चुनावों में महिला वोटर को लेकर अब सियासी दल गंभीर नज़र आने लगे हैं और उनके वोट हासिल करने के लिए अलग-अलग रणनीति बनाने लगे हैं. हाल में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में ‘लाडली बहना योजना’ का नतीजों पर असर देखने को मिला.
दिल्ली में महिलाओं के लिए मुफ़्त बस सेवा की एक योजना चल रही है. इसे ‘पिंक पास’ प्रोग्राम कहा जाता है. सवाल है, क्या आगामी विधानसभा चुनाव में वोट देते वक़्त महिला मतदाताओं के लिए यह मुद्दा होगा?
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है. ज़ाहिर है, चुनाव के वक़्त उनके वादों और उन वादों की ज़मीनी हक़ीक़त की पड़ताल भी होगी.
हमने महिलाओं की ज़िंदगी में ‘पिंक पास’ का असर देखने की कोशिश की.
आत्मनिर्भर बनाने में मदद
कोहरे की परत से ढकी 10 जनवरी की एक सर्द सुबह. नंद नगरी की संकरी गलियों से 24 साल की भावना बस स्टॉप की ओर बढ़ रही हैं. इस इलाक़े में राजधानी का बड़ा कामकाजी वर्ग रहता है.
स्टॉप पर महिलाओं की एक टोली बस का इंतज़ार कर रही है. भावना भी इनमें शामिल हो जाती हैं. उसे बस नंबर- 234 पकड़कर सीलमपुर जाना है.
भावना के माता-पिता की मौत हो चुकी है. इसके बाद उन्होंने घर से बाहर निकलकर काम करने का फ़ैसला किया. अब वह कढ़ाई का काम करती हैं. वे इतने दिनों में दिल्ली की बसों में यात्रा करने में माहिर हो गई हैं.
भावना बताती हैं, “पहले मैं घर से बाहर निकली ही नहीं थी. मजबूरी में मैंने काम करना शुरू किया. मुझे लगता था कि अगर बाहर जाकर काम करने लगी तो शायद पैसे नहीं बचा पाऊँगी. यहाँ रहने वाले लोगों की औसतन 10 हज़ार रुपये महीने की कमाई होती है. अगर हम बस या आने-जाने पर ख़र्च करने लगे तो कोई बचत नहीं होगी.”
उनका कहना है, “इस मुफ़्त बस यात्रा के कारण ही मेरे लिए आत्मनिर्भर होना मुमकिन हो पाया.”
हाल ही में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी है. अब वह नई नौकरी की तलाश में और इंटरव्यू देने के लिए शहर में जगह-जगह जा रही हैं. मुफ़्त बस सेवा की वजह से कहीं भी आने-जाने के बारे में उन्हें सोचना नहीं पड़ रहा है.
भावना की बातों और दिल्ली सरकार की योजना से यह तो समझ आ रहा है कि दिल्ली का क्षेत्रफल भले ही 1,483 वर्ग किलोमीटर हो, लेकिन महिलाओं के लिए रोज़गार पर जाने की कोई सीमा नहीं रही.
वो दिल्ली के किसी भी इलाक़े में काम के लिए आ-जा सकती हैं.
आने-जाने की आज़ादी
दिल्ली चुनाव के प्रचार के दौरान ‘आप’ और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दोनों महिलाओं के लिए विशेष योजनाएँ लागू करने का वादा कर रही हैं.
मुफ़्त बिजली और पानी के अलावा महिलाओं तक कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार और उनके वितरण का मुद्दा राजनीतिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण हो गया है.
आम आदमी पार्टी ने दिसंबर में राजधानी में ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना’ की राशि बढ़ाने की घोषणा भी की है.
आप ने यह घोषणा की थी कि अगर वह दिल्ली विधानसभा चुनाव फिर जीतती है तो इस योजना के तहत मिलने वाले भत्ते को 1,000 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये कर देगी.
23 दिसंबर को इस योजना के तहत पात्र लाभार्थियों का पंजीकरण भी शुरू कर दिया गया था.
मुफ़्त बस यात्रा योजना
‘आप’ की ध्यान आकर्षित करने वाली योजनाओं में महिलाओं के लिए मुफ़्त बस यात्रा योजना भी शामिल है. इसे पाँच साल पहले 2019 में शुरू किया गया था.
इस योजना के तहत महिलाएँ दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) और दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट सिस्टम (डीआईएमटीएस) द्वारा संचालित सभी एसी और नॉन-एसी बसों में मुफ़्त यात्रा कर सकती हैं. दिल्ली सरकार का दावा है कि अब तक 150 करोड़ से ज्यादा ‘पिंक टिकट’ बिक चुके हैं.
जैस्मिन शाह ‘आप’ के सदस्य और ‘दिल्ली मॉडल’ किताब के लेखक हैं. उन्होंने मुफ़्त बस की नीति बनाने में मदद की है.
वो अपने एक लेख में लिखते हैं, “आशोका विश्वविद्यालय और शिव नादर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक स्वतंत्र अध्ययन किया था. यह अध्ययन दिखाता है कि इस योजना के कारण समाज के हाशिए पर रहने वाली महिलाओं के लिए रोज़गार में 24 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. इस योजना का लाभ उन महिलाओं को हुआ है, जो किफ़ायती सार्वजनिक परिवहन से सबसे अधिक लाभ उठा सकती हैं.”
प्रोफ़ेसर डॉ. रितिका खेड़ा एक मशहूर विकास अर्थशास्त्री हैं. उनका कहना है कि वह इन नीतियों को लोक-लुभावन नहीं मानतीं. वो इसे एक सही दिशा में उठाया गया कदम मानती हैं. यह लोगों के अधिकार से जुड़ा है.
रितिका कहती हैं, “महिलाओं के लिए सार्वजनिक बसों में सब्सिडी या रियायती टिकटों का एक बहुत लंबा इतिहास है. अन्य राज्यों ने भी यह कदम उठाया है. इसका आर्थिक महत्व भी है. ”
”कार्यबल में महिलाओं की संख्या बहुत कम है. अगर वे अपनी ख़ुद की कमाई नहीं कर रही हैं तो वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हैं. इसीलिए भले ही उनकी अपनी आय न हो, मुफ़्त बस यात्रा उन्हें कम से कम आने-जाने की कुछ आज़ादी तो देती है.”
”इसके अलावा, जो लोग बसों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें से ज्यादातर स्कूल या कॉलेज जाने वाली युवा महिलाएँ होती हैं. इस लिहाज़ से यह उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण का भी एक तरह से सब्सिडीकरण है. शायद इससे महिलाओं की अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ाने में मदद मिलेगी.”
ऐसी ही एक महिला हैं 28 साल की सुनीता. वे दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाक़े की रहने वाली हैं. सुनीता एक समाजसेवी और लेखिका भी हैं.
वह कहती हैं, “जब मैंने कॉलेज में दाखिला लिया था तब बसें मुफ़्त नहीं थीं. मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में दाख़िला मिला था. यह शहर के दूसरे हिस्से में था. मेरे परिवार को मुझे वहाँ भेजने की इच्छा नहीं थी. वे मेरी सुरक्षा के बारे में चिंतित थे. साथ ही यह भी सोचते थे कि मुझे वहाँ भेजना बहुत महँगा पड़ेगा.”
“आने-जाने की आज़ादी ने मुझे सशक्त बनाया… मुझे बाहर जाने का आत्मविश्वास मिला. मैं बैंक भी जाती थी. घर के काम करती थी. उसके साथ-साथ, मैं शहर भी घूम पाई. मुझे बाहर जाने की स्वतंत्रता भी मिली.”
हालाँकि सुनीता कहती हैं कि मुश्किलें अभी भी बहुत सी हैं.
महिलाएँ हैं, मुफ़्त सवारी नहीं
सुनीता एक पेड़ के पास खड़ी हैं. इसके पास सुंदर नगरी बस स्टॉप का लेबल लगा है. लेकिन यहाँ स्टॉप का किसी तरह का ढाँचा मौजूद नहीं है.
सुनीता ध्यान दिलाती हैं, “इस योजना ने बसों को सुलभ ज़रूर बना दिया है, लेकिन बसों को चलाने वाले लोग अभी भी संवेदनशील नहीं हैं. वे महिलाओं को मुफ़्त सवारी करने वालों के रूप में देखते हैं. वे जब समूह में महिलाएँ देखते हैं तो अक्सर बसें रोकते नहीं हैं.”
हालाँकि, वो कहती हैं, ”लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा मुद्दा अब भी सुरक्षा है.”
सुनीता याद करती हैं कि कैसे एक बार बस में एक मर्द ने उनके साथ शारीरिक बदतमीज़ी की थी.
वह कहती हैं, “मैं कभी नहीं भूलूँगी. यह हमेशा मेरे दिमाग में रहेगा. बसें सशक्त कर सकती हैं, लेकिन सुरक्षा अभी भी एक चिंता का विषय है.”
सुधार की और ज़रूरत
मुफ़्त बस यात्रा योजना ने लड़कियों और महिलाओं की गतिशीलता बढ़ाई है. उनके खर्चों को बचाने में मदद की है. हालाँकि, दूसरी तरफ एक बड़ी संख्या में महिलाएँ बसों में असुरक्षित भी महसूस करती हैं.
उनमें से कुछ का कहना है कि उन्हें मुफ़्त यात्रा करने के लिए पुरुष अक्सर अपमानित करते हैं. कई बार उन्हें बसों में चढ़ने नहीं दिया जाता.
स्वयंसेवी संगठन ग्रीनपीस इंडिया ने साल 2024 में ‘राइडिंग द जस्टिस रूट’ नाम की एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें 500 महिलाओं का सर्वेक्षण किया गया था.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, शहर की 80 फ़ीसदी से ज्यादा महिलाओं ने कहा कि उनके लिए बसें निर्धारित स्थान पर नहीं रुकतीं.
विद्या एक फैक्ट्री में काम करती हैं. वे गगन थिएटर बस स्टैंड से मौजपुर जाने के लिए बस पकड़ती हैं.
बस का इंतजार करते हुए वह कहती हैं, “मैं आधे घंटे से इंतजार कर रही हूँ, जब बस ड्राइवर महिलाओं को देखते हैं तो वह बस नहीं रोकते हैं. मेरा यह हमेशा का संघर्ष रहता है कि मैं समय पर कैसे पहुँच सकूँ.”
यही नहीं, ग्रीनपीस की रिपोर्ट के अनुसार 75 प्रतिशत से अधिक महिलाएँ दिल्ली की बसों में रात के समय यात्रा करते हुए असुरक्षित महसूस करती हैं.
दीपाली टोंक ग्रीनपीस इंडिया के साथ काम करती हैं. वह कहती हैं, “इस योजना ने निश्चित रूप से सकारात्मक बदलाव किए हैं. महिलाओं की मोबिलिटी और सार्वजनिक स्थलों तक उनकी पहुँच के संदर्भ में एक स्थायी प्रभाव डाला है.”
दीपाली बताती हैं, ”हालाँकि, हमने यह सुझाव दिया है कि दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन में महिला स्टाफ़ की संख्या बढ़ाई जाए. उचित बस स्टॉप बनाए जाएँ. बसों में मार्शल हों. ये सब महिलाओं के लिए दिल्ली में यात्रा के अनुभव को पूरी तरह से बदल सकती हैं.”
दूसरे राज्यों ने भी दिल्ली सरकार की तरह महिलाओं के लिए मुफ़्त बस यात्रा की योजनाएँ शुरू की हैं.
तमिलनाडु, पंजाब और केरल में यह योजना साल 2021 में शुरू हुई. वहीं कर्नाटक में इसे साल 2023 में शुरू किया गया.
ट्रांस महिलाओं के साथ भेदभाव
तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फरवरी 2024 में घोषणा की थी कि दिल्ली सरकार जल्द ही ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए भी मुफ़्त बस यात्रा योजना शुरू करेगी. इसके तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को राज्य संचालित बसों में यात्रा करते समय किराया नहीं देना होगा.
हालाँकि, इस घोषणा का स्वागत करते हुए ट्रांसजेंडर समुदाय ने ज़मीनी वास्तविकता की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की है.
ट्वीट (टीडब्ल्यूईईटी) फाउंडेशन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सशक्त बनाने और उन्हें कौशल सिखाने का काम करता है. यह संस्था ट्रांस महिलाओं को ट्रेनिंग देती है. उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करती है.
बीबीसी हिंदी ने इस संगठन में कोर्स करने वाली युवा ट्रांस महिलाओं उर्वी और दीपिका से बात की.
उर्वी ने बताया, “मैं नोएडा से आती हूँ. हरकेश नगर में फैशन डिज़ाइनिंग कोर्स करती हूँ. मैं बस से आती-जाती हूँ. ट्रांस महिलाओं के लिए अभी भी बसों में सफ़र बहुत मुश्किल है.”
वो कहती हैं कि ट्रांस व्यक्तियों को अपनी पहचान की वजह से भी कई बार दिक़्क़त होती है. उनके कहने से कोई उन्हें ट्रांस नहीं मानता, बल्कि उन्हें अपने हाव-भाव से ज़ाहिर करने पर मजबूर होना पड़ता है.
इनसे बातचीत में एक बड़ा मुद्दा शारीरिक बदतमीज़ी और भेदभाव का सामने आया. ट्रांस महिलाओं को अक्सर इनका सामना करना पड़ता है.
सौम्या गुप्ता ट्वीट फ़ाउंडेशन की संस्थापक सदस्य हैं. वे इस मुद्दे पर आगे का रास्ता सुझाती हैं. उनका कहना है, “हम इस योजना का स्वागत करते हैं. हालाँकि, हमारे कुछ सुझाव भी हैं—जैसे, सीटों का आरक्षण. ट्रांस लोगों के लिए सीटें आरक्षित की जानी चाहिए ताकि वे यात्रा करते समय सुरक्षित महसूस कर सकें.”
”इसके अलावा, बस स्टॉप पर शौचालयों की सख़्त ज़रूरत है. शौचालयों के बिना सड़क पर यात्रा करना बेहद मुश्किल है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने की सख़्त आवश्यकता है.”
इस तरह, जहाँ दिल्ली सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए मुफ़्त बस यात्रा योजना का ऐलान किया है, वहीं समुदाय के सशक्तीकरण और सुरक्षा से जुड़े कई गंभीर मुद्दे और सुझाव सामने आए हैं.
यह इस योजना के असरदार तरीक़े से लागू होने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.