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चैंपियंस ट्रॉफ़ी के सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में जब केएल राहुल ने 48वें ओवर की पहली गेंद पर छक्का जड़कर भारत की जीत पक्की की, तो ये एक साथ दो देशों के क्रिकेट प्रशंसकों की निराशा की वजह बना.
इस नतीजे से ऑस्ट्रेलिया चैंपियंस ट्रॉफ़ी से बाहर हो गया और दूसरा भारत की जीत के कारण अब चैंपियंस ट्रॉफ़ी के फ़ाइनल मुक़ाबले की मेज़बानी का मौका पाकिस्तान के हाथ से निकल गया.
सेमीफ़ाइनल मैच भारत ने चार विकेटों से जीता. अगर ऑस्ट्रेलिया विजेता होता, तो चैंपियंस ट्रॉफ़ी फ़ाइनल पाकिस्तान में खेला जाता.
पाकिस्तान 1996 के बाद पहली बार किसी आईसीसी इवेंट की मेज़बानी कर रहा है, लेकिन वह ग्रुप स्टेज का एक भी मैच जीत नहीं सका और टूर्नामेंट के पहले सप्ताह में ही उसका सफ़र ख़त्म हो गया.
लेकिन क्रिकेट प्रशंसक ये उम्मीद लगा रहे थे कि अगर फ़ाइनल मैच पाकिस्तान में हो तो शायद ये अपनी टीम की हार से मिली टीस को कम करने में मदद करे.
भारत को मिला फ़ायदा?
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पाकिस्तान के लिए चैंपियंस ट्रॉफ़ी इसलिए भी ख़ास थी क्योंकि वह डिफ़ेंडिंग चैंपियन था.
साल 2017 में जब आख़िरी बार चैंपियंस ट्रॉफ़ी का आयोजन हुआ था तो पाकिस्तान ने भारत को हराकर ही ये ख़िताब अपने नाम किया था.
हालांकि, इस बार कराची में चैंपियंस ट्रॉफ़ी के पहले मुक़ाबले में ही उसे न्यूज़ीलैंड से 60 रनों की हार मिली.
इसके बाद दुबई में भारत के ख़िलाफ़ भी मोहम्मद रिज़वान की टीम का प्रदर्शन फ़ीका रहा और वो हार गई.
इसके अगले दिन जब न्यूज़ीलैंड ने बांग्लादेश को पाँच विकेट से हराया तो इस नतीजे ने पाकिस्तान के चैंपियंस ट्रॉफ़ी के सफ़र पर भी विराम लगा दिया.
रावलपिंडी में पाकिस्तान और बांग्लादेश को 27 फ़रवरी को मैच खेलना था, लेकिन ये मैच बारिश की वजह से धुल गया और पाकिस्तान एक भी मैच नहीं जीत सकी.
पाकिस्तान ने 1996 में भारत और श्रीलंका के साथ मिलकर वर्ल्ड कप की मेज़बानी की थी. उस समय श्रीलंका ने ये ख़िताब जीता था.
लेकिन साल 2009 में जब यही श्रीलंकाई टीम पाकिस्तान के दौरे पर थी, तो उनकी बस पर चरमपंथी हमला हुआ, जिसने पाकिस्तान के लिए मुश्किलें बढ़ाईं और उसे आईसीसी के इवेंट होस्ट करने का मौका नहीं मिला.
हालांकि, साल 2021 में पाकिस्तान को एक बार फिर चैंपियंस ट्रॉफ़ी की मेज़बानी के लिए चुने जाने की घोषणा हुई, लेकिन 2025 में हो रहे इस टूर्नामेंट में भारत ने सुरक्षा का मुद्दा उठाते हुए पाकिस्तान में खेलने से इनकार कर दिया और अपने सारे मैच पाकिस्तान की बजाय दुबई में खेले.
इससे पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और वहां के आम लोगों में भी नाराज़गी देखने को मिली.
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पाकिस्तानी न्यूज़ ऑउटलेट ‘द डॉन’ के खेल संपादक अब्दुल गफ़्फ़ार भी इन्हीं में से एक हैं.
उन्होंने सेमीफ़ाइनल में भारत की जीत के बाद एक वीडियो के ज़रिए ये नाराज़गी ज़ाहिर भी की और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई को भी निशाने पर लिया है.
उन्होंने कहा कि चैंपियंस ट्रॉफ़ी में भी टीमों को एक से दूसरी जगह पर घूमना पड़ा. ये सब कैसे जायज़ हो सकता है? ये कैसे बराबरी है? अगर भारत पाकिस्तान में खेलता और चैंपियंस ट्रॉफ़ी जीतता तो मज़ा आता.
गफ़्फ़ार ने ये भी कहा कि अगर यूएई में खेलना ही था तो कम से कम दो-तीन अलग ग्राउंड पर मैच होने चाहिए थे.
कुछ ऐसा ही दक्षिण अफ़्रीका के क्रिकेटर रैसी वेन डेर डसेन ने भी कहा. बल्कि उन्होंने ये भी कहा कि किसी को ये समझने के लिए रॉकेट साइंटिस्ट होने की ज़रूरत नहीं है कि एक से दूसरे शहर सफ़र करने की बजाय एक ही मैदान पर खेलने से भारत फ़ायदेमंद स्थिति में है.
हालांकि, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा इस सवाल पर जवाब दे चुके हैं. उन्होंने कहा कि दुबई भारत का होमग्राउंड नहीं है.
रोहित शर्मा ने कहा, “हमने यहां जितने मैच खेले, उसमें पिच का रुख अलग-अलग दिखा. पिच दिखती एक सी हैं लेकिन जब आप इसपर खेलते हैं तो यहां अलग तरीके का खेल दिखता है. एक बल्लेबाज़ के तौर पर पिच आपको हर बार अलग चुनौती देती है.”
कप्तान रोहित शर्मा के इस बयान के बावजूद कई लोगों का मानना है कि भारत को सिर्फ़ एक ही मैदान पर खेलने का फ़ायदा हुआ है.
पूर्व भारतीय क्रिकेटर सबा करीम हालांकि, इस दावे को सिरे से ख़ारिज करते हैं.
वह कहते हैं, “ये बेबुनियाद बातें हैं. जब भारत ने एक बार ये कह दिया कि वह पाकिस्तान नहीं जा सकता, तब दुबई में मैच खेलने का निर्णय आईसीसी ने लिया है. मैं उदाहरण दूंगा यहां कि पिछले दो चैंपियंस ट्रॉफ़ी इंग्लैंड में हुई, अगर पिच का फ़ायदा होता तो उस लिहाज़ से तो इंग्लैंड को जीतने चाहिए थे ये दोनों टूर्नामेंट. ओडीआई विश्व कप भारत में हुआ, तो वह भारत को जीत लेना चाहिए था.”
सबा करीम कहते हैं कि अच्छी बात ये है कि भारतीय कप्तान रोहित शर्मा और टीम इन सब बातों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं.
पाकिस्तान को क्या हासिल हुआ?
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भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच सेमीफ़ाइनल मैच पूरा होने से पहले तक शोएब अख़्तर, शोएब मलिक और मोहम्मद हाफ़िज़ समेत पाकिस्तान के कई पूर्व क्रिकेटर और आम लोग ये उम्मीद जता रहे थे कि फ़ाइनल उनके मुल्क़ में होगा.
क्रिकेट प्रेम के अलावा इसके पीछे एक बड़ी वजह आर्थिक भी हो सकती है. दरअसल, पाकिस्तान ने चैंपियंस ट्रॉफ़ी के लिए भारी रकम खर्च कर के अपने तीन बड़े अंतरराष्ट्रीय स्टेडियमों को तैयार किया था.
इसके तहत लाहौर में गद्दाफ़ी स्टेडियम, कराची में नेशनल बैंक स्टेडियम और रावलपिंडी क्रिकेट स्टेडियम का पुनर्निर्माण किया गया, जिसमें पाकिस्तान को 18 अरब पाकिस्तानी रुपये खर्च करने पड़े.
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड यानी पीसीबी ने स्टेडियमों के पुनर्निर्माण का काम पूरा करने के लिए अपने बाकी खर्चों को रद्द करने का भी फ़ैसला लिया.
पीसीबी के अध्यक्ष मोहसिन नक़वी ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया भी कि अतिरिक्त खर्चे की भरपाई करने के लिए आईसीसी के साथ एक समझौता हुआ. इस सौदे के तहत चैंपियंस ट्रॉफ़ी मैच के लिए टिकटों की बिक्री से होने वाली आय से तीन गुना अधिक राशि आईसीसी पीसीबी को देगी.
चैंपियंस ट्रॉफ़ी को अक़्सर ‘मिनी वर्ल्ड कप’ कहा जाता है, जिसमें आईसीसी रैंकिंग में शीर्ष आठ टीमें हिस्सा लेती हैं.
और इस मिनी वर्ल्ड कप पर इतना खर्च करने वाला पाकिस्तान खुद इसके सेमीफ़ाइनल में भी जगह नहीं बना सका. वह भी तब जब पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली छिपी नहीं है. उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सात अरब डॉलर का कर्ज़ मिले साल भी नहीं गुज़रा है.
ऐसे में सवाल है कि पाकिस्तान को इतना बड़ा इवेंट होस्ट कर के हासिल क्या हुआ?
सबा करीम का मानना है कि भले ही पाकिस्तानी टीम का चैंपियंस ट्रॉफ़ी में सफ़र अच्छा नहीं रहा, लेकिन पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के लिए इस टूर्नामेंट की मेज़बानी कोई घाटे की बात नहीं रही.
वह कहते हैं, “चैंपियंस ट्रॉफ़ी बहुत ही प्रतिष्ठित टूर्नामेंट है. मेरे हिसाब से पाकिस्तान इसे इसलिए होस्ट करना चाह रहा था कि वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ये संदेश दे सके कि पाकिस्तान भी बहुत सुरक्षित जगह है, जहाँ अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट हो सकते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो उन्होंने जिस हिसाब से चैंपियंस ट्रॉफ़ी होस्ट की है, उनका तो मक़सद पूरा हो गया है. ये दिखाना चाहते थे कि पाकिस्तान में भी अब लोग मैच खेलने, देखने आ सकते हैं. उसमें कोई दिक्कत नहीं होती है, उनका मक़सद यही था.”
उन्होंने कहा कि टीम का बने रहना, फ़ाइनल तक जाना टीम के सदस्यों पर निर्भर करता है. पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड जो एक संस्था है, वो अपनी कोशिश में कामयाब रहा है.
डॉन न्यूज़ के खेल संपादक अब्दुल गफ़्फ़ार ने अपने वीडियो में बिना नाम लिए बीसीसीआई पर निशाना साधा और कहा, “कभी किसी खेल में ऐसा हुआ है कि एक बोर्ड सिर्फ़ पैसे के बल पर पूरे के पूरे खेल पर राज करे. एक तरह से हाईजैक कर ले. ठीक है कि आप पैसा कमाते हैं, लेकिन हर टीम भारत के साथ खेलने उतरती है तो वो पैसा कमाता है. भारत अकेले आपस में खेलकर पैसा नहीं कमाता है.”
लेकिन सबा करीब का कहना है कि भारत के पाकिस्तान जाकर न खेलने के फ़ैसले में बीसीसीआई की कोई भूमिका नहीं है.
वह कहते हैं, “भारत का पाकिस्तान जाकर मैच खेलना, निर्भर करता है गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया पर. बीसीसीआई एक ऐसी संस्था है, जो इस तरह के निर्णय सरकार पर छोड़ देती है. चाहे वो पाकिस्तान जाना हो, इंग्लैंड जाना हो या न जाना हो. एक बार जब सरकार की ओर से ये निर्देश आ जाता है कि आप वहां नहीं जा सकते तो वो नहीं जाते हैं. इसमें क्रिकेट टीम या बीसीसीआई का कोई हाथ नहीं होता है. बीसीसीआई कितनी भी उदारता दिखा दे, लेकिन वो निर्णय गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया पर ही निर्भर करता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित