जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित ‘दैनिक जागरण’ के नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान में ‘हिंदी हैं हम’ अभियान का पुरजोर समर्थन करते हुए इसे देश की सांस्कृतिक आत्मा से जुड़ा बताया।
उन्होंने कहा कि ”हिंदी हैं हम” केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि हमारी हजारों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक धारा से जुड़ने का माध्यम है। यह हमें सच्चे अर्थों में भारतीय बनाता है, क्योंकि कोई राष्ट्र अपनी सांस्कृतिक पहचान से कटकर वैश्विक सम्मान अर्जित नहीं कर सकता।
दैनिक जागरण के योगदान को ऐसे किया याद
राजधानी दिल्ली के ली मेरिडियन होटल में बड़ी संख्या में मौजूद प्रबुद्धजनों के बीच अपने संबोधन में अमित शाह ने हिंदी के प्रति अपने लगाव और सीखने की प्रक्रिया को साझा करते हुए दैनिक जागरण की भूमिका को विशेष रूप से रेखांकित किया।
उन्होंने बताया कि जब वे गुजरात से राष्ट्रीय राजनीति में आए, तब उनकी हिंदी उतनी अच्छी नहीं थी। 2010 में कांग्रेस द्वारा एक मामले में फंसाए जाने के बाद जब वे दिल्ली स्थित गुजरात भवन में रह रहे थे तो उन्होंने अपनी हिंदी सुधारने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने हर दिन दैनिक जागरण के पहले पृष्ठ का गुजराती में अनुवाद किया और उसे डायरी में लिखा। उन्होंने यह अभ्यास पूरे 560 दिनों तक किया।
शाह ने कहा, ”आज भी मुझसे त्रुटियां होती हैं, परंतु आज मैं जो हिंदी ठीक से बोल पाता हूं, उसमें दैनिक जागरण का बड़ा योगदान है।”
‘नरेंद्र मोहन जी ने नहीं किया समझौता’
अमित शाह ने दैनिक जागरण के संस्थापक नरेन्द्र मोहन गुप्त को एक सच्चा पत्रकार और भारतीय भाषाओं के प्रबल पक्षधर के रूप में स्मरण किया। उन्होंने कहा कि जब नरेन्द्र मोहन जी भाजपा से सांसद बने, तब भी उन्होंने पत्रकारिता की निष्पक्षता से समझौता नहीं किया। उनके नेतृत्व में दैनिक जागरण ने हमेशा स्वतंत्र पत्रकारिता को महत्व दिया।
आपातकाल के दौर को भी किया याद
शाह ने आपातकाल के दौर को याद करते हुए कहा कि जब देश में लोकतंत्र की सबसे कठिन परीक्षा थी, तब दैनिक जागरण ने सच्चाई की आवाज को दबने नहीं दिया और नरेन्द्र मोहन जी अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए जेल जाने से भी नहीं डरे।
नरेंद्र मोहन जी की कविता का किया उल्लेख
व्याख्यान में अमित शाह ने नरेंद्र मोहन जी की एक कविता का उल्लेख करते हुए कहा कि वह इतनी गहराई और वैदिक चिंतन से ओतप्रोत है कि ऐसा लेखन वही कर सकता है, जिसने गीता और कठोपनिषद का गंभीर अध्ययन किया हो। उन्होंने यह भी साझा किया कि युवावस्था में साहित्य में उनकी गहरी रुचि रही है। कॉलेज के दिनों में उन्होंने भाषा और अभिव्यक्ति पर विस्तार से लेखन भी किया था।