सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से पूछा कि तीन माह से कम उम्र का बच्चा गोद लेने पर ही मातृत्व अवकाश क्यों दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए कुल 3 हफ्तों का वक्त दिया है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।
नई दिल्ली, जागरण: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 से संबंधित मातृत्व अवकाश लेकर एक अहम टिप्पणी की है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के उस प्रावधान के पीछे का तर्क बताने को कहा है कि तीन माह से कम उम्र के बच्चे को गोद लेने वाली महिलाएं ही 12 हफ्ते के मातृत्व अवकाश की अधिकारी क्यों हैं। जानकारी हो कि याचिका में इस प्रविधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
जानिए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि पहली नजर में मामला यह है कि यह प्रविधान एक सामाजिक कल्याण कानून है और बच्चे की उम्र तीन माह सीमित करने का कोई कारण नहीं था। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर कोई महिला तीन माह से अधिक उम्र के बच्चे को गोद लेती है तो वह संशोधन अधिनियम के तहत ऐसे किसी मातृत्व अवकाश लाभ की हकदार नहीं होगी। पीठ ने 12 नवंबर के अपने आदेश में कहा कि केंद्र ने तीन माह की उम्र को उचित ठहराते हुए अपना जवाब दाखिल कर दिया है, लेकिन सुनवाई के दौरान कई मुद्दे उभरे हैं जिन पर विचार की जरूरत है। अब इस स्थिति में में चर्चा के मुद्दों पर केंद्र सरकार तीन हफ्ते में आगे का जवाब दाखिल करे।
कब होगी मामले में अगली सुनवाई
पीठ ने कहा कि दाखिल किए जाने वाले जवाब की प्रति याचिकाकर्ता के वकील को अग्रिम तौर पर दी जाए और अगर कोई प्रत्युत्तर हो तो उसे उसके बाद एक हफ्ते में दाखिल किया जाए। मामले की अंतिम सुनवाई 17 दिसंबर को होगी। शीर्ष अदालत ने अक्टूबर, 2021 में याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था जिसमें दावा किया गया है कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा- 5(4) भेदभावपूर्ण और मनमानी है।