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बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया को श्रद्धांजलि देने विदेश मंत्री एस. जयशंकर बुधवार को ढाका जा रहे हैं.
भारत के विदेश मंत्री तब ढाका जा रहे हैं, जब दोनों देशों में सब कुछ सामान्य नहीं है.
दूसरी तरफ़ पाकिस्तान अपनी नेशनल असेंबली के स्पीकर अयाज़ सादिक़ को ढाका भेज रहा है.
मंगलवार को ख़ालिदा ज़िया का निधन उनके बेटे तारिक़ रहमान के बांग्लादेश लौटने के महज पाँच दिनों बाद हो गया. तारिक़ रहमान पिछले 17 साल से ब्रिटेन में रह रहे थे.
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एस. जयशंकर के ढाका दौरे को बांग्लादेश से भविष्य के संबंध सुधारने के रूप में देखा जा रहा है. भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने जयशंकर के दौरे को अच्छी राजनयिक पहल बताया है.
बांग्लादेश में अगले साल फ़रवरी में चुनाव है और बीएनपी को सबसे मज़बूत पार्टी के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे में यह अहम हो जाता है कि फ़रवरी से जिसके हाथ में बांग्लादेश की कमान हो उसके साथ भारत के अच्छे संबंध हों.
इससे पहले भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी दिसंबर 2024 में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस से बात करने ढाका पहुंचे थे.
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भारत के रुख़ में नरमी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ख़ालिदा ज़िया के निधन पर शोक जताया है. इससे पहले जब ख़ालिदा ज़िया गंभीर रूप से बीमार थीं तब पीएम मोदी ने उनके इलाज में मदद की पेशकश की थी.
इस पेशकश के लिए बीनएपी ने पीएम मोदी को शुक्रिया कहा था.
पीएम मोदी ने मंगलवार को भारत और बांग्लादेश के संबंधों में मज़बूती लाने के लिए ख़ालिदा ज़िया की भूमिका की तारीफ़ की थी.
भारत लंबे समय से बांग्लादेश की अवामी लीग की प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना का समर्थक रहा है. ख़ालिदा ज़िया की तुलना में शेख़ हसीना जब भी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं तो भारत के साथ संबंधों में ज़्यादा गर्मजोशी रही.
अगले साल फ़रवरी में बांग्लादेश में चुनाव हैं और इस बार अवामी लीग को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया है. यानी बांग्लादेश में भारत के लिए अवामी लीग के रूप में कोई विकल्प नहीं है.
ऐसे में बांग्लादेश की राजनीति में जो विकल्प हैं, उन्हीं के साथ भारत को संबंध दुरुस्त करने होंगे.
भारत को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी अब ऐसा विकल्प लग रहा है, जिसके ज़रिये वो अपने पड़ोसी देशों से रिश्तों में मौजूदा तल्ख़ी को कम कर सकता है.
ऐसे में कहा जा रहा है कि इसी वजह से नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के संबंधों में मज़बूती लाने के लिए ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ की पूर्व अध्यक्ष और प्रधानमंत्री ख़ालिदा ज़िया की भूमिका को याद किया है.
साथ ही बेगम ज़िया को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को ढाका भेजा गया है.
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भारत के लिए विकल्प क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश की राजनीतिक संस्कृति भारत के दूसरे पड़ोसी देशों से अलग है.
27 दिसबंर को पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के एक पॉडकास्ट में शामिल हुए बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त पंकज सरन ने कहा, ”बांग्लादेश में सत्ता में रहने वाली पार्टी का आग्रह होता है कि उससे ही बात की जाए. उसके राजनीतिक विरोधियों से नहीं. इस लिहाज से भारत बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ बातचीत कर संबंध सुधारने के संकेत दे रहा है.”
कपिल सिब्बल के ही कार्यक्रम में बांग्लादेश के जानकार वरिष्ठ पत्रकार जयंत भट्टाचार्य ने कहा, ”भारत को वहां चुनाव में जमात-ए इस्लामी और उसके गठबंधन के आने की चिंता रहेगी क्योंकि भारत को लेकर इनका रुख़ ठीक नहीं रहा है. हालांकि जमात का कहना है कि उसने ख़ुद को सुधार लिया है लेकिन उसके बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता.”
कपिल सिब्बल से पंकज सरन ने कहा, ”भारत के पक्ष में यह होगा कि बांग्लादेश में स्वतंत्र और अब तक के निष्पक्ष चुनाव हों.”
विशेषज्ञों का कहना है कि ख़ालिदा ज़िया के बेटे तारिक़ रहमान का बांग्लादेश लौटना ये बताता है कि उन्हें सत्ता की राह दिख रही है.
पंकज सरन ने कहा, ”पहली बार है, जब बांग्लादेश के चुनाव में अवामी लीग नहीं है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात के सामने खुला मैदान है. छात्रों की नेशनल सिटिजन पार्टी भी है, जिसने जमात से चुनावी गठबंधन किया है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के जमात से अच्छे रिश्ते रहे हैं. हालांकि इस बार उसने जमात से गठबंधन नहीं किया है. इसके बजाय उसने कुछ दूसरे कट्टरपंथी पार्टियों से गठबंधन किया है.”
इसी कार्यक्रम में पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे टीसीए राघवन ने कहा, ”कुछ लोग ये भी चाहते हैं कि बांग्लादेश में चुनाव न हों. उन्हें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी को बढ़त मिलती दिख रही है. इसलिए सारा ज़ोर इस पार्टी को सत्ता से बाहर रखने पर होगा. इसलिए बांग्लादेश के लिए बेहतर होगा कि वहां चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीक़े से हो जाए.”
राघवन ने कहा, ”बांग्लादेश में भारत के पास कई बार बहुत अच्छे विकल्प नहीं रहे हैं लेकिन आपको उनमें से ही सबसे अच्छा विकल्प चुनना पड़ता है. इसलिए चयन की अहम भूमिका है. तभी कोई नीति बना पाएंगे. हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि 1971 में क्या हुआ और पाकिस्तान की क्या भूमिका रही है. ऐसे में हम भारत-बांग्लादेश संबंध में बहुत आगे नहीं बढ़ पाएंगे.”
उन्होंने कहा कि भारत को बांग्लादेश के हर घटनाक्रम पर जल्दी रिएक्ट नहीं करना चाहिए और ‘पाकिस्तान स्क्रिप्ट’ को लागू होने से रोकना चाहिए.
जयंत भट्टाचार्य ने कहा, ”भारत और बांग्लादेश सांस्कृतिक तौर पर बहुत क़रीब है. बांग्लादेश में कितना भी भारत विरोधी सरकार आ जाए वो इस जुड़ाव को तोड़ नहीं सकती. इसलिए इस पहलू को ध्यान में रखकर बांग्लादेश में अपने क़दम आगे बढ़ाने चाहिए.”
ख़ालिदा ज़िया की पार्टी और भारत के साथ संबंध
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ख़ालिदा ज़िया 1991 से 1996 और 2001 और 2006 के बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं.
खालिदा के दूसरे पूर्ण कार्यकाल 2001-2006 के दौरान 2002 के गुजरात दंगों की छाया दोनों देशों के संबंधों पर पड़ी थी.
कहा जाता है कि बांग्लादेश ने तब पूर्वोत्तर में चरमपंथ को लेकर भारत की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया था.
इसके बावजूद 2006 में राजनीतिक अनिश्चितता शुरू होने से पहले ख़ालिदा ज़िया ने भारत यात्रा की थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से ख़ालिदा ज़िया की बातचीत हुई थी और संशोधित व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
इससे पहले उन्होंने नवंबर 2005 में 13वें सार्क शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की थी. भारत की उनकी आखिरी यात्रा 28 अक्टूबर से तीन नवंबर 2012 के बीच हुई, जब वह जातीय संसद में विपक्ष की नेता थीं.
ख़ासतौर पर उनका दूसरा कार्यकाल भारत के लिए कड़वी यादें छोड़ गया. 2001 से 2006 के बीच, भारत विरोधी अलगाववादी संगठनों और पूर्वोत्तर भारत को निशाना बनाने वाले उग्रवादी समूहों को बांग्लादेश में पनाह देने के आरोप लगे. तब जिया ने जमात-ए-इस्लामी से हाथ मिलाया था.
इस दौर में संबंध बुरी तरह तनावपूर्ण हो गए थे. इसके उलट 2008 में शेख़ हसीना की सत्ता में वापसी के बाद रिश्तों में गर्माहट आई. तब ढाका ने ऐसे समूहों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की थी.
भारत की उनकी आख़िरी यात्रा 28 अक्टूबर से तीन नवंबर 2012 के बीच हुई, जब वह जातीय संसद में विपक्ष की नेता थीं.
भारत आने से पहले ख़ालिदा ने एक लेख में लिखा था, “हमारे दोनों देशों में ऐसी ताक़तें हैं, जो डर के मनोविज्ञान का सहारा लेकर आपसी शक और अविश्वास को बढ़ावा देती रही हैं और अब भी दे रही हैं. समय की मांग है कि हम अपनी सोच को बदलें. ये धारणा बदली जानी चाहिए कि भारत अवामी लीग के अधिक नज़दीक है और बीएनपी भारत विरोधी है.”
अंतरिम सरकार और भारत से दूरी
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‘अ हिस्ट्री ऑफ़ बांग्लादेश’ में विलियम वान शेंडल ने लिखा है, ”बांग्लादेश की स्वतंत्रता में भारत के समर्थन के बावजूद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध अक्सर तनावपूर्ण रहे हैं. भले पूरी तरह से शत्रुतापूर्ण नहीं रहे हों. दोनों देश ऐसे विमर्शों को बढ़ावा देते रहे हैं, जो बांग्लादेश के एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरने में एक दूसरे की भूमिका को कम करके आंकते हैं.”
”भारत में एक आम धारणा है कि बांग्लादेश ने स्वतंत्रता संग्राम में नई दिल्ली के योगदान के प्रति पर्याप्त कृतज्ञता नहीं दिखाई. वहीं बांग्लादेश में यह व्यापक धारणा है कि भारत ने केवल अपने रणनीतिक हितों के लिए हस्तक्षेप किया था और उसने स्वतंत्र बांग्लादेश के साथ अक्सर उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाया, मानो वह एक सैटलाइट स्टेट हो.”
पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच संबंध हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है.
शेख़ हसीना सरकार के पतन के बाद से भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्तों में तनाव देखा गया है तो दूसरी तरफ़ पाकिस्तान के साथ उसके मुश्किल रिश्तों पर जमी बर्फ़ पिघलती दिखाई दी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.