इमेज कैप्शन, नई खोजी गई सर्पिल आकाशगंगा अलकनंदा (इनसेट में) जेम्स वेब टेलीस्कोप से ऐसी दिखती है. इसके पड़ोस में कई चमकीली आकाशगंगाएँ भी दिखाई दे रही हैं….में
भारतीय खगोलविदों ने आकाशगंगा जैसी ही एक ‘सर्पिल’ आकाशगंगा की खोज की है, जो ब्रह्मांड के शुरुआती काल से अस्तित्व में रही है. इस नई खोज ने आकाशगंगाओं के विकसित होने के बारे में मौजूदा समझ को बदल दिया है.
यह शोध नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का उपयोग करके किया गया था और इसका नेतृत्व पीएचडी छात्रा राशि जैन ने किया था.
इस शोध का मार्गदर्शन पुणे स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च के राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केंद्र के प्रो. योगेश वाडदेकर ने किया था. यह शोध प्रमुख यूरोपीय खगोल विज्ञान पत्रिका एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में छपा है.
आकाशगंगाएँ तारों, ग्रहों, गैस और धूल से बनी विशाल प्रणालियाँ हैं जो गुरुत्वाकर्षण से एक साथ जुड़ी रहती हैं. इनकी संख्या कुछ हज़ार तारों से लेकर खरबों तक होती है, और ये सर्पिल, अण्डाकार या अनियमित आकार में पाई जाती हैं.
शोधकर्ताओं ने इस आकाशगंगा के लिए हिमालयी नदी अलकनंदा का नाम चुना जो गंगा की दो मुख्य धाराओं में से एक है.
यह एक सर्पिल आकाशगंगा है जो 12 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित है. इसका अर्थ है कि आकाशगंगा की रोशनी हम तक पहुँचने के लिए 12 अरब वर्षों से भी अधिक समय तक यात्रा करती है.
इसी बात को समझाते हुए राशि जैन कहती हैं, “हम इस आकाशगंगा को उसी रूप में देख रहे हैं जैसी यह बिग बैंग के ठीक 1.5 अरब वर्ष बाद दिखाई दी थी. इस प्रारंभिक युग में इतनी सुगठित सर्पिल आकाशगंगा का मिलना अप्रत्याशित है. यह हमें बताता है कि हमारे ब्रह्मांड में जटिल संरचनाएँ हमारे अनुमान से कहीं पहले ही निर्मित हो रही थीं.”
ब्रह्मांडीय पावर हाउस
इमेज स्रोत, RASHI JAIN
इमेज कैप्शन, राशि जैन के नेतृत्व में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के सहारे ये खोज की गई है
टीम ने पाया कि अलकनंदा कोई आकाशगंगा न होकर एक प्रभावशाली ब्रह्मांडीय शक्ति केंद्र है.
इस आकाशगंगा में हमारे सूर्य से लगभग 10 अरब गुना द्रव्यमान है. अलकनंदा हर साल नए तारों का निर्माण कर रही है, जो हमारी आकाशगंगा की वर्तमान तारा निर्माण दर से लगभग 20-30 गुना तेज़ है.
इसे आकर्षक बनाने वाली बात इसकी सर्पिल संरचना है. यह आकाशगंगा दो भुजाओं की तरह एक चमकीले उभार के चारों ओर लपेटे हुए दिखती है.
यह पृथ्वी से बहुत दूर है, लेकिन गुरुत्वाकर्षण इसकी रोशनी को बड़ा कर देता है, जिससे खगोलविदों को इसे और स्पष्ट रूप से देखने में मदद मिलती है.
राशि जैन बताती हैं, “हमारी आकाशगंगा का हिंदी नाम मंदाकिनी है. इसलिए हमने इस आकाशगंगा के लिए अलकनंदा नाम चुना.”
‘बहुत जल्द, बहुत बढ़िया’
इमेज स्रोत, Yogesh Wadadekar
इमेज कैप्शन, राशि जैन ने ये खोज टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च के प्रो. योगेश वाडदेकर (तस्वीर में) के मार्गदर्शन में की है
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के निर्माण से पहले, खगोलविदों का मानना था कि प्रारंभिक ब्रह्मांड में आकाशगंगाएँ अव्यवस्थित और गुच्छेदार होती थीं, जिनमें स्थिर सर्पिल संरचनाएँ तभी उभरीं जब ब्रह्मांड कई अरब वर्ष पुराना हो गया.
प्रमुख सिद्धांत यह था कि प्रारंभिक आकाशगंगाएँ “गर्म” और अशांत थीं. इन्हें ठंडा होने और सर्पिल पैटर्न बनाए रखने में समय लगता था.
वाडदेकर कहते हैं, “अलकनंदा एक अलग ही कहानी कहती है. इस आकाशगंगा को 10 अरब सौर द्रव्यमान के तारों को इकट्ठा करना पड़ा और साथ ही सर्पिल भुजाओं वाली एक बड़ी डिस्क का निर्माण करना पड़ा. ब्रह्मांडीय मानकों के हिसाब से यह सब अविश्वसनीय रूप से तेज़ है.”
ज़्यादातर आकाशगंगाएँ 10-13.6 अरब वर्ष पुरानी हैं, जो लगभग ब्रह्मांड की आयु जितनी ही पुरानी हैं. इस विशाल ब्रह्मांडीय समयरेखा के बीच, अलकनंदा की खोज कई मायनों में ख़ास है.
अब शोधकर्ता दो प्रमुख संभावनाओं की जाँच कर रहे हैं.
एक संभावना यह है कि आकाशगंगाओं की डिस्क से होकर गुज़रने वाली घनत्व तरंगों ने सर्पिल पैटर्न का निर्माण और रख-रखाव किया होगा. यह प्रक्रिया आमतौर पर शांत, ठंडी डिस्क में देखी जाती है, जो सुचारू गैस संचयन के माध्यम से धीरे-धीरे बढ़ती है.
दूसरा सिद्धांत आस-पास की छोटी आकाशगंगाओं में होने वाली उथल-पुथल की ओर इशारा करता है, जो सर्पिल संरचनाओं को जन्म दे सकते हैं. हालाँकि, ऐसी भुजाएँ आमतौर पर थोड़े समय के लिए ही निर्मित होती हैं.
एक और बात अलकनंदा के निर्माण को उलझाती है. मिले साक्ष्यों के अनुसार, इसका विकास शायद सहज तरीके़ से हुआ है, न कि हिंसक विलयों के ज़रिए.
असली चुनौती यह समझना है कि अलकनंदा ने कैसे लगभग 60 करोड़ वर्षों में अपने तारे बनाए. इस काम के लिए आमतौर पर लगभग एक अरब वर्ष लगते हैं. यह विसंगति खगोलविदों को आकाशगंगाओं में सर्पिल भुजाओं के निर्माण के बारे में लंबे समय से चले आ रहे सिद्धांतों पर दोबारा विचार करने के लिए प्रेरित कर रही है.
अलकनंदा के गुणों का विश्लेषण करने के लिए, टीम ने स्पेक्ट्रल एनर्जी डिस्ट्रीब्यूशन (एसईडी) मॉडलिंग का उपयोग किया. उनके निष्कर्ष बताते हैं कि इस आकाशगंगा में मध्यम मात्रा में धूल है और इसकी आयु केवल 19.9 करोड़ वर्ष है.
ब्रह्मांड स्वयं महज़ लगभग 1.5 अरब वर्ष पुराना था.
आगे क्या होगा?
इमेज स्रोत, NCRA-TIFR
इमेज कैप्शन, टेलीस्कोप से ली गई खोजी गई आकाशगंगा की तस्वीर
वैज्ञानिकों का कहना है कि अलकनंदा की दूरी (रेडशिफ्ट) का मापन तो ठीक से हो चुका है, लेकिन इसकी आंतरिक संरचना की अभी भी गहन जाँच की जानी है.
शोधकर्ता राशि जैन और योगेश वाडदेकर बताते हैं कि भविष्य में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और अटाकामा लार्ज मिलीमीटर एरे (एएलएमए) जैसे उपकरण इस युवा आकाशगंगा के व्यवहार को समझने में मदद करेंगे.
ये उपकरण आकाशगंगा की डिस्क की गति को माप सकते हैं. साथ ही यह भी समझ सकते हैं कि क्या सर्पिल भुजाओं को बनाने के लिए डिस्क ठंडी और शांत होनी चाहिए या गर्म और तेज़ी से घूमती हुई.
वाडदेकर कहते हैं, “अलकनंदा की डिस्क ठंडी है या गर्म, यह जानने से हमें पता चलेगा कि इसकी सर्पिल भुजाएँ कैसे बनीं. इससे यह भी पता चलेगा कि क्या शुरुआती ब्रह्मांड में इस तरह की आकाशगंगाओं ने कोई अलग रास्ता अपनाया था.”
अलकनंदा और अन्य प्रारंभिक सर्पिल आकाशगंगाओं की खोज से पता चलता है कि आकाशगंगाओं के परिपक्व होने की हमारी मौजूदा समझ को अपडेट करने की ज़रूरत है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.