इमेज कैप्शन, नेपाल में शुक्रवार को हिंसा के दौरान भीड़ का काबू करने का निर्देश देता सुरक्षाकर्मी
नेपाल में शुक्रवार को राजशाही समर्थकों और पुलिस के बीच झड़प में दो लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे. प्रदर्शन राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेतृत्व में हो रहा था जिसे नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का समर्थन हासिल है.
नेपाल में इस हिंसक झड़प के लिए लोकतंत्र समर्थक पार्टियों ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को जिम्मेदार ठहराया और उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग की है.
बीबीसी की नेपाली सेवा के मुताबिक़ सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और नेपाली कांग्रेस का कहना है कि हिंसा पूर्व नरेश के इशारे पर हुई है.
सोशल मीडिया पर ‘ज्ञानेंद्र शाह गिरफ़्तार करो’ अभियान ट्रेंड कर रहा है. हालांकि लोकतंत्र समर्थक दल इस स्थिति के एक-दूसरे को भी ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.
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ज्ञानेंद्र शाह पर लगा जुर्माना, कड़ी कार्रवाई की भी मांग
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इमेज कैप्शन, पूर्व राजा के समर्थन में प्रदर्शन
शुक्रवार के विरोध प्रदर्शनों को लेकर पूर्व राजा के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग के बीच काठमांडू मेट्रोपोलिटन सिटी ने ज्ञानेंद्र शाह पर लगभग आठ लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.
काठमांडू पुलिस प्रमुख राजू पांडे ने बीबीसी की नेपाली सेवा को बताया, ”अगर जुर्माना अदा नहीं किया गया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी.”
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) के प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड ने शुक्रवार की हिंसा के लिए ज्ञानेंद्र शाह को ज़िम्मेदार करार दिया है.
प्रचंड ने शनिवार को कहा, “यह समय सरकार के लिए कड़ी कार्रवाई करने का है. सभी अपराधियों की जांच की जानी चाहिए और उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए. ज्ञानेंद्र शाह को छोड़ा नहीं जाना चाहिए.”
नेपाल की लोकतंत्र समर्थक पार्टियों का मानना है कि हिंसा योजनाबद्ध ढंग से फैलाई गई, जिसे राजा का शह हासिल था.
कुछ मीडिया आउटलेट्स ने सरकारी सूत्रों का हवाला देते हुए बताया है कि पूर्व राजा के कुछ विशेषाधिकार रद्द कर दिए जाएंगे और उनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया जाएगा. हालांकि बीबीसी स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं कर सका है.
राजशाही समर्थकों ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल और सीपीएन (यूनिफाइड सोशलिस्ट) के दफ़्तर में तोड़फोड़ की थी.
नेपाल की चौथी बड़ी पार्टी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने भी हिंसा के ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
नेपाल में राजनीतिक दलों का एक-दूसरे पर निशाना
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इमेज कैप्शन, पूर्व प्रधानंमत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड
नेपाल में शुक्रवार की हिंसा के बाद पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल प्रचंड ने कहा है कि जब लोकतंत्र समर्थक पार्टियां लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल हो जाती हैं तो राजशाही समर्थक अपना सिर उठाने की कोशिश करते हैं.
प्रचंड ने कहा, “ऐसे लोगों को इतिहास के कूड़ेदान में इसलिए धकेल दिया गया (पहले की लोकतांत्रिक सरकारों को) क्योंकि डेमोक्रेटिक व्यवस्था से लोगों को जो उम्मीद थी वो पूरी नहीं हुईं. अब राजशाही समर्थकों ने अपना सिर उठा लिया है.”
पिछले दिनों दाहाल ने संसद में आरोप लगाया था कि मौजूदा केपी शर्मा ओली सरकार की अव्यवस्थाओं के की वजह से लोग पूर्व राजा की ओर देख रहे हैं.
उन्होंने कहा था कि लोगों का ओली की सीपीएन और नेपाली कांग्रेस की संयुक्त सरकार से मोहभंग हो रहा है.
उन्होंने कहा था,”ज्ञानेंद्र के गलत कदमों की वजह से ही राजशाही ख़त्म हुई और नेपाल लोकतांत्रिक देश बना. उन्होंने सत्ता हड़प ली थी और कइयों को गिरफ़्तार और प्रताड़ित किया था. इसलिए लोगों ने उनका विरोध किया.”
नेपाली कांग्रेस के महासचिव गगन थापा ने दाहाल के आरोपों का विरोध करते हुए कहा कि सीपीएन और नेपाली कांग्रेस को इस स्थिति के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
उन्होंने संसद में कहा था, ”नेपाल में आज जो हालात हैं वो यहां 17 साल राज करने वाली सभी राजनीतिक दलों की नाकामी का नतीजा है. हमें लोगों के मोहभंग की वजहों को तलाशना होगा और उसके मुताबिक़ कदम उठाने होंगे.”
भारत पर आरोप
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इमेज कैप्शन, पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के स्वागत में निकाले गए जुलूस में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पोस्टर
नेपाल में पिछले कुछ समय से सक्रिय राजशाही समर्थकों की ओर से ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में निकाले गए गए जुलूस में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक पोस्टर दिखने का मामला काफी चर्चा में रहा था.
योगी आदित्यनाथ की तस्वीर दिखने के बाद से नेपाल में बहस शुरू हो गई है कि क्या इस आंदोलन का भारत से भी संबंध है? क्या भारत नेपाल में राजशाही समर्थकों को भड़का रहा है.
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने आदित्यनाथ के पोस्टर दिखने की आलोचना की थी और कहा था कि देश में ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए कि विरोध प्रदर्शन के लिए किसी विदेशी नेता की तस्वीर की जरूरत पड़े.
दूसरी ओर ज्ञानेंद्र के समर्थकों ने उन आरोपों को ख़ारिज किया था जिसमें कहा गया था कि प्रदर्शन में भारत का हाथ था.
विष्णु रिजाल ने लिखा, ”जिस योगी की तस्वीर को लेकर प्रदर्शन किया गया, उसी योगी ने ज्ञानेंद्र को कुंभ में हिस्सा लेने के लिए नहीं बुलाया जबकि इसी कुंभ में 50 करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई. ऐसा तब है, जब ज्ञानेंद्र ख़ुद को हिन्दू हृदय सम्राट कहते हैं. गणतंत्र का विरोध करते हुए उन्होंने इसे विदेशियों की व्यवस्था कहा है. ऐसा कहकर उन्होंने जनता का अपमान तो किया ही है लेकिन फिर से राजा बनने के लिए विदेशियों की दलाली करने से कथित राष्ट्रवाद का मुखौटा भी अच्छी तरह से उतर गया है.”
योगी की तस्वीर का हवाला देकर विष्णु रिजाल कह रहे थे कि ज्ञानेंद्र राजा बनने के लिए ‘विदेशियों की दलाली कर रहे हैं’.
नेपाल में 17 साल में 14 सरकारें
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इमेज कैप्शन, नेपाल के मौजूदा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली
2008 में राजशाही ख़त्म होने के बाद नेपाल में लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ. लेकिन तब से भारत का ये पड़ोसी देश राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है. 2008 में 239 साल पुरानी राजशाही ख़त्म होने के बाद अब तक 14 सरकारें आ चुकी हैं.
पिछले साल केपी शर्मा ओलीकी पार्टी ने पुष्प कमल दाहाल प्रचंड की पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) से गठबंधन तोड़कर नेपाली कांग्रेस के साथ सरकार बना ली थी.
दाहाल संसद में अपना बहुमत साबित करने में नाकाम रहे थे. इसके बाद ओली ने नेपाली कांग्रेस के साथ समझौता किया और बहुमत हासिल कर लिया.
ओली इससे पहले दो बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. नेपाल में राजनीतिक दल एक दूसरे पर चीन और भारत की कठपुतली होने का आरोप लगाते रहे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.