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हमास के नेताओं को निशाना बनाकर क़तर की राजधानी दोहा में हुए इसराइली हमले के बाद अरब देशों के बीच नेटो जैसा सैन्य गठबंधन बनाने की क़वायद ज़ोर पकड़ती दिख रही है.
दोहा में अरब और इस्लामिक देशों का एक आपातकालीन शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया है, जिसमें कल सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी.
आज कई देशों के शीर्ष नेता भी इस शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे जिनमें ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजश्कियान, इराक़ के प्रधानमंत्री मुहम्मद शिया-अल सूडानी और फ़लस्तीन प्राधिकरण के राष्ट्रपति महमूद अब्बास का भी नाम है.
और इसी दौरान मिस्र की ओर से एक प्रस्ताव ने फिर से एक संयुक्त सुरक्षा बल की चर्चा को आगे बढ़ाया है.
द नेशनल अख़बार के अनुसार, मिस्र ने प्रस्ताव में नेटो जैसे एक सशस्त्र बल बनाए जाने की बात कही है, जिसकी अध्यक्षता अरब लीग के 22 देशों में बारी-बारी से सौंपी जाएगी और पहला अध्यक्ष मिस्र का होगा.
द न्यू अरब मीडिया के अनुसार, इस तरह का प्रस्ताव पहली बार 2015 में आया था, जब यमन में गृह युद्ध शुरू ही हुआ था और हूती विद्रोहियों ने सना पर कब्ज़ा कर लिया था.
उधर, दोहा हमलों के बाद तुर्क़ी में भी बेचैनी बढ़ी है.
तुर्की के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता रियर एडमिरल ज़ेकी अक्तुर्क ने चेताते हुए यह कहा कि ‘इसराइल अपने अंधाधुंध हमलों को बढ़ा सकता है, जैसा उसने क़तर में किया. वह ख़ुदको समेत इस पूरे क्षेत्र को आपदा की ओर धकेल सकता है.’
क्या है मिस्र का प्रस्ताव
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मिस्र की ओर से दिए गए प्रस्ताव में सेना, वायु सेना और कमांडो यूनिट में बेहतर तालमेल स्थापित करने के साथ ही ट्रेनिंग, लॉजिस्टिक्स और मिलिटरी सिस्टम को एकीकृत करने का प्रस्ताव है.
साथ ही सैन्यबल के इस्तेमाल की इजाज़त सदस्य देशों और सैन्य नेतृत्व से सलाह के आधार पर दी जाएगी.
लेबनान के मीडिया आउटलेट अल अख़बार के अनुसार, मिस्र ने प्रस्ताव में कहा है कि वो इस तरह के सैन्य गठबंधन में 20,000 सैनिकों का योगदान करेगा, जबकि सहयोग के मामले में सऊदी अरब दूसरा सबसे बड़ा देश होगा.
इसे लेकर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल सीसी ने कई देशों से बात की है और दोहा शिखर सम्मेलन से इतर, इस प्रस्ताव पर बातचीत की संभावना जताई जा रही है.
इस तरह के सैन्य तालमेल को पहले भी इस इलाक़े के देशों ने देखा है, जैसे पहला खाड़ी युद्ध हो या इसराइल के ख़िलाफ़ लड़ी गई कई जंग हों.
अरब और इस्लामिक देशों के बीच इस तरह का एक सैन्य गठबंधन- सेंट्रल ट्रीटी आर्गेनाइजेशन- पहले भी मौजूद रहा है जो बग़दाद संधि के नाम से जाना जाता है. इसका अस्तित्व साल 1955 से 1979 के बीच था.
दोहा में इसराइली हमले को लेकर अरब देशों की ओर से तीख़ी प्रतिक्रिया आई थी और इस क्षेत्र में इसराइल से राजनयिक संबंध रखने वाले एकमात्र देश यूएई ने भी इसकी आलोचना की थी.
क़तर ने कहा- इसराइल को दंडित किया जाए
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बीबीसी फ़ारसी सेवा के मुताबिक़, सोमवार को होने वाले शिखर सम्मेलन से पहले क़तर के प्रधानमंत्री ने कहा, “अब समय आ गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपने दोहरे मापदंड को समाप्त करे और इसराइल को उसके किए गए सभी अपराधों के लिए दंडित करे.”
उन्होंने कहा, “इसराइल को यह जान लेना चाहिए कि हमारे भाईचारे वाले लोगों, फ़लस्तीनियों के साथ उसका विनाशकारी युद्ध, जिसका उद्देश्य उन्हें उनकी भूमि से खदेड़ना है, सफल नहीं होगा.”
9 सितंबर को दोहा में हुए इसराइली हमले को लेकर क़तर पहले ही कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज करा चुका है और फिर से कहा है कि वह अब पूरी तरह सतर्क है और किसी भी हालात के लिए तैयार है.
क़तर के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि दोहा हमले पर एक मसौदा प्रस्ताव को लेकर शिखर सम्मेलन में चर्चा होगी.
हमास के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य बासेम नईम ने कहा कि समूह को उम्मीद है कि शिखर सम्मेलन के नतीजे में “दृढ़ और एकीकृत अरब-इस्लामी रुख़” निकलेगा और इसराइल के मामले में “स्पष्ट और ख़ास” उपाय किए जाएंगे.
क़तर में अमेरिका का इस इलाक़े का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है. इसके अलावा क़तर अमेरिका और मिस्र के साथ-साथ इसराइल और हमास के बीच मध्यस्थता में अहम भूमिका निभाता है.
इस समय इसराइल के दौरे पर गए अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने दोहा हमले को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की लेकिन साथ ही उन्होंने दोहराया कि इससे अमेरिका-इसराइल के मज़बूत संबंधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.
क़तर को हमले से सूचना से जुड़े व्हाइट हाउस प्रवक्ता कैरोलिन लेविट के बयान पर पहले ही विवाद हो चुका है. व्हाइट के अनुसार, ‘हमले के पहले क़तर को सूचना दे दी गई थी’, लेकिन क़तर के प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें ‘यह सूचना हमले के 10 मिनट बाद मिली.
‘अरब नेटो’ कितना संभव
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अरब देशों के बीच नेटो जैसा सैन्य गठबंधन खड़ा करने का विचार बहुत समय से है लेकिन इस पर अमल को लेकर जानकार बहुत सहमत नहीं हैं.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजॉल्यूशन के फ़ैकल्टी मेंबर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं, “अरब नेटो का आइडिया पहले भी चला था और सऊदी अरब ने इस पर काफ़ी ज़ोर दिया था. यहां तक कि पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष राहील शरीफ़ को इसका अध्यक्ष भी बनाया गया था. लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई.”
उनके अनुसार, “सभी देशों के सुरक्षा हित इतने अलग-अलग हैं कि उनमें सर्वसम्मति बनाना एक टेढ़ी खीर है. जैसे सऊदी अरब और ईरान क्या आपस के मतभेदों को मिटाकर साथ आ पाएंगे. क्योंकि अगर एक संयुक्त सैन्य गठबंधन बनना है तो इंटेलिजेंस शेयरिंग भी होगी.”
हालांकि बीते कुछ दिनों में सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंधों को सामान्य करने की कोशिशें हुई हैं, लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि बाकी देशों के बीच एक क्षेत्रीय गठबंधन का कोई ठोस क़दम उठाया जा सकेगा.
प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि ‘यह प्रस्ताव मिस्र की ओर से आया है, देखना होगा कि क्या वह इस स्थिति में है. और पश्चिमी देशों ख़ासकर अमेरिका और नेटो की ओर से इस तरह की किसी ग्रुपिंग को अमल में लाने दिया जाएगा.’
उनका कहना है कि आइडिया के तौर पर अरब नेटो बनाने का विचार पहले भी था और आगे भी रहेगा लेकिन यह अमल में उतरेगा, इस पर बहुत सारी आशंकाएं हैं.
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ मुदस्सिर क़मर का भी यही मानना है कि अरब देशों के पास कई बहुपक्षीय संगठन हैं, चाहे अरब लीग हो, ओआईसी हो या जीसीसी हो.
इसके अलावा सऊदी अरब के नेतृत्व में एक चरमपंथ विरोधी सैन्य संगठन है लेकिन असल समस्या है अरब देशों के बीच आपसी मतभेदों से निपटना.
मुदस्सिर कमर कहते हैं, “इस तरह के किसी गठबंधन के लिए इसराइल को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल होगा, जिसके साथ अभी कई अरब देशों के साथ तनाव और टकराव की स्थिति है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित