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कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव को बिहार में मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया है.
गहलोत ने कहा, ” तेजस्वी एक नौजवान हैं इनका लंबा फ्यूचर है. जिनका लंबा फ्यूचर होता है जनता उनका साथ देती है. यह नौजवान हैं और कमिटमेंट रखते हैं. पिछली बार इन्होंने जो नौकरी के स्लोगन दिए थे, जो वादे किए थे उसमें खरे उतरे.”
इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में आरजेडी के तेजस्वी यादव, मनोज झा, कांग्रेस नेता अशोक गहलोत, पवन खेड़ा सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, वीआईपी के मुकेश सहनी समेत महागठबंधन के सहयोगी दलों के कई वरिष्ठ नेता शामिल हुए.
प्रेस कॉन्फ़्रेंस से ठीक पहले भी तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत के बीच अलग से मुलाक़ात हुई.
गहलोत बुधवार को पटना पहुंचे थे और माना जाता है कि उन्होंने महागठबंधन से जुड़े कई मुद्दों पर सहयोगी दलों के बीच सहमति बनाने में अहम भूमिका निभाई.
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इससे पहले महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ़्रेंस वाली जगह पर एक पोस्टर में महागठबंधन के सहयोगी दलों के चुनाव चिह्न ज़रूर नज़र आए, लेकिन इसके नेता के तौर पर अकेले तेजस्वी यादव की तस्वीर ने कई लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा.
इसपर स्पष्ट तौर पर लिखा गया, ‘बिहार मांगे तेजस्वी सरकार और चलो बिहार बदल दें.’
माना यह गया कि यह तेजस्वी यादव को महागठबंधन का चेहरा बनाने की मांग का संकेत है.
इस तस्वीर पर कांग्रेस के क़रीबी और पूर्णिया सांसद पप्पू यादव ने टिप्पणी की और कहा, “राहुल गांधी के बिना कोई औचित्य है क्या. मैं नहीं मानता. वोटिंग केवल राहुल गांधी की तस्वीर पर ही होगी अन्य किसी की तस्वीर पर नहीं. वहां सभी नेताओं की तस्वीर होनी चाहिए. यह ठीक नहीं है.”
पप्पू यादव ने कहा कि इससे सही संदेश नहीं जाएगा, और बिहार का चुनाव केवल राहुल गांधी के चेहरे पर जीता जा सकता है.
अशोक गहलोत पहुंचे पटना
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महागठबंधन में दरार की ख़बरों के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को पटना में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी से मुलाक़ात की.
इस मुलाक़ात की तस्वीर शेयर कर अशोक गहलोत ने इसे बेहद सकारात्मक बताया.
उन्होंने लिखा, बिहार में इंडिया गठबंधन पूरी तरह एकजुट है और मजबूती से चुनाव लड़ रहा है. कल महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी.”
“बिहार में बीजेपी ने महागठबंधन में फूट डालने और माहौल ख़राब करने के मक़सद से प्रायोजित कैंपेन चलाया गया. ऐसा माहौल बना दिया गया जैसे महागठबंधन में आपस में फूट पड़ गई है.
उन्होंने दावा किया कि 243 सीटों में 5-7 सीटों पर स्थानीय नेताओं और समीकरणों के कारण कई बार ‘फ्रेंड्ली फाइट’ जैसी परिस्थिति बन जाती है, यह बहुत छोटी संख्या है परन्तु इसे लेकर मीडिया में महागठबंधन के खिलाफ कैंपेन चला दिया गया.
गहलोत के इस दावे के बाद से अटकलें लगाई जा रही थीं कि महागठबंधन में दरार को लेकर जो ख़बरें आ रही थीं, उस पर शायद कोई रोक लग सके.
महागठबंधन कितना स्वस्थ
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बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं. राज्य में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. इसके लिए 6 और 11 नवंबर को वोट डाले जाएँगे और 14 नवंबर को नतीजों का एलान होगा.
इन चुनावों के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने सीट शेयरिंग की घोषणा कर दी है. वोटिंग के दोनों चरणों का नामांकन ख़त्म हो गया लेकिन विपक्षी दल सीटों की साझेदारी पर कोई साझा प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं कर पाए थे.
महागठबंधन में सीटों की साझेदारी नहीं हो पाने पर इसकी साझेदार दल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने क़रीब 10 दिन पहले कहा, “महागठबंधन थोड़ा सा अस्वस्थ हुआ है . दिल्ली जा रहा हूँ और सभी डॉक्टर दिल्ली में हैं और वहाँ बेहतर उपचार हो जाएगा. स्वस्थ होकर पटना लौटेंगे.”
हालांकि उनके वापस लौटने के बाद भी ऐसा होता नहीं दिखा और कई सीटों पर आपसी भिड़ंत को विपक्षी नेता ‘फ़्रेंडली फ़ाइट’ का नाम देते रहे.
विपक्ष में क्यों दिखा बिखराव
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राज्य में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान विपक्षी दलों की एकजुटता दिखी थी, लेकिन चुनाव क़रीब आते ही इसमें कई मुद्दों पर असहमति भी नज़र आने लगी.
राज्य में सीटों की साझेदारी में विपक्षी दलों के बीच सहमति नहीं बन पाई और कई सीटों पर विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को एनडीए के साथ ही सहयोगी दलों के उम्मीदवारों से भी मुक़ाबला करना है.
आरजेडी ने इनमें से 143 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. जबकि साल 2020 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में उसने 144 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.
वहीं, कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनावों के लिए 61 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. कांग्रेस को पिछली बार साझेदारी में 70 सीटें मिली थीं, जिनमें 19 सीटों पर उसने जीत हासिल की थी.
ऊपरी तौर पर भले ही दिख रहा हो कि महागठबंधन के प्रमुख दलों ने पिछले चुनावों के मुक़ाबले कम सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन विधानसभा की 12 सीटों पर महागठबंधन के घटक दल आमने-सामने हैं.
इनमें से छह सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और आरजेडी के उम्मीदवार आमने सामने हैं.
यही नहीं झारखंड में कांग्रेस, आरजेडी और झारखंड मुक्ति मोर्चा की गठबंधन की सरकार चल रही है लेकिन मांगें पूरी नहीं होने पर जेएमएम ने बिहार चुनावों से ख़ुद को बाहर कर लिया.
जेएमएम के वरिष्ठ नेता और राज्य सरकार में मंत्री झारखंड के मंत्री सुदिव्य कुमार ने तो पूरी नाराज़गी के साथ इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी.
उन्होंने कहा, “बहुत ही अफ़सोस के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा यह कहने को बाध्य है कि जेएमएम इस बार बिहार विधानसभा के चुनाव में भाग नहीं ले रही है.”
सुदिव्य कुमार ने कहा, “झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसा एक बड़ा राजनीतिक संगठन बिहार के चुनाव में भागीदारी नहीं कर पा रहा है. इसके लिए हम आरजेडी को दोषी मानते हैं और साथ ही गठबंधन धर्म का पालन नहीं करने के लिए सहयोगी कांग्रेस को भी दोषी मानते हैं.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित