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अमेरिकी ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसी एफ़बीआई के एजेंटों ने शुक्रवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन के घर और दफ़्तर पर छापा मारा.
गोपनीय दस्तावेज़ों से जुड़े एक मामले में उनके ख़िलाफ़ यह कार्रवाई की गई है.
बोल्टन ट्रंप की नीतियों के समर्थक थे, लेकिन बाद में उनका उनसे विवाद हो गया और उन्होंने पद छोड़ दिया था.
बोल्टन रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर ट्रंप की नीतियों के मुखर आलोचक रहे हैं. हाल के दिनों में वह भारत पर लगाए गए ट्रंप के टैरिफ़ का भी कड़ा विरोध करते नज़र आए हैं.
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ट्रंप के पहले कार्यकाल में साल 2019 में इस्तीफ़ा देने के बाद से ही बोल्टन उनके आलोचक रहे हैं.
ट्रंप ने बोल्टन को धोखेबाज़ कहा
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साल 2020 में उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप के साथ काम करने के अपने अनुभव पर एक किताब लिखी थी. इसमें उन्होंने कहा था कि ट्रंप को विदेश नीति के बारे में कुछ भी पता नहीं है.
इसके बाद व्हाइट हाउस ने उन पर गोपनीय जानकारी के दुरुपयोग का आरोप लगाया था.
एफ़बीआई ने इस कार्रवाई पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन बीबीसी के सहयोगी सीबीएस न्यूज़ को मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि यह तलाशी कुछ हद तक गोपनीय दस्तावेज़ों से जुड़ी है.
बोल्टन ने अभी तक इस जांच पर कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही उन्हें हिरासत में लिया गया है या उनके ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज किया गया है.
पत्रकारों ने जब जांच के बारे में पूछा तो ट्रंप ने कहा कि वह इस मामले में “हस्तक्षेप नहीं करना चाहते”, लेकिन उन्होंने बोल्टन को “धोखेबाज़” कहा.
राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि उन्होंने सीधे तौर पर तलाशी का आदेश नहीं दिया था.
अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा है कि बोल्टन के ख़िलाफ़ एफ़बीआई की कार्रवाई राजनीति से प्रेरित नहीं है.
शुक्रवार सुबह मैरीलैंड के बेथेस्डा स्थित बोल्टन के घर के बाहर पुलिस की गाड़ियां और एफ़बीआई अधिकारी दिखाई दिए. इनमें से कुछ अधिकारियों को घर के भीतर बॉक्स ले जाते देखा गया.
एफ़बीआई एजेंट बोल्टन के वॉशिंगटन डीसी स्थित दफ़्तर में भी पहुंचे.
शुक्रवार दोपहर को बोल्टन अपने मैरीलैंड स्थित घर लौट आए, लेकिन बाहर मौजूद पत्रकारों से उन्होंने कोई बातचीत नहीं की.
बोल्टन भारत पर टैरिफ़ के ख़िलाफ़
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बोल्टन रूस से तेल ख़रीदने के आरोप में भारत पर लगाए गए अमेरिकी टैरिफ़ के ख़िलाफ़ रहे हैं. हाल ही में उन्होंने अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंध भारत को उसका तेल ख़रीदने से नहीं रोक सकते.
बोल्टन ने कहा था, “रूस पर कोई नया प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. चीन पर भी कोई नया प्रतिबंध नहीं लगा, जबकि वही रूस से तेल और गैस का सबसे बड़ा ख़रीदार रहा है. लेकिन भारत को अलग करके निशाना बनाया गया है.”
बोल्टन का कहना था, “मैं चाहता हूं कि भारत रूस से तेल और गैस न ख़रीदे, क्योंकि मेरा मानना है कि भारत और अमेरिका दोनों के हित में है कि चीन से पैदा होने वाले ख़तरे को पहचाना जाए. चीन और रूस के बढ़ते गठजोड़ और उससे दुनिया को होने वाले ख़तरे को भी समझा जाए.”
उन्होंने आगे कहा था, “भारत को अकेला छोड़ देना और सिर्फ़ उसी के ख़िलाफ़ सज़ा के तौर पर टैरिफ़ लगाना बहुत से लोगों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि अमेरिका ने भारत से हाथ खींच लिया है. मुझे चिंता है कि इससे भारत रूस और चीन के और क़रीब चला जाएगा.”
बोल्टन ने इसे ट्रंप प्रशासन की असामान्य नीतियों का हिस्सा बताया था. उन्होंने कहा था कि इस समय यह भारत-अमेरिका रिश्तों के लिए बेहद नुक़सानदेह है.
उनके मुताबिक़, “दुर्भाग्य से टैरिफ़ पर ट्रंप ने जो किया है, वह भारत और कई अन्य देशों के साथ दशकों से बने भरोसे और विश्वास को कमज़ोर कर रहा है. इसे ठीक करने में लंबा समय लगेगा.”
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है. भारत अमेरिकी बाज़ार के लिए अपना 18 फ़ीसदी निर्यात करता है. यह भारत की जीडीपी का 2.2 फ़ीसदी है.
कुछ अनुमानों के मुताबिक़, 50 फ़ीसदी टैरिफ़ की वजह से भारत की जीडीपी में 0.2 से 0.4 फ़ीसदी तक गिरावट आ सकती है. इससे इस साल आर्थिक विकास छह फ़ीसदी से नीचे जा सकता है.
इस बीच, भारत और चीन के बीच नज़दीकी बढ़ने के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं.
ट्रंप और बोल्टन का झगड़ा
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2020 में बोल्टन ने ‘द रूम व्हेयर इट हैप्पन्ड’ शीर्षक से एक किताब लिखी थी.
इसमें उन्होंने 2018 से 2019 के बीच ट्रंप प्रशासन में काम करने के अपने अनुभव साझा किए.
इस किताब में उन्होंने राष्ट्रपति की तीखी आलोचना करते हुए लिखा था, “तथ्यों का पहाड़ साबित करता है कि ट्रंप राष्ट्रपति बनने के काबिल नहीं हैं.”
तब अमेरिकी न्याय मंत्रालय ने उन पर गोपनीय जानकारी साझा न करने के समझौते के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया था.
लेकिन यह मुक़दमा जून 2021 में वापस ले लिया गया, तब तक डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन राष्ट्रपति बन चुके थे.
पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र में राजदूत रह चुके बोल्टन की सीक्रेट सर्विस सुरक्षा ट्रंप प्रशासन ने जनवरी में वापस ले ली थी.
बोल्टन ने यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध से निपटने के ट्रंप प्रशासन के तरीक़ों पर भी सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए हैं.
ट्रंप ने भी बोल्टन की तीखी आलोचना की है और उन पर यह आरोप लगाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहते हुए उन्होंने विदेशों में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप की वकालत की.
ट्रंप के अन्य आलोचक भी जांच का सामना कर रहे हैं. इनमें न्यूयॉर्क की अटॉर्नी जनरल लेटिटिया जेम्स और कैलिफ़ोर्निया से डेमोक्रेट सीनेटर एडम शिफ़ शामिल हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित