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नीतीश कुमार ने गुरुवार को दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
मुख्यमंत्री के अलावा 26 और मंत्रियों ने शपथ ली है. इनमें से तीन महिला मंत्री हैं और एक मुसलमान मंत्री हैं.
बिहार की पिछली सरकार में सिर्फ़ एक महिला मंत्री थीं रेणु देवी.
इस बार कुल तीन महिलाओं ने मंत्रीपद की शपथ ली है. अब बिहार के कुल मंत्रियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत के क़रीब है.
बिहार की 243 सदस्यों की विधानसभा में इस बार कुल 29 महिला विधायक चुनी गई हैं जो कुल सदस्यों की संख्या का लगभग 12 प्रतिशत हैं. इनमें 26 महिला विधायक एनडीए की हैं.
यदि विधायकों की संख्या और पिछली सरकार में हिस्सेदारी के नज़रिए से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि बिहार की सरकार में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है.
वहीं बिहार की पिछली सरकार की तरह ही इस बार भी सिर्फ़ एक मुसलमान विधायक को मंत्री बनाया गया है. ये हैं ज़मा ख़ान जो पिछली सरकार में भी इकलौते मुसलमान मंत्री थे.
कौन हैं बिहार की महिला मंत्री?
बिहार सरकार में इस बार तीन महिला विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है. ये हैं जेडीयू की विधायक लेशी सिंह और बीजेपी की विधायक रमा निषाद और श्रेयसी सिंह.
लेशी सिंह, रमा निषाद और श्रेयसी सिंह- तीनों नई मंत्रियों में एक समानता यह है कि तीनों के ही परिवारों का राजनीतिक जुड़ाव रहा है.
लेशी सिंह
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लेशी सिंह सीमांचल इलाक़े के पूर्णिया ज़िले की धमदाहा सीट से साल 2000 के बाद से लगातार चुनाव जीत रही हैं.
लेशी सिंह बिहार की पूर्ववर्ती सरकार में मार्च 2024 तक खाद्य मंत्री भी रही हैं.
1974 में पैदा हुई लेशी सिंह ने बारहवीं तक की पढ़ाई की है.
उनके पति बूटान सिंह पूर्णिया में राजनीति से जुड़े थे और साल 2000 में अदालत परिसर में उनकी हत्या कर दी गई थी.
बूटान सिंह पूर्णिया में समता पार्टी के जिलाध्यक्ष थे. आगे चलकर समता पार्टी ही 2003 में जनता दल यूनाइटेड बनी.
लेशी सिंह अपने पति की हत्या से पहले ही राजनीति में क़दम रख चुकी थीं लेकिन साल 2000 में उन्होंने धमदाहा सीट से उम्मीदवारी के साथ चुनावी राजनीति में क़दम रखा. इसके बाद से उन्होंने कोई चुनाव नहीं हारा है. लेशी सिंह बिहार के महिला आयोग की अध्यक्ष भी रही हैं.
वर्तमान सरकार में मंत्रीपद की शपथ लेने से पहले भी वो पिछली बिहार सरकार में खाद्य और उपभोक्ता संरक्षण विभाग की मंत्री रह चुकी हैं.
राजनीतिक कामयाबी के साथ-साथ लेशी सिंह विवादों से भी जुड़ी रही हैं. साल 2021 में लेशी सिंह को पत्रकार पिंटू राय उर्फ़ विश्वजीत सिंह की हत्या के मामले में अभियुक्त बनाया गया था. पिंटू राय स्थानीय राजनीति में भी सक्रिय थे. लेशी सिंह ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया था.
पिंटू राय की हत्या के मामले में पुलिस किसी को गिरफ़्तार नहीं कर सकी थी.
साल 2022 में जेडीयू की ही विधायक बीमा भारती ने लेशी सिंह पर अपराधों में लिप्त होने के आरोप लगाए थे. लेशी सिंह ने इन्हें राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज किया था.
रमा निषाद
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बिहार सरकार में मंत्री बनीं रमा निषाद मुज़फ़्फ़रपुर के राजनीतिक परिवार से आती हैं.
उन्होंने ज़िले की औराई सीट से पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल की.
लेकिन विधायक बनने से पहले रमा निषाद का नगर परिषद की राजनीति में लंबा करियर रहा है.
58 साल की रमा निषाद पिछले तीस सालों से राजनीति में सक्रिय हैं.
वार्ड पार्षद के चुनाव से राजनीति शुरू करने वाली रमा निषाद हाजीपुर नगर परिषद की उपाध्यक्ष और सभापति रह चुकी हैं.
रमा निषाद के पति अजय निषाद दो बार सांसद रह चुके हैं जबकि उनके ससुर कैप्टन जयनारायण निषाद केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
श्रेयसी सिंह
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जमुई विधानसभा सीट से विधायक बनीं और नीतीश सरकार में मंत्री बनने वाली श्रेयसी सिंह एक मशहूर निशानेबाज़ भी हैं.
उन्होंने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स (गोल्ड कोस्ट, ऑस्ट्रेलिया) के महिला डबल ट्रैप इवेंट में गोल्ड मेडल जीता था. इससे पहले उन्होंने 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स (ग्लासगो, स्कॉटलैंड) में रजत पदक हासिल किया था.
श्रेयसी सिंह के पिता स्वर्गीय दिग्विजय सिंह अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में विदेश राज्य मंत्री थे. दिग्विजय सिंह बिहार की बांका लोकसभा सीट से कई बार सांसद रहे. वे नेशनल राइफ़ल एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे.
1991 में पैदा हुई श्रेयसी सिंह साल 2020 में सक्रिय राजनीति में आईं थीं. इसी साल उन्होंने बीजेपी के टिकट पर जमुई सीट से विधानसभा चुनाव जीता.
दिल्ली के हंसराज कॉलेज से कला में स्नातक करने वाली श्रेयसी सिंह अविवाहित हैं.
श्रेयसी सिंह के चुनावी हलफ़नामे के मुताबिक़ उनके ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा दर्ज नहीं है. उन्होंने 7.6 करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति घोषित की है.
मंत्रीमंडल में इकलौता मुसलमान चेहरा- मोहम्मद ज़मा ख़ान
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नीतीश कुमार की पूर्ववर्ती सरकार में एकमात्र मुसलमान मंत्री रहे मोहम्मद ज़मान ख़ान को इस बार भी मंत्री बनाया गया है.
नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर कैमूर ज़िले की चैनपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतने वाले मोहम्मद ज़मान ख़ान लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं.
साल 2020 में मोहम्मद ज़मा ख़ान ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था. हालांकि बाद में वो नीतीश कुमार की जेडीयू में शामिल हो गए थे और सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बने.
बीजेपी और जदयू के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए को इस बार बिहार विधानसभा चुनावों में 243 में से 202 सीटें मिली हैं. मोहम्मद ज़मा ख़ान बिहार में एनडीए के एकमात्र मुसलमान विधायक हैं.
बिहार में साल 2022-23 में हुए जातिगत सर्वे के मुताबिक़ राज्य में 17.7 प्रतिशत मुसलमान आबादी है.
लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व में मुसलमान बहुत पीछे हैं. राज्य में इस बार सिर्फ़ 11 मुसलमान विधायक चुन कर आए हैं.
महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा लेकिन सवाल बरक़रार
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बिहार में चुनावों के दौरान सरकार ने स्वरोजगार के लिए महिलाओं के बैंक खातों में दस-दस हज़ार रुपए भेजे थे.
विश्लेषक मान रहे हैं कि बिहार चुनावों के नतीजों पर महिला मतदाताओं का असर रहा है.
हालांकि बिहार में जिस तादाद में महिलाओं ने मतदान में हिस्सेदारी दिखाई वह विधानसभा और मंत्रीमंडल में नज़र नहीं आ रही है.
विश्लेषक मानते हैं कि पिछली सरकार में सिर्फ़ एक महिला मंत्री थीं उसकी तुलना में तीन महिला मंत्रियों की संख्या अधिक लग सकती है लेकिन आबादी के लिहाज से ये बहुत कम है.
वरिष्ठ पत्रकार फ़ैज़ान कहते हैं, “सरकार ने तीन महिला विधायकों को मंत्री बनाया है जबकि एनडीए की कुल 26 महिला विधायक चुनी गई हैं. उस लिहाज से भी संख्या कम नज़र आती है..”
फ़ैज़ान कहते हैं, “बूथ पर महिला मतदाताओं की संख्या अधिक थी. लेकिन सरकार में उनकी हिस्सेदारी आबादी के हिसाब से नज़र नहीं आ रही है. हो सकता है आगे मंत्रीमंडल विस्तार में और महिलाओं को मंत्री बनाया जाए.”
वहीं राज्य में सिर्फ़ एक ही मुसलमान मंत्री है. बिहार में मुसलमानों की आबादी 17 फ़ीसदी से अधिक है. इस बार मुसलमान विधायक भी सिर्फ़ 11 ही चुने गए हैं.
विश्लेषक मानते हैं कि मुसलमान सिर्फ़ बिहार की राजनीति में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी हाशिए पर हैं.
फ़ैज़ान कहते हैं, “मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगातार कम हो रहा है. यह सिर्फ़ बिहार में ही नहीं हुआ है बल्कि बाक़ी राज्यों की भी ऐसी ही स्थिति है. यूपी में मुसलमानों की बड़ी आबादी है, वहां भी सिर्फ़ एक ही दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री हैं.”
फ़ैज़ान कहते हैं, “सिर्फ़ विधायकों की संख्या ही कम नहीं हुई है बल्कि मुसलमानों को टिकट भी कम मिल रहे हैं. राजनीति में मुसलमानों के लिए मौक़े राष्ट्रीय स्तर पर ही कम हो रहे हैं.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित