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- Author, वक़ार मुस्तफ़ा
- पदनाम, पत्रकार और शोधकर्ता
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जहाज़ पर सवार दो नौजवान 20 दिसंबर 1978 की सर्द शाम इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट 410 की 15वीं क़तार में अपनी सीटों से उठकर कॉकपिट की तरफ़ बढ़े. किसी यात्री ने उन पर कोई ध्यान दिया और न ही क्रू मेंबर्स को कोई खटकने वाली बात लगी.
उन्हें ऐसा लगता भी कैसे, एक नौजवान ने कॉकपिट में जाने की गुज़ारिश बेहद ‘शालीनता’ से की थी.
कलकत्ता ( अब कोलकाता) से लखनऊ होकर 126 यात्रियों और छह विमान चालक दल के सदस्यों को लेकर यह उड़ान 15 मिनट में दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर उतरने वाली थी, लेकिन तभी मंज़र बदल गया.
‘इंडिया टुडे’ की रिपोर्ट के अनुसार ‘शालीन’ नौजवान की गुज़ारिश के बाद क्रू मेंबर जीवी डे, कप्तान तक पहुंचाने के लिए कॉकपिट में जाने ही वाले थे कि एक नौजवान ने इंदिरा ठाकरी नाम की एयर होस्टेस की कोहनी पकड़ ली. और उसका दूसरा साथी कॉकपिट में घुसने की कोशिश करने लगा.
रिपोर्ट के मुताबिक “कॉकपिट के मैग्नेटिक दरवाज़े का ऑटोमैटिक लॉक बंद हो गया था, जिस पर दोनों नौजवानों ने पूरा ज़ोर लगाया तो दरवाज़ा खुल गया और वह अंदर घुस गए.”
तब तक यात्रियों और क्रू मेंबर्स को अंदाज़ा हो चुका था कि कुछ गड़बड़ है.
कुछ ही मिनट बाद जहाज़ के कप्तान की आवाज़ गूंजी, “हमें अग़वा कर लिया गया है और फ़्लाइट पटना जा रही है.”
इस ऐलान के कुछ ही पलों बाद दूसरा ऐलान हुआ, “हम वाराणसी की तरफ़ जा रहे हैं.”
‘इंडिया टुडे’ ने कप्तान के हवाले से लिखा कि इन घोषणाओं से पहले कॉकपिट में हाईजैकर्स और पायलटों के बीच काफ़ी बहस हुई.
कप्तान के मुताबिक़, “उन बेवक़ूफ़ों (हाईजैकर्स) को यह समझाना मुश्किल था कि उड़ान की एक सीमा होती है जिसे रेंज कहते हैं. पहले उन्होंने मांग की कि नेपाल जाया जाए. जब मैंने, ख़ासकर उन दोनों में से ज़्यादा पागल शख़्स को जो बार-बार मेरी कनपटी पर पिस्तौल तान रहा था, यह बताया कि हमारे पास इतना ईंधन नहीं है, तो उन्होंने बांग्लादेश जाने की मांग कर दी. मेरा ख़्याल है कि वह स्कूल में पढ़ाया गया भूगोल का पाठ भूल चुके थे.”
मैगज़ीन के मुताबिक़ बाद में हथियारबंद अपहरणकर्ता कॉकपिट से बाहर निकले और पूरे जोश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गिरफ़्तारी और मार्च 1977 के चुनावों में जीत के बाद से सत्तारूढ़ जनता पार्टी की ‘बदले की भावना’ की निंदा की.
इस घटना से बस एक दिन पहले ही इंदिरा गांधी को गिरफ़्तार किया गया था.
इंदिरा गांधी की गिरफ़्तारी
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विलियम बॉर्डर्स ने अमेरिकी अख़बार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ के लिए लिखा कि लोकसभा ने सात दिनों की हंगामेदार बहस के बाद, बहुमत से इंदिरा गांधी को सदन से निष्कासित करते हुए उन्हें जेल भेज दिया.
“मिसेज़ गांधी पर आरोप था कि उन्होंने 1975 में बतौर प्रधानमंत्री अपने बेटे संजय गांधी के कंट्रोल में चलने वाली एक कंपनी ‘मारुति लिमिटेड’ की जांच करने वाले सरकारी अधिकारियों को परेशान किया था ताकि वह इस केस से पीछे हट जाएं. पूर्व प्रधानमंत्री ने इस कार्रवाई को ‘बदले की भावना और राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित’ बताया था.”
“संसद में बहस के दौरान इंदिरा गांधी सरकार की जेल में डालने और सेंसरशिप की नीतियों और तानाशाही शासन का बार-बार हवाला दिया गया, लेकिन उन्होंने माफ़ी मांगने की अपीलों को ठुकराते हुए अपने भाषण में कहा कि उन्हें किसी बात का पछतावा नहीं है.”
‘मैं टॉयलेट जा रहा हूँ, भले गोली मार दो’
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विलियम बॉर्डर्स लिखते हैं कि इंदिरा गांधी ने सत्र समाप्त होने पर घर में या ‘रात के सन्नाटे में गिरफ़्तार होने’ के बजाय इस बात पर ज़ोर दिया कि उन्हें संसद से ही गिरफ़्तार किया जाए.
“तीन घंटे के इंतज़ार के बाद गिरफ़्तारी का वारंट लिए पुलिस अधिकारी उन तक पहुंचे. मिसेज़ गांधी मुस्कुराते हुए लकड़ी की एक भारी मेज़ पर चढ़ गईं, हाथ ठुड्डी के नीचे जोड़े और फिर नीचे उतर आईं. रवाना होने से पहले उन्होंने एक पुराने अंग्रेज़ी गीत की पंक्तियां लिखीं, जिन्हें बाद में उनके एक समर्थक ने भीड़ में पढ़कर सुनाया”,
“मुझे अलविदा कहते हुए मेरे लिए नेक तमन्नाओं की दुआ करना
आंखों में आंसू नहीं, एक मुस्कुराहट के साथ
मुझे एक ऐसी मुस्कुराहट दे जाना जो मेरी ग़ैर-मौजूदगी के तमाम अरसे में मेरे साथ रहे”
“अगर चाहो तो मुझे गोली मार दो, टॉयलेट जा रहा हूं”
इंदिरा गांधी की गिरफ़्तारी की ख़बर फैलते ही कई इलाक़ों में विरोध प्रदर्शन हुए. कांग्रेस ने धमकी दी कि जब तक वह जेल में हैं, विरोध प्रदर्शनों और धरनों का सिलसिला जारी रहेगा.
लेकिन ख़ुद को यूथ कांग्रेस का सदस्य बताने वाले हाईजैकर्स ने इंदिरा गांधी की रिहाई के लिए पूरा विमान ही अग़वा कर लिया. बाद में इन अपहरणकर्ताओं की पहचान 27 वर्षीय भोलानाथ पांडे और 28 वर्षीय देवेंद्र पांडे के रूप में हुई.
अपहरणकर्ताओं ने विमान में ऐलान किया कि वह ‘गांधीवादी’ हैं और ‘अहिंसा’ के मानने वाले हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वह यात्रियों को नुक़सान पहुंचाने का कोई इरादा नहीं रखते.
‘इंडिया टुडे’ ने लिखा कि कई मौक़े ऐसे आए जब दोनों अपहरणकर्ताओं पर आसानी से क़ाबू पाया जा सकता था, मगर यात्रियों या चालक दल की तरफ़ से ऐसी कोई कोशिश नहीं की गई.
एक समय पर अपहरणकर्ताओं ने यात्रियों को टॉयलेट इस्तेमाल करने से रोक दिया. इस जहाज़ में पूर्व क़ानून मंत्री एके सेन भी सवार थे, जो शौचालय के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सके और चिल्ला पड़े, “अगर चाहो तो मुझे गोली मार दो, मैं टॉयलेट जा रहा हूं.’
इसी दौरान जहाज़ वाराणसी में उतर चुका था और रनवे के एक कोने में जाकर खड़ा हो गया था.
हाईजैकर्स ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रामनरेश यादव से बात करने की मांग की. यादव से संपर्क किया गया तो शुरुआत में उन्होंने इनकार किया, मगर प्रधानमंत्री देसाई के निर्देशों के बाद वे वाराणसी के लिए रवाना हो गए.
अपहरणकर्ताओं ने विमान के वायरलेस के ज़रिए स्थानीय अधिकारियों को बताया कि उनकी चार मांगें हैं, जिनमें सबसे प्रमुख इंदिरा गांधी की बिना शर्त रिहाई है.
मुख्यमंत्री रामनरेश यादव और अपहरणकर्ताओं के बीच बातचीत इस मांग से शुरू हुई कि यादव ख़ुद जहाज़ में आकर उनसे बात करें. जवाब में यादव ने विमान पर सवार विदेशी नागरिकों और महिला यात्रियों को रिहा करने की शर्त रख दी.
इसी दौरान एक यात्री एसके मोदी ने जहाज़ का पिछला दरवाज़ा खोलकर नीचे छलांग लगा दी, और अंदर मौजूद किसी को भनक तक न लगी.
21 दिसंबर को लोकसभा के सत्र में पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री पुरुषोत्तम कौशिक ने घटनाक्रम की जानकारी दी.
उन्होंने बताया “एसके मोदी, एक एयर होस्टेस की मदद से जहाज़ से निकलने में कामयाब रहे. वहां से निकलने के बाद मोदी ने अधिकारियों को बताया कि विमान में दो अपहरणकर्ता हैं, जिनमें से एक ने सफ़ेद पायजामा-कुर्ता और दूसरे ने सफ़ेद धोती-कुर्ता पहन रखा है. उन्होंने अधिकारियों को यह भी बताया कि अपहरणकर्ताओं के पास हिंदी और अंग्रेज़ी में छपे पैंफ़्लेट्स भी हैं, जिनमें ‘राष्ट्रीय नेता’ की रिहाई की मांग और अपने इस क़दम के व्यापक प्रचार की अपील दर्ज है.”
“मुख्यमंत्री से बातचीत में अपहरणकर्ताओं ने मांग की कि इंदिरा गांधी को तुरंत रिहा किया जाए, उनके ख़िलाफ़ सभी फ़ौजदारी मामले वापस लिए जाएं, जनता पार्टी की सरकार इस्तीफ़ा दे और आख़िर में यह कि विमान वापस लखनऊ जाए और उन्हें प्रेस से मिलने की इजाज़त दी जाए.”
“मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव दिया कि अगर सभी यात्रियों को रिहा कर दिया जाए, तो वह अपहरणकर्ताओं को सरकारी जहाज़ में लखनऊ ले जाएंगे. अपहरणकर्ताओं ने शुरुआत में इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और विमान में ईंधन भरने की मांग की. केंद्रीय कमेटी ने वाराणसी में मौजूद वार्ताकारों को निर्देश दिया कि विमान में ईंधन न भरा जाए और बातचीत जारी रखी जाए.”
‘इंडिया टुडे’ ने लिखा कि बातचीत पूरी रात जारी रही और प्रधानमंत्री देसाई के विशेष निर्देशों पर मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने अपहरणकर्ताओं की किसी भी मांग को मानने से इनकार करना जारी रखा.
“सुबह लगभग छह बजे यात्रियों ने शिकायत की कि जहाज़ के अंदर घुटन बर्दाश्त से बाहर हो गई है, जिस पर अपहरणकर्ताओं ने पिछले दरवाज़े खोलने की इजाज़त दे दी.”
“इसी बीच कप्तान ने इमरजेंसी स्लाइड के रिलीज़ लीवर को खींच दिया. दरवाज़ों से स्लाइड नीचे गिरते ही कुछ मुसाफ़िर भागे और रनवे पर उतर गए, और थोड़ी ही देर में जहाज़ में सवार लगभग आधे यात्री उनके बाद उतर आए और इस तरह लगभग 60 यात्री उतर चुके थे.”
“इसी समय अपहरणकर्ताओं में से एक के पिता वाराणसी हवाई अड्डे पर पहुंच गए और वायरलेस के ज़रिए अपने बेटे से बात की. पिता की आवाज़ सुनकर दोनों नौजवान इंदिरा गांधी के पक्ष में नारे लगाते हुए विमान से बाहर निकल आए और ख़ुद को अधिकारियों के हवाले कर दिया.”
‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार अपहरण का यह ड्रामा 13 घंटे चला. अपहरणकर्ताओं ने “दो खिलौना पिस्तौल और एक क्रिकेट बॉल अधिकारियों के हवाले कर दी जो काले कपड़े में लिपटी हुई थी और हथगोले जैसी दिखती थी.”
“वह इत्मीनान से उतरे और ‘इंदिरा गांधी ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए, जिसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया.”
“जांच के दौरान दोनों ने दावा किया कि इस कार्रवाई के लिए उन्हें कांग्रेस नेताओं से पैसे मिले थे. उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के दो पदाधिकारियों के नाम लिए जिन्होंने कथित तौर पर उन्हें क्रमशः 400 और 200 रुपये दिए थे. इसी रक़म में से 350 रुपये ख़र्च करके उन्होंने लखनऊ से दिल्ली के हवाई टिकट खरीदे थे.”
इस घटना के कुछ ही दिनों बाद इंदिरा गांधी को जेल से रिहा कर दिया गया, हालांकि दोनों युवाओं को विमान अपहरण केस में लखनऊ जेल में नौ महीने और 28 दिन की क़ैद की सज़ा काटनी पड़ी.
कुछ महीने बाद इंदिरा गांधी केंद्र में दोबारा सत्ता में आ गईं और अपहरणकर्ता भोलानाथ और देवेंद्र पांडे के ख़िलाफ़ मुक़दमे वापस ले लिए गए.
मौलश्री सेठ ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि कांग्रेस ने भोलानाथ को बलिया ज़िला की दोआबा विधानसभा सीट से टिकट दिया. साल 1980 में महज़ 27 साल की उम्र में भोलानाथ पहली बार विधायक चुने गए. साल 1989 में उन्होंने इसी सीट से दोबारा जीत हासिल की, मगर उसके बाद वह कोई चुनाव नहीं जीत सके, हालांकि कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में कई पद दिए.
देवेंद्र पांडे कांग्रेस के टिकट पर जयसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक चुने गए. वह कांग्रेस के उत्तर प्रदेश राज्य महासचिव भी रहे.
कांग्रेस के नेताओं ने क्या कहा था?
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अपनी किताब ‘इंडियन एयरपोर्ट्स (शॉकिंग ग्राउंड रियलिटीज़)’ में कृष्ण आर. वाधवानी ने देवेंद्र नाथ पांडे के हवाले से लिखा, “यह तो दीवानगी थी, गांधी परिवार के लिए दीवानगी की हद तक समर्पण था.”
वह आगे कहते हैं, “उस ज़माने में विमान अपहरण को अपराध ही नहीं समझा जाता था.”
ए. सूर्य प्रकाश ने लोकसभा की बहसों के हवाले से अपने एक शोध लेख में लिखा है कि 23 दिसंबर को लोकसभा में इस घटना पर तीखी बहस हुई.
“दूसरे दलों के सांसदों ने हाईजैकिंग की निंदा की, हालांकि आर. वेंकटरमन (जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने) और वसंत साठे सहित कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं के व्यवहार को सही ठहराने की कोशिश की और हाईजैकिंग को महज़ एक मज़ाक क़रार दिया.”
वेंकटरमन के अनुसार, “जब ख़बर आई तो देश में ग़ुस्सा था, मगर बाद में पता चला कि यह केवल खिलौना पिस्तौल और क्रिकेट बॉल थी, तो यह साल का मज़ाक बन गया.”
सूर्यप्रकाश के अनुसार वसंत साठे ने कहा कि वह हाईजैकर्स की हरकत का बचाव नहीं कर रहे, मगर यह समझ नहीं आता कि इसे हाईजैकिंग कहा जाए या ‘स्काई जोकिंग’. उनके मुताबिक़ यह गुमराह नौजवानों की शरारत थी क्योंकि उन्होंने क्रिकेट बॉल और खिलौना पिस्तौल का इस्तेमाल किया था.
वह लिखते हैं कि प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने हाईजैकिंग को मामूली बताने वाले कांग्रेसी सदस्यों को आड़े हाथों लिया.
उन्होंने कहा कि अगर पायलट घबरा जाते तो बड़ा हादसा हो सकता था. उन्होंने स्पष्ट किया कि खिलौना पिस्तौल हो या क्रिकेट बॉल, पायलट ख़तरा मोल नहीं ले सकते थे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.