इमेज स्रोत, Getty Images
नेपाल में राजशाही समर्थकों का ‘जन आंदोलन’ पहले दिन ही हिंसक हो गया और हिंसा के कारण इस विरोध प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई.
इसके बाद इस बात को लेकर चिंता और बढ़ गई है कि राजशाही समर्थक ताक़तें अपने आंदोलन को किस तरह से आगे बढ़ाएंगी.
दुर्गा प्रसाई को राजशाही आंदोलन का नेता घोषित किया गया है. सुरक्षा अधिकारियों की मानें तो दुर्गा प्रसाई पुलिस की ‘वांटेड’ लिस्ट में हैं, जबकि आंदोलन के संयोजक नवराज सुबेदी को ‘घर में नज़रबंद’ रखा गया है.
राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के दो वरिष्ठ नेताओं को शुक्रवार को गिरफ़्तार कर लिया गया है. यह पार्टी देश में राजशाही स्थापित करने की मांग कर रही है.
अब सवाल उठ खड़ा हुआ है कि राजशाही समर्थकों ने नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की नारायणहिटी में वापसी के लिए जो आंदोलन शुरू किया था, उसका नेतृत्व कौन करेगा? नारायणहिटी काठमांडू में स्थित वही रॉयल पैलेस है, जिसमें राजा रहते थे. जब राजशाही व्यवस्था ख़त्म हुई और गणतंत्र आया तो इसे संग्रहालय में बदल दिया गया था.
नेपाल में गणतंत्र की मांग को लेकर क़रीब दो दशक पहले जन आंदोलन हुआ था. आंदोलन के कारण संविधान सभा का गठन हुआ और 2008 में राजशाही व्यवस्था ख़त्म होने के साथ गणतंत्र आया.
शनिवार को बीबीसी से बातचीत में राजशाही समर्थक नेताओं ने कहा कि विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा, लेकिन वे इस बात पर स्पष्ट नहीं थे कि आगामी आंदोलन का मुख्य नेता कौन होगा.
नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजशाही की बहाली के लिए कई समूह अभियान चला रहे हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि उनके बीच आम सहमति के अभाव के कारण सिंगल लीडरशिप की संभावना कम है.
शुक्रवार को विरोध प्रदर्शन के नाम पर हुई हिंसक गतिविधियों की ज़िम्मेदारी लेने के लिए नेता स्वयं तैयार नहीं दिखते हैं. उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि विरोध प्रदर्शन नेताओं के नियंत्रण में नहीं हैं.
अब कई लोग जानना चाहते हैं कि क्या पारंपरिक राजशाही सत्ता या आरपीपी आगामी अभियान का नेतृत्व संभालेगी? साथ ही क्या ये लोग शुक्रवार के आंदोलन की ज़िम्मेदारी लेंगे?
अब 8 अप्रैल को राजधानी काठमांडू में आम बैठक के साथ बागमती (नेपाल के सात प्रांतों में से एक) में प्रांत स्तरीय विरोध प्रदर्शन और 10 अप्रैल को राजधानी में आंदोलन की घोषणा हो चुकी है.
आगामी आंदोलन और वरिष्ठ नेताओं की गिरफ़्तारी की समीक्षा के लिए शनिवार को केंद्रीय कार्यकारी समिति की बैठक हुई.
बैठक के बाद आरपीपी के अध्यक्ष राजेंद्र लिंगदेन ने बीबीसी से कहा, “आरपीपी पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वह राजशाही की बहाली के लिए किसी के भी शांतिपूर्ण आंदोलन का समर्थन करती है. लेकिन किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करती है.”
हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया कि शुक्रवार को काठमांडू के तिनकुने में हिंसा सरकार ने ही भड़काई और इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की.
लिंगदेन ने दावा किया कि गिरफ़्तार हुए वरिष्ठ नेता हिंसक गतिविधियों में शामिल नहीं थे. उन्होंने कहा कि “हिंसक गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति की जांच होनी चाहिए.”
साथ ही उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि जब तक विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ़्तार किए गए “निर्दोष नागरिकों” को रिहा नहीं किया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.
आंदोलन में गुटबाज़ी
इमेज स्रोत, Getty Images
जब राजशाही और हिंदू राष्ट्र की मांग के लिए ताज़ा आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही थी, तब आरपीपी के भीतर दो गुट उभर आए थे और यह बात सार्वजनिक रूप से भी देखी जा रही थी.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, ज्ञानेंद्र शाह के अनुरोध पर क़रीब चार दशकों से सक्रिय राजनीति में कम ही दिखने वाले सुबेदी को राजशाही आंदोलन का नेता बनाया गया है. हालांकि, सुबेदी सार्वजनिक रूप से इससे इनकार करते रहे हैं.
सुबेदी ने इमेज चैनल को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि आरपीपी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवींद्र मिश्रा, महासचिव धवल शमशेर राणा और नेता हरि बहादुर बस्नेत ने सबसे पहले उन्हीं (सुबेदी) आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए नेता बनने का प्रस्ताव दिया था.
उनके अनुसार, यह प्रस्ताव आरपीपी नेताओं की ओर से आया जिसमें कहा गया कि “सभी दलों को शामिल करके आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए व्यापक नेतृत्व की ज़रूरत है.”
सुबेदी ने कहा है कि दूसरे आरपीपी नेता पशुपति शमशेर राणा और प्रकाश चंद्र लोहानी का भी इसमें समर्थन है और वे सभी एकसाथ खड़े हैं.
लेकिन आरपीपी अध्यक्ष राजेंद्र लिंगदेन सहित कई अन्य नेताओं ने सुबेदी का नेतृत्व स्वीकार नहीं किया.
उन्होंने आरपीपी के नेतृत्व में आंदोलन आयोजित करने के लिए एक समिति का गठन किया और लिंगदेन को इसका संयोजक नियुक्त किया.
हालांकि, शुक्रवार को हुए विरोध प्रदर्शन पर आरपीपी ने कहा था कि वह “राजशाही और हिंदू राष्ट्र को बहाल करने के लिए किसी भी आंदोलन का नैतिक रूप से समर्थन करेगी.”
लेकिन वरिष्ठ उपाध्यक्ष मिश्रा और महासचिव राणा के अलावा आरपीपी के दूसरे वरिष्ठ नेता विरोध प्रदर्शन में नज़र नहीं आए.
इमेज स्रोत, Getty Images
ज्ञानेंद्र शाह को लेकर लिंगदेन का डर
ऐसा कहा जाता है कि सुबेदी को आंदोलन का नेता नियुक्त करना पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के अनुरोध पर किया गया था. कई लोगों का मानना है कि 86 वर्षीय सुबेदी को सभी राजशाही समर्थकों के स्वीकार्यता वाला नेतृत्व पाने के लिए नेता के रूप में चुना गया था.
शुक्रवार के प्रदर्शन से पहले सुबेदी और दुर्गा प्रसाई निर्मल निवास (पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का निजी आवास) पहुंचे थे और शाह से अलग-अलग मुलाक़ात की थी. यहां तक कि उन बैठकों के बाद भी लोगों ने अनुमान लगाया है कि सुबेदी और प्रसाई ज्ञानेंद्र शाह के पसंदीदा नेता रहे होंगे.
गुरुवार को निर्मल निवास में एक लंबी चर्चा से लौटने के बाद ही प्रसाई को आंदोलन का नेता नियुक्त किया गया.
इसका हवाला देते हुए कुछ गणतंत्र समर्थक यह आरोप भी लगा रहे हैं कि शुक्रवार की हिंसा शाह के कहने पर हुई थी.
ज्ञानेन्द्र से मुलाक़ात और आंदोलन का नेता नियुक्त किए जाने के बाद प्रसाई ने मीडिया को यह भी बताया कि उन्होंने पूर्व राजा के साथ आंदोलन पर चर्चा की थी, लेकिन “उनके बीच जो बातचीत हुई, उसका खुलासा नहीं किया जा सकता.”
उन्होंने आरपीपी का नाम लिए बिना कहा, “मैंने राजशाही ख़त्म करने के बाद चुनाव नहीं लड़ा. लेकिन उन्होंने (आरपीपी) चुनाव लड़ा.”
राजशाही जाने के बाद ज्ञानेंद्र शाह पहली बार मेरे कार्यक्रम में शामिल हुए और “दीप जलाकर राजशाही को बहाल करने के अभियान में भाग लिया था.”
आरपीपी के कुछ नेताओं के अनुसार, उन्हें चिंता है कि पार्टी अध्यक्ष लिंगदेन और निर्मल निवास के कारण पार्टी विभाजित हो जाएगी क्योंकि सुबेदी और प्रसाई ज्ञानेंद्र शाह की इच्छा के अनुसार राजशाही आंदोलन के नामित नेता माने जाते हैं.
इसका मुख्य कारण यह है कि पिछले महाधिवेशन में निर्मल निवास के समर्थन से वे (लिंगदेन) अध्यक्ष बने थे और कमल थापा को हार का सामना करना पड़ा था.
लिंगदेन ने सार्वजनिक रूप से ऐसे आरोपों का खंडन किया. लेकिन अपनी हार के तुरंत बाद कमल थापा ने निर्मल निवास को दोषी ठहराया.
इसके तुरंत बाद थापा ने आरपीपी नेपाल का गठन किया और राजशाही बहाल करने के अपने पुराने एजेंडे को त्याग दिया. हालांकि, अब वह राजशाही की बहाली की मांग पर लौट आये हैं.
आरपीपी के कुछ नेताओं के मुताबिक़, लिंगदेन को डर है कि “जिस तरह निर्मल निवास ने कमल थापा को हराने और जीत दिलाने में उनकी मदद की थी, उसी तरह अब वह पार्टी को विभाजित कर देंगे.”
“आपको डर है कि निर्मल निवास पार्टी को विभाजित कर देगा?” बीबीसी ने जब लिंगदेन से यह सवाल पूछा तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया, “यह बिल्कुल झूठ है और यह सच नहीं है. यह ग़लत जानकारी है.”
उन्होंने सभी से शुक्रवार की घटना को लेकर पूर्व राजा को राजनीति में न घसीटने का भी आग्रह किया.
अब आरपीपी क्या करेगी?
इमेज स्रोत, RSS
नेपाल में गणतंत्र की स्थापना हो चुकी है. लेकिन आरपीपी, जिसने हमेशा राजशाही के पक्ष में अभियान चलाया है, उसने कभी-कभी हिंदू राष्ट्र और राजशाही की बहाली की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया है.
पार्टी के अध्यक्ष लिंगदेन कहते रहे हैं कि राजशाही को “बिना किसी हिंसा के सर्वसम्मति से” या “दो तिहाई बहुमत प्राप्त करके संवैधानिक संशोधन के माध्यम से” बहाल किया जाएगा.
लेकिन हाल के सालों में, कई लोगों का मानना है कि दुर्गा प्रसाई पर दबाव बढ़ गया है, क्योंकि वह पूर्व राजा के क़रीब आ गए हैं और उनके साथ कई संगठनों ने सड़क पर गतिविधियां शुरू कर दी हैं. लिंगदेन जैसे दूसरे समूहों के नेताओं ने पार्टी के भीतर उनसे सड़कों पर उतरने का आह्वान किया है.
ऐसा कहा जा रहा है कि आरपीपी उस स्थिति पर पहुंच गई है जहां उसे हड़ताल पर जाना पड़ रहा है, जबकि सुबेदी के नेतृत्व में राजशाही समर्थकों ने सड़क पर विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है.
पिछले साल, आरपीपी ने सरकार के समक्ष 40 सूत्रीय मांगें प्रस्तुत की थीं, जिनमें राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बहाली तथा संघवाद को ख़त्म करना शामिल था.
जब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहाल प्रचंड प्रधानमंत्री थे, तब लिंगदेन ने उनसे मुलाक़ात की थी और उन्हें एक मांग पत्र सौंपा था.
लिंगदेन ने कहा कि तब भी उन्हें पार्टियों के बीच “बिना किसी हिंसा के बातचीत और आम सहमति के माध्यम से” एक “नए समझौते” पर पहुंचकर आगे बढ़ने की संभावना दिखती थी.
संसद में 14 सांसदों के साथ पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी आरपीपी के सांसद भी कभी-कभी राजशाही को बहाल करने के बारे में संसद में बोलते हैं.
लिंगदेन ने बीबीसी को बताया कि शनिवार को हुई बैठक में वे राजशाही बहाल करने के लिए आंदोलन जारी रखने पर सहमत हुए.
उन्होंने कहा, “यह आंदोलन अब निरंतर जारी रहेगा. परिस्थिति के अनुसार यह आगे बढ़ेगा.”
इमेज स्रोत, Facebook/Nava Raj Meera Subedi
नवराज सुबेदी के नेतृत्व वाले आंदोलन का क्या होगा?
संयुक्त जन आंदोलन समिति ने कहा है कि सुबेदी के नेतृत्व में राजशाही को बहाल करने के लिए आंदोलन जारी रहेगा.
सुबेदी ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा, “हम हमेशा जन आंदोलन और जन इच्छा के पक्ष में रहेंगे और उसका समर्थन करेंगे. साथ ही लोगों से अनुरोध है कि वे पूरे देश में शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलाएं.”
“याद रखें, ऐसी कठिन परिस्थिति में किसी को भी फ़ायदा नहीं उठाना चाहिए. देशभक्त लोगों का आंदोलन जारी है.”
उनका दावा है कि पूर्व राजा को बदनाम करने के प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि “जनता का आंदोलन किसी नेता के नेतृत्व में नहीं होगा” और “जनता स्वयं ही उस आंदोलन को नेतृत्व और दिशा देगी जो जनता की इच्छा और लोकप्रिय विद्रोह से उत्पन्न होगा.”
सांस्कृतिक विशेषज्ञ जगमन गुरुंग राजशाही को बहाल करने के अभियान में सुबेदी धड़े के सलाहकार हैं. बीबीसी ने उनसे पूछा कि, “अब आंदोलन का क्या होगा, जब आपके संजोयक को नज़रबंद कर दिया गया है और आपके नेता से संपर्क नहीं हो पा रहा है?”
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा, “हमारे नेता नवराज सुबेदी हैं और भले ही वह घर में नज़रबंद हैं, लेकिन आंदोलन अब नहीं रुकेगा. एक नेता के ग़ायब हो जाने से लोग चुप नहीं रहेंगे. वे (लोग) ख़ुद नेतृत्व करते हैं.”
हालांकि, उन्होंने कहा कि शुक्रवार को हुई हिंसा के लिए आयोजक भी ज़िम्मेदार हैं.
गुरुंग ने कहा, “आयोजकों की निष्क्रियता के कारण ऐसी घटना घटी. अब आयोजकों को आत्मचिंतन करना चाहिए और आंदोलन को आगे बढ़ाना चाहिए.”
हालांकि, उनका कहना है कि तिनकुने की घटना के बाद उन्होंने दुर्गा प्रसाई, नवराज सुबेदी और राजेंद्र लिंगदेन सहित किसी भी आरपीपी नेता से बात नहीं की है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.