इमेज स्रोत, TISS/ANI
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा की पुण्यतिथि पर मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (टीआईएसएस) में एक कार्यक्रम हुआ.
इस कार्यक्रम के बाद छात्रों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज होने से कई सवाल उठे हैं.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के नौ छात्रों पर ट्रॉम्बे पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया गया है.
पुलिस ने छात्रों पर बिना अनुमति कार्यक्रम आयोजित करने, अवैध रूप से एकत्र होने, समाज में अव्यवस्था फैलाने और राष्ट्रीय एकता के लिए ख़तरा पैदा करने जैसी धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है.
मामला क्या है, अब तक क्या हुआ है?
टीआईएसएस के एक डीन की शिकायत के आधार पर इस मामले में एफ़आईआर दर्ज की गई है.
एफ़आईआर के अनुसार, रविवार 12 अक्तूबर की शाम कुछ छात्र मुंबई के देवनार स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (टीआईएसएस) के परिसर में जमा हुए. वे जीएन साईबाबा की पुण्यतिथि मनाने के लिए इकट्ठा हुआ थे.
टीआईएसएस के एक अधिकारी ने कहा, “ऐसे किसी कार्यक्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी. न ही इसकी अनुमति ली गई थी. इस कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई थीं. इन तस्वीरों में पुलिस को भी टैग किया गया था. इसके बाद जब पुलिस ने संस्था से जानकारी मांगी तो हमने उन्हें बताया कि इस कार्यक्रम की अनुमति नहीं है. हमने शिकायत भी दर्ज कराई.”
नाम न छापने की शर्त पर एक छात्र ने बताया कि कार्यक्रम के कुछ ही घंटों बाद पुलिस कैंपस में पहुंच गई थी.
एफ़आईआर में नौ छात्रों के नाम दर्ज किए गए हैं.
एफ़आईआर में कहा गया है कि एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के सक्रिय सदस्य और नक्सल संगठन के समर्थक जीएन साईबाबा को श्रद्धांजलि देने के लिए बिना अनुमति एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था.
स्टूडेंट्स क्या कहते हैं?
इस घटना के बाद छात्रों में डर का माहौल है और कोई भी इस पर खुलकर बात करने को तैयार नहीं है.
व्हाट्सएप पर जारी एक बयान में स्टूडेंट्स ने कहा, “12 अक्तूबर की रात से जो कुछ भी हम झेल रहे हैं, उससे हम सभी डरे हुए, गुस्से में और बहुत परेशान हैं.”
बयान में यह भी कहा गया है, “रविवार रात कुछ छात्र प्रोफे़सर जीएन साईबाबा की पहली पुण्यतिथि पर शांतिपूर्वक मोमबत्तियाँ जलाकर परिसर में एकत्र हुए थे. कार्यक्रम शांतिपूर्ण रहा, कोई नारेबाज़ी या हंगामा नहीं हुआ.”
इस बीच टीआईएसएस के अधिकारियों ने कहा, “परिसर में कहीं भी असुरक्षा का माहौल नहीं है. हम ऐसे मामलों को बहुत संवेदनशीलता से संभालते हैं. हम पुलिस जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं.”
टीआईएसएस में डेमोक्रेटिक फ्रंट के एक छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “अभी तक यह साफ़ नहीं है कि इसके पीछे कोई छात्र संगठन है या नहीं. 12 अक्तूबर की शाम कुछ छात्र एकत्र हुए और श्रद्धांजलि सभा आयोजित की. मैं वहाँ नहीं था, लेकिन सुना है कि उन्होंने कविताएँ पढ़ीं और भाषण दिए.”
“कुछ छात्रों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया. एक घंटे बाद पुलिस पहुँची. कुछ छात्रों ने कार्रवाई की मांग की. अगले दिन संगठन ने जानकारी जुटानी शुरू की. उसके बाद मामला दर्ज किया गया. मुझे नहीं पता कि यह कार्यक्रम किसने आयोजित किया था.”
एक छात्र ने आपत्ति जताते हुए कहा, “लोग कह रहे हैं कि पिछले साल ऐसी ही घटना के बाद प्लेसमेंट प्रभावित हुआ था. अब कुछ महीनों में प्लेसमेंट शुरू होने वाला है. पिछली बार कुछ निजी कंपनियाँ इस प्रक्रिया से हट गई थीं. जब 15-20 छात्र साथ आते हैं और विवादास्पद मुद्दे उठते हैं तो इसका असर प्लेसमेंट पर पड़ता है.”
क्या कार्यक्रम के लिए पुलिस की अनुमति ज़रूरी है?
इमेज स्रोत, Getty Images
बीबीसी न्यूज़ मराठी से बात करते हुए जीएन साईबाबा की पत्नी वसंता ने कहा, “यह हर जगह हो रहा है. क्या वे एक ऐसे व्यक्ति की याद में इसकी अनुमति नहीं दे सकते जिसे अदालत ने बरी कर दिया था?”
उन्होंने कहा, “इन छात्रों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों की निंदा की जानी चाहिए. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पिछले दस साल से यही हो रहा है. यह मामला एफ़आईआर तक भी नहीं पहुँचना चाहिए था. सभी को इन छात्रों के साथ खड़ा होना चाहिए.”
इस मामले पर बोलते हुए क़ानूनी विशेषज्ञ असीम सरोदे ने कहा, “टाटा इंस्टीट्यूट को अपने शैक्षणिक संस्थान के परिसर में किसी भी कार्यक्रम के लिए पुलिस की अनुमति की ज़रूरत नहीं है.”
उन्होंने बताया, “सुप्रीम कोर्ट ने पहले एक फ़ैसले में साफ़ कहा था कि अगर किसी संगठन पर प्रतिबंध है और कोई व्यक्ति उस संगठन की किताबें पढ़ रहा है, तो केवल प्रतिबंधित संगठन की किताबें पढ़ना अपराध नहीं है.”
स्मृति दिवस कार्यक्रम के आयोजन से समाज में अशांति फैलने के तर्क पर बोलते हुए एडवोकेट असीम सरोदे ने कहा, “पुलिस इसका राजनीतिक रूप से ग़लत इस्तेमाल कर सकती है. इसलिए ऐसी धाराएँ लगाई जाती हैं. अगर कोई भी कार्यक्रम किसी शैक्षणिक संस्थान के परिसर में होता है तो उसका पुलिस से कोई लेना-देना नहीं है.”
सरोदे ने कहा, “ज़्यादा से ज़्यादा यही कहा जा सकता है कि संस्थान की अनुमति ज़रूरी है. अलग विचारधारा का होना लोकतंत्र-विरोधी कैसे हो सकता है? आप अलग विचारधारा का साहित्य पढ़ सकते हैं और देख सकते हैं. यह अधिकार सबको है.”
अगर कोई व्यक्ति रिहा हो गया है, तो क्या ऐसे व्यक्ति के संदर्भ में कोई कार्यक्रम आयोजित किया जा सकता है?
इस पर सरोदे ने कहा, “पुलिस की ज़िम्मेदारी क़ानून-व्यवस्था बनाए रखना है. लेकिन जब वे काम कर रहे होते हैं, तो वे न्यायाधीश बनने की कोशिश करते हैं. अब नक्सली मुख्यमंत्री के सामने आत्मसमर्पण करते हैं, हथियार जमा करते हैं. क्या यह कहना ठीक है कि उन्होंने कभी अपराध किया था और अब उनकी प्रशंसा हो रही है? यहाँ भी यही नियम लागू होता है.”
संस्थान ने क्या कहा?
इमेज स्रोत, ANI
बीबीसी न्यूज़ मराठी से बात करते हुए संस्थान के अधिकारियों ने कहा, “मुंबई पुलिस ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ के कुछ छात्रों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है.”
“रविवार को क़रीब दस छात्रों ने बिना अनुमति संस्थान परिसर में प्रोफे़सर जीएन साईबाबा की पुण्यतिथि पर एक कार्यक्रम आयोजित किया था. इस घटना पर सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री कार्यालय और मुंबई पुलिस को भी टैग किया गया.”
संस्थान के अधिकारियों ने बताया, “जब पुलिस ने इस बारे में जानकारी मांगी तो हमने कहा कि इस कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी गई थी.”
जीएन साईबाबा कौन थे?
इमेज स्रोत, Getty Images
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफे़सर जीएन साईबाबा का 12 अक्तूबर 2024 को हैदराबाद के निम्स अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया था. वह 57 साल के थे.
साईबाबा को 2014 में एक नक्सली संगठन से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
मार्च 2017 में अदालत ने उन्हें यूएपीए क़ानून के तहत दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सज़ा दी.
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 14 अक्तूबर 2022 को उन्हें बरी कर दिया था.
हालाँकि, इस फ़ैसले के 24 घंटे के भीतर ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला त्रिवेदी की विशेष बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलट दिया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित