उत्तर पश्चिमी दिल्ली के मंगोलपुरी में बस स्टैंड के पास बने मोहल्ला क्लीनिक के अंदर और बाहर दर्जनों मरीज़ अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं.
हर पांच-दस मिनट में मरीज़ हाथों में दवा लिए बाहर भी आ रहे हैं.
80 साल की विद्या देवी यहाँ स्किन से जुड़ी दिक़्क़तों के कारण आई हैं.
एक प्लास्टिक में कटी-फटी पर्चियों को अलग करते हुए वह कहती हैं, “मैं ज़्यादा चल नहीं पाती, इसलिए अस्पताल जाना मुश्किल होता है. 10 रुपए में रिक्शे से मोहल्ला क्लीनिक आ जाती हूँ.”
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यहाँ आने वाले ज़्यादातर मरीज़ मंगोलपुरी के स्थानीय निवासी हैं. इंतज़ार कर रहे मरीज़ों का कहना है कि बीमार पड़ने पर वो सबसे पहले नज़दीकी मोहल्ला क्लीनिक का ही रुख़ करते हैं.
पोर्टा केबिन में चल रहे इस मोहल्ला क्लीनिक से स्थानीय लोग काफ़ी ख़ुश नज़र आते हैं. लेकिन क्या दिल्ली में चल रहे दूसरे मोहल्ला क्लीनिक का भी ऐसा ही हाल है? क्या वहां भी समय से दवाएं मिल रही हैं?
क्या मोहल्ला क्लीनिकों की स्वास्थ्य सेवाओं से दिल्ली के लोग आम आदमी पार्टी के क़रीब हुए हैं?
मोहल्ला क्लीनिक के हाल?
इन्हीं सब सवालों की पड़ताल करने सबसे पहले हम पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर पहुँचे. यहाँ कई सालों से सीपीए बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर एक मोहल्ला क्लीनिक चल रहा है.
सुबह आठ से दोपहर दो बजे तक चलने वाले इस मोहल्ला क्लीनिक में दवाएं, डॉक्टर और रिसेप्शन पर सहायक मौजूद थे.
यहां हमारी मुलाक़ात कंचन से हुई. वह लक्ष्मी नगर विधानसभा की वोटर हैं और घरों में झाड़ू पोछा लगाने का काम करती हैं.
वह कहती हैं, “प्राइवेट अस्पताल में बहुत पैसे लग जाते हैं. यहां मुफ़्त में दवा मिल जाती है. मुझे बुखार और कमज़ोरी है, जिसकी दवा लेने मैं यहां आई थी. डॉक्टर ने तीन दिन की दवा दी है. यहां की दवा से मैं ठीक हो जाती हूं.”
विधानसभा चुनावों में मोहल्ला क्लीनिक की भूमिका पर कंचन बोलने से बचती हैं. वे कहती हैं, “जो हमारे जैसे लोगों को फ़ायदा देगा, उन्हें फ़ायदा मिलना चाहिए.”
ऐसी ही बात बिहार के मूल निवासी अजय कुमार कहते हैं. उनका कहना है कि वे 1994 से दिल्ली में रह रहे हैं.
अजय कहते हैं, “चुनावों में मोहल्ला क्लीनिक का बड़ा असर दिखाई देगा. जो पार्टी दवा, शिक्षा, बिजली दे रही है, उसके बारे में हम क्यों नहीं सोचेंगे?”
वहीं लक्ष्मीनगर की ही रहने वालीं विनेश जब यहाँ आईं तो उन्हें डॉक्टर ने अस्पताल में दिखाने की सलाह दी.
इसके बाद हम उत्तर पश्चिम दिल्ली की किराड़ी विधानसभा पहुंचे. 2015 से यहां आम आदमी पार्टी जीत रही है. इस विधानसभा में 11 मोहल्ला क्लीनिक हैं.
निठारी गांव में सड़क पर बने पोर्टा केबिन में चल रहा महोल्ला क्लीनिक ख़ाली पड़ा है. मरीज़ों के नाम पर यहाँ एक महिला पर्चा बनवा रही हैं.
किराड़ी की स्थानीय निवासी पंपा देवी अपने लड़के के लिए दवा लेने आई हैं. वह कहती हैं, “बच्चे का पैर छिल गया था. डॉक्टर ने एक ट्यूब और कुछ गोलियां दी हैं. अस्पताल में पैसे लगते हैं, यहां मुफ़्त में इलाज हो जाता है.”
वहीं इस क्लीनिक पर पहली बार पहुँचे स्थानीय निवासी अमित कुमार गौतम नाराज़ नजर आते हैं. वह कहते हैं, “अस्पताल अच्छे हैं, यहाँ छोटी-मोटी दवा ही मिल पाती है. जो सुविधाएं होनी चाहिए, वे नहीं हैं.”
मोहल्ला क्लीनिक पर ताला
निठारी के बाद हम लोग किराड़ी विधानसभा की इंद्र एन्क्लेव में बने मोहल्ला क्लीनिक पहुँचे.
यहां डोरी से बंधी एक व्हीलचेयर खड़ी है और मोहल्ला क्लीनिक पर ताला लटका लगा हुआ है. क्लीनिक का समय बोर्ड पर सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक लिखा हुआ है.
बिना किसी नोटिस के यह मोहल्ला क्लीनिक बंद पड़ा था. क्लीनिक के सामने दुकान चलाने वाले मोहम्मद इकरार कहते हैं, इसे आज (सोमवार) खुलना चाहिए था लेकिन बंद पड़ा है.
इकरार बताते हैं, “आम तौर पर इस क्लीनिक पर बहुत भीड़ रहती है. बाहर तक लाइन लग जाती है, लेकिन बीच बीच में ये बंद भी रहता है.”
वहीं पड़ोस के ही रहने वाले एक अन्य व्यक्ति ने अपना नाम ना ज़ाहिर करते हुए कहा, “क्लीनिक का फ़ायदा तो है, लेकिन इसे अच्छे से नहीं चलाया जा रहा है. अपनी मर्ज़ी से लोग इसे बीच-बीच में बंद कर देते हैं.”
क्लीनिक बंद क्यों हैं? यह सवाल जानने के लिए बीबीसी ने उत्तर पश्चिम दिल्ली की चीफ मेडिकल ऑफिसर मीनाक्षी हेम्ब्रम से कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई.
इसके बाद हम कुछ ही दूरी पर शीश महल इलाके में बने मोहल्ला क्लीनिक पहुंचे. संकरी गली में बने एक जर्जर मकान में यह क्लीनिक चल रहा है.
क्लीनिक के सामने खाली पड़े प्लॉट में गंदगी का अंबार लगा है, जहां किसी भी व्यक्ति के लिए खड़ा होना मुश्किल है.
ऐसी ही शिकायत मंगोलपुरी में बने एक मोहल्ला क्लीनिक पहुंचे सुरेश सिंह भी करते हैं.
वह कहते हैं, “आप देखिए क्लीनिक के अंदर बैठने की जगह नहीं है. बाहर हर तरफ़ गंदगी फैली हुई है. ऐसे में मरीज़ कहां बैठेगा? मैं यहां कई साल से आ रहा हूं. जुकाम और बुखार की दवा छोड़कर और कुछ यहां नहीं मिलता.”
वहीं 80 साल की विद्या देवी सुरेश सिंह की बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं. वह कहती हैं, “मुझे यहाँ सब दवाई मिलती है. कभी-कभी तो बड़े अस्पताल में भी दवा नहीं मिलती, ये तो फिर मोहल्ला क्लीनिक है.”
राजनीतिक फ़ायदा?
दिल्ली में आम आदमी पार्टी मोहल्ला क्लीनिक को अपनी कामयाबी की मिसाल के तौर पर पेश करती है.
चुनावी भाषणों में अरविंद केजरीवाल बार-बार ये बात कह रहे हैं कि अगर दिल्ली में बीजेपी की सरकार आई तो वे मोहल्ला क्लीनिक बंद कर देंगे. हालांकि बीजेपी ने इस तरह का कोई दावा नहीं किया है.
पिछले 41 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे विनीत वाही का मानना है कि दिल्ली चुनावों में आम आदमी पार्टी अपनी दूसरी योजनाओं की तरह मोहल्ला क्लीनिक का ज़ोर शोर से प्रचार नहीं कर रही है.
विनीत कहते हैं, “मोहल्ला क्लीनिक बहुत अच्छा कॉन्सेप्ट है, लेकिन समय बीतने के साथ-साथ इसकी व्यवस्था चरमराती गई. अगर मोहल्ला क्लीनिक अच्छा काम कर रहे होते, तो इसकी गूंज चुनाव प्रचार में सुनाई देती.”
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री इस बात से सहमत नजर नहीं आते.
वह कहते हैं, “प्रचार किस विधानसभा में किया जा रहा है, उसे देखना ज़रूरी है. अगर नई दिल्ली में चुनाव प्रचार होगा तो वहां उस तरह से मोहल्ला क्लीनिक का ज़िक्र नहीं होगा, जैसा ज़िक्र बुराड़ी या नज़फ़गढ़ विधानसभा क्षेत्र में होगा.”
अत्री कहते हैं, “यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल अपनी रैलियों में अलग-अलग जगह ये डर भी दिखा रहे हैं कि अगर बीजेपी की सरकार आई तो मोहल्ला क्लीनिक बंद कर देगी.”
दूसरी तरफ़ वाही का कहना है, “ये कोई गारंटी नहीं है कि कोई वोटर अगर मोहल्ला क्लीनिक से इलाज करवा रहा है तो वो आम आदमी पार्टी को ही वोट करेगा. आज का वोटर बहुत समझदार है, वह हर पार्टी से फ़ायदा लेता है लेकिन वोट बहुत सोच समझकर करता है.”
मोहल्ला क्लीनिक कितने कारगर
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने साल 2015 में पहली बार मोहल्ला क्लीनिक की शुरुआत की थी.
केजरीवाल सरकार का लक्ष्य राजधानी में एक हज़ार मोहल्ला क्लीनिक बनाने का था.
अगले नौ महीनों में दिल्ली सरकार ने 11 ज़िलों में 100 मोहल्ला क्लीनिक शुरू कर दिए. सरकार का मक़सद राजधानी में एक हज़ार ऐसे क्लीनिक बनाना है. इस टारगेट को फ़िलहाल पूरा नहीं किया जा सका है. यहाँ मरीज़ मुफ़्त में इलाज करवा सकते हैं.
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक़ मोहल्ला क्लीनिक में 212 तरह के लैब टेस्ट और 100 से ज्यादा दवाएं मुफ़्त में दी जाती हैं.
दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक़ राजधानी में 518 मोहल्ला क्लीनिक हैं, जिसमें से ज़्यादातर सुबह 8 बजे से लेकर दोपहर दो बजे तक खुले रहते हैं, वहीं 25 ऐसे क्लीनिक भी हैं, जो शाम के वक़्त खुलते हैं.
विभाग के मुताबिक हर साल एक करोड़ से ज़्यादा मरीज़ मोहल्ला क्लीनिक में इलाज के लिए आते हैं. आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2020-21 में क़रीब एक करोड़ 50 लाख मरीज़ ओपीडी के लिए आए, वहीं इस दौरान क़रीब पाँच लाख लैब टेस्ट किए गए.
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक़ आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक प्रोजेक्ट को साल 2018 में 93 करोड़, 2019 में 100 करोड़, 2020 में 150 करोड़ और साल 2021 में 345 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर प्राचीन राजेशराव का मानना है पूरे देश को अच्छे प्राइमरी हेल्थ सिस्टम की ज़रूरत है.
राजेशराव कहते हैं, “मोहल्ला क्लीनिक के नाम से दिल्ली में एक बड़ा नेटवर्क स्थापित हुआ है. जनता को प्राइमरी हेल्थ केयर मिल रही है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि लोकल स्तर पर ही बीमारियों का इलाज हो पाता है और बड़े अस्पतालों पर बोझ कम पड़ता है.”
वह कहते हैं, “सुधार की गुंजाइश हमेशा होती है लेकिन आइडिया के तौर पर इस तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं किसी भी समाज के लिए बेहतर हैं. इनकी मदद से नई बीमारियों को समय से पकड़ा जा सकता है.”
राजेशराव कहते हैं, “मोहल्ला क्लीनिक की जगह अगर दिल्ली सरकार दस बड़े अस्पताल खड़े कर देती तो मैं उसे अच्छा क़दम नहीं मानता. ये बात ज़रूर है कि मोहल्ला क्लीनिक की संख्या और वहां काम करने वाले डॉक्टरों को बढ़ाना चाहिए.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित