- Author, रूहान अहमद
- पदनाम, बीबीसी उर्दू, इस्लामाबाद
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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए अहम नियुक्तियां शुरू कर दी हैं.
पिछले कुछ दिनों में जिन नियुक्तियों का एलान हुआ है, उन्हें देखते हुए ये मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया ख़ास कर भारत और पाकिस्तान को लेकर उनकी नीतियों पर कयास लगाए जाने लगे हैं.
हालांकि ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स, टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर शख़्स एलन मस्क को अहम ज़िम्मेदारी देकर ये संकेत दे दिया है कि दूसरे कार्यकाल में उनकी नीतियां क्या होंगी.
ट्रंप ने मस्क के साथ ‘फॉक्स न्यूज़’ के पूर्व होस्ट पैट हॉगसेथ को भी अपनी कैबिनेट में शामिल किया है.
लेकिन उन्होंने कुछ ऐसे लोगों को भी मंत्री पद के लिए नॉमिनेट किया है जो दक्षिण एशिया, ख़ास कर भारत और पाकिस्तान के साथ मध्य पूर्व पर अपने विचारों के लिए चर्चित रहे हैं.
हालांकि पर्यवेक्षकों का कहना है कि ट्रंप इन क्षेत्रों को लेकर क्या नीति अपनाएंगे ये उनके कामकाज शुरू करने पर ही पता चलेगा.
जानते हैं कि ट्रंप की ओर से अब तक नियुक्त किए गए मंत्रियों का भारत, पाकिस्तान और मध्य-पूर्व के सवालों पर क्या रुख़ है…
मार्को रूबियो – विदेश मंत्री
ट्रंप ने मार्को रूबियो को अमेरिका का विदेश मंत्री बनाया.
रूबियो पहले ट्रंप के विरोधी भी रहे हैं. लेकिन बाद में वो उनका समर्थन करने लगे थे.
उन्हें भारत समर्थक समझा जाता है. इस साल जुलाई में सीनेटर रूबियो उस समय चर्चा में आए थे जब उन्होंने सीनेट में भारत के समर्थन और पाकिस्तान के विरोध में एक बिल पेश किया था.
बिल का नाम था यूएस-इंडिया को-ऑपरेशन एक्ट.
इसका मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते आक्रामक रवैये के ख़िलाफ़ भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ावा देना है.
इस बिल में अमेरिका और भारत के बीच सुरक्षा सहयोग के प्रावधान हैं. बिल में भारत की रक्षा, नागरिक सुरक्षा और टेक्नोलॉजी क्षेत्र की चुनौतियों को देखते हुए उससे सहयोग का प्रावधान है.
इसमें भारत में अमेरिकी निवेश को बढ़ावा देने को लेकर भी कुछ प्रावधान हैं.
इस बिल में अमेरिकी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में भारत को भी जापान, इसराइल, कोरिया और नेटो के समकक्ष रखने की बात की गई है.
इस बिल में पाकिस्तान का भी ज़िक्र है. बिल में पाकिस्तान के ‘आतंकवाद और उसके सहयोगियों (प्रॉक्सीज़) की ओर से भारत के ख़िलाफ़ होने वाली गतिविधियों’ पर संसद में एक रिपोर्ट पेश करने की अपील की गई है.
अमेरिकी सीनेट की वेबसाइट में कहा गया है,” अगर पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद को बढ़ावा देने की कोशिश में शामिल पाया जाता है तो उसे दी जाने वाली सुरक्षा सहायता रोक देनी चाहिए.”
हालांकि पाकिस्तान लगातार कहता रहा है कि वो आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन मुहैया नहीं करा रहा है. मार्को रूबियो ईरान के प्रति भी अपने कड़े रवैये के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने ईरान को ‘आतंकवादी’ देश तक करार दिया है.
पिछले दिनों ईरान की ओर से इसराइल पर किए गए हमले के बाद मार्को रूबियो ने सोशल मीडिया पर लिखा,”अगर अमेरिका पर कोई देश 180 मिसाइलों से हमला करता तो जैसी प्रतिक्रिया उसकी होती वैसी ही प्रतिक्रिया इसराइल को भी होनी चाहिए.”
मार्क रूबियो ने हमास पर इसराइल के हमले का भी समर्थन किया है.
2020 में कैपिटल हिल में हुई हिंसा पर राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सवाल के जवाब में मार्को रूबियो ने कहा था, ”मैं चाहता हूं कि इसराइल हमास के सारे विभागों को ख़त्म कर दे. वे (हमास) भयावह हमले करने वाले जानवर हैं.”
मार्को रूबियो पाकिस्तान के सबसे नज़दीकी सहयोगी चीन के ख़िलाफ़ भी अपने कड़े रवैये के लिए जाने जाते हैं.
इस साल सितंबर में अमेरिकी अख़बार ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ के लिए के लिखे लेख में उन्होंने कहा था,” चीन अमेरिका का सबसे बड़ा और विकसित प्रतिद्वंद्वी है.”
इसी साल उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा,”कम्युनिस्ट चीन न तो इस समय लोकतांत्रिक देशों का दोस्त है और न आगे कभी हो सकता है.”
माइक वॉल्ट्ज़ – राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
फ्लोरिडा के सांसद माइक वॉल्ट्ज़ को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद के लिए नामित किया गया है.
50 साल के वॉल्ट्ज़ अमेरिकी सेना में रहे हैं और अफ़ग़ानिस्तान, मध्य पूर्व और अफ़्रीका में कई बार अपनी सेवाएं दे चुके हैं.
पिछले साल एक भारतीय चैनल पर उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान पाकिस्तान का ज़िक्र करते हुए कहा था, ”आतंकवाद विदेश नीति का हिस्सा नहीं हो सकता है. चाहे वो लश्कर-ए-तैयबा हो या फिर दूसरे आतंकवादी समूह, उन्हें मंज़ूर नहीं किया जा सकता.”
हमें पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तानी सेना और वहां के ख़ुफ़िया विभाग को आगे आना होगा और हम उन्हें सही रास्ते पर लाने का दबाव बनाते रहेंगे.
हालांकि पाकिस्तान पहले से कहता रहा है कि वो लश्कर-ए-तैयबा और दूसरे चरमपंथी समूहों का समर्थन नहीं करता.
राष्ट्रपति चुनाव से पहले जुलाई में ‘फ्लोरिडा पॉलिटिक्स’ को दिए इंटरव्यू में उन्होंने ट्रंप की तारीफ़ करते हुए कहा था,”हमारे पास एक ऐसा राष्ट्रपति है जिसने तथाकथित इस्लामिक स्टेट को ख़त्म किया है. ईरान को दिवालिया बना दिया है. हमेशा इसराइल और अमेरिका के दूसरे सहयोगियों को समर्थन देता रहा है और चीन ने जो किया उसका उसे नतीजा भुगतने पर मज़बूर किया है.”
”ट्रंप के राष्ट्रपति रहते आपने अमेरिकी आसमान में चीन के जासूसी बैलून कभी नहीं देखे होंगे.”
तुलसी गबार्ड : डायरेक्टर, नेशनल इंटेलिजेंस
ट्रंप ने सांसद तुलसी गबार्ड को नेशनल इंटेलिजेंस का डायरेक्टर नामित किया है. ये विभाग अमेरिका में सारी ख़ुफिया एजेंसियों का काम देखता है. इस लिहाज से ये काफी अहम पद है.
तुलसी गबार्ड अमेरिकी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के तौर पर काम कर चुकी हैं.
ट्रंप प्रशासन के मुताबिक़ वह मध्य पूर्व और अफ़्रीका में भी तैनात रही हैं.
तुलसी गबार्ड पाकिस्तान की आलोचक रही हैं. उन्होंने 2017 में ओसामा बिन लादेन को शरण देने के मामले में पाकिस्तान की आलोचना की थी.
तुलसी ने पूर्व में प्रतिबंधित संगठन जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज़ सईद को एक मुकदमे में रिहा करने को लेकर पाकिस्तान की आलोचा की थी.
उन्होंने कहा था कि हाफिज़ सईद ही मुंबई पर हुए चरमपंथी हमले का मास्टरमाइंड है. इस हमले में छह अमेरिकी नागरिकों समेत सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी.
मार्च 2019 में पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, ”जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों को अपने यहां पनाह देता रहेगा तब तक भारत के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण बने रहेंगे. अब वक़्त आ गया है कि पाकिस्तान के नेता अतिवादियों और आतंकवादियों के ख़िलाफ़ उठ खड़े हों.”
जॉन रैटक्लिफ़ – सीआईए के डायरेक्टर
जॉन रैटक्लिफ़ को अमेरिकी ख़ुफिया एजेंसी सीआईए का डायरेक्टर नामित किया गया है.
रैटक्लिफ़ ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान नेशनल इंटेलिजेंस के चीफ थे.
रैटक्लिफ़ चीन और ईरान के प्रति अपने कड़े रवैये के लिए जाने जाते हैं.
दिसंबर 2020 में वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए लिखे अपने एक लेख मे उन्होंने कहा था, ”इंंटेलिजेंस इस बात को लेकर बिल्कुल साफ़ है कि चीन अमेरिका और पूरी दुनिया में आर्थिक, सैन्य और तकनीकी श्रेष्ठता कायम करना चाहता है.”
उन्होंने दावा किया था कि चीन की बड़ी कंपनियां अपनी गतिविधियों के जरिये छुपे तौर पर कम्युनिस्ट चीनी सरकार के लिए काम कर रही हैं.
2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले रैटक्लिफ़ ने नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर के तौर पर ईरान पर आरोप लगाया था कि वो डेमोक्रेटिक वोटरों को धमकी देने वाले ई-मेल भेज रहा था ताकि देश में अराजकता फैल जाए.
ट्रंप की विदेश नीति के बारे में क्या बताती हैं ये नियुक्तियां
विश्लेषकों और पर्यवेक्षकों का मानना है व्हाइट हाउस में ट्रंप के कामकाज शुरू करने से पहले ये बताना मुश्किल है कि वो किस मुद्दे पर क्या रुख़ अपनाएंगे.
जहां तक पाकिस्तान की बात है तो अधिकतर विश्लेषकों और पर्यवेक्षकों का मानना है कि ट्रंप की प्राथमिकता में ये देश नहीं होगा.
अमेरिका में थिंक टैंक ‘न्यूज़लाइन इंस्टीट्यूट’ से जुड़े कामरान बुखारी ने कहा कि अगर ट्रंप की ओर से नियुक्त किए गए लोगों के बयानों को देखें तो लगता है कि ट्रंप उन्हीं के मुताबिक़ काम करेंगे.
हालांकि वो ये भी कहते हैं विचारधारा और पॉलिसी मेकिंग अलग-अलग चीजें हैं.
उन्होंने कहा, ”पॉलिसी मेकिंग विचारधारा नहीं है. बल्कि ये जटिल मुद्दों को सुलझाने का तरीका है.”
उन्होंने कहा कि जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो उसके लिए अमेरिका की पहले की नीतियां ही जारी रहेंगी जब तक कि वहां (पाकिस्तान) हालात न बिगड़े या वो किसी बड़े संकट में न फंस जाए.
बुखारी ने कहा पाकिस्तान ट्रंप की प्राथमिकता में तीसरे स्तर पर ही रहेगा.
अगर पाकिस्तान ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकता में ऊपर आना चाहता है तो उसे खुद को उसका मददगार साबित करना होगा.
पाकिस्तान और अमेरिका की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखने वाले पर्यवेक्षक अज़ीज़ यूनिस का मानना है कि नया ट्रंप प्रशासन सबसे पहले मध्य पूर्व और ख़ास कर ईरान पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा.
उन्होंने कहा कि नए अमेरिकी प्रशासन के सामने नई चुनौतियां हैं. पाकिस्तान, इसकी आतंरिक राजनीति और भारत से इसके संंबंध अमेरिका की प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे होंगे.
चीन और ईरान की तुलना में पाकिस्तान के लिए ज़्यादा मौके
मलीहा लोधी अमेरिका में पाकिस्तान की राजदूत रह चुकी हैं.
उन्होंने बीबीसी उर्दू से कहा कि अफ़ग़ानिस्तान से सेना की वापसी के बाद अमेरिका की नज़र में पाकिस्तान की अहमियत कम हो चुकी है.
वह कहती हैं कि पाकिस्तान अभी वॉशिंगटन के रडार पर नहीं है.
वो कहती हैं कि पाकिस्तान और चीन के बीच रणनीतिक रिश्ते और भारत और अमेरिका बीच साझेदारी के बीच पाकिस्तान को अपने लिए जगह ढूंढनी होगी. उसे अमेरिका से रिश्ते सुधारने होंगे.
हालांकि वो कहती हैं कि अगर ट्रंप की टीम में चीन विरोधी लोग पाकिस्तान को चीन या भारत के चश्मे से से देखेंगे तो अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सार्थक द्विपक्षीय संबंधों की गुंजाइश और कम हो जाएगी.
पाकिस्तान के अन्य विश्लेषकों की भी राय है कि ट्रंप के नए कार्यकाल की नीति में पाकिस्तान के लिए सुखद बदलाव देखने की गुंजाइश कम ही है.
इस्लामाबाद में कायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर मोहम्मद शोएब ने बीबीसी उर्दू से कहा कि हालांकि ईरान और चीन की तुलना में पाकिस्तान के लिए ट्रंप प्रशासन से संबंध सुधारने का बेहतर मौका है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित