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कश्मीर घाटी की बडगाम विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने वाला है. इस सीट पर आग़ा क़बीले के तीन उम्मीदवारों के चुनावी मैदान में उतरने के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज़ हैं.
ये तीनों उम्मीदवार अलग-अलग राजनीतिक दलों के टिकट पर आमने-सामने हैं.
साल 2024 के विधानसभा चुनाव में उमर अब्दुल्लाह ने गांदरबल और बडगाम दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था.
उन्हें दोनों ही सीटों पर जीत मिली थी. इस जीत के बाद उन्होंने बडगाम की सीट छोड़ दी थी.
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बडगाम सीट पर उन्होंने पीडीपी उम्मीदवार आग़ा सैयद मुंतज़िर मेहदी को 18,445 वोटों से हराया था, जबकि गांदरबल सीट पर उन्होंने पीडीपी उम्मीदवार बशीर अहमद मीर को मात दी थी.
साल 1977 से ही बडगाम सीट को नेशनल कॉन्फ्रेंस का गढ़ माना जाता रहा है.
चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि ये उपचुनाव उमर अब्दुल्लाह सरकार की लोकप्रियता की पहली बड़ी परीक्षा है.
16 अक्तूबर को उमर अब्दुल्लाह सरकार ने एक साल पूरा कर लिया है.

बडगाम का आग़ा क़बीला?
बडगाम सीट से कुल 17 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.
आग़ा क़बीला बडगाम का एक मज़बूत धार्मिक और राजनीतिक क़बीला माना जाता है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आग़ा सैयद रूहुल्लाह भी इसी क़बीले से हैं.
पीडीपी, एनसी और बीजेपी के जो उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, वे सभी एक ही क़बीले से संबंध रखते हैं.
नेशनल कॉन्फ्रेंस की टिकट पर पूर्व मंत्री आग़ा सैयद महमूद चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पीडीपी की तरफ़ से आग़ा सैयद मुंतज़िर मेहदी और बीजेपी की तरफ़ से आग़ा सैयद मोहसिन मैदान में हैं.
यहां 11 नवंबर को मतदान होगा और 14 नवंबर को मतगणना की जाएगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, इस सीट पर नौ उम्मीदवार करोड़पति हैं और तीन पर मुक़दमे दर्ज हैं.
वरिष्ठ पत्रकार नसरुल्लाह ग़ाज़ी बताते हैं कि इस सीट पर मुख्य मुक़ाबला एनसी और पीडीपी के बीच है.
उनका कहना है कि बीजेपी को भी यहां से अच्छे वोट मिल सकते हैं.
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कब हुए थे जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव?
जम्मू-कश्मीर में इस समय नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार है.
साल 2024 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 42 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी 28 सीटें जीतकर केंद्र शासित प्रदेश में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं.
साल 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया था.
साल 2024 में 10 साल बाद यहां विधानसभा चुनाव कराए गए थे. इससे पहले आख़िरी चुनाव 2014 में हुए थे.
राज्य का दर्जा देने की मांग पर क्या बोले आग़ा सैयद महमूद?
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बडगाम में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार आग़ा सैयद महमूद का कहना है कि वे इस चुनाव को विकास के मुद्दों पर लड़ रहे हैं.
वह कहते हैं, “हमारे चुनावी क्षेत्र में कई मुद्दे हैं, जो सीधे विकास से जुड़े हैं. मेरी पहली तरजीह विकास है. और एक ही क़बीले के कई लोगों का चुनाव लड़ना कोई हैरानी वाली बात नहीं है. मेरा इरादा लोगों की समस्याओं का हल करना है.”
“स्टेटहुड और आर्टिकल 370 का मसला तो बहुत बड़ा मसला है, लेकिन यहां लोगों को पीने वाले पानी की दिक्कत है जिसका समाधान मुझे करना है.”
एक ही क़बीले के तीन लोगों के चुनावी मैदान में होने के सवाल पर वो कहते हैं, “पहले तो मैं ये साफ़ करता हूं कि आग़ा क़बीले से यहां तीन उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि आग़ा क़बीले के दो ही उम्मीदवार हैं. तीसरा उम्मीदवार अपने नाम के साथ आग़ा जोड़ता है, लेकिन, वो हमारे आग़ा क़बीले से नहीं हैं. ये तो एक तरह से नाम का शोषण है.”
‘राजनीति अलग है लेकिन मक़सद एक’
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पीडीपी के नेता और बडगाम सीट के उम्मीदवार आग़ा मुंतज़िर मेहदी का भी कहना है कि वो विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं.
वह बताते हैं कि आने वाले दिनों में जब पीडीपी को इस चुनाव में जीत मिलेगी तो लोगों का ये वर्डिक्ट 2019 के बाद यहां हुए हर फ़ैसले के ख़िलाफ़ एक विरोध प्रदर्शन होगा.
बडगाम में पीडीपी के ये उम्मीदवार जाने-माने शिया धार्मिक गुरु और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता आग़ा सैयद हसन मोसवी के बेटे हैं.
मुंतज़िर ने बीबीसी हिंदी को फ़ोन पर बताया, “यहां विकास के नाम पर कोई काम बीते 70 सालों में नहीं हुआ है, जिसे करने की ज़रूरत है.”
एक ही क़बीले के लोगों के चुनाव लड़ने पर वो कहते हैं, “कभी हमने आपस में राजनीति के बारे में बात नहीं की लेकिन हमारा मक़सद एक ही है कि लोगों की सेवा करें.”
उन्होंने कहा कि दशकों से ये क़बीला राजनीति में सक्रिय रहा है और उसी विरासत को वो आगे बढ़ा रहे हैं.
बडगाम सीट पर वोटरों की कुल संख्या क़रीब 1.24 लाख है. सेंट्रल कश्मीर में ग्रामीण और शहरी दोनों इलाके़ शामिल हैं. बडगाम की सीट सेंट्रल कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण सीट समझी जाती है.
‘उनको अब डर लगने लगा है’
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बडगाम में बीजेपी के उम्मीदवार आग़ा सैयद मोहसिन का कहना है कि पिछले 70 सालों में यहां विकास का काम नहीं हुआ है.
मोहसिन पर इस चुनाव में ये आरोप भी लगा है कि वो इस क़बीले से नहीं हैं. इस पर उनका कहना है, “जो लोग अब ये कहते हैं कि मैं आग़ा क़बीले से नहीं हूं तो उनसे मैं कहना चाहता हूं कि उनको अब डर लगने लगा है कि मैं भी इस क़बीले से हूं और अब उनकी राजनीति में एक और भागीदार बन गया हूं.”
वह बताते हैं, “जिन्होंने ये कहा कि मैं आग़ा क़बीले से नहीं हूं, उनसे ये पूछा जाए कि मेरा आधार कार्ड, पैन कार्ड और इलेक्शन कार्ड इस नाम पर क्यों बना है?”
साल 2011 में आग़ा सैयद मोहसिन कांग्रेस में शामिल हो गए थे और 2014 में कांग्रेस से दूरी बनाकर उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया.
जम्मू की नगरोटा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है. ये सीट बीजेपी विधायक देवेंद्र सिंह राणा के निधन के बाद ख़ाली हो गई. इस सीट पर बीजेपी ने उनकी बेटी देव्यानी राणा को उतारा है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी इस चुनावी क्षेत्र में अपना उम्मीदवार उतारा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित