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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते दिनों भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ़ लगाने की घोषणा की है. उनके इस फ़ैसले ने न केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को झटका दिया है, बल्कि अमेरिका की राजनीति और मीडिया के भीतर भी बड़ी बहस छेड़ दी है.
शनिवार को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत और अमेरिका से संबंधों में उतार-चढ़ाव को लेकर टिप्पणी की है.
जयशंकर ने कहा, “रूस के तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार चीन है लेकिन उसपर अधिक टैरिफ़ नहीं लगाया गया है. वहीं रूस से सबसे अधिक एलएनजी यूरोप खरीदता है, लेकिन उनके साथ अलग मानदंड अपनाए गए हैं. ये अनुचित है. अगर दलील ऊर्जा को लेकर है और कौन रूस से अधिक खरीदता है उसे लेकर है, तो भारत इन दोनों मामलों में पीछे है.”
जयशंकर का कहना था कि दुनिया ने कभी ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं देखा जिन्होंने अपनी विदेश नीति को इतने सार्वजनिक तौर पर संचालित किया हो.
लेकिन भारतीय विदेश मंत्री के बयान से इतर अमेरिका में भी भारत को लेकर ट्रंप की नीति पर सवाल उठाए जा रहे हैं और चिंता ज़ाहिर की जाने लगी है.
रिपब्लिकन नेता निकी हेली ने मौजूदा स्थिति पर चिंता जताई है और कहा है कि अमेरिका को समझना चाहिए कि चीन का सामना करने के लिए उसे भारत जैसे मित्र की ज़रूरत है.
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा कि ट्रंप अपनी नीतियों से अपने सहयोगियों को दूर कर रहे हैं. वहीं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी भारत पर लगाए टैरिफ़ का विरोध करते दिखे हैं.
‘चीन से मुक़ाबले के लिए भारत की ज़रूरत’
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की दूत रहीं रिपब्लिकन नेता निकी हेली ने साफ़ कहा है कि अमेरिका के लिए भारत को सहयोगी बनाए रखना बेहद ज़रूरी है, ख़ासकर चीन का सामना करने के लिए.
20 अगस्त को निकी हेली ने अमेरिकी मैगज़ीन ‘न्यूज़वीक’ में भारत और अमेरिका के संबंधों को लेकर ट्रंप की नीति पर एक लेख लिखा.
निकी हेली ने लिखा, “भारत को रूस से तेल ख़रीदने पर ट्रंप की आपत्ति को गंभीरता से लेना चाहिए और व्हाइट हाउस के साथ मिलकर इसका हल निकालना चाहिए. जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा है. दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच दशकों से बनी दोस्ती और भरोसा, मौजूदा तनाव को पीछे छोड़ने का मज़बूत आधार देता है”.
निकी हेली ने लिखा कि “व्यापार विवाद और रूस से तेल आयात जैसे मुद्दों पर सख़्त बातचीत ज़रूरी है, लेकिन हमें असली मक़सद नहीं भूलना चाहिए- साझा लक्ष्य. चीन का सामना करने के लिए अमेरिका को भारत जैसे दोस्त की ज़रूरत है.”
निकी हेली और डोनाल्ड ट्रंप, दोनों रिपब्लिकन पार्टी से हैं लेकिन कई मौक़ों पर निकी हेली ने ट्रंप का खुलकर विरोध किया है.
2016 में रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के लिए प्राइमरी चुनाव के दौरान, निकी हेली ने ट्रंप की तीखी आलोचना की थी. ख़ासकर मुसलमानों के अमेरिका में प्रवेश पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने के ट्रंप के प्रस्ताव की.
हालांकि बाद में ट्रंप के साथ उनके मतभेद सार्वजनिक रूप से सामने आए.
2021 में कैपिटल हिल में हुई हिंसा को लेकर उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ट्रंप की आलोचना की. पॉलिटिको से उन्होंने कहा था कि “हमें ये बात स्वीकार करनी होगी कि उन्होंने हमें शर्मिंदा किया है.”
हिंसा के एक दिन बाद निकी हेली ने एक बयान दिया, “चुनाव के दिन से उन्होंने जो भी कदम उठाए हैं, इतिहास उसका कठोर न्याय करेगा.”
इस घटना के बाद से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर उनका नज़रिया बदल गया था.
साल 2023 में निकी हेली ने 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने की घोषणा की थी लेकिन बाद में उन्होंने ट्रंप को समर्थन दे दिया.
‘भारत को अमेरिका से दूर कर रहे ट्रंप’
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अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा है कि ट्रंप अपनी नीतियों से अपने सहयोगियों को दूर कर रहे हैं और इसको लेकर चिंता जायज़ है.
जॉन केरी एक डेमोक्रेट हैं और पांच बार सीनेटर रह चुके हैं. वो ओबामा प्रशासन के दौरान 2013 से 2017 के बीच अमेरिका के विदेश मंत्री रहे हैं.
जॉन केरी ने नई दिल्ली में ईटी वर्ल्ड लीडर्स फ़ोरम में कहा, “हम चिंतित हैं. राष्ट्रपति ट्रंप और पीएम मोदी के बीच जो तनाव है वो दुर्भाग्यपूर्ण है.”
“मुझे लगता है कि एक महान देश को अपनी महानता जताने के लिए हमेशा लोगों को धमकियां देना ज़रूरी नहीं है. ट्रंप प्रशासन ने कूटनीति के ज़रिए हल ढूंढने की बजाय आदेश और दबाव डालने का तरीक़ा अपनाया.”
उन्होंने कहा, “भारत और अमेरिका अपने व्यापार विवाद को सुलझा लेंगे. भारत ने लगभग 60 प्रतिशत वस्तुओं पर टैरिफ़ को शून्य करने की पेशकश की है और यह एक बड़ा बदलाव है.”
ट्रंप के पूर्व सहयोगी जॉन बोल्टन भी टैरिफ़ के ख़िलाफ़
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन भी भारत पर लगाए गए ट्रंप के टैरिफ़ का कड़ा विरोध करते नज़र आए.
जॉन बोल्टन ने बीते दिनों एक इंटरव्यू में कहा, ”ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर टैरिफ़ लगाया, लेकिन चीन पर नहीं लगाया जबकि वो भी रूस से तेल खरीदता है. इससे भारत चीन-रूस के और क़रीब जा सकता है. ट्रंप प्रशासन की यह अनदेखी उसकी अपनी बनाई हुई ग़लती है.”
उन्होंने पुतिन के भारत दौरे पर आने की योजना और 2018 के बाद पहली बार पीएम मोदी के चीन जाने का ज़िक्र किया और कहा कि ”इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है, इस बारे में पूरी तरह से सोचा नहीं गया.”
बोल्टन ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे लेकिन 2019 में ट्रंप ने उन्हें हटा दिया था.
तब से वह ट्रंप के कट्टर विरोधी हो गए हैं. उन्होंने 2020 में एक संस्मरण लिखा जिसमें ट्रंप की तीख़ी आलोचना की गई थी और कहा गया था कि ट्रंप को विदेश नीति के बारे में कुछ भी पता नहीं है.
पिछले शनिवार को बोल्टन के घर पर एफ़बीआई ने छापा मारा है. हालांकि इस कार्रवाई पर ट्रंप ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उन्होंने बोल्टन को ‘धोखेबाज़’ कहा.
एक और पूर्व सलाहकार ईवान ए. फ़िजेनबॉम ने राष्ट्रपति के व्यापार मामलों के सलाहकार पीटर नवारो का एक वीडियो ट्वीट किया.
उन्होंने कहा, ”यह बिल्कुल बकवास है. पहले कहा जा रहा था कि जंग के लिए रूस ज़िम्मेदार है. इसे चीन और दूसरे देशों ने मदद दी है. अब कहा जा रहा है कि जंग के लिए यूक्रेन ज़िम्मेदार है. इस युद्ध को भारत ने मदद दी है.”
”इन लोगों ने जिस तरह अलग-अलग देशों पर युद्ध का ठीकरा फोड़ना शुरू किया है, उससे अमेरिका-भारत संबंधों को मज़बूत बनाने में लगी पिछले 25 सालों की मेहनत पर पानी फिर गया है.”
वीडियो में पीटर नवारो कहते हैं, ”दरअसल यूक्रेन में शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर जाता है. लेकिन भारत रूसी तेल की रिफ़ाइनिंग का लॉन्ड्रोमैट बन गया है. इसके ज़रिये वह ख़ुद तो मुनाफ़ा कमा ही रहा है, साथ ही परोक्ष तौर पर यूक्रेन युद्ध में रूस की फंडिंग भी कर रहा है.”
अमेरिकी मीडिया में क्या कहा जा रहा है?
टाइम ने कहा कि ट्रंप के टैरिफ़ लगाने के फ़ैसले के बाद भारत और चीन के बीच संबंध मजबूत हो रहे हैं, जिससे नए रणनीतिक समीकरण बन रहे हैं.
बैरेन्स ने लिखा कि ट्रंप की नीतियों से वैश्विक व्यापार नए समीकरणों की ओर बढ़ रहा है और इस स्थिति में भारत को चीन के साथ साझेदारी से लाभ मिल सकता है.
फॉक्स न्यूज़ ने लिखा कि ट्रंप का टैरिफ़, भारत को अमेरिका के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों चीन और रूस के क़रीब ले जा रहा है.
इस मीडिया आउटलेट ने कार्नेगी एंडोमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस में दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व सलाहकार ईवान ए. फ़िजेनबॉम के हवाले से लिखा, “अमेरिका-भारत संबंध इस समय ऐसे दौर में हैं जहां पिछले 25 सालों में बनाई गई सारी धारणाएं और बुनियाद पूरी तरह बिखर चुकी हैं.”
फ़ॉक्स न्यूज़ ने लिखा, “टैरिफ़ लगाने के बाद से नई दिल्ली का रुख़ ईस्ट की ओर झुकता दिख रहा है. हाल के हफ्तों में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मास्को गए, इस सप्ताह विदेश मंत्री वहां जा रहे हैं. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने हाल ही में दिल्ली का दौरा किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात सालों में पहली चीन यात्रा पर जा रहे हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या क्वाड अब भी क़ायम रहेगा.”
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख के अनुसार, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक भारत को अमेरिका के साथ जोड़ने और चीन को दूर रखने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे. लेकिन अब एशियाई दिग्गजों के बीच रिश्तों को फिर से बनाने की कोशिशें तेज़ होती दिख रही हैं.”
सीएनएन न्यूज़ चैनल पर फ़रीद ज़कारिया ने अपने कार्यक्रम में ट्रंप की नीतियों की आलोचना की है और कहा कि दोनों देशों के संबंधों में पिछले दशकों में जो प्रगति हुई, वह अब पीछे की ओर जा रहा है.
फ़रीद ज़कारिया ने कहा कि क्लिंटन प्रशासन के दौरान द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार की कोशिश शुरू हुई, ये जॉर्ज डब्ल्यू बुश, ओबामा, बाइडन और ट्रंप के पहले कार्यकाल तक चली.
उन्होंने कहा, “लेकिन भारत को लेकर ट्रंप के अचानक दुश्मनी वाले रुख़ ने 25 सालों तक पांच अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल के दौरान हुए काम को भारी नुक़सान पहुंचाया है. यह नीति ट्रंप की अब तक की सबसे बड़ी रणनीतिक ग़लती है.”
उनके अनुसार, “अगर ट्रंप अपनी नीति में फिर से बदलाव लाते हैं तब भी जो नुक़सान होना था वो हो चुका है. भारत में ये धारणा बन चुकी है कि अमेरिका अब भरोसेमंद नहीं है. भारत को लगता है कि अपने दोस्तों पर अमेरिका कठोरता से बर्ताव करता है और इसलिए भारत को अपने संबंधों में विविधता लाने की ज़रूरत है. और रूस के क़रीब रहने और चीन के साथ संबंधों में बदलाव लाने की भी ज़रूरत है.”
फ़रीद ज़कारिया ने कहा, “जब मैं भारत में था तो मैं अमेरिका के साथ मज़बूत साझेदारी की पैरवी करता था. लोगों से कहता था कि दुविधा छोड़नी चाहिए. दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच महान साझेदारी ही भविष्य है. लेकिन आज भारतीयों से इस सलाह को मानने की अपील करना मुश्किल होगा.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित