जांच के दौरान एजीएल में करोड़ों रूपये देने वालों में पूछताछ में बताया कि उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के निर्देश पर ये रकम जमा किया था और सचमुच में कोई व्यावसायिक डील हुई ही नहीं थी। ईडी के अनुसार इस समय एजीएल का संचालन यंग इंडिया के हाथों में था और यंग इंडिया ने इसका इस्तेमाल मनी लॉंड्रिंग के लिए किया।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। राहुल गांधी और सोनिया गांधी को 2014 में जमानत मिलने और 2015 में ईडी की जांच शुरू हो जाने के बाद भी यंग इंडिया और एसोसिएट जर्नल (एजीएल) में मनी लॉड्रिंग होती रही। ईडी ने अपने प्रोसेक्यूशन कंप्लेंट (चार्जशीट) में 2017-18 के दौरान यंग इंडिया और एजजीएल में चंदे, अग्रिम किराये और विज्ञापन के रूप में अवैध रूप से लगभग 70 करोड़ रुपये लिये जाने के सबूत दिये हैं।
ईडी के अनुसार यंग इंडिया में 2017-18 में 18.12 करोड़ रुपये चंदे के रूप में दिखाया गया है। लेकिन जब ईडी ने चंदा देने वालों की पड़ताल शुरू की, तो यह फर्जी निकला। चंदा देने वाला कोई था ही नहीं। ईडी के अनुसार फर्जी चंदे के माध्यम से यंग इंडिया के खाते में पैसे आयकर विभाग की देनदारी चुकाने के लिए जमा की गई थी।
फर्जी अग्रिम किराया लेने के मिले सबूत
दरअसल, आयकर विभाग ने दिसंबर 2017 में 2000 करोड़ रुपये के एजीएल के अधिग्रहण को लेकर 414 करोड़ रुपये की आयकर की देनदारी का नोटिस जारी कर दिया था।
वहीं एजीएल में ईडी को इसी दौरान 38.41 करोड़ रुपये के फर्जी अग्रिम किराया लिये जाने के भी सबूत मिले हैं, जिन्हें चार्जशीट में शामिल किया गया है। जिन एग्रीमेंट के साथ अग्रिम किराया लेना दिखाया गया वे एग्रीमेंट ही फर्जी मिले यानी कोई किराया लगाया ही नहीं गया था।
एजीएल का संचालन यंग इंडिया के हाथों में था: ईडी
जांच के दौरान एजीएल में करोड़ों रूपये देने वालों में पूछताछ में बताया कि उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के निर्देश पर ये रकम जमा किया था और सचमुच में कोई व्यावसायिक डील हुई ही नहीं थी। ईडी के अनुसार इस समय एजीएल का संचालन यंग इंडिया के हाथों में था और यंग इंडिया ने इसका इस्तेमाल मनी लॉंड्रिंग के लिए किया। इसके अलावा 2017-18 में ही एजीएल में 29.45 करोड़ रुपये विज्ञापन से हुई आय के रूप में दिखाये गए।
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