- Author, अभिनव गोयल
- पदनाम, बीबीसी संवाददाता
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उत्तर प्रदेश में झांसी ज़िले के सरकारी मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार को आग लगने से 10 नवजातों की मौत हो गई है.
यह आग महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में रात को करीब दस बजे लगी थी. हादसे में 16 नवजात घायल भी हुए हैं.
कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सचिन महोर का कहना है, “कल रात (शुक्रवार) साढ़े 10 से पौने 11 के बीच एनआईसीयू वार्ड में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई. उस समय वहां पर 49 बच्चे भर्ती थे.”
उन्होंने बताया कि मरने वाले तीन बच्चों की पहचान नहीं हो पा रही है.
महोर के मुताबिक जिस यूनिट में आग लगी वहां ज्यादातर बच्चे ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे, जिस वजह से स्पार्क भी फैल गया.
मई 2024 में दिल्ली के विवेक विहार स्थिति बेबी केयर अस्पताल में भी आग लग गई थी. तब भी शॉर्ट सर्किट को एक बड़ा कारण बताया गया था. इस हादसे में 7 बच्चों की मौत हो गई थी.
अस्पताल में आग लगने के ऐसे कई मामले हमारे सामने हैं, जहां नवजात शिशुओं को बचाया नहीं जा सका.
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर अस्पतालों में आग क्यों लगती है?
नवजात शिशुओं के लिए बने इंटेंसिव केयर यूनिट में आग लगने का इतना जोखिम क्यों है और इस तरह के हादसों से बचने के लिए क्या करना होगा?
नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट क्या है?
जन्म के बाद जिन शिशुओं को इंटेंसिव मेडिकल केयर की ज़रूरत पड़ती है, उन्हें अक्सर अस्पताल के नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में रखा जाता है.
दिल्ली स्थित बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर में बाल रोग विभागाध्यक्ष मोनीशा गुप्ता कहती हैं कि एनआईसीयू में एडवांस टेक्नोलॉजी और ट्रेंड हेल्थ प्रोफेशनल्स होते हैं, जो नवजात शिशुओं की खास देखभाल करते हैं.
वह कहती हैं, “जन्म के बाद एक महीने तक बच्चों को एनआईसीयू में रखा जाता है. ज्यादातर यहां वे बच्चे होते हैं जो समय से पहले पैदा हो जाएं या फिर ऐसे बच्चे जिन्हें सांस लेने में दिक्कत हो, वजन कम हो, या फिर उन्हें किसी ऑपरेशन की ज़रूरत हो.”
आसान भाषा में समझाते हुए मोनीशा गुप्ता कहती हैं कि जैसे गंभीर रूप से बीमार व्यस्कों के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) होता है वैसे ही नवजात शिशुओं के लिए एनआईसीयू होता है.
वह कहती हैं, “एनआईसीयू बहुत संवेदनशील जगह होती है, क्योंकि यहां ज्यादातर मशीनें बिजली से चलती हैं. बच्चे को गर्म रखने के लिए वॉर्मर, वेंटिलेटर, फ्लूड देने के लिए पंप से लेकर मॉनिटर तक बिजली पर निर्भर हैं. मशीनों के ऊपर बैटरी भी लगी होती है, ताकि बिजली ना होने की स्थिति में मशीन काम करती रहे.”
गुप्ता कहती हैं, “अगर एनआईसीयू में बिजली के सर्किट की वायरिंग ठीक से नहीं होगी या उसके ऊपर ज्यादा लोड पड़ेगा तो वह गर्म हो जाएगा और शॉर्ट सर्किट की वजह से आग लग जाएगी.”
उनका कहना है कि इस तरह की जगहों पर पाइपों के ज़रिए ऑक्सीज़न की सप्लाई की जाती है. समय-समय पर हमें ये चेक करना होता है कि कहीं कोई लीकेज तो नहीं है. शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में ऑक्सीज़न आग को और भड़का सकती है.
अस्पतालों में आग की वजह
दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक अतुल गर्ग का कहना है कि राजधानी में 99 प्रतिशत आग लगने के मामले इलेक्ट्रिक फ़ॉल्ट की वजह से होते हैं.
बीबीसी से बातचीत में वह कहते हैं, “अगर आप अस्पताल में आग लगने की घटना का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर आग शॉर्ट सर्किट, ओवर लोडिंग और मशीनों की ओवर हीटिंग की वजह से लगती है.”
वह कहते हैं, “शॉर्ट सर्किट कई वजहों से हो सकता है. वायरिंग पुरानी होने पर जब बिजली पास करती है तो उनके ऊपर का इंसुलिन गल जाता है. कई बार सर्किट उस हिसाब से नहीं बना होता जितनी बिजली आप उससे ले रहे हैं. एमसीबी ठीक से काम नहीं करने पर भी शॉर्ट सर्किट हो जाता है.”
गर्ग कहते हैं, “हमें समय-समय पर वायरिंग चेक करानी चाहिए और सबसे ज्यादा ख्याल परिसर में लगे इलेक्ट्रिक मीटर का रखना चाहिए. ज्यादातर मामलों में सामने आता है कि इलेक्ट्रिक मीटर सीढ़ियों के नीचे या परिसर के अंदर मौजूद हैं.”
“ऐसी स्थिति में शॉर्ट सर्किट बड़ी आग में तब्दील हो जाता है. अगर मीटर को बाहर रखेंगे तो मुझे लगता है कि आग लगने के मामलों में 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.”
वह कहते हैं, “अस्पताल की आग को हमारे यहां सबसे मुश्किल आग माना जाता है. अस्पताल में कोई चोटिल होगा, किसी का ऑपरेशन हो रहा होगा, कोई बच्चा इनक्यूबेटर पर होगा. वे आग लगने पर नहीं भाग सकते.”
“ऐसे मामलों में हमें ज्यादा फायर टेंडर भेजने पड़ते हैं. सामान्य मामलों में अगर हम दो फायर टेंडर भेज रहे हैं तो यहां छह फायर टेंडर जाएंगे.”
मान्यता का ना होना
देश भर में पिछले कई दशकों से नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम (एनएनएफ़) नवजात शिशुओं के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल को सुनिश्चित करने का काम कर रहा है.
नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम ने यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर एक टूलकिट तैयार की है, जो बताती है कि अस्पतालों या नर्सिंग होम को नवजातों की देखभाल के किन मानकों का ध्यान रखना चाहिए.
गैर-सरकारी संस्था एनएनएफ की तरफ से अस्पतालों के एनआईसीयू और नर्सिंग होम को मान्यता दी जाती है.
फोरम के महासचिव सुरेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं कि देश भर में सैकड़ों ऐसे नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट हैं, जो नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थ केअर (एनएबीएच) या नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम जैसी एजेंसियों से मान्यता प्राप्त नहीं हैं, जिसकी वजह से वहां सुरक्षा जांच नहीं हो पाती और वे हादसों का गढ़ बन जाते हैं.
वह कहते हैं कि एक बिजली के प्वाइंट पर एक्सटेंशन लगाकर आप चार मशीनें नहीं चला सकते, क्योंकि ऐसा करने पर तारें गर्म हो जाएंगी.
बिष्ट कहते हैं, “जब हम जांच के लिए जाते हैं तो बहुत जगह पर थर्मल स्कैनिंग तक की जाती है. हर एक इलेक्ट्रिक प्वाइंट की थर्मल फोटो हमारे पास आती है, ताकि हम ये पता लगा सकें कि किसी प्वाइंट पर ज़रूरत से ज्यादा लोड तो नहीं है.”
वह कहते हैं, “एनएनएफ ने देशभर में 300 से ज्यादा अस्पतालों और नर्सिंग होम को सर्टिफाइड किया है कि वे बच्चों के इलाज के लिए तय मानकों का पालन कर रहे हैं. ऐसे में हम समय-समय पर वहां जाकर जांच भी करते हैं. इसके लिए 25 से 30 हज़ार रुपये खर्चा आता है.”
सिस्टम पर दबाव
उनके मुताबिक भारत में पैदा होने वाले 1000 बच्चों में से 37 बच्चे शुरुआती कुछ दिनों में ही मर जाते हैं.
फोरम के महासचिव सुरेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं कि दूर-दराज इलाकों में नवजातों के लिए इंटेंसिव केयर की सुविधाएं नहीं हैं, ऐसे में ज़िला अस्पतालों पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे हादसा होने की संभावना भी बढ़ जाती है.
वह कहते हैं, “अस्पतालों में व्यस्कों के लिए आईसीयू 8-10 बेड वाले होते हैं लेकिन बच्चों के लिए इंटेंसिव केयर में 50 बेड तक लगा देते हैं, क्योंकि वो रेफरल सेंटर हैं. वहां डॉक्टर लोगों को मना नहीं कर सकते और वे किसी तरह मुश्किल से एक्स्ट्रा बेड लगाकर इलाज करने की कोशिश करते हैं.”
बिष्ट कहते हैं, “ऐसी स्थिति में मशीनें लगातार चलती हैं और अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने पर गर्म होने लगती हैं. उनकी जांच भी समय से नहीं हो पाती, जिससे हादसों की संभावना बढ़ जाती है.”
ऐसी ही बात दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक अतुल गर्ग भी करते हैं. वह कहते हैं कि कोविड के दौरान गुजरात और महाराष्ट्र के अस्पतालों से आग लगने की खबरें आईं, क्योंकि वहां पर मरीजों की संख्या ज्यादा हो गई थी और मशीनें उतना लोड नहीं उठा सकती थीं.
अस्पताल में आग लगने की बड़ी घटनाएं
दिल्ली, मई 2024- विवेक विहार स्थित एक अस्पताल में आग लगने से सात नवजातों की मौत.
मध्य प्रदेश, नवंबर 2021- भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग में आग लगने से चार बच्चों की मौत.
महाराष्ट्र, जनवरी 2021- भंडारा के ज़िला अस्पताल के स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट में आग लगने से 10 नवजातों की मौत.
पश्चिम बंगाल, दिसंबर 2011- निजी अस्पताल के एएमआरआई विभाग में भीषण आग लगने से कम से कम 89 लोगों की मौत.
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