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सीरिया में बशर अल-असद के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद से ही कहा जा रहा था कि तुर्की और ईरान के हित आपस में टकराएंगे.
अहमद अल-शरा की अगुआई वाला हथियारबंद समूह हयात तहरीर अल-शाम ने बशर अल-असद को सत्ता और सीरिया छोड़ने पर मजबूर किया था. इस समूह को तुर्की का समर्थन हासिल था.
सीरिया सुन्नी मुस्लिम बहुल देश है और बशर अल-असद शिया मुसलमान के अलावी समुदाय से थे. बशर अल-असद सीरिया की सत्ता पर 2000 से 2024 तक रहे.
असद जब तक सत्ता में रहे, तब तक सीरिया में ईरान का दबदबा रहा. ज़ाहिर है कि ईरान भी शिया मुस्लिम बहुल देश है. बशर अल-असद के सीरिया की सत्ता से जाने को तुर्की के लिए जीत के रूप में देखा गया और ईरान के लिए हार की तरह.
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सीरिया से बशर अल-असद की बेदख़ली के बाद तुर्की कुर्द अलगाववादियों को भी नियंत्रित करने में कामयाब होता दिख रहा है.
पिछले महीने ही कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) के संस्थापक सदस्य अब्दुल्लाह ओकलान ने अपने समूह से हथियार छोड़ने की अपील की थी. अब्दुल्ला ओकलान जेल में बंद हैं.
पीकेके पिछले चार दशक से तुर्की में गोरिल्ला युद्ध कर रहा था. ओकलान की इस अपील को अर्दोआन की जीत के रूप में देखा जा रहा है.
ओकलान ने अपनी अपील में कहा था, ”मैं हथियार छोड़ने की अपील कर रहा हूँ. इस अपील को मानकर ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी निभाएं. सभी समूहों को हथियार छोड़ देना चाहिए और पीकेके अब एक संगठन के रूप में ख़त्म हो जाना चाहिए.”
ओकलान की इस अपील को पूरे मध्य-पूर्व के लिए अहम माना जा रहा है. सीरिया के बड़े हिस्से पर अब भी कुर्दों का नियंत्रण है और इराक़ के साथ ईरान में भी कुर्द प्रभावी हैं.
तुर्की और ईरान आमने-सामने
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26 फ़रवरी को तुर्की के विदेश मंत्री हकान फ़िदान से क़तर के अल-जज़ीरा टीवी ने पूछा था कि ईरान समर्थित कुर्दों के नेतृत्व वाले सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ़) ने सीरिया के नए शासक अहमद अल-शरा को चुनौती दी तो क्या होगा?
इसके जवाब में फ़िदान ने कहा था, ”यह किसी भी लिहाज़ से ठीक नहीं होगा. अगर आप किसी दूसरे देश में किसी ख़ास समूह को समर्थन कर अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करते हैं तो बदले में आपके देश में भी ऐसा ही हो सकता है.”
बक़ाएई ने 28 फ़रवरी को एक बयान जारी कर तुर्की के विदेश मंत्री की आलोचना करते हुए कहा, ”इस इलाक़े में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें अमेरिका और इसराइल के हाथ होने को नहीं देखना बड़ी ग़लती है. इसराइल सीरिया में जिस तरह से अतिक्रमण कर रहा है, फ़िदान उसकी आलोचना करने से बच रहे हैं.”
तीन मार्च को साप्ताहिक प्रेस वार्ता में बक़ाएई ने फ़िदान की टिप्पणी पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा था, ”हाल के दिनों में इस इलाक़े में जो कुछ भी हुआ है, उसके पीछे के कारण हर दिन स्पष्ट हो रहे हैं. तुर्की की नीतियों का सीरिया पर क्या असर पड़ रहा है, इसे बताना चाहिए.”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ चार मार्च को फिर तुर्की ने ईरानी राजदूत को बुलाकर अपना विरोध जताया. चार मार्च को तुर्की के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि ईरानी अधिकारी की ओर से तुर्की की सार्वजनिक आलोचना को लेकर आपत्ति दर्ज करा दी गई है.
तुर्की के विदेश मंत्रालय ने कहा था, ”हमारा मानना है कि विदेश नीति के मामलों को घरेलू राजनीति के साथ घालमेल नहीं करना चाहिए. तुर्की के लिए ईरान अहम साझेदार है.”
ईरानी मीडिया में ग़ुस्सा
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लेकिन फ़िदान की टिप्पणी की ईरानी मीडिया में काफ़ी आलोचना हुई.
सुधारवादी हम-मिहान ने दो मार्च को लिखा,”तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन को लगता है कि हाल के महीनों में कई झटकों के बाद ईरान कमज़ोर हो गया है. सीरिया में जो कुछ हो रहा है और तुर्की में जैसी चुनौतियां बढ़ रही हैं, अर्दोआन उनसे ध्यान हटाने के लिए ईरान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. तुर्की को स्पष्ट संदेश देने की ज़रूरत है और अर्दोआन के खेल को स्थायी तौर पर अप्रासंगिक कर देना चाहिए.”
ईरान के कंजर्वेटिव जहान न्यूज़ ने एक मार्च को लिखा था, ”फ़िदान भ्रम के कारण अहंकार से ग्रसित हैं. फ़िदान को तुर्की की हैसियत का अहसास कराने की ज़रूरत है और ईरान क्या है, ये भी बताने की ज़रूरत है.”
सुधारवादी शर्ग़ डेली ने सरकार से संबंध रखने वाले टर्किश सोशल मीडिया अकाउंट पर आरोप लगाया कि यह ईरान में अज़ेरी नस्ली समूहों के बीच अलगाववादी भावना को हवा दे रहा है.
वली गोलमोहम्मदी टर्किश एक्सपर्ट हैं, उन्होंने कहा कि ‘ईरान सीरियाई कुर्दों के साथ सहयोग कर सकता है. ऐसे में तुर्की के विदेश मंत्री ईरान को बताना चाह रहे थे कि तुर्की सब कुछ देख रहा है. अहम बात यह है कि तुर्की एसडीएफ़ को ख़त्म करना चाहता है. ऐसा माना जा रहा है कि देर सबेर सीरियाई कुर्द ईरान की तरफ़ से कुछ न कुछ करेंगे. एसडीएफ़ अमेरिका के समर्थन को लेकर अनिश्चितता में है क्योंकि ट्रंप ऐसी मदद को बंद कर रहे हैं.”
अहमद अल-शरा सुन्नी हैं और उनके सत्ता में आने के बाद से ही कहा जा रहा था कि बशर अल-असद के अलावी समुदाय के लिए मुश्किलें हो सकती हैं.
सीरिया की कुल आबादी के 10 प्रतिशत अलावी समुदाय के लोग हैं. सीरिया और ईरान की दोस्ती पुरानी रही है. 1980 से 1988 तक इराक़-ईरान युद्ध के दौरान सीरिया ईरान के साथ था.
शिया बनाम सुन्नी
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सीरिया में पिछले हफ़्ते गुरुवार से लेकर इस हफ़्ते सोमवार तक हुई हिंसा में 1500 लोग मारे गए हैं. इनमें 1,068 आम नागरिक हैं और ज़्यादातर अलावी हैं. मारने वाले लोग सीरिया की सरकार के वफ़ादार बताए जा रहे हैं.
अलावियों के मारे जाने की घटना पर भारत के अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के अंतरराष्ट्रीय संपादक स्टैनली जॉनी ने लिखा है, ”सीरिया एक विविध समाज वाला देश है. यह मुस्लिम बहुल देश है लेकिन कभी एकजुटता नहीं रही. 1946 में फ़्रांस से सीरिया को आज़ादी मिली थी और उसके बाद से कई तख़्तापलट हुए. एक तरह से राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा था.”
”1970 में बशर अल-असद के पिता हाफ़िज़ अल-असद असद ने सत्ता पर क़ब्ज़ा किया और वह सीरिया में राजनीतिक स्थिरता लाने में कामयाब रहे. हाफ़िज़ असद ने निरंकुश व्यवस्था बनाई ताकि सीरिया में सामुदायिक संतुलन बनाया जा सके. हाफ़िज़ असद ने ऐसा धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत किया था. अल-शरा ने हाफ़िज़ की इस व्यवस्था को नष्ट कर दिया और अब वह नई व्यवस्था बनाना चाहते हैं, जिसकी जड़ें बहुसंख्यक इस्लाम से जुड़ी हैं.”
सीरिया में अलावियों की हत्या को लेकर ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने सात मार्च को कहा था, तुर्की समर्थित हथियारबंद समूह ने असद की सरकार को अपदस्थ किया था. इसका मतलब यह है कि सीरिया में जो कुछ भी हो रहा है, उसकी ज़िम्मेदारी सीरिया की नई सरकार और तुर्की की है.
अब्बास ने कहा था कि जिन्होंने सीरिया में सरकार बदली है, उसी की ज़िम्मेदारी ही यहाँ हिंसा और अस्थिरता को रोकें.
सऊदी अरब में ओआईसी की बैठक में अब्बास की मुलाक़ात टर्किश विदेश मंत्री से हुई थी और उन्होंने कहा था कि सीरिया में अस्थिरता का फ़ायदा केवल अतिवादी समूहों और इसराइल को होगा.
कायहान ईरान का हार्डलाइनर न्यूज़पेपर है. इसने अपने एक विश्लेषण में पिछले साल 14 दिसंबर को लिखा था, ”अर्दोआन ने कहा था कि अगर पहले विश्व युद्ध के बाद अलग तरीक़े से सीमांकन होता तो एलेप्पो, दमिश्क, इदलिब और रक़्का तुर्की में होते. अर्दोआन ने ये बातें अपनी पार्टी के एक सम्मेलन में कही थी. अर्दोआन ने इस सम्मेलन में कहा था- तुर्की के विपक्षी नेता पूछते हैं कि हम सीरिया में क्या कर रहे हैं? अब मैं उनसे पूछता हूँ कि पता चला कि हम सीरिया में क्यों थे? उन्हें पता चला कि बशर अल-असद कहाँ हैं?”
अर्दोआन का मक़सद
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कुर्द विद्रोहियों के साथ समझौते को अर्दोआन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से भी जोड़ा जा रहा है. सोनेर कागोप्तेय थिंक टैंक वॉशिंगटन इंस्टिट्यूट में सीनियर फेलो हैं और अर्दोआन पर एक किताब भी लिख चुके हैं.
सोनेर ने वॉशिंगटन इंस्टिट्यूट की वेबसाइट पर लिखा है, ”अर्दोआन का लक्ष्य है कि कुर्द समर्थक डीईएम पार्टी और रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी जो कि दशकों पुराना विपक्षी खेमा है, उन्हें ख़त्म कर दिया जाए. इनके रहते अर्दोआन को और लंबे समय तक राष्ट्रपति बने रहने में मुश्किल होगी.”
2017-18 में अर्दोआन के प्रधानमंत्री बने रहने की संवैधानिक सीमा समाप्त हो गई थी. लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए उन्होंने संविधान में संशोधन के लिए जनमत संग्रह कराया था. संविधान संशोधन के बाद तुर्की को संसदीय शासन प्रणाली से प्रेजिडेंशियल सिस्टम में शिफ्ट कर दिया था.
इसके बाद अर्दोआन राष्ट्रपति बन गए थे. लेकिन अब राष्ट्रपति बने रहने की संवैधानिक सीमा भी समाप्त हो रही है. 2028 के राष्ट्रपति चुनाव में तुर्की के मौजूदा नियम के मुताबिक़ अर्दोआन हिस्सा नहीं ले सकते हैं. इसीलिए अर्दोआन कुर्द समर्थक पार्टियों के साथ समझौते कर रहे हैं ताकि फिर से संविधान संशोधन में उनका समर्थन हासिल कर सकें.
लेकिन कुर्दों के अधिकारों का तुर्की का राष्ट्रवादी विपक्षी खेमा विरोध करता है और इनमें अर्दोआन के भी समर्थक हैं. दूसरी तरफ़ डीईएम पार्टी के वोटर्स भी नहीं चाहेंगे कि अर्दोआन पूरी ज़िंदगी राष्ट्रपति बने रहें.
सोनेर ने लिखा है, ”अर्दोआन के पास एक विकल्प यह भी है कि वह डीईएम पार्टी के समर्थन हासिल कर 2028 के पहले मध्यावधि चुनाव करा लें क्योंकि संसद समय से पहले भंग होती है तो उन्हें नियम के मुताबिक़ अपने आप एक और कार्यकाल मिल जाएगा.”
”इसके बदले में अर्दोआन डीईएम पार्टी को कुर्द बहुल शहरों में मेयर के पद फिर से दे सकते हैं क्योंकि जून 2024 की शुरुआत में इन शहर के मेयरों को बर्खास्त कर दिया गया था. इसके अलावा कुर्दों को कुछ सांस्कृतिक अधिकार भी मिल सकते हैं. भले इसके नतीजे जो हों लेकिन पीकेके के साथ टकराव ख़त्म होता है तो यह ऐतिहासिक होगा और इसका श्रेय अर्दोआन को मिलेगा.”
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