इमेज कैप्शन, साल 2011 में आइफ़ा पुरस्कार में धर्मेंद्र को लाइफ़ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाज़ा गया था
हिन्दी फ़िल्म जगत की नामी-गिरामी हस्तियों में से एक धर्मेंद्र अब नहीं रहे. 89 साल की उम्र में उनका मुंबई में निधन हो गया. वो पिछले कुछ समय से काफ़ी बीमार चल रहे थे.
रोमांटिक हीरो से लेकर ही-मैन तक की छवि वाले धर्मेंद्र ने न जाने कितनी हिट फ़िल्में दीं. इनमें से कई ने गोल्डन जुबली मनाई, तो कई ने सिल्वर जुबली.
धर्मेंद्र के खाते में ‘सत्यकाम’ के साथ-साथ ‘फूल और पत्थर’ जैसी फ़िल्में रहीं, तो ‘चुपके-चुपके’ और ‘शोले’ भी.
लेकिन अपने शानदार करियर में उन्हें एक बात का हमेशा अफ़सोस रहा और वो था बेस्ट एक्टर का फ़िल्मफ़ेयर न मिलना.
फ़िल्मफ़ेयर लोकप्रिय फ़िल्म पुरस्कारों के लिए मशहूर है.
इस पुरस्कार का लंबा और पुराना इतिहास रहा है. अब तो कई पुरस्कार आ चुके हैं, लेकिन फ़िल्मफ़ेयर की लोकप्रियता अब भी क़ायम है.
कई बार दर्द झलका
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इमेज कैप्शन, धर्मेंद्र को कभी भी एक्टिंग के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार नहीं मिला
धर्मेंद्र की ये पीड़ा कई मंचों से झलकती थी. वो कई इंटरव्यू में भी अपनी इस कसक का ज़िक्र ज़रूर करते थे.
तो बात है वर्ष 1997 के 42वें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार की. शाहरुख़ ख़ान इस पुरस्कार समारोह की एंकरिंग कर रहे थे.
लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड देने के लिए मंच पर दिलीप कुमार और सायरा बानो को बुलाया गया.
उन्होंने लिफ़ाफ़ा खोला और धर्मेंद्र का नाम पुकारा गया. वो धर्मेंद्र जो वर्षों से पुरस्कार पाना चाहते थे, ख़ुशी से झूम उठे. उन्हें ख़ुशी तो बहुत हुई, लेकिन साथ ही वो अपने दर्द को भी नहीं रोक पाए.
मंच पर पहुँचने के बाद धर्मेंद्र ने लंबा संबोधन दिया. उन्होंने मौजूद लोगों से इस बात के लिए माफ़ी भी मांगी कि वो इतना लंबा बोल रहे थे. लेकिन उनका कहना था कि वो अपने वर्षों के जज़्बात को बयां करना चाहते हैं.
पूरा हॉल लंबे समय तक धर्मेंद्र को सुनता रहा. बीच-बीच में तालियाँ बजती रहीं, ठहाके गूँजते रहे और मंच पर मौजूद दिलीप कुमार और सायरो बानो भी उन्हें संयम से सुनते रहे.
‘अगर फ़िल्मफ़ेयर न होता तो शायद मैं इंडस्ट्री में न आ पाता’
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इमेज कैप्शन, साल 2012 में धर्मेंद्र को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था
धर्मेंद्र ने कहा, “मैं ख़ुशनसीब हूँ कि फ़िल्मफ़ेयर ने मुझे इस क़ाबिल समझा. फ़िल्मफ़ेयर के साथ मेरे कई जज़्बात हैं. अगर फ़िल्मफ़ेयर नहीं होता तो शायद मैं इस इंडस्ट्री में नहीं आ पाता.”
धर्मेंद्र ने बताया कि कैसे फ़िल्मफ़ेयर ने हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में उनकी एंट्री का रास्ता खोला था. उन्होंने ये भी बताया कि कैसे उन्होंने फ़िल्मफ़ेयर की नए कलाकारों की तलाश वाला आवेदन भरा और उसमें सफल रहे और फिर आज का धर्मेंद्र बना.
उन्होंने फ़िल्मफ़ेयर को क्रेडिट तो दिया, लेकिन साथ ही अपनी निराशा भी जता दी.
उन्होंने कहा, “मुझे 37 साल हो गए. मैं हर साल सूट सिलवाता था. उसकी मैचिंग टाई ढूँढता था कि शायद मुझे अवॉर्ड मिल जाए. लेकिन नहीं मिला.”
ये कहते हुए धर्मेंद्र हँस रहे थे. वहाँ मौजूद लोग भी हँस रहे थे. लेकिन इस हँसी के पीछे धर्मेंद्र की बड़ी पीड़ा थी, जिसे उन्होंने आगे बयां किया.
धर्मेंद्र ने कहा, “मैंने सिक्सटीज़ में ‘सत्यकाम’ की, ‘अनुपमा’ की, ‘फूल और पत्थर’ की. बहुत सारी फ़िल्में कीं. बहुत सी फ़िल्में गोल्डन जुबली हुईं, सिल्वर जुबली हुईं, लेकिन मुझे अवॉर्ड नहीं मिला. उसके बाद मैंने सूट सिलवाने बंद कर दिए. मैंने सोचा कि टीशर्ट पहनता हूँ, बुला लेंगे तो ऐसे ही चला जाऊँगा. फिर भी मुझे अवॉर्ड नहीं मिला.”
धर्मेंद्र ने अपने जज़्बात बयां करना जारी रखा और कहा कि आज 37 साल बाद उन्हें ये ट्रॉफ़ी मिली है.
उन्होंने कहा, “मैं इस ट्रॉफ़ी में पिछले 15 साल की ट्रॉफ़ी देख रहा हूँ, जो मुझे मिलनी चाहिए थी. मैं इसी ट्रॉफ़ी में अपनी 15 ट्रॉफ़ियाँ देख रहा हूँ.”
धर्मेंद्र ने इस अवॉर्ड समारोह में ये भी कहा था कि वो फ़िल्मफ़ेयर पाने की कोशिश जारी रखेंगे. हालाँकि धर्मेंद्र के लिए एक्टर के रूप में यही एकमात्र फ़िल्मफ़ेयर ट्रॉफ़ी साबित हुई.
हालाँकि वर्ष 1991 में फ़िल्म ‘घायल’ के लिए निर्माता के रूप में उन्हें ज़रूर बेस्ट फ़िल्म कैटेगरी में फ़िल्मफ़ेयर मिला था.
दिलीप कुमार ने जब तारीफ़ में क़सीदा पढ़ा
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इमेज कैप्शन, साल 2014 में दिलीप कुमार की आत्मकथा के विमोचन के मौक़े पर
वर्ष 1997 के इसी अवॉर्ड समारोह में धर्मेंद्र और दिलीप कुमार के बीच की चर्चित केमिस्ट्री खुलकर सामने आई. धर्मेंद्र और दिलीप कुमार ने एक-दूसरे के लिए अपने विचार खुलकर रखे.
अवॉर्ड हासिल करने के लिए मंच पर पहुँचे धर्मेंद्र ने दिलीप कुमार के पाँव भी छुए. फिर दिलीप कुमार ने धर्मेंद्र को लेकर अपनी भावनाएँ प्रकट कीं.
दिलीप कुमार ने कहा, “जब मैंने पहली बार धरम को देखा था और देखते ही मेरे दिल में उमंग पैदा हुई कि अल्लाह मियाँ ने मुझको ऐसा ही बनाया होता, तो क्या होता. इस क़दर ख़ूबसूरत, हसीन और सेहतमंद चेहरा, आँखों से रूहानी रोशनी टपकती थी. मैं समझता था कि ये शख़्स होगा, जो आगे चलकर तुमझे बाज़ी ले जाएगा. वक़्त तुम्हारे साथ है.”
उन्होंने आगे बताया, “ये इत्तिफ़ाक़ की बात है. पता नहीं धरम को याद हो या न याद हो. उस रोज़ चौदहवीं का चाँद था. मेरे दिल से भी दुआ निकली. एक बात की मुझे ख़ुशी होती है, जिसने धरम को इस ज़मीन से बाँधे रखा. इतनी शोहरत और नाम के बावजूद उनके पाँव ज़मीन पर हैं क्योंकि वे परिवार से जुड़े हैं.”
धर्मेंद्र ने भी अपने संबोधन में इस पर आभार जताया कि उन्हें ये अवॉर्ड ऐसे शख़्सियत से मिल रहा है, जिन्हें वे बहुत प्यार करते हैं. धर्मेंद्र ने ये भी बताया कि कैसे जब वो नए थे, दिलीप कुमार उनसे उतनी ही मोहब्बत से मिले थे.
धर्मेंद्र ने कहा कि दिलीप कुमार से उन्हें बहुत प्यार है, इतना प्यार है कि उन्हें ऐसा लगता है कि वे एक ही माँ की कोख से पैदा क्यों नहीं हुए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.