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वो दिसंबर 2005 की एक सुबह थी. मैं नया नया टीवी प्रोड्यूसर फ़िल्मी हस्तियों के इंटरव्यू वाले शो की शूटिंग के लिए दिल्ली से मुंबई पहुंचा था.
उस दिन अभिनेता बॉबी देओल ने इंटरव्यू के लिए सुबह साढ़े ग्यारह बजे का समय दिया था. कैमरा क्रू और एंकर के साथ हम लोग क़रीब एक घंटा पहले ही मुंबई के जुहू में धर्मेंद्र के मशहूर बंगले पर पहुंच गए.
एंकर बॉबी देओल से मिलने चली गईं, कैमरा टीम ने गाड़ी से लाइट्स और दूसरा सामान उतारना शुरू कर दिया.
लकड़ी के बड़े से गेट से अंदर आते ही सबसे पहले मेरी नज़र गेट के दूसरी तरफ फैले हरे-भरे लॉन पर पड़ी. कई पेड़ थे. उनके पास ही कई चमचमाती लग्ज़री कारें खड़ी थीं.
सबसे पीछे एक काली फ़िएट कार थी. हाल ही में पॉलिश की हुई लग रही थी. बड़ी ब्रांड्स वाली बाक़ी गाड़ियों के बीच वो फ़िएट किसी दूसरी दुनिया की चीज़ लग रही थी.
मैंने गार्ड से पूछा, “ये पुरानी फ़िएट किसकी है?”
वो मुस्कुराया, बोला, “धरम जी की पहली गाड़ी है साहब… आज भी चलती है.”
अपने लोगों के लिए ‘धरम जी’

गार्ड ने मुझे पास ही बने एक कमरे में बैठने को कहा. पुराने दौर की शाही गरिमा लिए हुए वो सुंदर ड्रॉइंग रूम था.
दीवारों पर लकड़ी के भारी पैनल थे. कमरे की एक दीवार पर युवा धर्मेंद्र की ख़ूबसूरत तस्वीर थी.
फ्रेम की हुई और भी कई नई-पुरानी तस्वीरें थीं. बीच में लकड़ी और कांच की बड़ी टेबल थी. बड़ा-सा कत्थई सोफ़ा था जिस पर तीन लोग बैठे हुए नाश्ता कर रहे थे. ब्रेड और ऑमलेट.
बात हुई तो उन्होंने बताया कि वो लुधियाना से आए हैं. मैंने सुना था कि पंजाब में धर्मेंद्र के गांव के लोग या उनकी जान पहचान वाले, ज़रूरत पड़ने पर मुंबई में सीधे धरम जी के घर पहुंच सकते हैं. उस दिन मैंने अपनी आँखों से ये देखा.
कुछ ही मिनट बाद धर्मेंद्र कमरे में दाख़िल हुए. क़रीब सत्तर बरस के रहे होंगे उस समय, लेकिन बेहद फिट लग रहे थे और उनके मुस्कुराते हुए चेहरे पर एक अजीब-सा भोलापन था.
लोगों ने उनके पैर छुए. उन्होंने मेरी तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा और अपने ख़ास अंदाज़ में बोले, “कैसे हो बेटे?”
एक पत्रकार के तौर पर मैं कई फ़िल्मी सितारों से मिल चुका था लेकिन उन तीन शब्दों में जो अपनापन महसूस हुआ, वैसा कभी नहीं हुआ था, मानो वो मुझे सालों से जानते हों.
मैंने उन्हें नमस्ते करते हुए अपना नाम बताया और ये भी कि मैं बॉबी के इंटरव्यू के लिए दिल्ली से आया हूं.
वो बोले, “दिल्ली में तो ठंड हो गयी होगी, कितनी सुबह की फ्लाइट ली?”
मैंने कहा, “सुबह साढ़े पांच बजे की.”
वो हैरान हुए और फिर सवाल किया, “कुछ खाया तुमने?”
मैंने कहा कि सुबह फ्लाइट में कुछ खाया था. मैं उन्हें बताना चाहता था कि बचपन से लेकर अब तक मुझे उनकी ना जाने कितनी फ़िल्में देखकर कितना मज़ा आया है- ‘शोले’, ‘चुपके-चुपके’ से ‘ग़ज़ब’ और ‘ग़ुलामी’ तक.
लेकिन मैं उस रोज़ बस उनके चेहरे को देखता रहा. और वह भी, कुछ पल, मुझे देखते रहे.
इसके बाद वो पंजाब से आए लोगों की तरफ़ मुड़ गए.
वो लोग किसी परिचित की सिफ़ारिश लेकर आए थे जिनका नाम सुनते ही धर्मेंद्र पुरानी यादें साझा करने लगे.
बॉलीवुड का अजेय सितारा जिसकी चमक पूरे देश को दशकों से दीवाना बनाती रही, वो पंजाबी में बड़े अपनेपन से, गांव के पुराने दिन और किसी पुराने दोस्त को याद कर रहा था.
जब इंटरव्यू के दौरान नाराज़ हुए बॉबी
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थोड़ी ही देर में सनी देओल भी वहां आए, मेज़बान की तरह सबका हालचाल लेते हुए.
कुछ देर बाद अभय देओल भी मुस्कुराते हुए आए “हैलो” कहने के लिए.
कोई दिखावा नहीं, कोई बनावट नहीं. उनके लिए तो एक बड़े पंजाबी संयुक्त परिवार वाली आम सुबह ही थी. लेकिन मेरे लिए यह यादगार सुबह थी. इतने सारे स्टार एक छत के नीचे.
उस पूरे माहौल के केंद्र में थे- धर्मेंद्र. सबकी नज़रें, सबका आदर, बस उनकी ओर था.
मुझे बाद में किसी ने बताया कि अभय देओल हैं तो धर्मेंद्र के भतीजे लेकिन सनी और बॉबी की तरह वो भी धर्मेंद्र को ‘पापा’ कहकर पुकारते हैं जबकि अपने पिता को वो ‘चाचा’ कहकर पुकारते हैं.
पता चला कि पुराने पंजाबी परिवारों में अक्सर घर के मुखिया को सम्मान में पिता का दर्जा दिया जाता है.
तभी मेरी टीम का सदस्य मुझे बुलाने आया. मैंने धरम जी से इजाज़त ली.
उन्होंने बड़े प्यार से कहा, “जीते रहिए.”
हम बंगले के एक दूसरे कमरे की तरफ़ निकल पड़े जहां इंटरव्यू शूट किया जाना था.
बॉबी देओल के करियर और उनके जीवन पर बातचीत चल ही रही थी कि किसी निजी सवाल पर बॉबी बुरी तरह नाराज़ हो गए और इंटरव्यू रुक गया. बेहद ख़राब मूड में बॉबी ग़ुस्से में वहां से उठकर चले गए.
हमारी पूरी टीम बुरी तरह घबरा गई. पता नहीं वो आगे क्या करेंगे और चिंता अपने एपिसोड की भी थी जो अभी तक अधूरा था.
कुछ देर में सनी देओल आए, उन्होंने हमारी बात सुनी और बोले कि थोड़ी देर मामला ठंडा होने दो, फिर वो बॉबी को समझाएंगे.
तक़रीबन एक घंटा बीत गया. हमें भूख भी लग रही थी.
बॉबी तो नहीं आए लेकिन उनके किचन से दो लोग बड़ी-बड़ी ट्रे में पूरी टीम के लिए कुछ लेकर आए.
लोग बोले, “धरम जी ने भेजा है.”
ट्रे में ब्रेड और ऑमलेट था, बिलकुल घर जैसा. उन्हें याद था कि सुबह दिल्ली से सफ़र के बाद हम सीधे काम पर निकले थे.
‘सुपस्टार’ की आंधी के सामने टिके रहे धर्मेंद्र
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कई साल बाद जब मैं अभिनेता राजेश खन्ना पर अपनी किताब लिख रहा था तो उस समय कई बार लेखक सलीम ख़ान से मुलाक़ात हुई.
उन्होंने राजेश खन्ना के बेमिसाल स्टारडम की कई कहानियां सुनाईं. उन्होंने बताया कि कैसे राजेश खन्ना के कामयाबी की आंधी में इंडस्ट्री के सारे स्टार हिल गए थे सिवाय एक के. वो स्टार थे धर्मेन्द्र.
1969-1972, वो तीन साल जब राजेश खन्ना कामयाबी के शिखर पर थे तब धर्मेंद्र ही थे जो ‘जीवन मृत्यु’, ‘राजा जानी’, ‘लोफ़र’, ‘सीता और गीता’ और ‘मेरा गांव मेरा देश’ जैसी बड़ी बड़ी हिट फ़िल्में दे रहे थे और कॉमेडी से लेकर, रोमांस और एक्शन हर अंदाज़ में हिट थे.
सलीम ख़ान ने बताया था, “लेकिन इतने बड़े स्टारडम के बावजूद धरम जी के लिए परिवार से ज़्यादा कुछ नहीं था.”
इसकी मिसाल देते हुए वो बोले कि ‘ज़ंजीर’ की कहानी सबसे पहले धर्मेंद्र के पास गयी थी.
उन्हें कहानी पसंद आयी और 2500 रुपये में उन्होंने ये कहानी ले ली.
तय हुआ कि उस फ़िल्म में मुख्य भूमिका धर्मेंद्र निभाएंगे और उनके भाई अजीत सिंह देओल, प्रकाश मेहरा के साथ मिलकर इसके निर्माता होंगे.
लेकिन इसी दौरान धर्मेंद्र के एक रिश्तेदार की प्रकाश मेहरा से कोई अनबन हो गयी. वो रिश्तेदार धर्मेंद्र के पास गए और अपने झगड़े के बारे में बताया.
उन्होंने धर्मेंद्र से कहा कि वो प्रकाश मेहरा के साथ काम ना करें. धर्मेंद्र ने उनकी बात मान ली.
उसी स्क्रिप्ट ने अमिताभ बच्चन को स्टार बना दिया और उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में पहचान दिलाई.
बॉलीवुड में शाहरुख़ की एंट्री में बड़ा रोल
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1990 के दशक की शुरुआत में, दिल्ली से आए एक टीवी एक्टर शाहरुख़ ख़ान बॉलीवुड में अपने बड़े मौके़ की तलाश में थे.
हेमा मालिनी उन्हें अपनी फ़िल्म ‘दिल आशना है’ में लॉन्च करने पर विचार कर रही थीं. उन्होंने शाहरुख़ को मिलने के लिए बुलाया.
शाहरुख़ की ‘शाही नाक’ तो उन्हें पसंद आई, लेकिन वह अब भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं थीं.
उनका मानना था कि शाहरुख़ ख़ान पारंपरिक बॉलीवुड हीरो की छवि में पूरी तरह फ़िट नहीं बैठते.
पास ही, लुंगी पहने धर्मेंद्र शांत बैठकर उनकी बातचीत सुन रहे थे. उस नर्वस नौजवान के चेहरे पर मासूमियत और आंखों में चिंगारी शायद धर्मेंद्र को नज़र आ गई थी.
कुछ पल सोचने के बाद धर्मेंद्र ने हेमा से कहा कि उन्हें शाहरुख़ को मौक़ा देना चाहिए.
सालों बाद, शाहरुख़ ने बताया था कि फ़िल्म की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र उनके पास आए और कहा, “तू खुद को इंडस्ट्री में अकेला मत समझना. कोई कुछ भी कहे तो बोलना, तेरे सर पर धर्मेंद्र का हाथ है. कुछ भी हो, मैं हूं.”
कभी नहीं मिला ‘बेस्ट एक्टर’ का अवॉर्ड
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धर्मेंद्र ने 250 से भी ज़्यादा फ़िल्मों में काम किया. किसी भी बॉलीवुड स्टार से ज़्यादा हिट फ़िल्में उनके नाम हैं, लेकिन उन्हें कभी ‘बेस्ट एक्टर’ का फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड नहीं मिला. इसका मलाल भी उन्हें सालों साल तक रहा.
लेकिन सरलता देखिए, जब 1997 में उन्हें फ़िल्मफ़ेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाज़ा गया तो धर्मेंद्र मंच पर ही बोले, “मैं पिछले 37 साल से इस फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड की ट्रॉफ़ी का इंतजार करता था, लेकिन यह मुझे कभी नहीं मिली.”
उन्होंने कहा, “हर साल मैं एक नया सूट सिलवाता था और उसकी मैचिंग टाई भी लेता था, सिर्फ़ इस उम्मीद में कि क्या पता मुझे अवॉर्ड लेने के लिए बुला लें. कुछ सालों के बाद मैंने उम्मीद छोड़ दी.”
अंग्रेज़ी में शायद इसी को ‘पोएटिक जस्टिस’ कहते हैं कि उस रात जिस सितारे ने उन्हें ट्रॉफ़ी सौंपी, वह भारतीय सिनेमा के महानतम अभिनेताओं में से एक और धर्मेंद्र के आदर्श, दिलीप कुमार थे.
उन्हें अवॉर्ड चाहे न मिले हों लेकिन 60 साल लंबे करियर में उनके फैन बरक़रार रहे.
वैसे तो उनकी लोकप्रियता पूरे देश में फैली हुई थी, लेकिन सबसे ज़्यादा प्यार उन्हें देश के गांवों और छोटे शहरों के दर्शकों ने दिया.
आज भी हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में किसी से पूछेंगे कि धर्मेंद्र ने क्या कमाया तो जवाब होगा- “इज़्ज़त और गुडविल.”
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2005 की उस सुबह इंटरव्यू तो हमने बॉबी देओल का किया था लेकिन जब मैं वहां से निकला तो मैं धर्मेंद्र का और भी बड़ा फ़ैन बन गया था.
अपने गांव और लोगों से अपनापन हो, या चालीस साल पुरानी अपने जीवन की पहली सेकंड हैंड कार, धर्मेंद्र ने सब स्नेह से साथ संजोकर रखा था, मानो ये उनकी जड़ों का हिस्सा हो.
लुधियाना के नसराली गांव का बड़े दिल वाला वो लड़का, चमक-दमक भरी फ़िल्मी दुनिया को जीतने के बाद भी अपनी जड़ों से कभी दूर नहीं हुआ.
एक गांव उसके भीतर हमेशा बसा रहा. धर्मेंद्र साधारण भी थे और असाधारण भी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.