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इस साल की शुरुआत में अपना राष्ट्रपति पद का दूसरा कार्यभार संभालने के कुछ ही सप्ताह बाद डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को ‘तानाशाह’ कहा था.
उन्होंने ये भी कहा था कि ज़ेलेंस्की की वजह से दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है.
फिर आया 28 फ़रवरी का दिन, जब ओवल ऑफ़िस में ज़ेलेंस्की की मेज़बानी कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उप राष्ट्रपति जे डी वेंस ने उनके प्रति बेहद तल्ख़ रवैया अख़्तियार किया और कैमरे के सामने ही उन पर आरोप लगा दिया कि वो यूक्रेन वॉर को रुकने ही नहीं देना चाहते.
ट्रंप ने कह दिया कि ज़ेलेंस्की को अगर अमेरिकी मदद ना मिली होती तो वो यूक्रेन को रूस के हाथों गंवा चुके होते.
ऐसे में अब क़रीब 6 महीने बाद जब ज़ेलेंस्की और ट्रंप का रीयूनियन हो रहा है तो ज़ेलेंस्की के बचाव में, उनको सपोर्ट करने के लिए ब्रितानी प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर, फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और जर्मन चांसलर फ़्रिड्रिक मर्त्ज़ समेत कई बड़े यूरोपीय नेता होंगे.
15 अगस्त को जब अलास्का में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ट्रंप की मुलाक़ात बेनतीजा रही तो इसे रूसी मीडिया ने ‘पुतिन की जीत’ बताया था क्योंकि ट्रंप ने मुलाक़ात के बाद सोशल मीडिया साइट ट्रुथ पर लिखा था, “सभी ने तय किया कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे भयानक युद्ध को ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीका सीधे एक शांति समझौते तक पहुँचना है, सिर्फ़ युद्धविराम समझौता नहीं, जो अक्सर लंबे समय तक टिक नहीं पाता.”
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पुतिन को संघर्षविराम के लिए राज़ी रखने में नाकाम रहे ट्रंप अब ज़ेलेंस्की पर युद्ध रोकने के लिए दबाव बना सकते हैं. विशेषज्ञ ये भी कह रहे हैं कि यूक्रेन के भविष्य और यूरोप की सुरक्षा के मद्देनज़र सोमवार की ट्रंप-ज़ेलेंस्की मुलाक़ात ट्रंप और पुतिन के बीच हुई मुलाक़ात से भी ज़्यादा अहम साबित हो सकती है.
क्या बैकफ़ुट पर हैं ज़ेलेंस्की?
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पुतिन-ट्रंप की मीटिंग अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाई. ना कोई सीज़फ़ायर हुआ, ना कोई प्रतिबंध लगे, ना कोई बड़ा एलान हुआ.
क्या दरवाज़े के भीतर दो बड़ी परमाणु शक्तियां (अमेरिका और रूस) ऐसी कोई डील करने जा रही हैं जिसमें यूरोप और यूक्रेन के हितों के साथ कोई समझौता किया जाए.
अगर यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगी ये रोक पाएं तो ऐसी डील होने की संभावना नहीं है.
किएर स्टार्मर, इमैनुएल मैक्रों, चांसलर फ़्रिड्रिक मर्त्ज़ और दूसरे यूरोपीय नेता इसलिए वॉशिंगटन में मौजूद हैं ताकि ज़ेलेंस्की के साथ वो ना होने दें जो उनके साथ फ़रवरी में हुआ था.
इन नेताओं की कोशिश रहेगी कि ऐसी कोई पीस डील ना हो जिसमें यूक्रेन की सीधे तौर पर भागीदारी ना हो और जो भी डील हो उसमें यूक्रेन के लिए पुख़्ता सुरक्षा गारंटी हो.
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यूरोप के नेता ये भी चाहेंगे कि पीस डील में ट्रंप का पुतिन के प्रति जो नरम रुख़ है उसकी आंच इस शांति समझौते पर ना पड़े.
और यहीं किएर स्टार्मर की कूटनीति योग्यता काम आ सकती है. ट्रंप, स्टार्मर को पसंद करते हैं. उनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं.
ट्रंप अगले महीने ब्रिटेन की सरकारी यात्रा पर भी जाने वाले हैं.
ट्रंप, नेटो के सेक्रेटरी जनरल मार्क रट को भी पसंद करते हैं. उन्हें ट्रंप का भरोसेमंद भी माना जाता है.
हालांकि ट्रंप इस वक़्त वॉशिंगटन में मौजूद एक और बड़े यूरोपीय नेता इमैनुएल मैक्रों को उतना पसंद नहीं करते. हाल ही में फ़लस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की फ़्रांस की घोषणा पर भी अमेरिका ने सख़्त एतराज़ जताया था.
लेकिन यूक्रेन वॉर रुकवाने की कुछ ना कुछ क़ीमत तो यूक्रेन को देनी ही पड़ेगी.
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यूरोपीय नेता लगातार कहते रहे हैं कि ताक़त के बल पर अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को बदला नहीं जा सकता. ज़ेलेंस्की ने भी बार-बार कहा है कि वो अपनी ज़मीन रूस को नहीं देंगे.
लेकिन पुतिन कुछ और ही चाहते हैं. वो पूरे डोनबास पर कब्ज़ा चाहते हैं, जहां के 85 प्रतिशत हिस्से पर अब रूस का कब्ज़ा है और उनका इरादा क्राइमिया भी यूक्रेन को वापस करने का नहीं है.
एस्टोनिया की पूर्व प्रधानमंत्री और यूरोप की टॉप डिप्लोमेट काया कालिस ने मुझसे कहा था यूक्रेन के लिए जीत का मतलब खोई हुई ज़मीन वापस पाना नहीं होगा.
अगर यूक्रेन अपने लिए मज़बूत सुरक्षा गारंटी हासिल कर लेता है. अगर वो रूस से ये वादा ले लेता है कि वो भविष्य में यूक्रेन पर कभी भी हमला नहीं करेगा और एक स्वतंत्र देश के तौर पर उसका सम्मान करेगा तो यही यूक्रेन के लिए जीत होगी.
पीस डील को लेकर सवाल
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ऐसा पता चला है कि अमेरिका और रूस एक प्रपोज़ल पर काम कर रहे हैं जिसमें यूक्रेन की कुछ ज़मीन के बदले उसे सुरक्षा की गारंटी मिल जाएगी और उसे आगे अपना कोई भी हिस्सा रूस को नहीं देना पड़ेगा.
लेकिन इस पर भी बड़े सवालिया निशान हैं. यूक्रेन जिसने अपनी ज़मीन बचाने की ख़ातिर अपने हज़ारों सैनिकों की कुरबानी दी, क्या वो इस प्रस्ताव के लिए मान जाएगा?
अगर रूस के हवाले पूरे का पूरा दोनेत्सक कर दिया जाए तो क्या इससे भविष्य में यूक्रेन की सुरक्षा प्रभावित नहीं होगी.
यूरोप ने कभी वादा किया था कि वो यूक्रेन की ओर से रूस के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए अपने हज़ारों सैनिकों को ज़मीन पर उतारेगा. लेकिन वो योजना फ़िलहाल ठंडे बस्ते में है.
अब मामला सिर्फ़ यूक्रेन की ज़मीन और आसमान को महफ़ूज़ बनाने पर सिमट आया है. साथ ही यूरोप कह रहा है कि वो यूक्रेन की उसकी सेना के पुनर्निर्माण करने में मदद करेगा.
अगर इस इलाक़े में फ़िलहाल शांति स्थापित हो भी जाती है तो भी इसे ख़तरनाक टैरेटरी ही कहा जाएगा.
मेरी एक सैन्य विशेषज्ञ से बात हुई थी. उन्होंने मुझे बताया था कि शांति समझौता होने के बाद भी पुतिन यहीं नहीं रुकेंगे. वो अपनी सेना को फिर से बनाएंगे. नए-नए हथियार बनाएंगे. और तब तक बनाते रहेंगे जब तक कि अगले तीन-चार सालों में यूक्रेन की और ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए ना तैयार हो जाएं.
तो अगर ऐसा हुआ तो ये भी होगा कि कोई ताक़तवर F-35 विमान यूक्रेन की तरफ़ बढ़ती रूसी सेना को रोकने के लिए उस पर पहला मिसाइल दागेगा.
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)