इमेज कैप्शन, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने शनिवार को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर एक तस्वीर पोस्ट कर पार्टी संगठन को लेकर एक नई बहस छेड़ दी (फ़ाइल फ़ोटो)
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने शनिवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से पहले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर एक तस्वीर पोस्ट कर पार्टी संगठन को लेकर बहस छेड़ दी.
दिग्विजय सिंह ने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर पोस्ट कर लिखा कि चित्र बेहद प्रभावशाली है. उन्होंने लिखा, “आरएसएस का ज़मीनी स्वयंसेवक और जनसंघ-बीजेपी का कार्यकर्ता नेताओं के चरण में बैठकर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश का प्रधानमंत्री बना. ये संगठन की शक्ति है.”
इस पोस्ट के बारे में पत्रकारों ने जब ये पूछा कि इसका क्या मतलब है, कांग्रेस संगठन में क्या वो सुधार चाहते हैं तो दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो आरएसएस और बीजेपी के घोर विरोधी हैं. उन्होंने केवल ‘संगठन’ की तारीफ़ की है.
दिग्विजय के इस पोस्ट पर बीजेपी ने कहा है कि ये कांग्रेस का अंदरूनी मामला है.
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बीजेपी नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि सिर्फ़ दिग्विजय सिंह ने ही राहुल गांधी की समझ पर सवाल नहीं उठाया है बल्कि बराक ओबामा ने भी इसका ज़िक्र किया है.
दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया पोस्ट में क्या कहा?
दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर जो तस्वीर साझा की है वो पुरानी है.
उस समय नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे. तस्वीर में एक सम्मेलन के दौरान नरेंद्र मोदी बीजेपी के तत्कालीन वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के आगे बैठे दिख रहे हैं.
इस तस्वीर को साझा करते हुए दिग्विजय सिंह ने लिखा, ”क्वोरा साइट पर मुझे यह चित्र मिला. बहुत ही प्रभावशाली है. किस प्रकार आरएसएस का ज़मीनी स्वयंसेवक और जनसंघ, बीजेपी का कार्यकर्ता नेताओं के चरणों में फ़र्श पर बैठकर प्रदेश का मुख्यमंत्री व देश का प्रधानमंत्री बना. ये संगठन की शक्ति है.”
माना जा रहा है कि दिग्विजय सिंह ने इसके ज़रिये कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को पार्टी संगठन में बदलाव करने का संदेश दिया है.
हालांकि दिग्विजय सिंह ने पत्रकारों से कहा कि उनका मक़सद कांग्रेस संगठन की आलोचना करना नहीं था, उन्हें जो कहना था वो उन्होंने कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में कह दिया है.
वहीं शनिवार शाम को समाचार एजेंसी एएनआई से दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो हमेशा से आरएसएस की विचारधारा के विरोधी रहे हैं.
उन्होंने कहा, “ये पूरे तरीक़े से संविधान और देश के क़ानून को नहीं मानते हैं, जो ग़ैर रजिस्टर्ड संस्था है जिस पर कोई क़ानून लागू नहीं होता है. लेकिन उनकी संगठन क्षमता का प्रशंसक मैं इसलिए हूं क्योंकि एक ऐसी संस्था जो रजिस्टर्ड नहीं है वो इतनी शक्तिशाली हो गई कि देश के प्रधानमंत्री लाल क़िले से कहते हैं कि ये विश्व का सबसे बड़ा एनजीओ है.”
क्या कांग्रेस के संगठन की क्षमता उन्हें कम दिखाई दे रही है? इस सवाल पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि इसमें सुधार की गुंजाइश है और हर संगठन को सुधार की गुंजाइश रखनी चाहिए.
दिग्विजय सिंह ने कहा, “कांग्रेस पार्टी मूल रूप से एक आंदोलन की पार्टी है. लेकिन अब किसी आंदोलन को वोटों में तब्दील करने में हम कमज़ोर पड़ जाते हैं.”
वरिष्ठ कांग्रेस नेता अंबिका सोनी ने भी कहा कि दिग्विजय सिंह ने बैठक में पार्टी संगठन में बदलाव को लेकर कुछ नहीं कहा है.
वैसे 19 दिसंबर को भी दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में राहुल गांधी से कहा था कि वो सामाजिक और आर्थिक मुद्दों के साथ-साथ कांग्रेस संगठन पर भी ध्यान दें.
दिग्विजय सिंह ने लिखा था, ”कांग्रेस को भी चुनाव आयोग की तरह सुधारों और व्यावहारिक विकेंद्रीकरण की ज़रूरत है. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि राहुल गांधी इस दिशा में क़दम उठाएंगे.”
इसके बाद उनकी ताज़ा पोस्ट के बाद ये कयास लगाया जाने लगा है कि वो कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव देखना चाहते हैं और उसे लेकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
बीजेपी ने दिग्विजय की पोस्ट पर क्या कहा
इमेज स्रोत, Getty Images
इमेज कैप्शन, बीजेपी नेता सुधांशु त्रिवेदी ने दिग्विजय सिंह के सोशल मीडिया पोस्ट पर प्रतिक्रिया के दौरान राहुल गांधी पर टिप्पणी की है
इस बीच, बीजेपी ने दिग्विजय सिंह की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये (पार्टी संगठन में बदलाव) कांग्रेस का अंदरूनी मामला है.
पार्टी नेता सुधांशु त्रिवेदी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, ”दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी की समझ पर सवाल नहीं उठाया है. बराक ओबामा ने अपनी किताब द प्रॉमिस्ड लैंड में लिखा है कि वो एक ऐसे छात्र की तरह हैं जो अपने टीचर को प्रभावित करने की छटपटाहट में बहुत कुछ भाव-भंगिमा तो दिखा रहा है लेकिन वास्तिवक ज्ञान और गंभीरता का उसमें अभाव है. अब सवाल है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जिस शख़्स के बारे में ऐसी बात कर रहे हैं उन्हें अमेरिका की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज़ की ओर से बुलाया जा रहा है. क्या ये आश्चर्य की बात नहीं है.”
उन्होंने कहा, ”ये खुद अमेरिकी सिस्टम के सामने सवाल है कि जिनके बारे में किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का ये नज़रिया है उसे आईवी लीग की यूनिवर्सिटीज़ तटस्थता के साथ बातें करने के लिए बुला रही हैं. ये पूरी तरह राहुल गांधी की पूरी विदेश यात्रा की ऑब्जेक्टिविटी पर ही सवाल उठा रहा है.”
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में क्या हुआ
इधर, कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में मनरेगा का नाम बदलकर ‘विकसित भारत-जी राम जी’ करने का मुद्दा उठाया गया.
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पार्टी मनरेगा का नाम बदलकर ‘विकसित भारत-जी रामजी’ करने का विरोध सड़कों पर उतरकर करेगी.
खड़गे ने कहा, ”मनरेगा योजना से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का नाम हटाना अपमान है. डॉ. मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गांधी जी ने काम के अधिकार पर आधारित क़ानून बनाया था. कांग्रेस सरकार ने जनता को अधिकार दिया, लेकिन मोदी सरकार सिर्फ़ नाम बदलने पर तुली है. हम ग़रीबों के अधिकार को बचाने के लिए देशव्यापी आंदोलन करेंगे और इस अन्याय के ख़िलाफ़ लड़ेंगे.”
खड़गे ने वोटर लिस्ट की एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) का भी मुद्दा उठाया.
वर्किंग कमेटी की बैठक में खड़गे ने यह भी कहा कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया लोकतांत्रिक अधिकारों को कम करने की सुनियोजित साज़िश है. उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि घर-घर जाकर यह सुनिश्चित करें कि ग़रीब, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के वोटर्स के नाम वोटर लिस्ट न हटें.
वहीं पार्टी नेता राहुल गांधी ने कहा, ”मनरेगा का नाम बदलने का फैसला कैबिनेट और राज्यों से बिना पूछे ही लिया गया है. मोदी वन मैन शो चला रहे हैं. मोदी जी जो करना चाहते हैं करते हैं. इसका पूरा फ़ायदा दो-तीन अरबपतियों को मिल रहा है. इसका नुक़सान ग्रामीण इलाकों को हो रहा है.”
क्या है ‘विकसित भारत-जी राम जी’ क़ानून
‘विकसित भारत- जी राम जी’ बिल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से मंज़ूरी मिलने के बाद क़ानून बन गया है.
‘विकसित भारत गारंटी फ़ॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यूपीए सरकार के दौर की मनरेगा योजना की जगह लेगा.
इस योजना के तहत ग्रामीण इलाक़ों में मज़दूरों को 125 दिनों के गारंटीड मज़दूरी वाले रोज़गार का प्रावधान किया गया है.
सरकार का कहना है कि नई योजना को ‘विकसित भारत 2047’ के नेशनल विज़न के मुताबिक़ ग्रामीण विकास का ढांचा तैयार करने के मक़सद से लाया गया है. लेकिन विपक्ष ने इसका विरोध किया है.
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार साल 2005 में मनरेगा क़ानून लेकर आई थी जिसके तहत ग्रामीण इलाक़े के परिवारों को साल में 100 दिन रोज़गार की गारंटी थी.
विपक्ष का आरोप है कि इस स्कीम में केंद्र सरकार को राज्यों की तुलना में ‘ज़्यादा अधिकार’ हैं जबकि राज्य सरकारों को पहले की तुलना में ‘ज़्यादा पैसा’ ख़र्च करना होगा.
साथ ही विपक्ष का आरोप है कि मनरेगा जैसा क़ानून जिसमें महात्मा गांधी का नाम भी शामिल है उसे हटाकर, सरकार महात्मा गांधी का ‘अपमान’ कर रही है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.