
पंजाब यूनिवर्सिटी के सीनेट सिस्टम में केंद्र सरकार की बदलाव की कोशिशों के विरोध में चंडीगढ़ स्थित यूनिवर्सिटी कैंपस में पिछले एक हफ़्ते से प्रदर्शन हो रहे हैं.
10 नवंबर की तारीख़ को छात्र यूनियनों के यूनिवर्सिटी पहुंचने के आह्वान पर किसान संगठनों समेत कई वर्गों के लोग यूनिवर्सिटी पहुंच गए थे.
हालांकि इससे पहले ही केंद्र सरकार ने सीनेट सिस्टम में बदलाव वाली अधिसूचना रद्द कर दी थी.
विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह भी कहा था कि सीनेट चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
इसके बावजूद प्रदर्शनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं हुए और सीनेट चुनाव की तारीख़ घोषित करने पर प्रदर्शन जारी रखने का एलान किया है.
पंजाब विश्वविद्यालय भारत का एकमात्र विश्वविद्यालय है जो 1904 के विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत संचालित होता है. इसके तहत विश्वविद्यालय के सभी निर्णय सिंडिकेट और सीनेट द्वारा लिए जाते हैं.
अधिसूचना जारी फिर वापस ली गई

यह विवाद 28 अक्तूबर को केंद्र सरकार के विश्वविद्यालय की सीनेट और सिंडिकेट में बड़े बदलाव करने के फ़ैसले से शुरू हुआ था. इसको लेकर जारी की गई अधिसूचना में पंजाब विश्वविद्यालय अधिनियम 1947 में बड़ा संशोधन किया गया था.
इस संशोधन के तहत पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में सीनेट चुनाव ख़त्म किेए गए थे और साथ ही स्नातक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व भी ख़त्म कर दिया गया था.
विरोध प्रदर्शन तेज़ होने के बाद केंद्र सरकार को अपना फ़ैसला वापस लेना पड़ा.
4 नवंबर को सरकार की ओर से एक और अधिसूचना जारी की गई, जिसमें कहा गया कि पहली अधिसूचना रद्द कर दी गई है. इसके बाद एक और अधिसूचना आई जिसमें कहा गया कि बदलावों के साथ अधिसूचना लागू करने की तारीख़ टाल दी गई है.
पहले अधिसूचना लागू करने की तारीख़ 5 नवंबर थी.
रविवार, 9 नवंबर को पंजाब विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी कर कहा कि उन्होंने सीनेट चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
लेकिन छात्र संगठनों की ओर से 10 नवंबर को चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी पहुंचने का आह्वान वापस नहीं लिया गया.
विश्वविद्यालय में लोकतंत्र ख़त्म करने वाला फ़रमान

पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, सीनेट पंजाब विश्वविद्यालय के मामलों, समस्याओं और संपत्ति का मैनेजमेंट और देखरेख करती है.
पंजाब विश्वविद्यालय अधिनियम, 1947 के तहत नियमों के माध्यम से अलग-अलग कोर्सों में डिपार्टमेंट का गठन करने की शक्तियां सीनेट के पास हैं.
आम बोलचाल की भाषा में, सीनेट विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गतिविधियों और नीतियों के लिए ज़िम्मेदार संस्था है, जिसमें पहले लगभग 90 सदस्य होते थे, लेकिन केंद्र के प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार 31 सदस्य ही रहने थे.
15 सदस्यीय सिंडिकेट विश्वविद्यालय का कार्यकारी निकाय है जो विश्वविद्यालय के रोज़मर्रा के कामों की देखरेख करता है.
केंद्र सरकार की अधिसूचना… धारा 13 का स्थान लेने के लिए थी, जिसमें साधारण फ़ेलो की संख्या 24 तक सीमित थी. वहीं पहले से चले आ रहे अधिनियम में, विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत 85 साधारण फ़ेलो चुने और नामित किए जा सकते थे.

केंद्र सरकार की नई अधिसूचना में धारा 14 को भी हटा दिया गया. इसके तहत रजिस्टर्ड ग्रैजुएट्स के लिए वार्षिक चुनाव कराना अनिवार्य था और मतदाता सूची, शुल्क-आधारित रजिस्ट्रेशन और ग्रैजुएट्स के मताधिकार को बनाए रखने के लिए एक सिस्टम बनाया गया था.
संशोधित धारा 13 के तहत, साधारण फ़ेलो में अब 2 विश्वविद्यालय प्रोफे़सर, 2 एसोसिएट या सहायक प्रोफे़सर, एसोसिएटेड या गठित कॉलेजों के चार प्रिंसिपल और एसोसिएटेड या गठित कॉलेजों के 6 शिक्षक शामिल होंगे, जिनमें से सभी को उनकी संबंधित कैटेगरी में चुना जाना था.
पंजाब विधानसभा के दो सदस्यों को अध्यक्ष के ज़रिए नामित करना था. दो पूर्व छात्रों और शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार या सार्वजनिक जीवन में अनुभव रखने वाले बाक़ी लोगों को चांसलर के ज़रिए नियुक्त करना था.
किसी भी कैटेगरी के चुनाव के लिए चांसलर की स्वीकृति अनिवार्य थी और कार्यकाल चार वर्ष का था.
पंजाब विश्वविद्यालय से रिटायर हो चुके और पूर्व सीनेट व सिंडिकेट सदस्य रहे प्रोफ़ेसर ख़ालिद का कहना था कि केंद्र सरकार के इस फ़रमान से विश्वविद्यालय में पंजाब का प्रतिनिधित्व बहुत कम हो जाता.
अधिसूचना वापस लिए जाने से पहले बीबीसी न्यूज़ पंजाबी से बात करते हुए उन्होंने कहा था, “वाइस चांसलर को शक्ति दे दी गई है. यह फ़रमान विश्वविद्यालय में लोकतंत्र को ख़त्म करने वाला फ़रमान है. अब अपनी पसंद के सदस्य नियुक्त किए जाएंगे, नीतियों में मनमर्ज़ी से बदलाव किए जाएंगे, जिनके पास शक्ति होगी वे उनके आदेशों का पालन करेंगे और कोई भी सत्ता पर सवाल नहीं उठा पाएगा.”
बैरिकेड तोड़े, विश्वविद्यालय में घुसे

केंद्र की अधिसूचना के विरोध में छात्र संगठनों ने पंजाब के लोगों से 10 नवंबर को भारत बंद का आह्वान किया था. केंद्र के अधिसूचना रद्द करने के बाद भी छात्र संगठनों ने अपनी कॉल वापस नहीं ली.
बीते सोमवार, 10 नवंबर को पंजाब से भी कई संगठन छात्रों के पक्ष में प्रदर्शन करने विश्वविद्यालय पहुंच गए थे. माहौल तनावपूर्ण होता देख विश्वविद्यालय को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया था.
भारी पुलिस बल की मौजूदगी में विश्वविद्यालय के तीनों गेट बंद कर दिए गए थे. जैसे ही छात्र और अन्य संगठनों के लोग गेट की ओर बढ़े, पुलिस से उनकी धक्का-मुक्की हो गई.
काफी जद्दोजहद के बाद छात्र पीजीआई के सामने स्थित विश्वविद्यालय के गेट नंबर एक से बाहर निकले. फिर प्रदर्शनकारी पुलिस के सभी बैरिकेड्स को तोड़ते हुए विश्वविद्यालय में दाखिल हो गए.
प्रोफ़ेसर ख़ालिद के अनुसार उनके 46 साल के अनुभव में विश्वविद्यालय के अंदर इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन कभी नहीं हुआ.
उन्होंने कहा, “हमारे शिक्षण संस्थानों पर राजनीति हावी नहीं होनी चाहिए. आज पंजाब विश्वविद्यालय में 8 से 10 हज़ार लोग पहुंचे, जिनका शिक्षण व्यवस्था से कोई संबंध नहीं है और न ही वे विश्वविद्यालय और न ही सीनेट-सिंडिकेट को समझते हैं.”
“लेकिन इन लोगों को लगता है कि विश्वविद्यालय को दबाया जा रहा है. सीनेट-सिंडिकेट ख़त्म हो रहा है और केंद्र सरकार पंजाबी विश्वविद्यालय को अपने कब्ज़े में ले रही है.”
प्रोफ़ेसर ख़ालिद कहते हैं, “सरकारों को हितधारकों को विश्वास में लिए बिना ऐसे फ़ैसले नहीं लेने चाहिए, जिन पर लोग फिर प्रतिक्रिया दें. चंडीगढ़ पहले से ही पंजाब में एक अलग मुद्दा है और दूसरी बात, चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय और भी गहरा मुद्दा है क्योंकि हमारे मूल्य, संस्कार, पृष्ठभूमि, इतिहास, संस्कृति पंजाब विश्वविद्यालय से जुड़ी हुई हैं.”
‘अस्तित्व का सवाल’

छात्रों के समर्थन में भारतीय किसान यूनियन, राजेवाल भी आई. किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, “आज मुद्दा सिर्फ विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है. हमारे पानी का मुद्दा, चंडीगढ़ का मुद्दा, विश्वविद्यालय का मुद्दा समेत कई मुद्दे हैं और हमारे साथ कई बार धोखा हुआ है.”
पूर्व मुख्यमंत्री और जालंधर से कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी भी यूनिवर्सिटी पहुंचे और कहा कि हम पंजाब यूनिवर्सिटी पर क़ब्ज़ा नहीं होने देंगे, पूरा पंजाब इस मुद्दे पर एकजुट होकर लड़ रहा है.
उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय हमारी मां है और पंजाब विश्वविद्यालय हमारी मां है. सरकारें विश्वविद्यालय का बाल भी बांका नहीं कर सकतीं. यहां उपस्थित जनसमूह हमें बता रहा है कि पंजाब के हर घर में विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी बैठा है.”

इससे पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से 5 नवंबर की शाम को जारी प्रेस नोट में कहा गया कि केंद्र सरकार अपने शब्दों के हेरफेर से पंजाबियों को मूर्ख न बनाए और पंजाब विश्वविद्यालय संबंधी फ़ैसला तुरंत वापस लिया जाए.
मुख्यमंत्री ने कहा, ”पंजाबी आपके संदिग्ध चरित्र से भली-भांति परिचित हैं और वे इस मुद्दे पर अपने संघर्ष से केवल तोड़-मरोड़ कर लिखे गए पत्रों से विचलित नहीं होंगे और तब तक चुप नहीं बैठेंगे जब तक पंजाब विश्वविद्यालय संबंधी आदेश पूरी तरह से वापस नहीं ले लिए जाते.”
उसी दौरान पंजाब बीजेपी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “केंद्र सरकार ने पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट और सिंडिकेट में किए गए बदलावों को वापस लेने की अधिसूचना जारी कर दी है.”
“पंजाब बीजेपी पंजाबियों की भावनाओं के अनुरूप लिए गए इस निर्णय का स्वागत करती है और केंद्र सरकार का धन्यवाद करती है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.