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- Author, आसिफ़ अली
- पदनाम, देहरादून से बीबीसी हिन्दी के लिए
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देहरादून में पढ़ाई कर रहे त्रिपुरा के 24 साल के एक छात्र की हत्या के मुद्दे ने एक बार फिर से पूर्वोत्तर भारत के स्टूडेंट्स के साथ उत्तर भारत में भेदभाव की घटनाओं को चर्चा में ला दिया है.
दरअसल, नौ दिसंबर को देहरादून के सेलाकुई थाना क्षेत्र के बाज़ार में एक निजी यूनिवर्सिटी से एमबीए फ़ाइनल कर रहे छात्र एंजल चकमा पर हाथ के कड़े और चाकू से हमला किया गया.
त्रिपुरा के अगरतला स्थित नंदनगर के एंजल इस हमले में बुरी तरह घायल हो गए और 16 दिनों तक अस्पताल में ज़िदगी से जंग लड़ने के बाद उनकी मौत हो गई. इस हादसे के वक़्त उनके छोटे भाई माइकल भी मौजूद थे.
देहरादून पुलिस के मुताबिक़ इस मामले में अब तक दो नाबालिग़ सहित पांच अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया है और छठा अभियुक्त अभी फ़रार है.
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स्थानीय पुलिस ने फ़रार अभियुक्त की गिरफ़्तारी के लिए 25 हज़ार रुपये का इनाम भी घोषित किया है. घटना के बाद से देहरादून और आसपास के इलाक़ों में रह रहे पूर्वोत्तर के छात्र-छात्राओं के बीच डर का माहौल बना हुआ है.
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एंजेल के भाई ने बताया कि क्या हुआ था?
मृतक छात्र एंजेल चकमा के छोटे भाई माइकल चकमा 21 साल के हैं. वह देहरादून स्थित उत्तरांचल यूनिवर्सिटी में बीए प्रथम वर्ष के छात्र हैं.
नौ दिसंबर की घटना को याद करते हुए माइकल ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी को बताया कि उस शाम वह अपने बड़े भाई एंजेल और उसके दो दोस्तों के साथ करीब साढ़े छह बजे सेलाकुई के बाज़ार गए थे.
माइकल के मुताबिक़, बाज़ार में एक जगह खड़ी मोटरसाइकिल निकालते समय एंजेल आगे थे, जबकि वह फ़ोन पर बात कर रहे थे. इसी दौरान सामने खड़े कुछ युवकों के एक समूह ने उन पर टिप्पणी करना शुरू कर दी.
माइकल ने बताया, “वे उन्हें ‘चिकना’, ‘चिंकी’, ‘चाइनीज़’ कहने के साथ-साथ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे. उन्होंने शुरुआत में इन बातों को नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब वह मोटरसाइकिल पर बैठे, तो युवकों ने उनके बिल्कुल सामने आकर गालियाँ भी देनी शुरू कर दीं.”
माइकल का कहना है कि जब उन्होंने आपत्ति जताते हुए उनसे गाली देने का कारण पूछा तो इतना कहते ही युवकों ने उन पर हमला कर दिया.
उन्होंने बताया कि जब एंजेल उन्हें बचाने के लिए आगे आए, तो हमलावरों ने उन्हें भी पीटना शुरू कर दिया.
माइकल के मुताबिक़, “उन्हें ज़मीन पर गिराकर लातों से मारा गया और इसी दौरान एक युवक ने उनके सिर पर हाथ में पहने कड़े से वार किया, जिससे वह बेहोश हो गए. कुछ देर बाद जब उन्हें होश आया, तो उनके सिर से ख़ून बह रहा था और युवकों का वह समूह एंजेल से मारपीट कर जा चुका था.”
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माइकल ने बताया कि एंजेल ख़ून से लथपथ हालत में मिले. भाई की हालत देखकर वह बेहद घबरा गए थे.
उन्होंने बताया, “शाम क़रीब सात बजे वह किसी तरह एंजेल को एंबुलेंस से पास के एक प्राइवेट अस्पताल लेकर पहुँचे. अस्पताल में पता चला कि एंजेल के सिर पर भी कड़े से वार किया गया था और उनकी पीठ के निचले हिस्से में चाकू से हमला किया गया था.”
माइकल के अनुसार, वह नौ दिसंबर से 26 दिसंबर तक लगातार एंजेल के साथ अस्पताल में रहे, लेकिन उनके भाई की जान नहीं बच सकी.
माइकल ने कहा, “किसी भारतीय को ‘चाइनीज़’ कहना अपने आप में विवादास्पद है. हम भी भारतीय हैं और अपने देश से उतना ही प्यार करते हैं.”
28 दिसंबर, रविवार को, एंजल का अंतिम संस्कार ज़िला उनाकोटी स्थित उनके पैतृक गाँव मचमरा में कर दिया गया है.
एंजेल और माइकल के पिता तरुण प्रसाद चकमा बीएसएफ़ की फिफ्टी बटालियन में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर मणिपुर में पोस्टेड हैं. उनका कहना है कि जो उनके बच्चे के साथ हुआ, वो किसी और के बच्चे के साथ न हो.
उन्होंने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, “मणिपुर है, मिजोरम है, नगालैंड, त्रिपुरा हर जगह से बच्चे वहाँ पढ़ने जाते हैं. दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु.. कोई नौकरी करने जाता है कोई पढ़ाई करने जाता है, कोई कंपनी में काम करने जाता है तो इनके साथ ग़लत व्यवहार नहीं होना चाहिए.”
“हम भी भारतीय हैं. सरकार से मेरी विनती है कि सभी के साथ एक जैसा व्यवहार होना चाहिए. किसी के साथ ग़लत व्यवहार नहीं होना चाहिए. हमलोग नॉर्थ-ईस्ट से हैं इसलिए ग़लत व्यवहार, ऐसा नहीं होना चाहिए.”
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एफ़आईआर और पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल
एंजेल चकमा की हत्या के बाद पुलिस की भूमिका को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं. नौ दिसंबर को हुई घटना के बाद एंजेल चकमा के भाई माइकल चकमा की तहरीर पर पुलिस ने 12 दिसंबर को कुछ अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ शराब के नशे में जानबूझकर मारपीट करने की धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया.
एफ़आईआर में मारपीट के दौरान एंजेल चकमा पर चाकू और कड़े से किए गए हमले और जातिसूचक टिप्पणियों का उल्लेख किया गया था, जिसकी जानकारी माइकल चकमा ने पुलिस को दी थी.
हालांकि, इसके बावजूद एफ़आईआर में जान से मारने की कोशिश से जुड़ी धारा शामिल नहीं की गई.
पुलिस ने 14 दिसंबर को पाँच अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद जो प्रेस नोट जारी किया, उसमें भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 109, यानी जान से मारने की धमकी का ज़िक्र किया गया था. लेकिन 12 दिसंबर को दर्ज एफ़आईआर में यह धारा शामिल नहीं थी.
एंजेल चकमा के भाई माइकल चकमा ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी को बताया, “10 दिसंबर को वह सेलाकुई थाने में शिकायत देने पहुँचे थे, लेकिन वहाँ मौजूद पुलिसकर्मियों ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. पुलिसकर्मियों ने उलटे यह कहते हुए नाराज़गी जताई कि जातिवाद को क्यों बढ़ावा दे रहे हैं.”
माइकल ने कहा कि 12 दिसंबर को एफ़आईआर दर्ज की गई, लेकिन उनके भाई पर चाकू से हमला होने के बावजूद उसमें ‘एटेम्प्ट टू मर्डर’ की धारा नहीं जोड़ी गई.
इस मामले में पुलिस की कार्रवाई को लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी हस्तक्षेप किया है. 23 दिसंबर 2025 को आयोग ने उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक, देहरादून के ज़िलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी कर प्राथमिकी दर्ज करने में देरी और निष्पक्ष कार्रवाई न होने पर जवाब तलब किया.
आयोग ने यह कार्रवाई ऑल इंडिया चकमा स्टूडेंट्स यूनियन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बिपुल चकमा की शिकायत पर की.
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पुलिस ने क्या बताया
देहरादून के एसपी सिटी प्रमोद कुमार का कहना है, “नौ दिसंबर को त्रिपुरा के दो भाई थाना सेलाकुई क्षेत्र में किसी काम से बाहर निकले थे. इस दौरान वहाँ पहले से मौजूद कुछ युवकों से किसी बात को लेकर उनका विवाद हो गया, जो बाद में मारपीट में बदल गया.”
एसपी सिटी के मुताबिक़, “मारपीट के दौरान एक युवक ने दोनों पर चाकू और कड़े से हमला किया, जिसके बाद आरोपी मौक़े से फ़रार हो गए. पुलिस ने पीड़ित के भाई की तहरीर के आधार पर अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर अभियुक्तों की पहचान की.”
उन्होंने बताया, “विवेचना के दौरान पाँच अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें दो नाबालिग़ शामिल हैं. नाबालिग़ों को बाल न्यायालय में पेश किए जाने के बाद सुधार गृह भेज दिया गया है. वहीं तीन अन्य अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया है, जो फ़िलहाल न्यायिक हिरासत में हैं.”
एसपी सिटी प्रमोद कुमार के अनुसार, “घटना में शामिल एक अन्य अभियुक्त अब भी फ़रार है, जो दूसरे देश का रहने वाला है. उस पर 25 हज़ार रुपये का इनाम घोषित किया गया है और उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस के साथ एसओजी की टीमें प्रयास कर रही हैं.”
उन्होंने बताया कि एंजेल चकमा की मौत के बाद इस मामले में अब हत्या की धारा भी जोड़ दी गई है.
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घटना के बाद छात्रों और संगठनों की चिंता
देहरादून में इस समय त्रिपुरा के लगभग 300 छात्र-छात्राएँ पढ़ाई कर रहे हैं. वहीं, पूर्वोत्तर भारत से यहाँ अध्ययन करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या लगभग 500 बताई जाती है.
त्रिपुरा के छात्र-छात्राओं के लिए देहरादून में यूनिफाइड त्रिपुरा स्टूडेंट एसोसिएशन देहरादून (यूटीएसएडी) भी सक्रिय है, जो छात्र-छात्राओं से जुड़ी समस्याओं के समाधान का काम करती है.
त्रिपुरा के रहने वाले टोंगक्वचांग हाल ही में देहरादून के एक कॉलेज से बी-फार्मा की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और फ़िलहाल देहरादून के पास ही एक फार्मेसी कंपनी में काम करते हैं. वह यूटीएसएडी के प्रवक्ता भी हैं.
एंजेल चकमा की मौत पर शोक जताते हुए टोंगक्वचांग ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी से कहा कि एंजेल उनके छोटे भाई जैसा था.
उन्होंने कहा, “एंजेल बहुत अच्छा लड़का था. मैंने कभी नहीं सुना कि उसका किसी से झगड़ा हुआ हो. किसी इंसान की जान लेना बहुत बड़ी बात है. जिन लोगों ने उसकी हत्या की है, उन्हें कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए. हमें न्याय चाहिए.”
टोंगक्वचांग ने बताया, “28 दिसंबर को हम एक बार फिर सेलाकुई थाने गए थे, जहाँ पुलिस ने बताया कि छह में से पाँच अभियुक्त गिरफ्तार किए जा चुके हैं, जबकि एक मुख्य अभियुक्त नेपाल भाग गया है, जिसकी तलाश जारी है.”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जिस जिज्ञासा कॉलेज से एंजेल एमबीए की पढ़ाई कर रहा था, वहाँ से भी किसी तरह का सहयोग नहीं मिला. टोंगक्वचांग के अनुसार, कॉलेज के प्रिंसिपल को फोन करने पर उन्होंने कॉल तक रिसीव नहीं किया.
इस निजी कॉलेज से इस पूरे मामले पर हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है.
टोंगक्वचांग का कहना है कि नस्लीय भेदभाव की समस्या सिर्फ़ देहरादून तक सीमित नहीं है.
उनके मुताबिक़, दिल्ली, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों में भी पूर्वोत्तर के लोगों को भेदभाव और नस्लवाद का सामना करना पड़ता है.
उन्होंने कहा, “हमें नहीं पता कि किस आधार पर हमें ‘चिंकी’, ‘मिंकी’ या ‘चाइनीज़’ कहा जाता है, जबकि हमारी नागरिकता भारत की है और उससे जुड़े सभी काग़ज़ात हमारे पास हैं.”
उन्होंने बताया कि उन्हें खुद कॉलेज के दिनों से लेकर अब तक नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा है.
वो कहते हैं, “मुझसे कहा गया कि तुम चाइनीज़ हो, भारत से वापस जाओ. कभी पूछा गया कि त्रिपुरा.. जापान में है या भूटान में.”
उन्होंने कहा कि देहरादून को एक शांत और शिक्षा के लिए बेहतर शहर माना जाता है, लेकिन अगर वह अपनी आपबीती कहीं और जाकर बताएँगे तो शहर की छवि को नुक़सान पहुँचेगा.
उन्होंने कहा, “मैं ऐसा नहीं करूँगा, क्योंकि मैं घर से बाहर कुछ बनने के लिए निकला हूँ.”
टोंगक्वचांग के मुताबिक़,एंजेल की हत्या के बाद देहरादून में रह रहे छात्र-छात्राओं और उनके अभिभावकों के बीच डर का माहौल है.
उन्होंने कहा, “अब हम खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहे हैं. जब एंजेल की हत्या हो सकती है, तो हम में से किसी के साथ भी कुछ हो सकता है.”
उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के छात्र-छात्राएं दूर-दराज़ से बेहतर शिक्षा की उम्मीद लेकर यहाँ आते हैं और उनके परिवार यह नहीं चाहते कि उन्हें अपने बच्चों का शव लेकर वापस जाना पड़े.
वह कहते हैं, “हम भी भारतीय हैं. ऐसा क़ानून होना चाहिए कि हमें ‘चाइनीज़’ कहकर न पुकारा जाए.”
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क्षेत्रीय पार्टी ने सुरक्षा पर उठाए सवाल
त्रिपुरा की क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा पार्टी की इकाई, टिपरा महिला फ़ेडरेशन की पश्चिम ज़िला सचिव नाइशा मारी देबबर्मा ने एंजेल चकमा की मौत को बेहद दुखद घटना बताया है.
उन्होंने कहा कि एंजेल त्रिपुरा से देहरादून पढ़ाई के लिए आया था, न कि अपनी जान गंवाने के लिए.
नाइशा मारी देबबर्मा ने बीबीसी न्यूज़ हिंदी को बताया कि उन्होंने ख़ुद देहरादून में सात साल रहकर पढ़ाई की है और इसलिए यह शहर उनके लिए दूसरे घर जैसा रहा है.
उन्होंने कहा कि देहरादून में पढ़ रहे त्रिपुरा के स्टूडेंट्स की सीनियर होने के नाते उनसे जुड़े मुद्दों और कठिनाइयों के समाधान के लिए उनका यहाँ आना-जाना लगा रहता है.
उन्होंने बताया कि 11 दिसंबर को वह एंजेल से मिलने अस्पताल गई थीं, जहाँ वह आईसीयू में भर्ती था.
नाइशा के मुताबिक़, “डॉक्टरों ने उन्हें बताया था कि एंजेल को पीठ की ओर दो जगह चाकू से वार किया गया था और गर्दन पर हाथ में पहने जाने वाले कड़े से हमला किया गया था.”
इसके बाद वह 20 दिसंबर को दोबारा एंजेल को देखने पहुँचीं, लेकिन तब भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं था.
उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के लोग शांतिप्रिय होते हैं, लेकिन जब उन्हें ‘चाइनीज़’, ‘चिंकी’ या ‘चिंकू’ जैसे शब्दों से पुकारा जाता है, तो यह बेहद पीड़ादायक होता है.
उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने खुद देहरादून में पढ़ाई के दौरान तीन-चार बार ऐसे अनुभव झेले हैं, इसलिए वह समझ सकती हैं कि इससे कितना आघात पहुँचता है.
उनके मुताबिक़, पूर्वोत्तर के छात्र देहरादून को एक शांत और सुरक्षित शहर मानकर पढ़ने आते हैं, लेकिन इस घटना के बाद यह भावना कमजोर हुई है और यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यह शहर अब पहले की तरह सुरक्षित है.
त्रिपुरा की टिपरा मोथा पार्टी (क्षेत्रीय पार्टी) के फाउंडर प्रद्युत किशोर माणिक्य ने एंजेल चकमा के परिवार को तीन लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है.
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धामी सरकार की क़ानून-व्यवस्था पर कांग्रेस ने उठाए गंभीर सवाल
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को उत्तराखंड के देहरादून में त्रिपुरा के एक स्टूडेंट की हत्या को ‘नफ़रत से जुड़ा भयावह अपराध’ बताया है.
एक्स पर एक पोस्ट में राहुल गांधी ने कहा कि ‘नफ़रत एक रात में पैदा’ नहीं होती.
उन्होंने लिखा, “देहरादून में एंजेल चकमा और उनके भाई माइकल के साथ जो हुआ, वह एक काफ़ी भयावह नफ़रत से जुड़ा अपराध है.”
कांग्रेस सांसद ने कहा, “बीते कई सालों से इसे लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है, ख़ासतौर पर युवाओं के बीच, ज़हरीली सामग्री और गै़र-ज़िम्मेदाराना बयानबाज़ी के ज़रिए.”
उन्होंने एक्स पर लिखा, “देहरादून में त्रिपुरा के एक स्टूडेंट की हत्या नफ़रती लोगों की बेहद घृणित मानसिकता का दुष्परिणाम है.”
अखिलेश यादव ने कहा, “विघटनकारी सोच रोज़ किसी की जान ले रही है और सरकारी अभयदान प्राप्त ये लोग विषबेल की तरह फल-फूल रहे हैं. इन नकारात्मक तत्वों से देश और देश की एकता-अखंडता ख़तरे में है.”
कांग्रेस नेता और वरिष्ठ प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने इस घटना को राज्य में क़ानून-व्यवस्था की कमज़ोर स्थिति और प्रशासनिक विफलता का संकेत बताया है.
उन्होंने बताया कि हाल ही में प्रदेश में अपराधों में वृद्धि, विशेषकर छात्रों और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा, गंभीर चिंता का विषय है.
वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले पर कहा है कि इस तरह की कोई भी घटना प्रदेश में स्वीकार्य नहीं है. मुख्यमंत्री का कहना है कि फ़रार अभियुक्त बहुत जल्द पुलिस के शिकंजे में होगा.
उन्होंने कहा, “क़ानून-व्यवस्था से खिलवाड़ करने वाले सरकार से रहम की उम्मीद न रखें. ऐसे अराजक तत्वों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा. राज्य सरकार उत्तराखंड में रह रहे हर नागरिक की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.”
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल का कहना है कि देहरादून की पहचान दशकों से एक एजुकेशन हब के रूप में रही है, लेकिन जिस तरह से एंजेल चकमा की हत्या हुई, उसकी चर्चा पूरे उत्तर-पूर्व तक पहुँची है.
उनका आरोप है कि देहरादून के निजी कॉलेजों में सैकड़ों की संख्या में उत्तर-पूर्व के छात्र-छात्राएँ पढ़ते हैं और उनके साथ इस तरह की नस्लीय प्रताड़ना की घटनाएँ रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं.
उन्होंने सवाल उठाया, “सरकार के साथ-साथ स्थानीय खुफ़िया इकाई (एलआईयू) और पुलिस क्या कर रही थी? क्या इन एजेंसियों को यह जानकारी नहीं थी कि उत्तर-पूर्व और अफ़्रीका के छात्रों को किस तरह निशाना बनाया जा रहा है. क्या कभी उत्तर-पूर्व के छात्रों और स्थानीय लोगों के बीच संवाद या मेल-मिलाप के लिए कोई पहल की गई है?
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.