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चेन्नई की एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर वासुकी को लंबे समय से मांसपेशियों में दर्द और थकान की शिकायत थी.
वह बताती है, “मैंने सोचा था कि ऐसा शायद तनाव या नींद की कमी के कारण हो रहा है.”
कई महीनों तक यह बर्दाश्त करने के बाद जब उन्होंने डॉक्टर से मिलने का फैसला किया, तो डॉक्टर उनकी रिपोर्ट देखकर हैरान रह गए.
खून की जांच में पता चला कि उनके शरीर में विटामिन डी का स्तर ख़तरनाक रूप से कम था.
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट क्या कहती है?
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उसके अनुसार, शहरी इलाकों में रहने वाले क़रीब 70% लोगों को विटामिन डी की गंभीर कमी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में ये आंकड़ा करीब 20% है.
इस अध्ययन में दिल्ली एनसीआर के शहरी और ग्रामीण इलाक़ों के लोगों को शामिल किया गया था.
खून में विटामिन डी का स्तर 30 नैनोग्राम से ऊपर होना चाहिए. लेकिन विटामिन डी का स्तर 10 नैनोग्राम से कम हो जाए, तो इसे गंभीर कमी माना जाता है.
अध्ययन के मुताबिक, शहरी इलाकों के प्रतिभागियों का औसत विटामिन डी का स्तर 7.7 नैनोग्राम था, जबकि ग्रामीण प्रतिभागियों में यह औसत 16.2 नैनोग्राम था.
ग्रामीण इलाक़ों के लोग भी इस कमी से पूरी तरह अछूते नहीं हैं. मगर विटामिन डी की गंभीर कमी का स्तर ग्रामीणों में कम देखा गया.
डब्लूएचओ की इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं विटामिन डी की कमी से ज़्यादा प्रभावित होती हैं.
दक्षिण भारत में क्या स्थिति है?
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विटामिन डी की कमी दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय राज्य की महिलाओं के साथ ही दक्षिण भारत के तमिलनाडु में भी महिलाओं में इसकी कमी देखी गई है.
इस अध्ययन में भाग लेने वाले 66% लोगों में विटामिन डी की कमी पाई गई. चाहे उन्हें डायबिटीज़ का शुरुआती फेज हो या टाइप 2 डायबिटीज़; विटामिन डी की कमी आम थी.
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह कमी और भी ज़्यादा पाई गई.
पंजाब, तिरुपति, पुणे और अमरावती जैसे इलाकों में किए गए अन्य अध्ययनों में भी शहरी लोगों में विटामिन डी की कमी ज़्यादा देखी गई.
इसके पीछे क्या कारण है?
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विटामिन डी मुख्य रूप से सूरज की रोशनी से मिलती है. भारत के उत्तरी राज्यों को छोड़कर बाक़ी जगहों पर साल भर धूप अच्छी रहती है. फिर भी चेन्नई जैसे उष्णकटिबंधीय शहरों में भी शहरी लोगों को विटामिन डी की इतनी कमी क्यों है?
चेन्नई के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर दक्षिणामूर्ति बताते हैं कि विटामिन डी शरीर को सूर्य की रोशनी और भोजन से मिलता है.
उनका कहना है, “सूर्य की अल्ट्रा-वायलेट किरणें जब त्वचा पर पड़ती हैं, तो त्वचा की ऊपरी परत में मौजूद 7-डिहाइड्रोकॉलस्टेरॉल नामक कंपाउंड विटामिन डी-3 में बदल जाता है. इसके बाद लिवर और किडनी इसे विटामिन डी में बदलते हैं.”
पुडुचेरी में सरकारी अस्पताल से रिटायर हो चुके डॉक्टर पीटर का कहना है, “आधुनिकीकरण और बदलते वर्क-कल्चर के कारण लोग अधिक समय घर और ऑफिस में बिताते हैं. बाहर निकलने पर भी कपड़ों से पूरा शरीर ढकने की आदत के कारण धूप सीधे त्वचा तक नहीं पहुंचती.”
लोगों को लगता है कि कुछ मिनट बाहर रहने से धूप मिल जाती है. लेकिन प्रदूषण, कपड़े, और कांच की खिड़कियां सूर्य की किरणों को शरीर तक पहुंचने से रोक देती हैं.
शरीर को कितनी देर धूप में रहना चाहिए?
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एक अध्ययन के अनुसार, किसी भारतीय को अगर 30 नैनोग्राम जितना पर्याप्त विटामिन डी का लेवल चाहिए, तो उसे रोजाना कम से कम 2 घंटे तक चेहरे, हाथ और बांहों पर सीधी धूप लगानी चाहिए.
यदि किसी को न्यूनतम 20 नैनोग्राम विटामिन डी पाना है, तो कम से कम एक घंटे तक रोजाना बाहर रहना जरूरी है.
अगर आपका मक़सद विटामिन डी हासिल करना है, तो डॉक्टरों का कहना है कि खिड़की के कांच से छनकर आने वाली धूप से बचना चाहिए.
“सुबह जल्दी या शाम के समय सूरज की किरणों में यूवीए ज़्यादा होता है, जो विटामिन डी के निर्माण में सहायक नहीं होता. इसलिए सूरज की रोशनी तेज़ दिखने के बावजूद सुबह-सुबह उसमें खड़े होने से विशेष लाभ नहीं होता.”
इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि पृथ्वी के वायुमंडल में सूर्य जब क्षितिज के क़रीब होता है (यानी सुबह या शाम), तो यूवीबी किरणें उसमें से गुजरते हुए बहुत हद तक अवरुद्ध हो जाती हैं.
जब सूरज का एंगल 45 डिग्री से कम होता है, तो ये किरणें ज़्यादातर ज़मीन तक पहुंच ही नहीं पातीं.
डॉक्टर दक्षिणामूर्ति ये भी कहते हैं कि ज़्यादा देर धूप में रहने से नुकसान भी हो सकता है.
वो कहते हैं, “हमें पता है कि उस समय सूरज की किरणें काफ़ी तेज़ होती हैं. इसलिए लंबे समय तक धूप में नहीं रहना चाहिए. साथ ही कम मात्रा में सनस्क्रीन लगाएं, टोपी पहनें, हल्के कपड़े पहनें और धूप का चश्मा लगाएं.”
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ के मुताबिक़, हाथ, पैर और चेहरे को सिर्फ़ 5 से 30 मिनट तक धूप में रखना ही काफ़ी होता है. इससे ज़्यादा देर धूप में नहीं रहना चाहिए.
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की वेबसाइट के एक आर्टिकल के मुताबिक़, शरीर का 10% हिस्सा सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच (अमेरिका में) धूप में रखना चाहिए.
ये समय हर देश में थोड़ा अलग हो सकता है. एक गाइड में कहा गया है कि ब्रिटेन में सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच कुछ देर धूप में रहने से विटामिन डी मिल सकता है. इसमें ये भी कहा गया है कि डार्क स्किन वालों को थोड़ी देर ज़्यादा धूप में रहने की ज़रूरत पड़ सकती है.
विटामिन डी की कमी के लक्षण
थकान, जोड़ों में दर्द, पैरों में सूजन, लंबे समय तक खड़े रहने में कठिनाई, मांसपेशियों की कमजोरी और मानसिक तनाव- ये सभी विटामिन डी की कमी के लक्षण हो सकते हैं.
डॉक्टर पीटर कहते हैं, ”तेज़ रफ्तार जीवनशैली के कारण भारतीय लोग विटामिन डी की कमी को गंभीरता से नहीं लेते. लेकिन यह धीरे-धीरे शरीर के हर हिस्से को कमजोर करता है. उम्र बढ़ने पर इसकी वजह से हड्डियों, मांसपेशियों और जोड़ों में काफ़ी दर्द हो सकता है.”
एक अन्य अध्ययन के अनुसार, विटामिन डी की गंभीर कमी के कारण युवावस्था में ही डिमेंशिया (यादाश्त कमज़ोर होना) जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है.
इसकी भरपाई कैसे करें?
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वासुकी जैसे ज़्यादातर शहरी लोगों के लिए रोज़ाना सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच एक घंटे टहलना संभव नहीं होता.
हालांकि भारत जैसे देशों में ख़ासकर गर्मियों में धूप में टहलना संभव नहीं है.
डॉक्टरों के मुताबिक़ ऐसा करने से सेहत और त्वचा से जुड़ी अन्य परेशानियां हो सकती हैं. इसलिए गर्मियों में थोड़ी देर भी टहलना हो तो सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए और सिर को ढंक कर रखना चाहिए.
तेज़ धूप का या गर्मी के दिनों में विटामिन डी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट का सहारा भी लिया जा सकता है.
डॉक्टर पीटर कहते हैं, ”भोजन से विटामिन डी की कमी पूरी करना थोड़ा मुश्किल है. अंडा, मछली, दूध और विटामिन डी से फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ कुछ हद तक इसमें मदद कर सकते हैं.”
वह बताते हैं कि विटामिन डी की कमी को दूर करने के लिए कुछ सप्लीमेंट्स भी उपयोगी हो सकते हैं.
उनके मुताबिक़, ”चाहे जितने भी सप्लीमेंट्स मिल जाएं, लेकिन समय मिलने पर सीधे धूप में खड़ा होना ही सबसे आसान और मुफ़्त इलाज जैसा लगता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित