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केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री और सात बार के लोकसभा सांसद पंकज चौधरी ने उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के लिए नामांकन दाख़िल किया है.
यूपी के कैबिनेट मंत्री और वर्तमान यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने बताया है कि उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के लिए पंकज चौधरी का इकलौता नामांकन हुआ है.
पत्रकारों के ये पूछे जाने पर कि सिर्फ़ एक नामांकन होने के नाते क्या ये तय है कि पंकज चौधरी यूपी बीजेपी के अध्यक्ष बनेंगे?
इस सवाल पर स्वतंत्र देव सिंह ने कहा, “एक ही नाम है, तो पंकज चौधरी का नाम लगभग कन्फ़र्म है, लेकिन घोषणा कल (रविवार) करेंगे.”
शनिवार को पंकज चौधरी ने जब नामांकन पत्र दाख़िल किया तब इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी प्रस्तावक थे.
नामांकन के बाद पंकज चौधरी ने कहा, ”जो पार्टी दायित्व देती है, उस पर निष्ठा से कार्य करना ही कर्तव्य है.”
योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे हैं और फ़िलहाल गोरखपुर शहरी सीट से विधायक हैं, इसी ज़िले की पड़ोसी सीट महाराजगंज से पंकज चौधरी सांसद हैं.
कौन हैं पंकज चौधरी
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पंकज चौधरी का जन्म 20 नवंबर 1964 को गोरखपुर में हुआ. वह गोरखपुर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं. राजनीति में आने से पहले उनका पारिवारिक और सामाजिक आधार मज़बूत रहा है. परिवार में पत्नी भाग्यश्री, एक बेटा रोहन और एक बेटी हैं.
पंकज चौधरी ने साल 1989 में गोरखपुर नगर निगम के पार्षद के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी.
वो साल 1990 में बीजेपी की ज़िला कार्य समिति के सदस्य बने और उसी साल उप महापौर भी बन गए थे.
साल 1991 में महाराजगंज लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए. इसके बाद 1996 और 1998 में फिर संसद पहुंचे.
साल 1999 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने 2004 में वापसी की और सांसद चुने गए. साल 2009 में एक बार फिर उन्हें पराजय मिली, मगर 2014 से वे लगातार लोकसभा के लिए निर्वाचित होते आ रहे हैं.
पंकज चौधरी को संगठन और सरकार दोनों का अनुभवी नेता माना जाता है. साल 2021 से वो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री हैं और वर्तमान में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं.
पार्टी संगठन में भी उनकी पकड़ मज़बूत रही है और संघ नेतृत्व के साथ उनके अच्छे संबंध बताए जाते हैं.
कुर्मी-ओबीसी चेहरे के तौर पर अहमियत
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हालांकि पंकज चौधरी के अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों के बीच सवाल भी उठ रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक इसे समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के जवाब के तौर पर देख रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान ने कहा, ”बीजेपी नए समीकरण की तलाश कर रही है. लेकिन इससे बहुत फ़ायदा होने की उम्मीद नहीं है. बीजेपी साल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे से डरी हुई है. इस फ़ैसले की वजह यह है कि पंकज चौधरी कुर्मी जाति से आते हैं, जिनका प्रदेश के कई ज़िलों में प्रभाव माना जाता है.”
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस का कहना है, ”ये समझ से परे है कि पूर्वांचल से मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का क्या औचित्य है, यह ज़्यादातर ऑप्टिक्स का मामला लगता है.”
उन्होंने कहा, ”राजनीतिक हलकों में पंकज चौधरी योगी के विरोधी माने जाते हैं. हालांकि मुख्यमंत्री के क़द के आगे उनकी बराबरी नहीं है. इसके अलावा वो कुर्मियों के सर्वमान्य नेता नहीं हैं.”
उनका कहना है, ”हालाँकि बीजेपी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरोधी शिव प्रताप शुक्ला को राज्यपाल बनाया और राधामोहन दास अग्रवाल को पार्टी में अहम पद दे रखा है.”
राजनीतिक तौर पर विरोध की बात इसलिए हो रही है, क्योंकि पंकज चौधरी का राजनीतिक प्रभाव गोरखपुर तक माना जाता है. वो योगी आदित्यनाथ से राजनीति में वरिष्ठ भी हैं.
कुर्मी जाति का राजनीतिक वर्चस्व कितना है?
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बीजेपी की निगाह साल 2027 के विधानसभा चुनाव पर है. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी में वो कामयाबी नहीं मिली जिसकी उसे उम्मीद थी.
वरिष्ठ पत्रकार सैयद क़ासिम कहते हैं, ”इस बार बीजेपी को कुर्मी समुदाय का वोट पहले की अपेक्षा में कम मिला है.”
प्रदेश में सभी दलों से जीतने वाले सांसदों में 11 कुर्मी समुदाय से आते हैं. इस समुदाय की आबादी का ग़ैर-आधिकारिक आंकड़ा क़रीब 7 फ़ीसदी माना जाता है. ये राज्य में यादव के बाद दूसरी प्रभावशाली ओबीसी जाति मानी जाती है.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं. इसमें समाजवादी पार्टी को सबसे अधिक 37, बीजेपी को 33 और उसके सहयोगी अपना दल को एक, रालोद को दो और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) को एक सीट मिली. कांग्रेस के प्रदेश में 6 सांसद हैं.
सैयद क़ासिम कहते हैं, “कुर्मी जाति बहुत ही रणनीतिक तरीके से वोट करती है. पहले यह क़ैसरगंज से बेनी प्रसाद वर्मा, फ़ैज़ाबाद से विनय कटियार और बस्ती से राम प्रसाद चौधरी को वोट देती रही है.”
उनका कहना है, “पूर्वांचल की बात करें तो पंकज चौधरी बीजेपी से सांसद हैं, तो बस्ती से समाजवादी पार्टी के राम प्रसाद चौधरी सांसद हैं.”
इसी तरह विधानसभा में भी इस जाति के विधायकों की संख्या 40 से ज़्यादा है. उदाहरण के तौर पर कांग्रेस के दो विधायकों में से एक कुर्मी जाति से हैं.
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में 52 ब्राह्मण विधायक बने, उसके बाद 49 ठाकुर विधायक बने हैं. तीसरे नंबर पर कुर्मी हैं, जिनके 41 विधायक हैं. जबकि चौथे नंबर पर 34 विधायक मुस्लिम हैं.
कुर्मी जाति के विधायकों में से बीजेपी गठबंधन से 27 हैं, जिसमें अपना दल भी शामिल है.
सपा गठबंधन से 13 और एक कुर्मी विधायक कांग्रेस पार्टी से जीतकर सदन पहुंचे हैं. वहीं यादव विधायकों की कुल संख्या सदन में 27 है.
क्या हो सकती हैं चुनौतियाँ
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बीजेपी पिछड़े वर्गों में अपनी पकड़ मज़बूत करने की रणनीति पर काम करती रही है. लेकिन पंकज चौधरी को आगे बढ़ाना इसी सामाजिक समीकरण का हिस्सा माना जा रहा है. यही चुनौती भी है कि कैसे इसको साधे रखा जाए.
नए अध्यक्ष के सामने मुख्यमंत्री के साथ समन्वय बैठाना भी शामिल है.
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलाहंस ने कहा, ”उनके सामने या तो स्वतंत्र देव सिंह की तरह योगी के साथ रहने का विकल्प है या फिर केशव प्रसाद मौर्य की तरह की राजनीति करने का है.”
बीजेपी की निगाह पूरे कुर्मी वोट पर है, इसलिए अनुप्रिया पटेल तो साथ में हैं. लेकिन पूर्वांचल में कुर्मी आबादी कई मंडलों में है. अयोध्या, देवीपाटन मंडल, लखीमपुर खीरी का इलाक़ा और बस्ती मंडल में ठीकठाक वोट हैं.
सैयद क़ासिम कहते हैं, ”बीजेपी की इस रणनीति का नुक़सान तो नहीं है, लेकिन बहुत फ़ायदा भी नहीं होने वाला है.”
मिर्जापुर और वाराणसी के इलाक़े में अनुप्रिया पटेल का प्रभाव है. लेकिन साल 2024 के लोकसभा चुनाव में ये वोट खिसका है.
सैयद क़ासिम कहते हैं, ”संविधान और आरक्षण के मामले में ओबीसी वर्ग में बेचैनी थी. इसलिए ‘इंडिया गठबंधन’ को वोट मिले थे. लेकिन बीजेपी अब चौधरी के सहारे इस वर्ग में अपना विश्वास बढ़ाना चाहती है.”
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उत्तर प्रदेश में पंकज चौधरी कुर्मी जाति से आने वाले चौथे प्रदेश अध्यक्ष होंगे. इससे पहले स्वतंत्र देव सिंह, विनय कटियार और ओम प्रकाश सिंह भी इस पद पर रह चुके हैं.
बीजेपी के एक नेता ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, ”पंकज चौधरी के आने से जो कुर्मी का पैसे वाला तबका है वो पार्टी के साथ मज़बूती के साथ रहेगा. इस वजह से खेती किसानी करने वाले लोग भी साथ जुड़ेंगे.”
बीजेपी ने पहले ही केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री बना रखा है. पिछड़ी जातियों में लोध समुदाय से चौधरी धर्मपाल और संदीप सिंह मंत्री है. संदीप सिंह पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पौत्र हैं.
वहीं बीजेपी का ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) से गठबंधन है. बीजेपी ने सामाजिक समीकरण साधने के लिए संजय निषाद की पार्टी से गठबंधन किया है.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में साथ छोड़ने के बावजूद बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को प्रदेश में मंत्री बनाया हुआ है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.