पीटीआई, नई दिल्ली। लगभग पांच साल पहले भारत समेत पूरी दुनिया में कोरोना महामारी ने तबाही मचाई थी। यह संकट तो अब दूर हो गया, लेकिन डॉक्टरों ने भारत में नई संकट को लेकर चिंता जताई जा रही है।
हालात साल दर साल में और बिगड़ेंगे
यूके-स्थित भारतवंशी डॉक्टरों ने चेताया है कि कोरोना महामारी के बाद भारत जिस सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, वह वायु प्रदूषण है। भारतीय मूल के श्वसन रोग विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हालात साल दरसाल में और बिगड़ेंगे।
विशेषज्ञों ने कहा कि देश में सांस संबंधी बीमारियों का संकट धीरे-धीरे विकराल रूप ले रहा है। इसका अभी तक ठीक से पता नहीं चल पाया है और न ही इसके समाधान के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं।
भारत में सांस की बीमारियों के बड़े संकट की आशंका
ब्रिटेन में प्रैक्टिस करने वाले कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने कहा कि भारत में सांस की बीमारियों के बड़े संकट की आशंका है। इन बीमारियों की लहर भारतीय नागरिकों और भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दीर्घकालिक असर डाल सकती है।
उन्होंने कहा कि पिछले दशक में विश्वभर में दिल के रोग के मामलों में वृद्धि केवल मोटापे के कारण नहीं हुई, बल्कि इसका मुख्य कारण कारों और विमानों सहित शहरी परिवहन से निकलने वाले जहरीले उत्सर्जन हैं। यह समस्या भारत, ब्रिटेन में विशेष रूप से गंभीर है।
सांस संबंधी बीमारियों का बड़ा संकट
‘लिवरपूल’ के कंसल्टेंट श्वसन रोग विशेषज्ञ एवं भारत की कोविड-19 सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य मनीष गौतम ने कहा, कड़वी सच्चाई है कि उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों को नुकसान पहले ही हो चुका है। हाल में जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे बहुत कम हैं। सांस संबंधी बीमारियों का बड़ा संकट धीरे-धीरे हमारे सामने बढ़ रहा है।
उन्होंने नीति निर्धारकों से अपील की कि वे सांस संबंधी बीमारियों का समय रहते पता लगाने और उनका इलाज करने पर ध्यान दें और तेजी से काम करने वाले ‘टास्क फोर्स’ बनाने पर विचार करें।
पहली बार सांस की समस्याओं का शिकार हुए
डॉक्टरों के अनुसार, दिसंबर में सिर्फ दिल्ली के अस्पतालों में सांस की बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत वृद्धि देखी गई, जिनमें जिसमें बड़ी संख्या उन मरीजों की है जो पहली बार सांस की समस्याओं का शिकार हुए हैं।
गौतम ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम के उपाय महत्वपूर्ण तो हैं, लेकिन अब केवल इन्हीं उपायों से काम नहीं चलेगा। भारत ने पहले भी यह उदाहरण पेश किया है कि बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम चलाना संभव है।
टीबी के प्रभाव को काफी हद तक कम किया
सरकार के उपायों ने शीघ्र निदान और सुनियोजित उपचार कार्यक्रमों के माध्यम से टीबी के प्रभाव को काफी हद तक कम किया है। अब श्वसन रोगों के लिए भी इसी तरह की तत्परता और बड़े पैमाने पर कदम उठाने की आवश्यकता है।
लंदन के ‘सेंट जार्ज यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल’ के मानद हृदय रोग विशेषज्ञ राजय नारायण के अनुसार यदि इस संकट समय रहते हल नहीं किया गया, तो यह स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ दोनों को और बढ़ा देगा। उन्होंने कहा कि कई वैज्ञानिक साक्ष्य हैं जो बताते हैं कि वायु प्रदूषण कई गंभीर बीमारियों का कारण है। इनमें कार्डियोवैस्कुलर रोग, सांस की बीमारियां शामिल हैं।
उन्होंने कहा, कई प्रारंभिक लक्षण, जैसे सिरदर्द, थकान, हल्का खांसी, गले में जलन, आंखों में सूखापन, त्वचा पर चकत्ते और बार-बार होने वाले संक्रमण अक्सर नजरअंदाज किए जाते हैं लेकिन ये गंभीर पुरानी बीमारियों के प्रारंभिक चेतावनी संकेत हो सकते हैं।
प्रदूषण नियमों के उल्लंघन पर बुलेट ट्रेन परियोजना का काम रुका
मुंबई में बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने सख्त कदम उठाते हुए बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स (बीकेसी) में चल रहे मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के निर्माण कार्य पर तत्काल रोक लगा दी है। निरीक्षण में प्रदूषण नियंत्रण नियमों की अनदेखी सामने आने के बाद यह कार्रवाई की गई।
यह फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब हाल ही में बाम्बे हाईकोर्ट ने शहर में वायु प्रदूषण को लेकर बीएमसी को कड़ी फटकार लगाई थी और निर्माण गतिविधियों पर सवाल खड़े किए थे। अदालत ने साफ चेताया था कि हालात नहीं सुधरे तो नए निर्माण कार्यों की मंजूरी रोकी जा सकती है।
नगर निगम अधिकारियों के अनुसार, बीकेसी साइट पर धूल नियंत्रण और वायु गुणवत्ता प्रबंधन से जुड़े कई मानक पूरे नहीं किए गए थे। इसके चलते ठेकेदारों को कार्य स्थगन सूचना जारी कर खुदाई, मिट्टी हटाने और जमीन से जुड़े सभी निर्माण कार्य रोक दिए गए हैं।