इमेज कैप्शन, सैन्य प्रदर्शन के दौरान 50 हज़ार से ज़्यादा दर्शक मौजूद थे
चीन के नेता शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन बुधवार को सेंट्रल बीजिंग में एक विशाल सैन्य परेड के दौरान पहली बार कंधे से कंधा मिलाकर सार्वजनिक रूप से खड़े थे.
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर चीन की जीत के 80 साल पूरे होने के मौक़े पर ये परेड आयोजित की गई थी. इसमें चीन ने नए सैन्य हथियारों की खेप को भी दिखाया. इनमें नई न्यूक्लियर इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल से लेकर हाइपरसोनिक हथियारों को ले जाने वाली एक नई रोड-बाउंड मिसाइल, नए लेज़र हथियार और यहां तक कि ‘रोबोटिक डॉग’ ड्रोन भी शामिल थे.
यह ऐसे समय में हो रहा है जब शी जिनपिंग अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन की ताक़त को न सिर्फ़ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में दिखाना चाहते हैं बल्कि अमेरिका को इसलिए भी जवाब देना चाहते हैं क्योंकि ट्रंप के टैरिफ़ ने दुनियाभर की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को हिलाकर रख दिया है.
बीबीसी के चार संवाददाताओं ने बुधवार को हुई सैन्य परेड के महत्व का आकलन किया है- कि इसका क्या मतलब है, यह क्यों महत्वपूर्ण है, और इस तरह का प्रदर्शन हमें ‘नई विश्व व्यवस्था’ के बारे में क्या बताता है.
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इमेज कैप्शन, व्लादिमीर पुतिन, शी जिनपिंग और किम जोंग उन पहली बार एक साथ नज़र आए
दुनिया और चीन के लिए एक टिकाऊ छवि
लॉरा बिकर, चीन संवाददाता
इस सैन्य परेड की सबसे यादगार तस्वीरों में से एक तोप का पहला गोला दागे जाने से पहले की है.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन का हाथ मिलाकर स्वागत किया. इसके बाद वह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की ओर बढ़े और फिर तीनों परेड देखने लिए एकसाथ चलकर गए, जो कि विशुद्ध एक राजनीतिक रंगमंच था.
ऐसा पहली बार था जब तीनों नेता एक साथ सार्वजनिक रूप से नज़र आए और असलियत ये थी कि उन्होंने इस पल को चुना था.
लेकिन यह सिर्फ़ हथियारों और सैन्य बलों का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि ऐसा लगता है कि इस मीटिंग ने डोनाल्ड ट्रंप का ध्यान आकर्षित किया है.
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर पोस्ट करके शी जिनपिंग पर आरोप लगाया कि वह दूसरों के साथ मिलकर अमेरिका के ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे हैं.
चीनी नेता ने अपने भाषण में कहा कि उनका देश इतिहास की सही राह पर है.
बुधवार की परेड शक्ति, देशभक्ति और सटीकता की गढ़ी गई एक प्रदर्शनी थी.
यहां तक कि गायक मंडली भी बिल्कुल समान पंक्तियों में खड़ी थी जब वे गा रहे थे- ‘बिना कम्युनिस्ट पार्टी के आधुनिक चीन नहीं है.’
जब सैनिकों का दल एक साथ कदमताल करता तो इसकी गूंज तियानमन स्क्वायर पर मौजूद 50 हज़ार मेहमान के स्टैंड्स तक पहुंचती.
इसके बाद बड़े हथियारों की बारी आई और भीड़ अपने फ़ोन निकालने लगी. एक नई आईसीबीएम (इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल), लेज़र हथियार और यहां तक कि रोबोटिक डॉग्स भी इसमें थे.
परेड हवाई जहाज़ों के फ़्लाई पास्ट के साथ ख़त्म हुई और इससे पहले हज़ारों कबूतर और ग़ुब्बारे राजधानी के आसमान में छोड़े गए.
द्वितीय विश्व युद्ध के ख़त्म होने की 80वीं सालगिरह पर हुआ यह प्रदर्शन सिर्फ़ यह दिखाने के लिए नहीं था कि चीन कहां है बल्कि यह दिखाने के लिए था कि चीन कहां पहुंच चुका है.
इसने दिखाया कि चीन कहां जा रहा है. शी वैश्विक नेता की भूमिका अदा कर रहे हैं जो दुनिया के दो सबसे अधिक प्रतिबंधित नेताओं के साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं.
और उनके क़दमों में एक ऐसी सेना है जो पश्चिम से प्रतिस्पर्धा करने के लिए बनाई जा रही है.
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इमेज कैप्शन, द्वितीय विश्व युद्ध के आख़िर में जापानियों के औपचारिक आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगांठ के मौक़े पर परेड आयोजित की गई थी
अमेरिका के ख़ालीपन को चीन भर रहा है- और पश्चिम के लिए इसका क्या मतलब है?
जेम्स लैंडेल, कूटनीतिक संवाददाता
चीन के इस सप्ताह दिखाए गए भूराजनीतिक और अब सैन्य ताक़त ने पश्चिमी नेताओं को शायद ही हैरान किया हो.
राष्ट्रपति शी लंबे समय से ख़ुद को नई वैश्विक व्यवस्था के केंद्र में रखना चाहते हैं. ऐसी व्यवस्था जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी वैश्विक प्रणालियों की जगह ले सके.
लेकिन दो चीज़ें पश्चिमी कूटनीतिक जगत में खलबली मचा देंगी.
पहला यह कि अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से हटने से जो ख़ालीपन आया है, उसे चीन तेज़ी से भर रहा है.
चीन के नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था जहां क्षेत्रीय अखंडता और मानवाधिकारों को ताक़त और आर्थिक विकास से कम महत्व दिया जाता है, जो कि कई पश्चिमी देशों के लिए असुविधाजनक साबित हो सकता है.
दूसरी चीज़ यह कि जिस तरह से अमेरिकी टैरिफ़ ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को दुनिया के सबसे बड़े निरंकुश देश चीन के साथ इतनी जल्दी गर्मजोशी से मिला दिया है, वो चिंता का विषय होगा.
पश्चिम के लिए थोड़ी राहत की बात यह है कि बीजिंग में हुआ प्रदर्शन एकजुट नहीं है, और ख़ासतौर से भारत जो बुधवार की परेड में शामिल नहीं था. उसके अभी भी क्षेत्रीय और अन्य विवादों को लेकर चीन के साथ मतभेद हैं.
मूल बात यह है कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का आर्थिक राष्ट्रवाद और विघटनकारी कूटनीति चीन को एक बड़ा कूटनीतिक अवसर दे रही है. और यही वह मुद्दा है जिसे शी अपने शिखर सम्मेलन और परेड के साथ खुले हाथों से अपना रहे हैं.
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इमेज कैप्शन, बीते महीने अलास्का में पुतिन और ट्रंप के बीच मुलाक़ात हुई थी
डोनाल्ड ट्रंप के लिए साफ़ संदेश
स्टीव रोज़नबर्ग, रूस संपादक
इस हफ़्ते चीन में की गई सारी कूटनीति (और सभी नज़ारे) ट्रंप प्रशासन को एक स्पष्ट संदेश भेजने के लिए तैयार की गई थी.
तो क्या आप अमेरिका को फिर से महान बनाना चाहते हैं? क्या ये अमेरिका फर्स्ट है? तो फिर हम अमेरिका के नेतृत्व वाली व्यवस्था का एक विकल्प पेश करते हैं.
इसी वजह से हमने चीन और भारत के नेताओं को रविवार और सोमवार को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में साथ में मुस्कुराते हुए देखा.
इसी वजह से व्लादिमीर पुतिन शी जिनपिंग को ‘एक असली दोस्त’ कहते हैं, और इस सप्ताह की शुरुआत में चीनी नेता ने अपने रूसी समकक्ष को ‘पुराना दोस्त’ बताया था.
और यही वजह है कि बुधवार को सैन्य परेड में शी जिनपिंग, व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन एक साथ दिखाई दिए.
संक्षेप में कहें तो भूराजनीतिक जगत में अलग-अलग ताक़तें अमेरिकी प्रभुत्व से मुक़ाबले के रूप में एकजुट हो रही हैं
इसका यह मतलब नहीं है कि इन सभी देशों और नेताओं के विचार एक जैसे हैं. ऐसा नहीं है. मतभेद बने ही रहते हैं.
लेकिन इसके संदेश की दिशा साफ़ है.
जैसा कि इस हफ़्ते समाचार अख़बार कोम्सोमोल्स्काया प्रावदा की रूस, चीन और भारत के संदर्भ में हेडलाइन साफ़ थी, “हम एक नई दुनिया का निर्माण करेंगे.”
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इमेज कैप्शन, चीन ने परेड में कई नए सैन्य हथियारों को भी पेश किया
पश्चिम के लिए चिंता हैं ये हथियार
फ़्रैंक गार्डनर, सुरक्षा संवाददाता
चीन ने विशाल अंडरवॉटर टॉरपीडो से लेकर ऐसे अत्याधुनिक लेज़र हथियारों का प्रदर्शन किया जो ड्रोन को गिरा सकते हैं. अब अमेरिका समेत दुनिया भर के रक्षा अधिकारी इन हथियारों का विश्लेषण करेंगे.
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने एक व्यापक सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके तहत वह अमेरिका की बराबरी कर रही है और कुछ क्षेत्रों में उसे पीछे भी छोड़ चुकी है.
ध्वनि की गति से पांच गुना तेज़ उड़ने में सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइलें ऐसे ही हथियारों में से एक हैं.
लंदन स्थित थिंक टैंक आरयूएसआई में मिसाइलों के प्रमुख विशेषज्ञ डॉ. सिद्धार्थ कौशल ने वाईजे-17 (हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल) और वाईजे-19 (हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल) को विशेष रूप से रेखांकित किया है.
चीन आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस और स्वचालित हथियारों में भी बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. इसका एक उदाहरण एजेएक्स-002 है, जो कि 60 फ़ुट का विशाल एक अंडरवाटर न्यूक्लियर क्षमता वाला ड्रोन है.
हालाँकि, चीन का परमाणु भंडार, जिसमें सैकड़ों मिसाइलें शामिल हैं, अब भी रूस और अमेरिका से काफ़ी पीछे है. इनके पास हज़ारों ऐसे हथियार हैं.
लेकिन इसकी संख्या तेज़ी से बढ़ रही है और चीन अपने वॉरहेड पहुंचाने के लिए नए तरीक़े भी खोज रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.