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जब 1970 के दशक में देवानंद अपनी फ़िल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ बना रहे थे तो हिंदी फ़िल्म की कोई भी हीरोइन फ़िल्म में उनकी बहन का रोल करने के लिए तैयार नहीं हो रही थी.
सब की सब उनके साथ रोमांटिक रोल ही करना चाहती थीं, हालांकि फ़िल्म में उनकी बहन का रोल हीरोइन के रोल से बड़ा था और उसमें अभिनय की काफ़ी गुंजाइश थी.
देवानंद चाहते थे कि इस फ़िल्म में एक ऐसी लड़की को लिया जाए जो देखने में तो भारतीय हो लेकिन उसकी परवरिश पश्चिमी ढ़ंग से हुई हो और उसको पर्दे पर सिगरेट पीने और छोटे कपड़े पहनने से परहेज़ न हो.
उन्हीं दिनों देवानंद के दोस्त अमरजीत ने अपने घर पर एक पार्टी रखी जिसमें उन्होंने हाल ही में मिस एशिया पैसेफ़िक चुनी गई ज़ीनत अमान को भी आमंत्रित किया. ज़ीनत मॉडर्न कपड़े पहने हुए उस पार्टी में पहुंचीं.
‘सधी हुई अभिनेत्री’
देवानंद अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ़’ में लिखते हैं, “ज़ीनत मेरे सामने आत्मविश्वास से भरी बैठी हुई थीं. वह स्लैक्स पहने हुई थीं, उनके हाथ में एक छोटा-सा पर्स था. अचानक उनका हाथ उस पर्स के अंदर गया और उसमें से उन्होंने एक महंगी सिगरेट का पैकेट निकाला. “
“फिर उन्होंने लाइटर से सिगरेट सुलगाई. उन्हें इस बात की ज़रा भी फ़िक्र नहीं थी कि उन्हें कौन देख रहा है. तभी उनकी आंखें मेरी आंखों से मिलीं. वह मुस्कुराईं और उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरे आगे सिगरेट का पैकेट कर दिया. मैं कभी-कभी ही सिगरेट पीता था लेकिन इस बार मैंने सिगरेट लेने से इनकार नहीं किया.”
देवानंद लिखते हैं, “अगले दिन साढ़े ग्यारह बजे मैंने उसे स्क्रीन टेस्ट के लिए बुला लिया. वह कैमरा फ़्रेंडली थीं. आसानी से स्क्रीन टेस्ट पास कर गईं. वो एक बहुत सुंदर धूप का चश्मा पहने हुई थीं. मैंने कहा कि यह तुम पर बहुत फ़ब रहा है. उसने तुरंत वह चश्मा उतारा और मेरी जेब में रख दिया. वह चश्मा आज भी मेरे पास रखा हुआ है.”
देवानंद ज़ीनत को इस फ़िल्म की शूटिंग के लिए नेपाल ले गए. इस फ़िल्म के मशहूर गाने ‘दम मारो दम’ के फ़िल्माए जाने से पहले ही ज़ीनत अमान एक सधी हुई अभिनेत्री बन चुकी थीं.
इस फ़िल्म ने ज़ीनत को हिंदी फ़िल्म उद्योग में और मज़बूती से स्थापित कर दिया और वह युवा और आधुनिक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने लगीं.
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राज कपूर ने भी चुना
‘दम मारो दम गर्ल’ रातों रात एक सुपर स्टार बन गईं लेकिन उनको हीरो की बहन के ठप्पे से निकालने के लिए देवानंद ने उनके साथ हीरा पन्ना फ़िल्म बनाई जिसमें उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय फ़ोटोग्राफ़र और मॉडल का रोल किया.
ज़ीनत को एक और फ़िल्म ने प्रसिद्धि दिलवाई, वह थी राज कपूर की ‘सत्यम शिवम सुंदरम’.
जब भी राज कपूर कोई नई फ़िल्म शुरू करते थे उनकी नई हीरोइन के बारे में कई क़यास लगाए जाते थे. ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के साथ भी ऐसा ही हुआ.
राजकुमार अभी सोच ही रहे थे कि इस फ़िल्म में किसको हीरोइन लिया जाए, ज़ीनत अमान घाघरा चोली पहनकर और बालों में गजरा लगाकर उनके कॉटेज पहुंच गईं.
ऋतु नंदा की किताब ‘राज कपूर द वन एंड ओनली शोमैन’ में ज़ीनत अमान ने राज कपूर के बारे में बताया, “जब मैंने उनके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया, उन्होंने पूछा कौन है, तो मैंने कहा, आपकी भावी हीरोइन रूपा. उन्होंने मेरा स्क्रीन टेस्ट लिया और मुझे वह रोल मिल गया. राज कपूर की कला निर्देशक भानु अथैया ने मेरा मिट्टी का एक पुतला बनवाया. वह उस पर तरह तरह के कपड़े पहना कर देखती थीं कि वह उस पर कैसे लग रहे हैं. मैंने अपने-आप को पूरी तरह राज कपूर के हवाले कर दिया. “
“वह एक कुम्हार की तरह थे और मैं उनके हाथ में मिट्टी की तरह थी. इस फ़िल्म को शूट करने में पूरे दो साल लगे. ज़्यादातर शूटिंग पुणे में उनके फ़ार्म पर हुई. वहां हर सुबह मेरे लिए ताज़े फूल मौजूद रहते. उन्होंने पूरे फ़ॉर्म पर मेरे बड़े-बड़े पोस्टर लगवा दिए थे. “
“कैमरे के पीछे वह बहुत सख़्त व्यक्ति थे और किसी चीज़ से समझौता नहीं करते थे. मुझे कहानी की मांग के अनुसार अक्सर पानी में भीगना पड़ता था. लेकिन शूटिंग के बाद मेरे लिए ओढ़ने के लिए एक गर्म शॉल और एक चम्मच ब्रैंडी हमेशा तैयार रहती थी.”
उसी साल कृष्ण शाह ने उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म ‘शालीमार’ में साइन किया जिसमें रैक्स हैरिसन और धर्मेंद्र उनके हीरो थे. अमिताभ बच्चन के साथ आई उनकी फ़िल्म ‘डॉन’ ने बॉक्स ऑफ़िस पर उनकी मांग को और बढ़ा दिया.

मॉडलिंग और मिस एशिया पैसेफ़िक
ज़ीनत मिली जुली संस्कृति से आती थीं. 19 नवंबर, 1951 में बंबई में पैदा हुई ज़ीनत शुरू से ही फ़िल्मों से जुड़ी हुई थीं.
उनके पिता अमानउल्लाह ख़ान फ़िल्म अभिनेता मुराद के चचेरे भाई थे. अमानुल्लाह स्क्रीनप्ले और डायलॉग राइटर थे और उन्होंने कई कामयाब निर्देशकों के साथ काम किया था जिनमें के आसिफ़, सोहराब मोदी और अब्दुल रशीद कारदार शामिल थे. वे मुग़ल-ए-आज़म को लिखने वाली राइटरों की टीम में भी शामिल थे.
ज़ीनत बहुत छोटी थीं जब उनके माता-पिता का तलाक हो गया था. वह भारत में पैदा ज़रूर हुई थी लेकिन उनका पालन-पोषण जर्मनी में हुआ था और उन्होंने अपनी पढ़ाई अमेरिका में की थी.
अमेरिका से वापस लौटकर उन्होंने मॉडलिंग में अपना हाथ आज़माया और सन 1970 में ‘फ़ेमिना मिस इंडिया’ की प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर आईं. इसके बाद उन्होंने मिस एशिया पैसेफ़िक का ख़िताब जीता.
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बोल्ड और असामान्य रोल
उन्हें सबसे पहले ओपी रल्हन ने 1971 में अपनी फ़िल्म ‘हलचल’ में काम दिया. 1970 के दशक में उन्होंने अपनी भूमिकाओं से हिंदी फ़िल्मों की हीरोइन की छवि को पूरी तरह से बदल दिया था. वह जिस तरह की पोशाकों में दिखीं इससे पहले भारतीय हीरोइनें कम दिखाई देती थीं.
उनके चरित्र आम हीरोइनों के रोल से अलग काफ़ी बोल्ड होते थे. ज़ीनत ने शायद ही किसी फ़िल्म में साड़ी पहनी हो. उन्होंने ऐसे किरदार चुने जो उस दौर में सामान्य नहीं माने जाते थे.
सन 1973 में आई ‘धुंध’ में उन्होंने विवाहेत्तर संबंध रखने वाली महिला का रोल किया था. ‘रोटी कपड़ा और मकान’ में उन्होंने एक लखपति की चाह में अपने बेरोज़गार प्रेमी को दरकिनार कर दिया था. ‘अजनबी’ में उन्होंने एक ऐसी महिला का रोल निभाया था जो अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए गर्भपात तक करवाने के बारे में सोचती है.
‘मनोरंजन’ में वो एक सेक्सवर्कर के रोल मे आई थीं जिसे अपने काम को लेकर कोई मलाल नहीं है. जब वह बिकिनी पहन कर फ़िरोज़ ख़ान की फ़िल्म ‘क़ुरबानी’ में आई थीं तो उन्होंने हॉलीवुड अभिनेत्री बो डैरेक की याद दिला दी थीं.
बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, “मुझसे पहले हीरोइनें या तो अच्छे रोल में आती थीं या बुरे, ब्लैक या व्हाइट. मैं शायद पहली हीरोइन थी जिसने बताने की कोशिश की थी कि ‘ग्रे’ भी एक रंग होता है. मैंने उन निर्देशकों के साथ काम किया जो उस समय के सर्वश्रेष्ठ निर्देशक थे.”
ज़ीनत ने उस ज़माने के चोटी के निर्देशक नासिर हुसैन, बीआर चोपड़ा, मनोज कुमार, प्रकाश मेहरा, राज खोसला, शक्ति सामंत और मनमोहन देसाई की फ़िल्मों में काम किया.

संजय ख़ान से नज़दीकी
लेकिन जहाँ एक ओर ज़ीनत अपनी पेशेवर ज़िंदगी की बुलंदियों को छू रही थीं, वहीं दूसरी तरफ़ उनके निजी जीवन में कई तूफ़ान आ रहे थे. उन्होंने संजय ख़ान से विवाह कर लिया था, संजय के बारे में कहा जा रहा था कि वे पहले से ही शादीशुदा हैं.
संजय और ज़ीनत की मुलाकात फ़िल्म ‘अब्दुल्लाह’ की शूटिंग के दौरान हुई थी लेकिन उसका अंत बहुत ही अप्रिय परिस्थितियों में हुआ था.
संजय ने अपनी आत्मकथा ‘द मिस्टेक्स ऑफ़ माई लाइफ़’ में बताया कि किस तरह वह ज़ीनत के बहुत करीब आ गए थे.
संजय ख़ान ने लिखा, “धुंध की शूटिंग के दौरान जब सभी लोग सोने चले जाते थे मैं और ज़ीनत वॉक पर निकल जाते थे. कभी-कभी हम दोनों मेरी मर्सिडीज़ कार पर घूमने जाते थे. कार के इंजन का शोर लोगों को सुनाई न पड़े इसलिए मैं और ज़ीनत कार को कुछ देर तक हाथ से धक्का देते थे. जब कार थोड़ी दूर चली जाती थी तब हम उसका इंजन स्टार्ट करते थे. लौटते समय यही प्रक्रिया फिर दोहराई जाती थी.”
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देवानंद और राज कपूर
देवानंद से ज़ीनत की नज़दीकी के चर्चे कई फ़िल्म पत्रिकाओं में होने लगे थे. देवानंद ने खुद यहां तक लिखा कि एक समय वह ज़ीनत अमान से अपने प्रेम का इज़हार करने वाले थे लेकिन उन्होंने अपने-आपको रोक लिया.
उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ़’ में लिखा, “एक दिन मुझे लगा कि मुझे ज़ीनत से प्यार हो गया है. मैं उसे यह बात बताना चाहता था. मैंने उसे फ़ोन कर कहा कि मैं उसे ताज होटल के ‘रॉनदेवू’ रेस्तरां में खाने पर ले जाना चाहता हूँ. ज़ीनत ने कहा कि हम लोग आज एक दूसरी पार्टी में भी तो जा रहे हैं.”
“मैंने कहा, हम उस पार्टी के बाद रेस्तरां जाएंगे. जब हम पार्टी में पहुंचे तो राज कपूर ने दूर से ही ज़ीनत का नाम लेकर पुकारा और फिर उसके लिए अपनी बाहें फैला दीं. मुझे अचानक लगा कि उन दोनों में कुछ ज़्यादा ही बेतकल्लुफ़ी है. राज कपूर ने ज़ीनत को उलाहना दिया, तुमने अपना वादा तोड़ दिया. तुमने तो कहा था कि तुम मेरे सामने हमेशा सफ़ेद साड़ी में आओगी. ये सुनते ही मेरे दिल के हज़ार टुकड़े हो गए. मैंने उसी समय रेस्तरां छोड़ने का फैसला किया. मैंने मेज़बान से माफ़ी मांगी और चुपचाप बाहर निकल गया.”
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द रॉयल्स की राजमाता
सन 1985 में ज़ीनत ने मज़हर ख़ान से शादी की, जिनसे उनके दो बच्चे अज़ान और ज़हान पैदा हुए. यह शादी भी बहुत दिनों तक नहीं चली.
मज़हर चाहते थे कि ज़ीनत फ़िल्मों में काम न करें. मज़हर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और सितंबर, 1998 में उनका निधन हो गया. आजकल ज़ीनत का स्क्रीन से दूर का ही नाता रह गया है.
इस वर्ष उन्हें फ़िल्मफ़ेयर लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. इससे पहले उन्हें नॉर्वे में वार्षिक बॉलीवुड फ़ेस्टिवल का मुख्य अतिथि बनाया गया था.
जब उनसे पूछा गया कि वह आजकल फ़िल्मों में कम क्यों दिखाई देती हैं तो उनका जवाब था, ‘हिंदी फ़िल्मों में 60 से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए बहुत कम रोल लिखे जाते हैं.’
सन 2000 के बाद ज़ीनत अमान ने ‘भोपाल एक्सप्रेस’, ‘जाना’, ‘न जाने क्यों’, ‘बूम’ और ‘पानीपत’ जैसी फ़िल्मों में काम किया. कुछ दिनों पहले जब वह नेटफ़्लिक्स वेब सीरीज़ ‘द रॉयल्स’ में राजमाता के रूप में नज़र आईं तो उनके अभिनय की हर जगह तारीफ़ हुई.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.