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18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में गोरखा पहचान ने कुछ ऐसा ज़ोर पकड़ा कि बाक़ी सभी पहचानों और सूबों ने एकजुट होकर हिमालय की गोद में बसे नेपाली राष्ट्र की नींव रखी.
भारत और चीन जैसे विशाल और ताक़तवर देशों के पड़ोस में बसे इस देश में दुनिया की आठ सबसे ऊंची चोटियां हैं, जिनमें माउंट एवरेस्ट भी शामिल है. नेपाल में इसे ‘सागरमाथा’ कहा जाता है.
भारत और नेपाल के बीच 1,751 किलोमीटर लंबी सरहद लगती है, जो सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से गुज़रती है.
दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में शामिल नेपाल की अर्थव्यवस्था आर्थिक मदद और पर्यटन पर निर्भर करती है. लेकिन आज बात इसके भूगोल या अर्थव्यवस्था की नहीं, बल्कि इतिहास की करते हैं.
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ब्रिटेन ने इसलिए स्वीकार की नेपाल की आज़ादी
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ईसा से कोई एक हज़ार साल पहले नेपाल छोटी-छोटी रियासतों और कुलों के परिसंघों में बंटा हुआ था, लेकिन मध्यकाल के रजवाड़ों की सदियों से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता को समाप्त करने का श्रेय जाता है गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह को.
राजा पृथ्वी नारायण शाह ने साल 1765 में नेपाल की एकता की मुहिम शुरू की और साल 1768 तक इसमें सफल हो गए. यहीं से आधुनिक नेपाल का जन्म होता है.
फिर शाह राजवंश के पांचवें राजा राजेंद्र बिक्रम शाह के शासन काल में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेपाल की सीमा के कुछ इलाक़ों पर क़ब्ज़ा किया तो साल 1815 में लड़ाई छिड़ गई जिसका अंत सुगौली संधि से हुआ.
नेपाल के राजपरिवार में गुटबाज़ी बढ़ी तो अस्थिरता पैदा हुई. साल 1846 में राजा सुरेंद्र बिक्रम शाह के शासन काल में, जंग बहादुर राणा एक शक्तिशाली सैन्य कमांडर के रूप में उभरे.
उनके प्रभाव को कम करने के लिए रानी ने षड्यंत्र रचा, भयंकर लड़ाई हुई, रानी के सैकड़ों समर्थक मारे गए और जंग बहादुर राणा और ज़्यादा ताक़तवर होकर उभरे.
इसके बाद राजपरिवार उनकी शरण में चला गया और प्रधानमंत्री पद वंशानुगत हो गया. राणा परिवार अंग्रेज़ों का समर्थक था. उसने भारत में हुई साल 1857 की क्रांति में विद्रोहियों के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों का साथ दिया था.
इसलिए साल 1923 में ब्रिटेन और नेपाल के बीच एक संधि हुई जिसके अधीन नेपाल की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया गया.
राजमहल का सामूहिक हत्याकांड
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1940 के दशक में नेपाल में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की शुरुआत हुई और राजनीतिक दल राणा की तानाशाही की आलोचना करने लगे.
इस बीच चीन ने तिब्बत पर क़ब्ज़ा किया तो भारत को चिंता हुई कि चीन के हाथ कहीं नेपाल तक न पहुँच जाएँ. तब भारत की सहायता से राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह को नया शासक घोषित किया गया और नेपाली कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाई गई.
लेकिन राजा और सरकार के बीच सत्ता को लेकर खींचतान चलती रही. साल 1959 में राजा महेंद्र बीर बिक्रम शाह ने लोकतांत्रिक प्रयोग को समाप्त कर पंचायत व्यवस्था लागू की.
वर्ष 1972 में राजा बीरेंद्र बिक्रम शाह ने राजकाज संभाला. इसके क़रीब 17 साल बाद 1989 में एक बार फिर लोकतंत्र के समर्थन में जन आंदोलन शुरू हुआ और राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह को संवैधानिक सुधार स्वीकार करने पड़े.
नेपाल में मई 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ. लेकिन साल 1996 आते-आते देश में माओवादी आंदोलन शुरू हो गया.
एक जून 2001 को नेपाल के राजमहल में हुए सामूहिक हत्या कांड में राजा, रानी, राजकुमार और राजकुमारियाँ मारे गए. उसके बाद राजगद्दी संभाली राजा के भाई ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह ने.
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फ़रवरी 2005 में राजा ज्ञानेंद्र ने माओवादियों के हिंसक आंदोलन का दमन करने के लिए सत्ता अपने हाथों में ले ली और सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया.
साल 2006 और 2007 नेपाल के लिए कई बड़ी घटनाएं लेकर आया. नवंबर 2006 में सरकार ने माओवादियों के साथ शांति समझौते पर दस्तख़त किए और लंबा चला हिंसक संघर्ष ख़त्म हुआ.
जनवरी 2007 में माओवादी अस्थायी संविधान की शर्तों के तहत संसद में दाख़िल हुए. इसी साल अप्रैल में माओवादी अंतरिम सरकार में शामिल हुए और राजनीतिक मुख्यधारा का हिस्सा बन गए.
इसी साल वो अंतरिम सरकार से बाहर हो गए और राजशाही ख़त्म करने की मांग की. नवंबर में होने वाले चुनाव मुल्तवी कर दिए गए.
दिसंबर 2007 में संसद ने माओवादियों के साथ हुए शांति समझौते के तहत राजशाही ख़त्म करने को मंजूरी दी, जो दोबारा सरकार में शामिल हो गए.
मई 2008 में नेपाल गणराज्य बना और जुलाई में राम बरन यादव नेपाल के पहले राष्ट्रपति बने. अगस्त में माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ने गठबंधन सरकार बनाई.
तीन दलों के बीच घूमती नेपाल की राजनीति
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साल 2008 के बाद के सालों में भी नेपाल में भी राजनीतिक घटनाक्रम जारी रहे, लेकिन साल 2015 के सितंबर में बड़ा मौका आया जब संसद ने ऐतिहासिक संविधान पारित कर नेपाल को धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया.
साल 2015 के अक्टूबर में केपी शर्मा ओली नए संविधान के तहत चुने गए पहले प्रधानमंत्री बने.
गणतंत्र बनने के बाद नेपाल की राजनीति मूल रूप से तीन दलों के बीच घूम रही है और यह देश राजनीतिक रूप से अस्थिर ही बना हुआ है.
अब बात साल 2025 की. सितंबर में नेपाल सरकार ने 26 प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया था. इनमें फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसे चर्चित सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म शामिल हैं.
सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया कंपनियों को देश के क़ानूनों का पालन करने, स्थानीय दफ़्तर खोलने और ग्रीवांस अधिकारी नियुक्त करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था.
चीन की सोशल मीडिया कंपनी टिकटॉक ने समय रहते इन शर्तों का पालन कर लिया, इसलिए टिकटॉक पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया.
सोशल मीडिया वेबसाइटों पर प्रतिबंध के बाद युवाओं ने प्रदर्शन का आह्वान किया.
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नेपाल में इस समय टिकटॉक चल रहा है. प्रदर्शन के आयोजकों ने टिकटॉक पर कई वीडियो शेयर कर युवाओं से प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की.
टिकटॉक पर ‘नेपो बेबी’ ट्रेंड भी चलाया गया, जिसमें नेताओं के बच्चों के ऐशो-आराम भरे जीवन की तस्वीरें और वीडियो पोस्ट किए गए. इसमें सवाल उठाया गया कि राजनेता अपने बच्चों को तो फ़ायदा पहुंचा रहे हैं लेकिन देश के लिए काम नहीं कर रहे.
ये मामला इतना बढ़ा कि बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, कई लोग मारे गए. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद इस्तीफ़ा दे दिया.
कई हाई प्रोफ़ाइल राजनेताओं के घरों पर हमला और तोड़फोड़ की गई, जिनमें केपी शर्मा ओली और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के करीबियों को भी निशाने पर लिया गया. राजनीतिक दलों के मुख्यालयों पर भी हमले हुए और पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए आंसू गैस के गोले दागे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित