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29 साल की उम्र में एक शख़्स के खाते में एक बड़ी उपलब्धि दर्ज हो सकती है कि थर्ड जेंडर वाले लोग भी ‘अपने बच्चे’ पैदा कर सकेंगे.
एक महिला के रूप में पैदा होने वाले हरि देवगीथ, ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) सेवाओं को मौलिक अधिकार बनाने के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
जिन अधिकारों की हरि मांग कर रहे हैं, वह भारत में पुरुषों और महिलाओं को पहले से ही हासिल हैं.
हरि देवगीथ ट्रांस मैन हैं और अपने अंडाणु (एग सेल्स) को क्रायो-प्रिज़र्व करना चाहते हैं.
हरि ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी से कहा, “मैं चाहता हूं कि भविष्य में मेरा अपना बच्चा हो. मुझे लगता है कि गोद लेना इससे ज़्यादा जटिल है. मैं ऐसी स्थिति में नहीं पहुंचना चाहता, जहां मुझे अपने अंडाणु स्टोर न करने का पछतावा हो.”
हरि ने स्तन हटाने की सर्जरी (मास्टेक्टॉमी) करवाई है, लेकिन सेक्स चेंज ऑपरेशन, जिसमें गर्भाशय हटाना (हिस्टेरेक्टॉमी) शामिल है, फ़िलहाल रोका हुआ है. इसे वह तब तक नहीं करवाएंगे जब तक अपने अंडाणु सुरक्षित नहीं कर लेते.
जब वह दूसरे अस्पताल में टेस्ट कराने गए तो एक बाधा खड़ी हो गई.
हरि बताते हैं, “उन्होंने मुझे अंडाणु की क्वालिटी जांचने के लिए दवाइयां दीं. फिर अस्पताल ने कहा कि इसमें क़ानूनी दिक़्क़तें हैं.”
एआरटी अधिनियम में ट्रांस मैन और वुमन
असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी एक्ट को आमतौर पर एआरटी अधिनियम कहा जाता है. इसके एक नियम में साफ़ लिखा है कि सिर्फ़ ‘कपल या महिला’ ही यह प्रक्रिया करा सकती है.
केरल हाई कोर्ट में दायर हरि की याचिका में कहा गया है, “ऐसा जेंडर-आधारित वर्गीकरण मनमाना है और याचिकाकर्ता की अपना बच्चा पैदा करने की इच्छा में दख़ल देता है.”
इस याचिका में कहा गया है कि एआरटी अधिनियम की धारा 21 में ट्रांस-मैन और ट्रांस-वुमन को पूरी तरह बाहर रखा गया है और ट्रांसजेंडर लोगों के बच्चा पैदा करने के अधिकारों को, जिसमें फ़र्टिलिटी प्रिज़र्वेशन भी शामिल है, नकारा गया है.
याचिका के अनुसार, यह नियम “मनमाना, ग़ैरकानूनी है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है.”
लेकिन केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि एआरटी अधिनियम पर संसद की समितियों ने चर्चा और सोच-विचार किया था, इसमें एलजीबीटी समुदाय को शामिल नहीं किया गया क्योंकि यह “एआरटी और सरोगेसी एक्ट के तहत पैदा होने वाले बच्चे के सर्वोत्तम हित में है.”
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सरकार का कहना है कि ट्रांसजेंडर लोग सरोगेसी (रजिस्ट्रेशन) एक्ट, 2021 की परिभाषा में शामिल नहीं हैं.
सरकार का कहना था, “प्राकृतिक तरीक़े से बच्चा पैदा करने का अधिकार मौलिक अधिकार है. लेकिन असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) सेवाओं का अधिकार, जिसमें तकनीकी साधन, थर्ड पार्टी व्यवसायिक इकाइयां और व्यावसायिक लेन-देन शामिल हैं, मौलिक अधिकार नहीं बल्कि सिर्फ़ एक वैधानिक अधिकार है.”
“इसलिए यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं है,”
वैधानिक अधिकार वे अधिकार हैं जो संसद के बनाए गए क़ानूनों से हासिल होते हैं. जबकि मौलिक अधिकार वे हैं जो संविधान में दिए गए हैं और जिनके आधार पर सरकार को चुनौती दी जा सकती है.
हरि अपने जीवन के मक़सद को पाने के लिए लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं. वह कहते हैं, “मैं नहीं चाहता कि किसी और को अस्पताल यह कहे कि तुम्हें अपने अंडाणु सुरक्षित रखने का अधिकार नहीं है.”
केरल के रहने वाले हरि ने सांख्यिकी में ग्रेजुएशन और जनसांख्यिकी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है. वह बेंगलुरु में एक मल्टीनेशनल बैंक में काम करते हैं.
केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि केरल सरकार द्वारा जारी आईडी कार्ड में हरि को ‘पुरुष’ बताया गया है, न कि ‘ट्रांसजेंडर’.
सरकार का कहना है कि हरि का कार्ड ऐसा है जिसके आधार पर वह ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में राहत नहीं मांग सकते.
सरकार ने यह तर्क भी दिया है कि हरि ने “यह नहीं बताया कि वह अपने अंडाणु का व्यक्तिगत उपयोग कैसे करना चाहते हैं.”
हरि ने अपना जेंडर क्यों बदला?
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हरि को उन रुकावटों पर हैरानी नहीं है जिनका वह सामना कर रहे हैं. वह कहते हैं, “बचपन से ही मुझे हमेशा एक तरह की असहजता महसूस होती थी. मेरा कज़न भाई हमारे बीच का फ़र्क बताता था. मैं हमेशा वही कपड़े पहनना चाहता था जो वह और मेरे भाई पहनते थे.”
प्री-यूनिवर्सिटी के दौरान हरि ने सेक्स चेंज ऑपरेशन के बारे में पढ़ा. जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया जिसने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, तब उन्हें अहसास हुआ कि वह अपनी लड़ाई में अकेले नहीं हैं.
“लेकिन समझना एक बात थी, स्वीकार करना दूसरी. धीरे-धीरे मैंने इसे स्वीकार किया.”
हरि ने कहा, “मैं तीन बच्चों में सबसे छोटा हूं. आप जानते हैं कि परंपरा है कि बहन की शादी पहले होती है. मेरे बड़े भाई ने मुझ पर शादी का दबाव डालना शुरू किया. तभी मैंने अपनी मां को बताया,”
“मैंने मां से बात की लेकिन उनके लिए यह सब मान लेना संभव नहीं था. उन्होंने मुझे दो मनोवैज्ञानिकों और एक मनोचिकित्सक से मिलने पर मजबूर किया. एक मनोवैज्ञानिक ने जो कहा उससे मेरी मां बहुत आहत हुईं. उसने कहा कि मेरी सोच ऐसी इसलिए है क्योंकि मां ने मुझे ठीक से नहीं पाला. मेरी मां को बहुत बुरा लगा क्योंकि मेरे पिता का निधन तब हो गया था जब मैं बहुत छोटा था.”
‘वह सब मैं नहीं करना चाहता’
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हरि ने एक लोकप्रिय ई-कॉमर्स कंपनी में डिलीवरी एजेंट के रूप में काम किया और “पुडुचेरी में स्तन हटाने की सर्जरी कराने के लिए पैसे बचाए.”
वह कहते हैं कि पिछले दस सालों में “मेरी मां मेरी भावनाओं को ज़्यादा समझने लगी हैं. उन्हें यह भी समझ में आ गया कि मैं वह जीवन नहीं जी पाऊंगा जो वह चाहती हैं. जब मैंने उन्हें बताया कि मैं अपने अंडाणु सुरक्षित रखना चाहता हूं, तो वह ख़ुश हुईं.”
अस्पताल में मिले अनुभव ने हरि को दिशा नामक एक ग़ैर-सरकारी संगठन तक पहुंचाया.
दिशा के दिनु वेयिल ने बीबीसी हिंदी से कहा, “आईडी कार्ड के जिस मुद्दे को केंद्र सरकार उठा रही है, उसे सुलझाया जा सकता है. मूल बात यह है कि हाशिए पर रहने वालों के अधिकारों को सीमित नहीं किया जाना चाहिए. हम सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील को ला रहे हैं जो एक दिसंबर को केस की पैरवी करेंगे.”
हरि का कहना है कि भारत के पहले ट्रांसकपल ज़िया और ज़ाहद से उन्हें प्रेरणा नहीं मिली. उन्होंने बच्चा पैदा करने के बाद जेंडर बदला था. वह कहते हैं, “मैं भी ऐसा कर सकता हूं. लेकिन मैं नहीं करना चाहता.”
इस मामले की सुनवाई 1 दिसंबर को होनी है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.