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जंगलों से घिरे तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीमा पर इन दिनों ऐसा माहौल है, मानो किसी जंग की तैयारी हो.
ऐसा कहा जा रहा है कि हज़ारों सुरक्षा बल कर्मी कर्रेगुट्टालू की पहाड़ियों में माओवादियों की तलाश में कॉम्बिंग ऑपरेशन चला रहे हैं.
मध्य भारत में माओवादियों के ख़िलाफ़ इसे अब तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन बताया जा रहा है. हालाँकि, इस कॉम्बिंग ऑपरेशन में कितने सुरक्षा बल शामिल हैं, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी अब तक नहीं है.
पिछले एक हफ़्ते से इस इलाक़े का माहौल ही अलग है. आसमान में लगातार उड़ते हेलीकॉप्टर दिख रहे हैं और ज़मीन पर सुरक्षा बल हथियारों के साथ तैनात हैं. उधर, स्थानीय आदिवासी अपने गाँवों में सिमटे बैठे हैं. यहाँ के हालात बहुत गंभीर बने हुए हैं.
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कुछ ग्रामीणों ने स्थानीय मीडिया को बताया, “हम गोलियों की आवाज़ें सुन रहे हैं.”
हालाँकि, तेलंगाना पुलिस इस इलाक़े में हो रही घटनाओं पर पूरी तरह चुप्पी साधे हुए है. छत्तीसगढ़ में भी आधिकारिक स्तर पर कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है.
सुरक्षा बलों की बढ़ती संख्या और आधिकारिक सूचना की कमी के चलते तरह-तरह की अफ़वाहें भी फैल रही हैं.
दूसरी ओर, इस ऑपरेशन के बीच माओवादी नेताओं ने शांति वार्ता की पेशकश भी की है.
कर्रेगुट्टालू में क्या हो रहा है?
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केंद्रीय और राज्य सुरक्षा बलों का ऐसा आकलन है कि कर्रेगुट्टालू की पहाड़ियों, घाटियों और गुफाओं में बड़ी संख्या में माओवादी छिपे हुए हैं.
इसकी वजह से सुरक्षा बलों ने इस क्षेत्र की घेराबंदी कर ली है और तलाशी अभियान चला रहे हैं.
मृतकों की संख्या के बारे में पुलिस और माओवादियों के दावे भी अलग-अलग हैं. पुलिस का दावा है कि अब तक ऑपरेशन में तीन माओवादी मारे गए हैं.
दूसरी ओर, माओवादियों का दावा है कि उनके छह सदस्य मारे गए हैं. इस बीच, छत्तीसगढ़ पुलिस ने तीन महिला माओवादियों के शव मिलने की बात कही है.
हर दिन सुरक्षा बलों की संख्या और घेराबंदी बढ़ती जा रही है. इसकी वजह से पहाड़ियों के आस-पास रहने वाले ग्रामीण बेहद चिंतित हैं.
लंबे समय से माओवादी इस इलाक़े का इस्तेमाल गुरिल्ला बेस कैंप के रूप में कर रहे हैं. उन्होंने यहाँ इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेज़ (आईईडी) भी बिछा रखे हैं.
स्थानीय लोगों ने बीबीसी को बताया कि इन पहाड़ियों के ज़रिए छत्तीसगढ़, तेलंगाना, ओडिशा और आंध्र प्रदेश तक जाया जा सकता है. इसी वजह से यह माओवादियों का पसंदीदा ठिकाना बना हुआ है.
माओवादियों की चेतावनी
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सीपीआई (माओवादी) के वाजेदू-वेंकटपुरम एरिया कमिटी के सचिव संथा के नाम से एक ख़त जारी हुआ है.
इस ख़त में कहा गया है, “हमने ऑपरेशन कगार से ख़ुद को बचाने के लिए कर्रेगुट्टालू इलाक़े में बम लगाए हैं. हमने इसके बारे में आम लोगों को जानकारी दी है. लेकिन पुलिस कुछ आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी लोगों को पैसों और मीठी-मीठी बातों से फुसला कर कर्रेगुट्टालू भेज रही है. हम लोगों से गुज़ारिश करते हैं कि वे उनके इस जाल में न फँसे और कर्रेगुट्टालू की ओर न आएँ.”
यह ख़त आठ अप्रैल को जारी किया गया था. माना जा रहा है कि माओवादियों ने यह ख़त सुरक्षा बलों की कार्रवाई की जानकारी मिलने के बाद जारी किया.
हालाँकि, सुरक्षा बल अपनी रणनीति में कोई बदलाव किए बिना कर्रेगुट्टालू की ओर आगे बढ़ते रहे.
एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बीबीसी से कहा, “हमने हाल ही में इस इलाक़े में 24 आईईडी निष्क्रिय किए हैं.”
इस पूरे इलाक़े में क्या हो रहा है, इसके बारे में तेलंगाना पुलिस कोई भी आधिकारिक सूचना नहीं दे रही है.
स्थानीय सुरक्षा बलों ने बीबीसी को जो जानकारी दी है उसके अनुसार, बड़ी संख्या में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) और छत्तीसगढ़ पुलिस हर दिन जंगलों में तलाशी अभियान चला रही है.
पिछले एक हफ़्ते से कर्रेगुट्टालू के ऊपर ड्रोन और हेलीकॉप्टर लगातार गश्त कर रहे हैं. वेंकटपुरम और वाजेदू इलाकों में आदिवासियों के अलावा किसी बाहरी व्यक्ति को आने की इजाज़त नहीं है.
ऐसा पता चला है कि केंद्रीय बलों को वेंकटपुरम और वाजेदू के पुलिस थानों में ठहरने की और अन्य सुविधाएँ मुहैया कराई गई हैं.
हालाँकि, तेलंगाना के मुलुगु ज़िले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने मीडिया को बताया- “वे किसी अभियान में शामिल नहीं हैं.”
पुलिस का मक़सद क्या है?
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इसके पीछे पुलिस के दो मुख्य मक़सद दिखते हैं.
पहला यह कि मध्य भारत में सुरक्षा बलों का ज़बरदस्त अभियान चल रहा है.
ऐसा आकलन है कि इसके चलते बड़ी संख्या में माओवादी कर्रेगुट्टालू में छिपे हुए हैं. ऐसे में उन्हें लगता है कि बड़ी संख्या में माओवादियों को एक साथ पकड़ा जा सकता है.
दूसरा, यह माना जा रहा है कि शीर्ष माओवादी नेता, सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति के सदस्य, पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) बटालियन-1 के कमांडर और कई सुरक्षा कर्मियों की हत्या के आरोप में घिरे मडावी हिड़मा इसी क्षेत्र में हो सकते हैं.
इसलिए भी सुरक्षा बलों ने अपना अभियान और तेज़ कर दिया है.
ऐसा नहीं है कि सुरक्षा बलों का ध्यान सिर्फ़ कर्रेगुट्टालू में ही है. उनकी नज़र पास के दुर्गमगुट्टालु इलाक़े में भी है. दुर्गमगुट्टालु के पास एक मोबाइल टावर भी लगाया गया है.
अब तक कितने मारे गए?
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इस अभियान में अब तक मारे गए लोगों की संख्या के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है.
पुलिस का दावा है कि 24 अप्रैल को तीन माओवादी मारे गए. वहीं, सीपीआई (माओवादी) ने 24 अप्रैल को जारी एक प्रेस बयान में कहा कि उनके छह कैडर मारे गए हैं.
इस बीच, ऐसी खबरें भी आईं कि 28 माओवादी मारे गए हैं. हालाँकि, पुलिस ने इन ख़बरों को ख़ारिज कर दिया.
इस बात को लेकर भी साफ़ तस्वीर नहीं है कि क्या वाक़ई इतनी बड़ी संख्या में माओवादी और उनके समर्थक इस इलाक़े में मौजूद हैं या वे पहले ही यहाँ से निकल चुके हैं.
तेलंगाना में मीडिया और ज़मीनी स्तर पर कई तरह की बातें हवा में हैं. इसी दौरान कुछ तेलुगु मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट किया कि माओवादियों का शीर्ष नेतृत्व अब वहाँ मौजूद नहीं है.
वे कहीं और चले गए हैं. बीबीसी इन रिपोर्टों की अपने स्तर पर स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सका है.
इस बीच, छत्तीसगढ़ की स्थानीय मीडिया में इस ऑपरेशन में जवानों की संख्या पाँच हज़ार से बीस हज़ार तक बताई जा रही है.
जिस पहाड़ को घेर कर अभियान चलाया जा रहा है, वहाँ माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के सदस्यों समेत कम से कम 500 जवानों की मौजूदगी का दावा किया जा रहा है.
स्थानीय अख़बार, सूत्रों का हवाला देते हुए अब तक 42 माओवादियों के मारे जाने की ख़बर छाप चुके हैं.
इस ऑपरेशन को लेकर तरह-तरह की कहानियाँ हैं और दावे हैं. लेकिन यहाँ भी आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है.
दूसरी ओर, इस अभियान के बारे में छत्तीसगढ़ पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी से कहा, “पिछले कुछ दिनों से छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा क्षेत्र में चल रहे नक्सल विरोधी अभियान ‘मिशन संकल्प’ की काफ़ी चर्चा हो रही है.”
“हालाँकि, पिछले कुछ साल में बस्तर रेंज में कई अभियानों को अंजाम दिया गया है, लेकिन यह अभियान अपनी रणनीतिक स्थिति, कठिन पहाड़ी इलाक़ों और लंबी अंतरराज्यीय सीमा के कारण ज़्यादा ध्यान आकर्षित कर रहा है.”
उनके मुताबिक, इस इलाक़े में कई वरिष्ठ माओवादी नेताओं के मौजूद होने की आशंका है. इसलिए भी यह अभियान कई मायनों में बाकी अभियानों से अलग है.
शांति वार्ता की पेशकश क्या है
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इस ऑपरेशन के बीच माओवादी नेताओं ने अप्रैल महीने में चौथी बार सरकार के नाम चिट्ठी जारी करते हुए शांति वार्ता की पेशकश की है.
यह पहली बार है, जब माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के प्रवक्ता अभय के नाम से जारी बयान में बिना शर्त, बातचीत का प्रस्ताव दिया गया है.
अभी तक माओवादी तरह-तरह की शर्तें रखते थे. उन्हीं शर्तों के आधार पर किसी शांति वार्ता की पेशकश करते थे. इसके उलट सरकार माओवादियों से हथियार छोड़ कर बातचीत करने का प्रस्ताव देती थी. ज़ाहिर है, माओवादी इसे ख़ारिज करते थे.
अब जबकि माओवादी बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार हुए हैं तो माना यही जा रहा है कि ताज़ा ऑपरेशन में कुछ माओवादी नेताओं के घिरे होने की संभावना है. और उन्हें बचाने के लिए अंततः माओवादी बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार हुए हों.
हालाँकि, छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा ने माओवादियों की बिना शर्त बातचीत की पेशकश को यह कहकर टाल दिया कि माओवादियों से शांति वार्ता देश को ख़त्म करने वाला प्रोपेगैंडा है.
इस बीच तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने छत्तीसगढ़-तेलंगाना की सीमा पर माओवादियों के ख़िलाफ़ चल रहे अभियान को तुरंत रोकने की सार्वजनिक अपील की है. उन्होंने दावा किया है कि इस अभियान में निर्दोष आदिवासी मारे जा रहे हैं.
दूसरी ओर, कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, हाईकोर्ट के भूतपूर्व न्यायाधीश, शिक्षाविद और वकीलों के एक दल ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से मुलाक़ात की.
इसके बाद रेवंत रेड्डी ने भी माओवादियों से शांति वार्ता की पहल करने की बात की है.
रेवंत रेड्डी ने सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे इस विषय पर कैबिनेट से चर्चा के बाद निर्णय लेंगे. यही नहीं, वे माओवादी आंदोलन को सिर्फ़ क़ानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में नहीं देखते.
छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा ने संदिग्ध माओवादियों के साथ शांति वार्ता के बारे में कहा है, ”जब छत्तीसगढ़ के आदिवासी मारे जा रहे थे, तब कोई शांति वार्ता के लिए नहीं आया. अब जब तेलंगाना में माओवादी घिर गए हैं तो शांति वार्ता की पेशकश की जा रही है.”
विजय शर्मा ने कहा, “कौन हैं ये लोग जो वार्ता का एजेंडा सेट कर रहे हैं? दाल में ज़रूर कुछ काला है. अगर ये वार्ता की पैरवी कर रहे हैं तो इनकी पृष्ठभूमि और मंशा पर भी सवाल उठेंगे.”
छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा के बयान के बाद माना जा रहा है कि कम से कम अभी तो छत्तीसगढ़ सरकार, किसी तरह की शांति वार्ता के मूड में नहीं है.
अधिकृत तौर पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने केवल इतना भर कहा, “पिछले पंद्रह महीनों से हमारे सुरक्षाबल के जवान, मज़बूती के साथ नक्सलियों से लड़ रहे हैं. अभी तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की सीमा पर बड़ा ऑपरेशन चल रहा है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित