अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड पर कब्ज़ा करने में दिलचस्पी दिखाते हुए ये संकेत दिया है कि अमेरिका इसके लिए अपनी आर्थिक ताकत या सेना का इस्तेमाल कर सकता है.
सबसे पहले साल 2019 में डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा जताई थी.
ट्रंप के ग्रीनलैंड पर कब्ज़ा करने से जुड़ी टिप्पणी के बाद डेनमार्क और यूरोपीय अधिकारियों ने कहा है कि ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं है और इसकी क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा की जानी चाहिए.
ट्रंप के ग्रीनलैंड पर दिए गए इस बयान के बाद से वहां के लोगों के बीच कई चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
क्या कहना है ग्रीनलैंड के लोगों का?
73 साल के कालेराक रिंगस्टेड एक स्थानीय चर्च में पादरी हैं. उन्होंने ग्रीनलैंड पर ट्रंप की टिप्पणी के बारे में बीबीसी से कहा, “जो उन्होंने कहा है वह स्वीकार्य नहीं है. ग्रीनलैंड बिकाऊ नहीं है.”
उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने पिता और दादा के साथ मछली पकड़ना और शिकार करना सीखा और इस पंरपरा को वह अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ आगे बढ़ाना चाहते हैं.
अंगुटिम्मारिक हेन्सन का फार्म है, वह भेड़ पालते हैं और साथ में खरगोश, सील और जंगली पक्षियों का शिकार भी करते हैं.
सार्दियों में भेड़ों के चारे के लिए वो पूरी तरह से डेनमार्क पर निर्भर रहते हैं, ये ग्रीनलैंड की जलवायु में जीवनयापन के एक महत्वपूर्ण पहलू को बताता है.
ट्रंप के बयान पर उन्होंने कहा, “ट्रंप मूर्ख आदमी हैं. हम ग्रीनलैंड को कभी भी नहीं बेचेंगे. ट्रंप पूरे अमेरिका का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. हम अमेरिका के लोगों के साथ काम कर सकते हैं.”
ट्रंप के ग्रीनलैंड पर टिप्पणी के बाद उनके बेटे डोनाल्ड ट्रंप जूनियर ने ग्रीनलैंड का दौरा किया था.
डोनाल्ड ट्रंप जूनियर ग्रीनलैंड की राजधानी नुउक में चार घंटे तैंतीस मिनट रुके थे. इस दौरान उन्होंने कुछ स्थानीय लोगों से मुलाकात की.
इस दौरे पर उन्होंने कहा, “यहां के लोगों से मिलकर बहुत अच्छा लगा और हमसे मिलकर लोग बहुत खुश थे. पापा को यहां जरूर आना चाहिए.”
ट्रंप जूनियर का स्वागत स्थानीय बिजनेसमैन जोर्गन बोआसेन ने किया, जिन्होंने पहले नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप के लिए एक बार प्रचार किया था.
जोर्गन बोआसेन ने स्थानीय मीडिया से बात की और उन्होंने बताया कि वह ट्रंप के सबसे बड़े प्रशंसक हैं और यह भी कहा, “बेशक उन्हें हमारे देश में दिलचस्पी हैं और उनका स्वागत है यह देखने के लिए कि हमारा देश कैसा है. यह ट्रेड और सहयोग के रास्ते खोलने जैसा है.”
ग्रीनलैंड में कुछ लोग इस बात से संतुष्ट हैं कि ट्रंप की टिप्पणियों की वजह से ग्रीनलैंड की आजादी की बहस को अंतरराष्ट्रीय मंच मिल गया है.
ग्रीनलैंड की सत्ताधारी गठबंधन के सांसद और विदेश और सुरक्षा समिति के सदस्य कुनो फेन्कर का कहना है, “ग्रीनलैंड को ऐसा देश होना चाहिए जो किसी का उपनिवेश न हो.”
“यहां ज़रूरी यह है कि एक संप्रभु राज्य के तौर पर ग्रीनलैंड को सीधे अमेरिका के साथ बातचीत करनी चाहिए, न कि डेनमार्क को हमारी ओर से यह काम करना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “डोनाल्ड ट्रंप एक राजनीतिज्ञ हैं. वह एक सख्त बिजनेसमैन हैं और हम उनकी बयानबाज़ी से परिचित हैं. साल 2019 से हमें उनकी बयानबाज़ी की आदत हो गई है. यह एक साथी, एक सहयोगी के साथ बात करने का मामला है कि हम कैसे आर्कटिक और नेटो में चीजों को सुलझा सकते हैं.”
कुनो फेन्कर ग्रीनलैंड की आज़ादी के समर्थक हैं.
क्या ग्रीनलैंड को आज़ादी की कीमत चुकानी होगी?
डेनमार्क से आज़ादी लेने पर ग्रीनलैंड को वित्तीय कीमत चुकानी पड़ सकती है.
ग्रीनलैंड को कोपेनहेगन से हर साल अपनी जीडीपी का लगभग पांचवां हिस्सा सब्सिडी के रूप में मिलता है.
कुनो फेन्कर का भी अन्य बड़े आधिकारियाें की तरह यही मानना है कि ग्रीनलैंड सहयोग के लिए अमेरिका और डेनमार्क के साथ बातचीत करेगा.
उन्होंने कहा, “इस मामले में हम बेवकूफ नहीं है. हमें रक्षा, सुरक्षा और आर्थिक विकास में सहयोग की जरूरत है. हम एक टिकाऊ और स्थिर अर्थव्यवस्था चाहते हैं.”
स्थानीय न्यूजपेपर सरमिटसियाक के संपादक मसाना एगडे का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंंप के बलप्रयोग की टिप्पणी ने उन्हें चिंतित कर दिया था, लेकिन वह यह देखना चाहते हैं कि असल में यह बयानबाज़ी से कितनी मेल खाती है.
स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर चल रही स्वतंत्रता पर ध्रुवीकरण बहस से एगडे काफी निराश हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, “हम इस कहानी को बहुत हद तक इस तौर में पेश कर रहे हैं कि यह स्वतंत्रता या गैर-स्वतंत्रता के बारे में ही होनी चाहिए. लेकिन इस पूरी कहानी के बीच का एक पहलू है, जिसे अनदेखा किया जा रहा है. लोग स्वतंत्रता चाहते हैं, लेकिन किसी भी कीमत पर नहीं. जीवन स्तर बनाए रखना ज़रूरी है. व्यापार बनाए रखना ज़रूरी है. जीवन जीने के तरीके बनाए रखना ज़रूरी है.”
ऐसी उम्मीद है कि ग्रीनलैंड में भविष्य में स्वतंत्रता के पक्ष में मतदान होगा और डेनमार्क उसको स्वीकार करेगा.
डोनाल्ड ट्रंप की टिप्पणियों के बाद ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री म्यूट इग़ा के साथ डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने संयुक्त प्रेस क्रॉन्फ्रेंस की.
उन्होंने कहा, “हम डेनिश नहीं बनना चाहते, हम अमेरिकी नहीं बनना चाहते, हम ग्रीनलैंडिक बनना चाहते हैं.”
डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने इस प्रेस क्रॉन्फ्रेंस में कहा, “ग्रीनलैंड की स्वतंत्रता पर बहस और अमेरिका से हालिया घोषणाएं यह दर्शाती हैं कि ग्रीनलैंड में भारी दिलचस्पी है. ऐसी घटनाएं ग्रीनलैंड और डेनमार्क के कई लोगों में विचारों और भावनाओं को जगाती हैं.”
फ्रेडरिक्सन अच्छी तरह जानती हैं कि ग्रीनलैंड में भावनाएं किस तरह से काम करती हैं. अन्याय और नस्लवाद की यादें ग्रीनलैंड के लोगों के बीच अब भी ताज़ा हैं.
ग्रीनलैंड और डेनमार्क के बीच तनाव का अतीत से रिश्ता
1960 और 70 के दशक में ग्रीनलैंड में हज़ारों महिलाओं और लड़कियों को गर्भवती होने से रोकने के लिए आईयूडी जैसे गर्भनिरोधक उपकरण को लगाने के अभियान चलाए गए थे. इन अभियानों की वजह से अब भी ग्रीनलैंड और डेनमार्क के रिश्तों में तनाव है.
इस पर कोई स्पष्टता नहीं है कि इस अभियान से जुड़े लोगों की बिना अनुमति के कितने गर्भनिरोधक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया लेकिन इस्तेमाल किए गए उपकरणों की संख्या काफी ज्यादा है. इस अभियान का उद्देश्य ग्रीनलैंड की जनसंख्या को कम करना था.
मलीना एबेल्सन ग्रीनलैंड सरकार की पूर्व वित्त मंत्री हैं और अभी वह ग्रीनलैंड में कंपनियों और संगठनों की सलाहकार के तौर पर कार्यरत हैं. उन्होंने यूनिसेफ डेनमार्क और ग्रीनलैंड के बड़े प्रमुख बिजनेस जैसे रॉयल ग्रीनलैंड के लिए भी काम किया है.
मलीना एबेल्सन का मानना है कि अतीत में हुए अन्याय को दूर करने के लिए और भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि कई लोग कह रहे हैं, शायद डेनमार्क की सरकार और राज्य भी कह रहे हैं, आप जानते हैं कि अतीत में क्या हुआ था. ये कई साल पहले की बात है. हम इसके लिए कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं? अब आगे बढ़ने का समय है.”
“अगर आप उससे उबरे नहीं है तो आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं. अगर आपके साथ जो कुछ हुआ है उसे स्वीकार नहीं किया गया है तब भी आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं. यह एक ऐसा काम है जो हमें डेनमार्क के साथ मिलकर करना होगा, इसे ग्रीनलैंड अकेले नहीं कर सकता है.”
मलीना एबेल्सन कहती हैं कि जब रंगभेद की बात आती है तो ग्रीनलैंड के कई मूल निवासियों ने अपने जीवन में इसका सामना किया है.
ग्रीनलैंड की आज़ादी और उसके अतीत के मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं.
ग्रीनलैंड पर डोनाल्ड ट्रंप के दखल से दोनों ही मुद्दे दुनिया के सामने आ गए हैं.
ग्रीनलैंड के दूर-दराज के इलाकों से लेकर उसकी राजधानी तक जो एक संदेश हमने सुना, वह ये कि ग्रीनलैंड के भविष्य का फैसला ग्रीनलैंड में ही तय होना चाहिए. उन लोगों के बीच जिनकी आवाज़ों को बहुत लंबे समय से नजरअंदाज किया गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित