“बहुत तेज़ धमाका था, उठकर बाहर देखा तो पूरा आसमान आग की लपटों से लाल नज़र आ रहा था. कुछ ही देर में जलते हुए लोग दौड़ते हुए हमारे घर की ओर आते दिखे.”
“पांच-सात लोग पूरी तरह जल चुके थे, कई के शरीर पर कपड़े तक नहीं थे. हमने कंबल, रजाई, टॉवल, बैडशीट जो कुछ मिला उन्हें ओढ़ा दिया. कई तो अपना पता बताते हुए कह रहे थे कि हम मर जाएं तो पहुंचा देना.”
यह कहना है पच्चीस साल के राकेश सैनी का, जो खेतों के बीच बने दो कमरे के घर में अपने परिवार के साथ रहते हैं.
बीस दिसंबर की सुबह जयपुर-अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर एलपीजी कंटेनर और ट्रक की टक्कर के बाद तेज़ धमाके के साथ फैली आग की लपटों के चश्मदीद राकेश सैनी का घर हाईवे के बगल में ही है.
चेतावनीः इस कहानी में कुछ जानकारियां विचलित कर सकती हैं
घायलों को पहुंचाने के लिए 10 फुट ऊंची दीवार पार कराई
घटना के चार दिन बाद भी घटनास्थल पर हाईवे के दोनों ओर जले हुए वाहनों की कतार है. मौके पर कई पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगाई गई है.
यहां हाईवे के किनारे कुछ ऊंचाई पर दुकानें बनी हुई हैं, जो घटना के तीन दिन बाद खुली हैं. इन्हीं दुकानों के दोनों ओर दो बड़े दरवाजे हैं जो अंदर खेतों के लिए जाते हैं.
राकेश सैनी अपने मूल गांव से निकल कर जयपुर-अजमेर हाईवे के करीब अपने परिवार के साथ यहां दो कमरों के मकान में रहते हैं. उनके पिता कैलाश सैनी किसी और की ज़मीन पर खेती करते हैं.
राकेश कहते हैं, “क़रीब 30 लोग थे जो बदहवास हालत में अंदर की ओर दौड़े आ रहे थे. पांच तो बहुत ज़्यादा जले हुए थे. एक ने अपना पता बताते हुए कहा कि मैं वहां काम करता हूं और मर जाऊं तो मुझे वहां पहुंचा देना.”
“कुछ कह रहे थे अस्पताल पहुंचा दो, दवाई दे दो.”
राकेश बताते हैं, “मैंने तुरंत अपने नजदीकी दोस्तों को कॉल किए, हाईवे पर आग ही आग नज़र आ रही थी और रास्ता बंद हो गया था.”
राकेश सैनी के घर के पीछे बसी कॉलोनी की तरफ़ 10 फुट ऊंची दीवार है. हाईवे पर आगजनी होने के कारण दीवार के दूसरी ओर स्थानीय लोग घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए गाड़ियां लेकर आए थे.
राकेश सैनी कहते हैं, “दीवार के सहारे लोहे की सीढ़ी लगाई गई, कुछ लोग दीवार पर खड़े हो गए. हमने घायलों को कपड़ों में लपेटा और उन्हें उठा कर दूसरी तरह पार कराया.”
उन्होंने बताया कि करीब आधा दर्जन गाड़ियां थीं और हर गाड़ी में चार-पांच लोगों को बैठा कर अस्पताल पहुंचाया गया.
राकेश बताते हैं, “मदद के लिए आस-पास के सभी लोग आ गए थे. हम बहुत भावुक हो गए थे, ऐसा कभी नहीं देखा था. मेरा पूरा परिवार घायलों की मदद में जुटा हुआ था.”
हाईवे के आस-पास के हालात
राकेश सैनी के साथ ही उनके पिता, माता और भाई भी घायलों की मदद में जुटे हुए थे.
राकेश के पिता कैलाश सैनी दीवार की ओर इशारा कर कहते हैं, “बहुत मुश्किल से घायलों को दीवार पार कराई. उनके शरीर की खाल इस तरह निकल गई थी जैसे उबले हुए आलू.”
खेतों से हाईवे की ओर जा रहे रास्ते पर बिखरे जले हुए कपड़े, जले हुए बालों का गुच्छा दिखाते हुए वह कहते हैं, “बहुत दर्द भरा था वो समय.”
राकेश सैनी की मां ममता कहती हैं, “रोज़ाना की तरह ही मैं सुबह पशुओं का दूध निकालने के लिए उठ गई थी. तेज़ आवाज़ के साथ आग ही आग नज़र आ रही थी, मैंने बच्चों के साथ दूसरी ओर भागने की सोची, इतने में ही जलते हुए लोग हमारे घर की ओर भागते आते दिखे.”
खेतों के पास बनी कंपनी में काम करने वाले भंवर लाल कहते हैं, “मैं धमाके की आवाज़ सुनकर आया. देखा तो कंपनी के गेट पर जला हुआ एक शव था. आस-पास आग लग रही थी और फ़ायर ब्रिगेड आग बुझाने में लगी हुई थी.”
भंवर लाल कहते हैं, “खेतों की ओर लोग जान बचाकर भागे. वहां कपड़े बिखर गए थे.”
घटना के बाद से सहमा परिवार
राकेश सैनी की तरह ही नज़दीक ही रहने वाले शेरा गढ़वाल ने भी घटना के दौरान घायलों की मदद की थी. वह अपनी गाड़ी से घायलों को अस्पताल तक ले गए.
शेरा कहते हैं, “सुबह हम मॉर्निंग वॉक पर थे. देखा कि अचानक तेज़ आवाज़ के साथ आग की लपटें और धुएं का गुबार उठ रहा है. मौके पर पहुंचे तो कुछ समझ नहीं आया.”
कहते हैं, “हमने बस में से लोगों को निकाला. एक गाड़ी के दरवाजे बंद हो गए थे, जैसे-तैसे उन्हें निकाला. एक आदमी झुलस भी गया था.”
भंवर लाल कहते हैं, “कंपनी के बाहर लड़कियां, महिलाएं और पुरुष सभी थे, जो बचने के लिए खेतों की ओर भाग रहे थे.”
शेरा गढ़वाल कहते हैं, “खेतों की ओर दौड़े लोगों में से तीन बिल्कुल जल चुके थे. उन्हें एंबुलेंस से मैंने अस्पताल पहुंचाया.”
अब तक 14 की मौत
इस घटना में घायल हुए लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया. कई कम झुलसे लोगों को स्थानीय निजी अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां से अधिकतर को रेफ़र कर दिया गया.
घटनास्थल से कुछ दूरी पर एक निजी अस्पताल के डॉक्टर रमन बीबीसी हिंदी से कहते हैं, “लोग घायलों को लेकर अस्पताल आए थे. हमने शुरुआती इलाज के बाद जयपुर के लिए रेफ़र कर दिया.”
घटना में घायल 41लोगों को सवाई मानसिंह अस्पताल लाया गया. यहां अब तक 13 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि एक व्यक्ति की मौत जयपुरिया अस्पताल में हुई है.
सवाई मानसिंह अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुशील कुमार भाटी ने बीबीसी को बताया, “अभी 23 घायल भर्ती हैं जिनमें से कुछ पहले से बेहतर हैं. जबकि, सात आईसीयू में हैं जिनकी स्थिति गंभीर है.”
“घटना में तीन शव इतनी बुरी तरह जल गए थे. इनकी पहचान डीएनए जांच के बाद हुई है.”
केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से मृतकों और घायलों को आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है.
घटना में घायलों की मदद करने वालों को सरकार सम्मानित भी करेगी. मदद करने वालों की पहचान करने के लिए पुलिस टीम भी बनाई गई है.
भांकरोटा थाना प्रभारी मनीष कुमार ने बीबीसी से कहा, “हम हर तरह से जांच कर घटना में घायलों की मदद करने वालों की पहचान करेंगे. मदद करने वालों को सम्मानित करने के पीछे यही उद्देश्य है कि ऐसी दुखद घटनाएं होने पर लोग मदद के लिए आगे आएं.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.