गुजरात के पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान ज़ाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री का शनिवार को निधन हो गया है.
उनके बेटे तनवीर ने बीबीसी संवाददाता रॉक्सी गागड़ेकर छारा से बातचीत में उनके निधन की पुष्टि की.
तनवीर ने कहा, “वो मेरी बहन निशरीन के साथ रहने के लिए सूरत से अहमदाबाद आ गई थीं. वो उम्र संबंधित बीमारियों से जूझ रही थीं. शनिवार सुबह उनकी तबीयत बिगड़ गई थी जिसके बाद डॉक्टर को घर बुलाया गया था. सुबह साढ़े ग्यारह बजे डॉक्टर ने उनको मृत घोषित किया.”
तनवीर ने ये भी जानकारी दी कि ज़किया जाफ़री की अंतिम क्रिया परिजनों की मौजूदगी में अहमदाबाद में होगी.
साल 2002 में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने के बाद गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे. इस दौरान ज़किया जाफ़री और उनका परिवार अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में हुए दंगों में फंस गया था.
इस दौरान जो हत्याकांड हुआ उसमें ज़किया के पति एहसान जाफ़री सहित 69 लोग मारे गए थे.
इस हिंसा में ज़किया की जान बच गई थी क्योंकि उनके पति एहसान जाफ़री ने तबीयत ख़राब होने के कारण उन्हें घर से ऊपर वाले हिस्से में जाने को कहा था. वो इस हत्याकांड में जीवित बचने वाले चंद लोगों में से एक थीं.
ज़किया का जन्म मध्यप्रदेश के खंडवा में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उनकी शादी एहसान ज़ाफ़री से हुई जो बुरहानपुर से थे और पेशे से वकील थे.
गुजरात आने के बाद ज़किया और उनका परिवार लंबे समय तक चमनपुरा में एक झोपड़ी में रहा. लेकिन 1969 में हुए दंगों में उनका घर तबाह हो गया.
उस वक्त गुलबर्ग सोसायटी बन रही थी और इस तरह ये परिवार गुलबर्ग सोसायटी में शिफ्ट हो गया.
28 फ़रवरी 2002 को लोगों की एक भीड़ ने मुस्लिम बहुल गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला किया. इस दौरान यहां हुई हिंसा में पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री समेत कुल 69 लोग मारे गए.
भीड़ के हमले से बचने के लिए कई मुसलमानों ने एहसान जाफ़री के घर में पनाह ली.
भीड़ ने पूरी सोसायटी को चारों तरफ से घेर लिया और कई लोगों को ज़िंदा जला दिया.
ज़किया जाफ़री का कहना था कि उनके पति ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ कई और लोगों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की.
जून 2006 में ज़किया जाफ़री ने गुजरात पुलिस के महानिदेशक से अपील की कि इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई जाए.
उनका आरोप था कि मोदी समेत इन सभी लोगों ने दंगों के दौरान पीड़ितों को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
ज़किया की अपील को पुलिस महानिदेशक ने खारिज कर दिया. इसके बाद ज़किया ने मामले को क़ानूनी तौर पर आगे बढ़ाया और न्याय मांगने गुजरात हाई कोर्ट पहुंचीं.
साल 2007 में हाई कोर्ट ने भी उनकी दरख़्वास्त को खारिज कर दिया.
मार्च 2008 में ज़किया जाफरी और ग़ैर सरकारी संगठन ‘सिटीज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस’ ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जाने माने वकील प्रशांत भूषण को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया. ये ऐसा व्यक्ति होता है जो अधिक जानकारी देकर कोर्ट की मदद कर सकता है, इसे न्यायमित्र भी कहा जाता है.
अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले से गुजरात दंगों की जांच करने के लिए बनाए गए विशेष जांच दल से इस मामले की जांच करने को कहा.
साल 2010 की शुरुआत में जांच दल ने पूछताछ के लिए नरेंद्र मोदी को बुलाया. मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट अपनी रिपोर्ट पेश की.
अक्तूबर 2010 में, प्रशांत भूषण को इस मामले से आज़ाद कर दिया गया और सुप्रीम कोर्ट ने राजू रामचंद्रन को न्यायमित्र नियुक्त किया.
जनवरी 2011 में राजू रामचंद्रन ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी.
मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विशेष जांच दल ने जो सबूत पेश किए हैं और वो जिस निष्कर्ष पर पहुंचा है उसमें तालमेल नहीं है. कोर्ट ने विशेष जांच दल को आदेश दिया कि वो इस मामले में और जांच करे.
मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमित्र से कहा कि वो चश्मदीदों और विशेष जांच दल के अधिकारियों से मुलाक़ात करें.
सितंबर 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दिया और विशेष जांच दल से कहा कि वो अपनी रिपोर्ट निचली अदालत में सौंप दे.
इस फ़ैसले को मोदी और ज़किया जाफ़री दोनों ने अपनी जीत के तौर पर बताया.
15 अप्रैल 2013 में ज़किया जाफ़री ने इसके ख़िलाफ़ याचिका डाली. ज़किया जाफ़री और विशेष जांच दल के वकीलों के बीच उनकी याचिका पर पांच महीने तक बहस चली.
दिसंबर 2013 में मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य अधिकारियों को इस मामले में क्लीन चिट दे दी.
इसके बाद 9 दिसंबर 2021 ज़किया जाफ़री ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.