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झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के सरकारी सदर अस्पताल में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को एचआईवी संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने का मामला सामने आया है.
पश्चिमी सिंहभूम के ज़िलाधिकारी चंदन कुमार ने बीबीसी से बात करते हुए आठ साल से कम उम्र के थैलेसीमिया पीड़ित पांच बच्चों के एचआईवी संक्रमित होने की पुष्टि की है.
इस मामले में चाईबासा के सिविल सर्जन, एचआईवी यूनिट के प्रभारी चिकित्सक और संबंधित टेक्नीशियन को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पीड़ित बच्चों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है.
बीबीसी ने संक्रमित रक्त चढ़ने से एचआईवी से संक्रमित हुए तीन थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की मौजूदा स्थिति जानने की कोशिश की.
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पहला मामला मंझारी ब्लॉक के सात साल के शशांक (बदला हुआ नाम) का है, जो संक्रमित रक्त के कारण एचआईवी पॉज़िटिव हो गए हैं.
यह जानकारी मिलने के बाद 30 अक्तूबर को उनके मकान मालिक ने चाईबासा स्थित किराए का मकान खाली करवा लिया.
यहीं रहकर शशांक इलाज के साथ इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाई भी कर रहे थे.
छोड़ना पड़ा किराये का घर
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शशांक के पिता दशरथ (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “मकान मालिक ने कहा कि आपका बेटा एचआईवी से संक्रमित है, इसलिए घर खाली करो.”
वह आगे कहते हैं, “मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वह घर खाली करवाने पर अड़े रहे. ऐसे में मुझे लगभग 27 किलोमीटर दूर मंझारी ब्लॉक स्थित अपने गांव लौटना पड़ा.”
थैलेसीमिया के कारण उनके बेटे को महीने में दो बार खून चढ़ता है, जिसके लिए अब उन्हें महीने में दो बार सदर अस्पताल आना पड़ेगा.
वह कहते हैं, “गांव लौटने के बाद बेटे को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलना तो चुनौती है ही, अब वह अच्छी शिक्षा से भी वंचित हो गया है.”
सिर्फ धान की खेती पर निर्भर किसान दशरथ की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है.
वह कहते हैं, “इन हालात में मेरे लिए चुनौतियां और बढ़ गई हैं. पहले थैलेसीमिया जैसी बीमारी, और अब बेटे को एचआईवी से लड़ते हुए देखना पड़ेगा.”
छोटी बेटी के एड्स संक्रमित होने पर बेटा- बेटी को किया अलग

शशांक की तरह हाटगम्हरिया ब्लॉक की थैलेसीमिया मरीज़ दिव्या (बदला हुआ नाम) करीब सात साल की उम्र में एचआईवी पॉज़िटिव हो गई हैं.
दिव्या के बड़े भाई और बहन को आगे की परवरिश के लिए उनकी मां सुनीता (बदला हुआ नाम) ने अपने मायके भेज दिया है ताकि उन्हें संक्रमण का ख़तरा न रहे.
सुनीता बताती हैं कि जबसे दिव्या को थैलेसीमिया हुआ, वह महीने में दो बार करीब चालीस किलोमीटर दूर सदर अस्पताल में बेटी को खून चढ़वाने जाती हैं.
वह कहती हैं, “हर महीने गाड़ी के किराए की व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती है.”
इस संबंध में जब ज़िलाधिकारी चंदन कुमार से पूछा गया तो उन्होंने कहा, “हमने अपना नंबर सभी परिजनों को दिया है. जब भी उन्हें आना होगा, उनके लिए गाड़ी की व्यवस्था ज़िला प्रशासन की तरफ से की जाएगी.”
सुनीता आरोप लगाती हैं कि सितंबर में जब सदर अस्पताल में दिव्या को खून चढ़ाया जा रहा था, तब डॉक्टर दस्ताने पहनकर उसे छू रहे थे, जबकि नर्स छूने से बच रही थीं.
वह रोते हुए कहती हैं, “बेटी के प्रति स्वास्थ्यकर्मियों का यह व्यवहार देखकर मैं विचलित हो गई और मुझे संदेह हुआ कि मेरी बेटी को कुछ तो हुआ है.”
जब सुनीता ने कारण पूछा तो उन्हें साफ़ जवाब देने की बजाय कहा गया कि रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ बताया जा सकेगा.
वह कहती हैं, “चार अक्तूबर को एक स्वास्थ्यकर्मी ने बताया कि आपकी बेटी को गलत खून चढ़ गया है, जिससे वह एचआईवी पॉज़िटिव हो गई है.”
एचआईवी पॉज़िटिव होने से दिव्या के जीवन पर क्या असर पड़ेगा?
सुनीता कहती हैं, “शुरुआत में मुझे इसकी गंभीरता का अंदाज़ा नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे मैं एड्स की गंभीरता समझ रही हूं.”
माँ की एकमात्र उम्मीद
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झीकपानी प्रखंड के एक गांव में तालाब किनारे खेलती मासूम श्रेया (बदला हुआ नाम) अपनी मां श्रद्धा (बदला हुआ नाम) के साथ मिट्टी की दीवारों और खप्पर की छत वाले घर में रहती हैं.
पति के देहांत के बाद श्रद्धा की जिंदगी की एकमात्र उम्मीद उनकी साढ़े छह साल की बेटी श्रेया ही हैं.
खून चढ़वाने के लिए श्रद्धा हर महीने 25 किलोमीटर दूर चाईबासा सदर अस्पताल जाती हैं.
इसके लिए उन्हें हर बार गाड़ी बुक करनी पड़ती है, जिसका खर्च उनकी आर्थिक स्थिति के लिए बहुत बड़ी चुनौती है.
अब उनके सामने थैलेसीमिया के साथ एड्स से निपटने की भी बड़ी चुनौती है. श्रद्धा एड्स जैसी बीमारी के बारे में कुछ नहीं जानतीं.
वह कहती हैं, “एचआईवी ज़रूर कोई गंभीर बीमारी होगी, तभी अस्पताल की ग़लती पर दो लाख का चेक मिला है.”
मामले के बारे में कैसे पता चला

दोनों मांओं — श्रद्धा और सुनीता — को एचआईवी संक्रमण के बारे में पहले जानकारी नहीं थी. लेकिन डॉक्टरों और नर्सों के बदले व्यवहार से उन्हें संदेह हुआ कि उनके बच्चों को कोई गंभीर बीमारी हो गई है.
यह संदेह तब यकीन में बदला जब अक्तूबर के आख़िर में शशांक की एचआईवी पॉज़िटिव रिपोर्ट आने के बाद दशरथ से स्थानीय मीडिया ने संपर्क किया.
वह बताते हैं, “18 अक्तूबर को बेटे को खून चढ़ाने से पहले सदर अस्पताल के डॉक्टर ने एचआईवी टेस्ट करवाया. फिर 20 अक्तूबर को बताया गया कि बेटा एचआईवी पॉज़िटिव है. उसके बाद मेरा और मेरी पत्नी का एचआईवी टेस्ट हुआ जो निगेटिव आया. तब डॉक्टर ने कहा कि संक्रमित रक्त चढ़ने के कारण मेरा बेटा पॉज़िटिव हुआ है.”
दशरथ ने इसकी शिकायत चंदन कुमार से की, जिसके बाद मामला स्थानीय मीडिया तक पहुंचा. इसके बाद झारखंड हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर जांच के आदेश दिए.
इसी दौरान उन्हें जानकारी मिली कि बेटे के एचआईवी पॉज़िटिव होने के कारण ज़िलाधिकारी, विधायक और सांसद उनसे मिलने आएंगे.
चंदन कुमार का कहना है कि अबुआ आवास, राशन, टॉयलेट वगैरह जैसी सभी सरकारी योजनाओं का लाभ पीड़ित परिवारों को दिया जाएगा.
वह कहते हैं, “थैलेसीमिया से पीड़ित सभी पांच बच्चे जो एचआईवी पॉज़िटिव हो गए हैं, उनकी मदद के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से दो-दो लाख रुपये की सहायता दी गई है.”
सरकारी सहायता से नाराज़ परिजन
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दशरथ दुख और गुस्से में कहते हैं, “ज़िलाधिकारी, सांसद और विधायक ने आकर दो लाख का चेक दिया. यही होता है हमारे झारखंड में — ग़रीब बच्चे को दो लाख रुपये, लेकिन अगर मंत्री का बेटा होता तो उसे करोड़ों मिलते.”
वह पूछते हैं, “क्या ग़रीब लोगों की जान की क़ीमत सिर्फ दो लाख है?”
सरकार से आप क्या चाहते हैं?
इस सवाल पर दशरथ कहते हैं, “अगर सरकार सेवा करना चाहती है तो हमें एक-एक करोड़ का मुआवज़ा दे और बच्चों का बड़े अस्पताल में इलाज करवाए. ग़लती सरकारी अस्पताल की है, तो ज़िम्मेदारी भी सरकार की है.”
स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर इरफ़ान अंसारी कहते हैं, “पश्चिमी सिंहभूम ज़िला थैलेसीमिया का ज़ोन है. यहां इस समय 59 थैलेसीमिया मरीज़ों का इलाज हो रहा है. इनमें से बड़ी संख्या में मरीज़ों को महीने में दो बार रक्त की ज़रूरत होती है, जिसकी आपूर्ति डोनर पर निर्भर करती है.”
क्या कोई डोनर एचआईवी पॉज़िटिव है?
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सबसे बड़ा सवाल यही है कि संक्रमित खून कहां से आया?
इस पर चंदन कुमार बताते हैं, “साल 2023 से 2025 के दौरान ज़िले में कुल 259 डोनरों ने रक्तदान किया. इनमें से 44 का पता लगाया गया है, जिनमें चार डोनर एचआईवी पॉज़िटिव पाए गए हैं.”
वह आगे कहते हैं, “बाकियों के बारे में जांच जारी है ताकि अगर कोई अन्य डोनर एचआईवी पॉज़िटिव हो तो उसकी पहचान की जा सके.”
ज़िम्मेदार कौन है?
इस सवाल पर झारखंड के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी कहते हैं, “इस मामले में सिविल सर्जन और अन्य अधिकारियों की लापरवाही है, इसलिए दोषी वही हैं.”
वहीं झारखंड की विशेष स्वास्थ्य सचिव डॉक्टर नेहा अरोड़ा के अनुसार, मामले की जांच चल रही है.
डोनर के रक्त की टेस्टिंग प्रक्रिया पर वह कहती हैं, “अगर जांच प्री-किट से होती है तो विंडो पीरियड लंबा रहता है और पेशेंट देर से पॉज़िटिव आता है. वहीं एलिसा या एनएटी जांच में वायरस जल्दी पकड़ में आ जाता है क्योंकि ये एंटीजन की पहचान करते हैं. इसलिए अब डोनर जांच में प्री-किट पर रोक लगा दी गई है.”
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दूसरी तरफ झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि बिना लाइसेंस के ब्लड बैंक क्यों चल रहे हैं?
स्थानीय खबरों के मुताबिक, चाईबासा समेत राज्य के नौ ब्लड बैंकों के लाइसेंस एक्सपायर हो चुके हैं, लेकिन काम अब भी जारी है.
इस पर स्वास्थ्य मंत्री इरफ़ान अंसारी का कहना है, “लाइसेंस रिन्यूअल की एनओसी केंद्र सरकार से मिलती है. जब तक वह नहीं देती, हम रिन्यूअल कैसे करेंगे. लेकिन हमने फ़ाइल केंद्र को भेज दी है.”
पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी का कहना है कि जब तक राज्य सरकार लिखित अनुशंसा नहीं भेजेगी, केंद्र लाइसेंस रिन्यू नहीं कर सकता.
थैलेसीमिया एक्टिविस्ट अतुल गेरा आरोप लगाते हैं, “लाइसेंस रिन्यूअल पेंडिंग होने की वजह अनुपालन में कमियां हैं. इन्हें दूर न करने से रक्त की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है. इसी का नतीजा चाईबासा की घटना है.”
वह आगे कहते हैं, “झारखंड जैसे राज्य में पांच हज़ार से अधिक थैलेसीमिया मरीज़ हैं, लेकिन उनके इलाज के लिए पूरे राज्य में सिर्फ एक हीमेटोलॉजिस्ट है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित