इमेज स्रोत, Getty Images
दिल्ली में दिवाली के बाद ख़राब एयर क्वालिटी को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में ज़ुबानी जंग छिड़ गई है.
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली सरकार से पूछा है कि जब एयर क्वालिटी इतनी ख़राब हो गई थी तो सीएम रेखा गुप्ता सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए ‘क्लाउड सीडिंग’ के ज़रिए कृत्रिम बारिश क्यों नहीं करवाई.
लेकिन दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि क्लाउड सीडिंग के लिए पहले क्लाउड आता है, तब सीडिंग होती है.
सोमवार को दिवाली की रात राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में एयर क्वालिटी काफ़ी गिर गई थी.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
मंगलवार सुबह साढ़े पांच बजे एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 346 दर्ज किया गया था. दिल्ली शहर के ज़्यादातर हिस्से में एक्यूआई ‘रेड ज़ोन’ में यानी ख़तरनाक स्थिति में आ गए थे.
301 से ऊपर का एक्यूआई इमरजेंसी की स्थिति मानी जाती है और इसमें लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर ख़तरा हो सकता है.
आम आदमी पार्टी ने क्या आरोप लगाए
इमेज स्रोत, Getty Images
आप नेता और दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि आर्टिफ़िशियल वर्षा क्यों नहीं कराई गई? क्या भाजपा सरकार लोगों को बीमार करना चाहती है?
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि क्या भाजपा का दिवाली के अगले दिन आर्टिफ़िशियल वर्षा कराकर प्रदूषण ठीक करने का दावा झूठा था?
साथ ही आरोप लगाया कि पटाखा लॉबी से भी दिल्ली सरकार की साठगांठ है, वरना पुलिस की मौजूदगी में प्रतिबंधित पटाखे नहीं बिकते.
क्लाउड सीडिंग पर दिल्ली के मंत्री ने क्या कहा?
इमेज स्रोत, Getty Images
क्लाउड सीडिंग पर दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, ”जो लोग हमसे पूछ रहे हैं कि हम क्लाउड सीडिंग क्यों नहीं करवा रहे हैं? मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि क्लाउड सीडिंग में पहले बादल आते हैं और फिर सीडिंग होती है. सीडिंग तभी हो सकती है जब बादल हों. जिस दिन बादल होंगे, हम सीडिंग करवाएंगे और बारिश भी होगी.”
सिरसा ने कहा, “मैं आपको दिखाना चाहता हूं कि कैसे आम आदमी पार्टी जानबूझकर पंजाब में किसानों को चेहरा ढककर पराली जलाने पर मजबूर कर रही है ताकि इस पराली का असर दिल्ली पर हो.”
“आप नेता अरविंद केजरीवाल ने दस साल मुख्यमंत्री रहते हुए पंजाब के किसानों को गालियां दीं. लेकिन अब सिर्फ़ सात महीनों में हमने एक ऐसी बीमारी पर काम करना शुरू किया है जो पिछले 27 वर्षों से थी. अब इनके पेट में दर्द हो रहा है.”
क्लाउड सीडिंग तकनीक क्या होती है?
‘क्लाउड सीडिंग’, दो शब्द क्लाउड और सीडिंग से बना है.
क्लाउड का अर्थ है- बादल और सीडिंग का मतलब है- बीज बोना.
सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन आसान शब्दों में कहें तो बादलों में बारिश के बीज बोने की प्रक्रिया को क्लाउड सीडिंग कहते हैं.
ध्यान देने वाली बात ये है कि बीज के रूप में सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम क्लोराइड और सोडियम क्लोराइड जैसे पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है.
इन पदार्थों को एयरक्राफ्ट आदि की मदद से बादलों में छिड़का जाता है.
ये पदार्थ बादल में मौजूद पानी की बूंदों को जमा देती हैं, जिसके बाद बर्फ़ के टुकड़े दूसरे टुकड़ों के साथ चिपक जाते हैं और बर्फ़ के गुच्छे बन जाते हैं. ये बर्फ के गुच्छे ज़मीन पर गिरते हैं.
क्लाउड सीडिंग का एक लंबा इतिहास है.
अमेरिकी वैज्ञानिक विंसेंट जे. शेफ़र ने क्लाउड सीडिंग का आविष्कार किया था.
इसकी जड़ें 1940 के दशक में मिलती हैं, ख़ासतौर पर उस दौरान अमेरिका में इस पर काम हुआ.
आआईटी कानपुर के प्रोफ़ेसर एस.एन त्रिपाठी ने बीबीसी को बताया था, ”जहां कोई भी बादल नहीं है, वहां आप सीडिंग नहीं कर सकते. तो सबसे पहले आप देखते हैं कि बादल हैं या नहीं, हैं तो किस ऊंचाई पर हैं, उनके और वातावरण की विशेषताएं क्या हैं. फिर पूर्वानुमान के सहारे या माप कर, ये पता लगाते हैं कि बादल में कितना पानी है.”
“इसी के बाद बादलों में उपयुक्त स्थानों पर एक विशेष तरह का केमिकल (साल्ट या साल्ट का मिश्रण) डालते हैं. ये केमिकल बादल के माइक्रोफिजिकल प्रोसेस (यानी बारिश के कण, बर्फ़) को तेज़ कर देता है. जिसके बाद बरसात के रूप में ये ज़मीन पर गिरती है.”
बादलों को इलेक्ट्रिक शॉक देने की भी एक तकनीक है, जिसके इस्तेमाल से बारिश करवाई जा सकती है. इसमें ड्रोन तकनीक की मदद से बादलों को इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है.
यूएई ने इस तकनीक का इस्तेमाल कर साल 2021 में कृत्रिम वर्षा करवाई थी.
प्रदूषण नियंत्रण में यह तरीक़ा कितना कारगर?
इमेज स्रोत, Getty Images
इसराइल नियमित तौर पर कृत्रिम वर्षा करवाता है क्योंकि वहां प्राकृतिक बारिश बहुत कम होती है. आज के वक़्त में संयुक्त अरब अमीरात भी रिसर्च प्रोग्राम और ऑपरेशनल प्रोग्राम में यूज़ करता है.
चीन ने साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक्स के दौरान एयरक्राफ्ट और ग्राउंड बेस्ड गन की मदद से क्लाउड सीडिंग की. जिसके बाद उन्हें प्रदूषण को नियंत्रित करने में काफ़ी मदद मिली.
भारत की बात करें तो यहां पहले भी क्लाउड सीडिंग होती रही है लेकिन अब तक यह विदेशी एयरक्राफ्ट, विदेश के सीडिंग टूल और विदेश के ही वैज्ञानिक, इंजीनियर की मदद से किया गया है.
पहली बार आईआईटी कानपुर ने अपना साल्ट यानी केमिकल डेवेलप किया है, एयरक्राफ़्ट आईआईटी कानपुर का है और सीडिंग टूल भी हमने खुद ही तैयार किए हैं. तो दिल्ली में अगर इसको इस्तेमाल में लाया जाएगा तो यह पूर्ण रूप से स्वदेशी होगा.
और जहां तक बात इसके कारगर साबित होने की है तो ये सीडिंग पर निर्भर करता है.
अगर सीडिंग सही तरीके से हुई तो हर लिहाज़ से ये कारगर साबित होगी क्योंकि एक बड़े क्षेत्र में जब बरसात होती है तो प्रदूषण अपने आप नियंत्रित हो जाता है.
पहले कब-कब प्रयोग में आया?
इमेज स्रोत, Getty Images
मौजूदा समय में कई देश इसका इस्तेमाल करते हैं.
साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र के मौसम से जुड़े संगठन ने अनुमान ज़ाहिर किया कि 50 से ज़्यादा देश क्लाउड सीडिंग को अब तक आज़मा चुके हैं.
इनमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, इथियोपिया, जिंबाब्वे, चीन, अमेरिका और रूस शामिल हैं.
यहां तक की भारत ने भी इसका प्रयोग किया हुआ है.
लेकिन भारत की ही तरह प्रदूषण की मार झेल रहा चीन इसका सबसे अधिक इस्तेमाल करता है.
साल 2008 में, बीजिंग में आयोजित की गई ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों से पहले चीन ने पहली बार क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया था.
वहीं भारत ने साल 1984 में इसका पहली बार इस्तेमाल किया. तमिलनाडु तब भयंकर सूखे का सामना कर रहा था. जिसके बाद तत्कालीन तमिलनाडु सरकार ने 1984-87, 1993-94 के बीच क्लाउड सीडिंग तकनीक की मदद ली.
साल 2003 और 2004 में कर्नाटक सरकार ने भी क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया. उसी साल महाराष्ट्र सरकार ने भी इसकी मदद ली.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.