इमेज स्रोत, Getty Images
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि भारत-अमेरिका के बीच होने वाले किसी भी व्यापारिक समझौते में भारत की ‘रेड लाइन्स’ का सम्मान किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि व्यापार समझौते तक पहुंचने के लिए ‘साझा आधार’ तलाश किए जा रहे हैं.
भारत 50 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ का सामना कर रहा है और अब तक भी दोनों देशों के बीच ट्रेड डील पर कोई सहमति नहीं बन पाई है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले भारत पर 25 प्रतिशत का टैरिफ़ लगाया था. इसके बाद भारत के रूस से तेल ख़रीदने पर नाराज़गी जताते हुए ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ़ भी लगा दिया.
भारत ने अमेरिका की इस कार्रवाई को “अनुचित, अवांछित और तर्कहीन” बताया था.
विदेश मंत्री जयशंकर ने क्या कहा?
इमेज स्रोत, X/MEA
एस. जयशंकर चार अक्तूबर को कौटिल्य इकोनॉमिक एन्क्लेव में ”उथल-पुथल के दौर में विदेश नीति का स्वरूप” विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे.
उन्होंने इस दौरान भारत-अमेरिका के बीच टैरिफ़ को लेकर तनाव और ट्रेड डील पर हो रही चर्चा पर भी बात की.
उन्होंने कहा, ” अमेरिका के साथ आज हमारे कुछ मुद्दे हैं. इसका एक बड़ा कारण यह है कि हम अब तक अपनी ट्रेड वार्ता में ‘समझौते’ तक नहीं पहुंच पाए हैं, और वहां तक न पहुंच पाने के कारण भारत पर कुछ शुल्क लगाए गए हैं.”
“इसके अलावा, एक दोहरा शुल्क भी है, जिसे लेकर हमने सार्वजनिक रूप से कहा है कि हम उसे बेहद अनुचित मानते हैं. यह शुल्क हमें रूस से ईंधन खरीदने को लेकर निशाना बनाता है, जबकि कई अन्य देश भी ऐसा कर रहे हैं.”
जयशंकर ने कहा, “अमेरिका के साथ एक व्यापारिक समझ बनाना ज़रूरी है क्योंकि वह दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है, और इसलिए भी क्योंकि दुनिया के अधिकांश देशों ने अमेरिका के साथ ऐसी समझ बना ली है.”
इस पर बातचीत करते हुए उन्होंने ट्रेड डील्स में ‘रेड लाइन्स’ पर भी बात की.
उन्होंने कहा, “भारत के ‘बॉटम लाइन्स’ और ‘रेड लाइन्स’ का सम्मान किया जाना चाहिए. किसी समझौते में कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिस पर हम मनन-चिंतन और विचार करते हैं लेकिन कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिसको लेकर आप एकदम स्पष्ट होते हैं. और मुझे लगता है कि हम इस (रेड लाइन्स) बारे में स्पष्ट हैं.”
विदेश मंत्री ने इस दौरान ये भी कहा कि संबंधों में तनाव का असर बातचीत के हर पहलू पर नहीं पड़ रहा है.
उन्होंने कहा, “समस्याएं हैं, मुद्दे हैं, कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता. उन मुद्दों पर बातचीत, चर्चा और समाधान की आवश्यकता है, और हम यही करने का प्रयास कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “मैं वास्तव में मुद्दों से ज्यादा इसके बारे में कुछ भी निहितार्थ निकालने से बचूंगा. मुझे लगता है कि मैं यह भी कहना चाहता हूं कि संबंधों का एक बड़ा हिस्सा या तो पहले की तरह ही चल रहा है या कुछ मामलों में तो पहले से भी ज्यादा (बेहतर तरीके से) चल रहा है.”
ट्रेड डील में रेड लाइन्स का क्या मतलब होता है?
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के निदेशक अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि दो देशों के बीच ट्रेड डील में कुछ सेंसिटिव आइटम होता है, जिसमें छूट नहीं दी जाती है.
उन्होंने कहा कि कुछ चीजों पर तो देश टैरिफ़ नहीं लगाने पर मान जाते हैं लेकिन कुछ चीजें वैसी होती हैं, जहां ये छूट नहीं दी जा सकती है. भारत के लिए इसमें कृषि उत्पाद से लेकर सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाले सामान शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि भारत के लिए गेहूं और चावल कोर उत्पाद हैं, जिससे करोड़ों किसानों की आजीविका चलती है और इस पर भारत अमेरिका को कोई भी छूट देने के लिए तैयार नहीं है.
वो कहते हैं, “कृषि उत्पाद के बाद एक और चीज है जो धार्मिक और सांस्कृतिक दायरे में आती है, वो है डेयरी प्रोडक्ट. अगर मवेशी को दूसरे किसी मवेशी का मीट वाला खाना दिया गया है तो हमारे यहां ऐसी चीज़ें या मिल्क प्रोडक्ट नहीं आ सकता है. ये भी भारत और अमेरिका के बीच रेड लाइन्स का हिस्सा है.”
वो कहते हैं कि जब भी व्यापारिक समझौता होता है तो दोनों ही देशों के रेड लाइन्स होते हैं, उस पर चर्चा होती है और अंत में दोनों देश उस रेड लाइन्स का सम्मान करते हैं.
वो कहते हैं कि शायद अब भारत और अमेरिका के बीच रूस से तेल खरीदना भी रेड लाइन्स में हो. रेड लाइन्स को निगेटिव लिस्ट भी कहा जाता है.
भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील के क्या आसार हैं?
अजय श्रीवास्तव कहते हैं, “जब तक टैरिफ़ 25 प्रतिशत था, भारत नेगोशिएट कर रहा था, अब भी वार्ता जारी है लेकिन इसके बाद जो 25 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ लगा, वो जब तक ड्रॉप नहीं हो जाता है तब तक कोई समझौता संभव ही नहीं है.”
वो कहते हैं कि दरअसल पूरी दुनिया में व्यापारिक समझौते में ट्रेड की बात होती है लेकिन इन दोनों देशों के बीच अब ये मामला ट्रेड से आगे बढ़ गया है. अब इसमें भारत कहां से हथियार आयात करेगा, कहां से तेल खरीदेगा जैसी चीजें शामिल हो चुकी है. इसलिए अब तो इसमें पहले इन सारी चीजों पर बात होगी.
इमेज स्रोत, Jasmin Nihalani/BBC
भारत और चीन रूस के कच्चे तेल के सबसे बड़े ख़रीदार हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस से भारत का तेल आयात तेज़ी से बढ़ा है.
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के कुल तेल आयात का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा रूस से आया, जबकि वित्त वर्ष 2018 में यह केवल 1.3 प्रतिशत था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित