जागरण, नई दिल्ली। डॉ. महेंद्र मधुकर हिंदी साहित्य जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। कविता, उपन्यास, आलोचना एवं व्यंग्य विधा पर इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। बीआर आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मधुकर यूजीसी व साहित्य अकादमी पुरस्कार के ज्यूरी सदस्य भी रह चुके हैं।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा 2021 में महात्मा गांधी सम्मान और बिहार सरकार द्वारा 2024 में नागार्जुन सम्मान सहित 70 से भी अधिक पुरस्कार पाने वाले डॉ. मधुकर को पहले जागरण साहित्य सृजन सम्मान से पुरस्कृत किया गया है। यही पुरस्कार ग्रहण करने जब वह शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी आए तो दिल्ली राज्य ब्यूरो के प्रमुख संवाददाता संजीव गुप्ता ने उनसे विविध विषयों पर बातचीत की।
प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:-
तमाम प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने के बाद जागरण साहित्य सृजन सम्मान पाकर कैसा लग रहा है?- मैं स्वयं को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं यही अखबार पढ़ता हूं और शुरू से ही इसके साथ जुड़ा हुआ हूं। जागरण ने इस पुरस्कार की शुरुआत करके बड़ा काम किया है। जागरण की छानबीन के जरिये उपेक्षित क्षेत्रों के वे लेखक और साहित्यकार भी पहचान पा सकेंगे, जो अधिक लेखन करने के बाद भी कहीं न कहीं छूटे हुए हैं।
आपने साहित्य सृजन की शुरुआत कविता लिखने से की, लेकिन बाद में अन्य सभी विधाओं पर भी लिखा।- मैंने आठ साल की उम्र से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। मेरी कविता सुनकर ही राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने मुझे मधुकर नाम दिया था। बाद में मैंने आलोचना, उपन्यास, व्यंग्य और पौराणिक विषयों पर भी लिखा।
जागरण साहित्य सृजन सम्मान आपको जिस ‘वक्रतुण्ड’ कृति के लिए मिला है, उसके बारे में बताएं। – वक्रतुण्ड अर्थात गणपति श्री गणेश के अनेक रूप हैं- विघ्नहर्ता से लेकर विघ्नकर्ता तक। सत्व के प्रति सरस-सदय और तमस के प्रति कठिन-कठोर। उनके इस स्वभाव ने मनुष्यों के हृदय में श्री गणेश के लिए विशेष भक्ति उत्पन्न की है क्योंकि वे उन्हें एकदम अपने लगते है, करुणामय, उदार, सहज, समस्त आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाले।
ऐसा नहीं कि उन्हें क्रोध नहीं आता किन्तु उनका कोप भक्तों के लिए नहीं होता। उनके लिए तो वह अभय देने वाले हैं। मनुष्य तो मनुष्य, तमाम इतर जीवों के भी वह शरणदाता-त्राता हैं। विघ्नों से भरे संसार में ऐसे कृपालु श्री गणेश की अगणित लीलाएं हैं। इन्हीं लीलाओं से ‘वक्रतुण्ड’ में उनका आख्यान रचा गया है, जो पाठकों को एक अलग ही आश्वस्ति और संकट से मुक्ति देता है कि यदि आप दूसरों के प्रति सात्विकता से भरे रहेंगे, तो वक्रतुण्ड आपकी राह में आने वाली प्रत्येक वक्रता को अनुकूलता में बदल देंगे।
पौराणिक विषयों में आपने किन किन पात्रों पर कलम चलाई है?- मैं सीतामढ़ी का रहने वाला हूं। पराशक्ति श्रीसीता और अवतरण भूमि: सीतामही पुस्तक में मैंने वहां पर कुछ लोगों द्वारा अपने आर्थिक लाभ के लिए सीताजी का मंदिर शहर में कर देने सहित पुनोरा धाम की अवधारणा का सच उजागर किया है। इसके अलावा मैंने हनुमान जी पर भी एक पुस्तक तैयार की है, जिसमें उनके मनुष्य और देवता रूप का संघर्ष बयान किया है।
क्या राम पर नहीं लिखा? आजकल रामराज्य की चर्चा बहुत होती है। आप क्या कहते हैं इस पर?- राम पर तो अभी तक नहीं लिखा है। बाकी रामराज्य एक आदर्श परिकल्पना है। आज के समय में यह संभव नहीं। आज की सभ्यता में बहुत सी जातियों- उप जातियों का समावेश है। रामराज्य के लिए इन सभी उप जातियों का हटना जरूरी है।
कहा जा रहा है कि अब पठन पाठन संस्कृति कम हो रही है। आप क्या कहते हैं?- पहले मुझे भी ऐसा लगता था, लेकिन अब नहीं लगता। अच्छा साहित्य हमेशा पढ़ा जाता है, आज भी पढ़ा जा रहा है। बेस्ट सेलर पुस्तकें इसका प्रमाण हैं। विषय की रुचि के अनुरूप पुस्तकें आज भी हर वर्ग में बिक रही हैं।
भविष्य में पठन-पाठन संस्कृति को किस रूप में देखते हैं? नई पीढ़ी को क्या संदेश देंगे? – मैं आशावादी हूं और सोच भी आशावादी ही रखनी चाहिए, निराशावादी नहीं। नई पीढ़ी को मेरा संदेश यही है कि खूब पढ़ें, जागृत भाव से पढ़ें, ठोस काम करने की सोच के साथ पढ़ें और आगे बढ़ें।