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दम तोड़ते झरनों को बचाने में जुटी सरकार, 1931 झरने हुए पुनर्जीवित

Byadmin

Jun 18, 2025


भारतीय हिमालयी क्षेत्र में झरनों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आधे से अधिक बारहमासी झरने सूख गए हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने स्पि्रंगशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किया जिसके तहत 15 राज्यों के 4327 झरनों को चिन्हित किया गया। सरकार का दावा है कि 1931 झरने पुनर्जीवित हो चुके हैं। इस कार्यक्रम के तहत जल स्त्रोतों की

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। भारतीय हिमालयी क्षेत्र और अन्य पर्वत श्रंखलाओं के आसपास की करीब 20 करोड़ आबादी झरनों के पानी पर निर्भर है, लेकिन कई दशकों तक झरनों के रखरखाव पर ध्यान ही नहीं दिया गया। इसके परिणामों पर वर्ष 2018 में नीति आयोग की रिपोर्ट ने चेताया कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र के आधे से अधिक बारहमासी झरने सूख चुके हैं या फिर मौसमी हो गए हैं। तब आयोग की ही सिफारिश पर ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग ने स्पि्रंगशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किया।

15 राज्यों के 4327 झरनों को चिन्हित कर भू-विज्ञानियों की टीमें लगाई गई, जिसके परिणाम सामने आ रहे हैं। सरकार का दावा है कि 1931 झरने पुनर्जीवित हो चुके हैं और बाकी पर काम चल रहा है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे देश में लगभग 50 लाख झरने हैं। इनमें से करीब 30 लाख झरने सिर्फ हिमालयी क्षेत्र में ही हैं। यह बारहमासी झरने ही वहां की आबादी के लिए जल का मुख्य स्त्रोत हैं।मगर, बदलते पर्यावरण व वर्षा क्रम, भूकंपीय गतिविधियों, भू-उपयोग परिवर्तन आदि का प्रभाव झरनों पर पड़ा, जिसके कारण आधे से अधिक बारहमासी झरने सूख गए या सूखने की स्थिति में पहुंच गए। इस रिपोर्ट को मोदी सरकार ने गंभीरता से लेते हुए भू-विज्ञानियों के साथ विचार-मंथन किया। भूमि संसाधन विभाग के संयुक्त सचिव नितिन खाड़े ने बताया कि झरनों को पुनर्जीवित करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि इनके जल स्त्रोत को खोजना आसाना नहीं होता।

इसका पता विशेषज्ञ ही लगा सकते हैं, जिनकी कि दूरदराज के पर्वतीय क्षेत्रों में कमी है। ऐसे में भूमि संसाधन विभाग ने प्रधानमंत्री कृषि ¨सचाई योजना- 2.0 के तहत स्पि्रंगशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम बनाया। हाइड्रोजियोलाजिस्ट से प्रशिक्षण दिलाकर क्षमता विकास करते हुए पैरा-हाइड्रोजियोलाजिस्ट की टीमें तैयार की गईं। उन्होंने बताया कि झरनों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया में छह चरण होते हैं।

  • सबसे पहले झरनों और उनके जल स्त्रोतों की मै¨पग कराई जाती है।
  • दूसरा क्रम वहां डाटा मॉनीटरिंग सिस्टम लगाने का होता है।
  • उसके बाद संबंधित भौगोलिक क्षेत्र पर उस झरने के सामाजिक पहलू की रिपोर्ट तैयार की जाती है।
  • चौथे क्रम में हाइड्रोलाजिकल मैपिंग व ले-आउट निर्माण कर री-चार्ज एरिया चिन्हित किया जाता है।
  • पांचवां क्रम जल स्त्रोत प्रबंधन के ढांचे के निर्माण का होता है और सबसे अंत में इन गतिविधियों के परिणाम व झरने के पुनर्जीवन की गतिविधियों की सतत निगरानी होती है।

संयुक्त सचिव ने बताया कि इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है, इसलिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले 15 राज्यों के 4327 बारहमासी झरने चिन्हित किए गए। उन पर काम शुरू हुआ और 28 फरवरी, 2025 तक की रिपोर्ट के मुताबिक 1931 झरने पुनर्जीवित हो चुके हैं। स्पि्रंगशेड डेवलपमेंट कार्यक्रम के परिणामों को इन दो उदाहरणों से समझ सकते हैं। हिमाचल प्रदेश स्थित मंडी जिले के बेहा गांव में झरने का डिस्चार्ज वॉल्यूम 71.49 प्रतिशत बढ़ चुका है।

संयुक्त सचिव ने बताया कि इस प्रक्रिया में काफी समय लगता है, इसलिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले 15 राज्यों के 4327 बारहमासी झरने चिन्हित किए गए। उन पर काम शुरू हुआ और 28 फरवरी, 2025 तक की रिपोर्ट के मुताबिक 1931 झरने पुनर्जीवित हो चुके हैं। स्पि्रंगशेड डेवलपमेंट कार्यक्रम के परिणामों को इन दो उदाहरणों से समझ सकते हैं। हिमाचल प्रदेश स्थित मंडी जिले के बेहा गांव में झरने का डिस्चार्ज वॉल्यूम 71.49 प्रतिशत बढ़ चुका है।
इसी तरह मेघालय के ईस्ट गारो जिले का पलवांग झरने के जल प्रवाह में 99.93 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई है। सरकार का दावा है कि इस प्रोजेक्ट में शामिल झरनों की स्थिति बदल चुकी है। जो सूखे थे, वह पुनर्जीवित हो गए और जो मौसमी बनकर रह गए थे, उनका जल प्रवाह काल बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि अभी पूर्व चिन्हित झरनों पर काम चल ही रहा है, इसके साथ ही अगले चरण में 1240 झरने और शामिल किए जा रहे हैं।

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