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तबीयत से पत्थर उछालने का मशवरा देने वाले शायर दुष्यंत

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Dec 28, 2025


स्तंभ दुष्यंत कुमार

इमेज स्रोत, Alok Tyagi

इमेज कैप्शन, हिंदी ग़ज़ल के प्रकाश स्तंभ दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार के गुज़र जाने के पांच दशकों बाद भी हिंदी में लिखे उनके शेर आज भी सड़कों, सभाओं और महफ़िलों में गूंज रहे हैं.

दुष्यंत को हिंदी ग़ज़ल का एक प्रकाश स्तंभ माना जाता है. मीर ने ग़ज़लों को दर्द में ढाला. ग़ालिब ने उसे सोच की ऊंचाई दी. दाग़ ने उसे आसान लहजा दिया. नज़ीर ने उसे लोकभाषा दी.

जोश ने ग़ज़लों को जोशीला बनाया और 70 के दशक के बाद दुष्यंत कुमार ने उसे हिंदी, उर्दू के मिले-जुले रंग में एक नई पोशाक दी.

दुष्यंत की ग़ज़लों ने आम आदमी की तड़प को आवाज़ दी —

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

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