ों को निशाना बनाते आए हैं.
इससे पहले इस साल अप्रैल की शुरुआत में ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के दो सीनियर कमांडर सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर होने वाले मिसाइल हमले में मारे गए थे. इसराइल की ओर से इस हमले की भी ज़िम्मेदारी क़बूल नहीं की गई थी लेकिन आम राय यही है कि इस हमले के पीछे भी इसराइल ही था.
इसराइल का कहना है कि वह मध्य पूर्व में यह सभी कार्रवाइयां अपनी रक्षा में कर रहा है. पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के दौरान इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का कहना था कि इसराइल शांति का इच्छुक है… “मगर फिर भी हमें वहशी दुश्मनों का सामना करना है जो हमारी तबाही चाहते हैं और हमें उनके ख़िलाफ़ अपनी रक्षा करनी चाहिए.”
उन्होंने ईरान की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि इसराइल ईरान से मिलने वाले ख़तरे से निपटने के लिए सात अलग-अलग मोर्चों पर अपनी रक्षा कर रहा है. उन्होंने अपने भाषण के अंत में कहा कि इसराइल यह जंग जीतेगा “क्योंकि यह जंग जीतने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है.”
लेबनान का मोर्चा गर्म होने से पहले अमेरिका इसराइल और हमास के बीच संघर्ष रुकवाने के लिए वार्ता की कोशिश भी करता रहा है लेकिन यह वार्ता अब तक गतिरोध का शिकार है.
लेकिन अब भी प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की ओर से जारी होने वाले बयानों को देखकर यही लगता है कि संघर्ष ख़त्म करने की मांग और कूटनीतिक कोशिशों का इसराइल पर कोई असर नहीं हो रहा.
पिछले महीने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर शेयर किए गए ईरानी जनता के नाम तीन मिनट के वीडियो संदेश में इसराइली प्रधानमंत्री का कहना था, “मध्य पूर्व में कोई ऐसी जगह नहीं जहां इसराइल नहीं पहुंच सकता और कोई ऐसा स्थान नहीं जहां हम अपने लोगों और देश की सुरक्षा के लिए नहीं जा सकते.”
उन्होंने ईरानी जनता को संबोधित करते हुए कहा कि हर गुज़रते लम्हे के साथ (ईरानी) सरकार ‘सम्मानित ईरानी जनता’ को तबाही के पास ले जा रही है.
नेतन्याहू ने कहा कि जब ईरान “अंततः आज़ाद हो जाएगा” तो सबकुछ बदल जाएगा और दोनों देशों के लोग अमन से रह सकेंगे.
इसराइली प्रधानमंत्री का कहना था, “जुनूनी मुल्लाओं को अपनी उम्मीदें और सपने कुचलने न दें, आप इससे बेहतर के अधिकारी हैं. ईरानी जनता जान ले कि इसराइल आपके साथ खड़ा है. हम साथ मिलकर ख़ुशहाल और शांतिपूर्ण भविष्य देखेंगे.”
ईरान के मिसाइल हमलों और इसराइल के हवाई हमलों के बाद यह सवाल पैदा होता है कि दुनिया की बड़ी शक्तियां आख़िर इस विवाद में शामिल पक्षों को युद्ध रोकने के लिए तैयार क्यों नहीं कर पा रहीं और अमेरिका के अलावा रूस और चीन जैसी विश्व शक्तियां इस मामले पर कोई प्रभावी भूमिका क्यों नहीं अदा कर पा रहीं?
मध्य पूर्व और अंतरराष्ट्रीय विदेश नीति पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों और विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के बीच असहयोग और अमेरिका की अंदरूनी राजनीति कुछ ऐसी बातें हैं जिसके कारण इसराइल को युद्ध रोकने के लिए तैयार करना मुश्किल हो रहा है.
अमेरिका, चीन और रूस क्यों नहीं रोक पा रहे?
एक ओर अमेरिका मध्य पूर्व में किसी बड़े युद्ध को रोकने की कोशिश कर रहा है तो दूसरी ओर सहयोगी के तौर पर इसराइल को सैनिक शक्ति बढ़ाने के लिए अरबों डॉलर की मदद भी कर रहा है.
पिछले महीने इसराइल ने कहा था कि अमेरिका की ओर से आठ अरब 70 करोड़ डॉलर का सहायता पैकेज मिला है ताकि वह अपनी सैनिक कार्रवाइयों को जारी रख सके.
चीनी थिंक टैंक ताईही इंस्टीट्यूट के सीनियर फ़ेलो इनार तांजीन कहते हैं, “एक तरफ़ अमेरिका युद्ध ख़त्म करने की बात करता है लेकिन दूसरी तरफ़ वह (इसराइल को) हथियार, गोला बारूद और इंटेलिजेंस सपोर्ट दे रहा है जिसका इस्तेमाल महिलाओं और बच्चों समेत हज़ारों आम नागरिकों की हत्या के लिए किया जा रहा है.”
अमेरिका अब तो युद्ध समाप्त करने की बात कर रहा है लेकिन अतीत में उसकी ओर से संयुक्त राष्ट्र में युद्ध समाप्त करने के प्रस्तावों को रोका भी गया है.
इसके बारे में अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रतिनिधि मार्ग्रेट मैक्लॉविड ने बीबीसी को बताया, “हमने उसी प्रस्ताव का विरोध किया जिसमें हमास के आतंकवाद को नज़रअंदाज़ किया गया या जिसमें इसराइल के रक्षा अधिकार को नज़रअंदाज़ किया गया.”
दूसरी ओर रूस और चीन जैसी दूसरी बड़ी शक्तियां बयानों की हद तक तो ऐसे हमलों की निंदा करती हुई नज़र आती हैं जिनसे क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका हो लेकिन उनकी ओर से अब तक कोई व्यावहारिक उपाय देखने में नहीं मिले हैं.
हाल के वर्षों में दुनिया भर में चीन का प्रभाव बढ़ता हुआ नज़र आया है. इस प्रभाव का उदाहरण यह है कि पिछले साल चीन की कोशिशों से लगभग सात वर्षों के बाद ईरान और सऊदी अरब के संबंध बहाल हो गए थे.
लेकिन लेबनान में इसराइली हमले में हसन नसरल्लाह समेत हिज़्बुल्लाह के कई सीनियर नेताओं की मौत के बाद चीन ने केवल इतना ही कहा कि वह लेबनान की स्वायत्तता और सुरक्षा के ‘उल्लंघन’ का विरोध करता है और आम नागरिकों के ख़िलाफ़ की जाने वाली कार्रवाइयों की निंदा करता है.
चीन के विदेश मंत्रालय का यह भी कहना था कि लेबनान और इसराइल के बीच तनाव ग़ज़ा में विवाद के कारण बढ़ा है और यह कि चीन को क्षेत्र में बढ़ते हुए तनाव पर चिंता है.
“चीन सभी संबंधित पक्षों, विशेष कर इसराइल से अनुरोध करता है कि वह स्थिति को ठीक करने के लिए उपाय करें और इस विवाद को अनियंत्रित होने से रोकें.”
दूसरी ओर रूस है जो कि इस क्षेत्र में ईरान का महत्वपूर्ण सहयोगी भी है. इसकी भी इस विवाद को हल करने के लिए कोई प्रभावी भूमिका अब तक नज़र नहीं आई है हालांकि मध्य पूर्व की स्थिति की उसने भी निंदा की है.
पिछले महीने क्रेमलिन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि रूस हिज़्बुल्लाह के प्रमुख की हत्या की निंदा करता है. उसने यह भी कहा कि इसके कारण मध्य पूर्व में व्यापक युद्ध की आशंकाएं बढ़ गई हैं.
क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेसकॉफ़ का कहना था कि रूस ऐसी सभी कार्रवाइयों की निंदा करता है जिसके कारण क्षेत्र की स्थिति और तनावपूर्ण हो जाए.
अमेरिकी थिंक टैंक स्टिम्सन सेंटर की फ़ेलो बारबरा स्लावन कहती हैं कि साल 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले और रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद दोनों देशों के संबंध बेहद बिगड़ चुके हैं.
वह कहती हैं कि चीन और अमेरिका के संबंध में मौजूदा ठंडापन भी किसी से छिपा नहीं है और ऐसे में चीन क्यों मध्य पूर्व में विवाद को ख़त्म करने के लिए अमेरिका के साथ सहयोग करेगा?
इसके बारे में इनार तांजीन कहते हैं कि चीन इस स्थिति में नहीं है कि वह अमेरिका को या परमाणु शक्ति संपन्न इसराइल को डिक्टेट कर सके.
“चीन ने हमेशा ही युद्ध ख़त्म करने की मांग की है और ऐसी वार्ता का समर्थन किया है जिससे (इसराइल और फ़लस्तीन की समस्या का) ‘द्विराष्ट्रीय हल’ संभव हो सके.”
ध्यान रहे कि दशकों से यही समझा जाता रहा है कि इसराइल के पास परमाणु हथियार मौजूद हैं लेकिन उसकी ओर से कभी इस बात की पुष्टि या इसका खंडन नहीं किया गया.
इसराइल पर अमेरिकी प्रभाव कम करने की वजह क्या चुनाव है?
अमेरिका में इस साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहा है जिसमें अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के बीच कांटे के मुक़ाबले की उम्मीद है.
स्टिम्सन सेंटर से जुड़ी बारबरा स्लावन कहती हैं कि बाइडन प्रशासन इसराइल समर्थक स्टैंड रखता है.
“हम सबको पता है कि जो बाइडन हथियार उपलब्ध कराने को सीमित कर इसराइल पर असल दबाव डालने में हमेशा हिचकिचाहट का शिकार रहे हैं.”
बारबरा कहती हैं, “अब जबकि अमेरिकी चुनाव कुछ ही हफ़्ते दूर है तो मुझे नहीं लगता कि बाइडन या कमला हैरिस दोनों इसराइल के ख़िलाफ़ सख़्त फ़ैसलों का प्रस्ताव देंगे क्योंकि इससे ट्रंप को दोबारा राष्ट्रपति बनने में मदद मिल सकती है.”
ध्यान रहे कि बतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साल 2017 में यरूशलम को इसराइली राजधानी मान लिया था जिस पर कई देशों ने अपनी आपत्ति जताई थी.
बारबरा कहती हैं, “लेकिन अगर कमला हैरिस जीत जाती हैं तो क्या पता हमें ग़ज़ा और लेबनान में युद्ध रोकने के लिए अमेरिकी दबाव बढ़ता हुआ नज़र आए. लेकिन इन सब का दारोमदार इस बात पर होगा कि इसराइल और ईरान इस विवाद के वर्तमान दौर में कहां लकीर खींचते हैं.”
अंतरराष्ट्रीय नेता ईरान और हमास व हिज़्बुल्लाह समेत उसके सहयोगियों पर ज़ोर देते रहे हैं कि वह इसराइल के ख़िलाफ़ ऐसे जवाबी हमले न करें जो क्षेत्र में और तनाव को बढ़ा सकते हैं. ईरान में इस्माइल हनिया की हत्या के बाद ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी ने एक संयुक्त बयान में ईरान पर ज़ोर दिया था कि वह इसराइल के ख़िलाफ़ कार्रवाई से बचे लेकिन ईरान ने इस अनुरोध को ‘ज़रूरत से बड़ा अनुरोध’ बता दिया था.
लेबनान में हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद ईरान के विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा था कि ईरान, लेबनान या ग़ज़ा में अपनी सेना नहीं भेजेगा. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नसीर कनआनी का कहना था कि ईरानी सुरक्षा बलों को भेजने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि लेबनान और फ़लस्तीन के इलाक़े में मौजूद लड़ाके आक्रामकता के ख़िलाफ़ अपनी रक्षा करने की क्षमता और शक्ति रखते हैं.
दूसरी ओर अमेरिकी प्रशासन भी मानता है कि संघर्ष समाप्त करने के लिए अमेरिकी कोशिशें अभी तक नाकाम नज़र आई हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रतिनिधि मार्ग्रेट मैक्लॉविड कहती हैं, “जब तक संघर्ष विराम नहीं होगा तब तक मैं ये नहीं कहूंगी कि अमेरिकी सरकार ने काफ़ी काम किया है.”
“हम समझते हैं कि वह विवाद जो इसराइल और हमास के बीच चल रहा है उसका कूटनीति से हल होना चाहिए.”
उन्होंने इसराइल और लेबनान से आने वाली ख़बरों को चिंताजनक बताते हुए कहा कि 7 अक्तूबर के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन मध्य पूर्व के 11 दौरे कर चुके हैं क्योंकि अमेरिका की इच्छा है कि यह मामला कूटनीति से हल हो.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित