पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या के एक अभियुक्त श्रीकांत पांगारकर शुक्रवार को शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) में शामिल हो गए. पांगारकर हाल ही में ज़मानत पर रिहा हुए हैं.
उन्हें पार्टी ने जालना विधानसभा क्षेत्र का प्रमुख नियुक्त किया है.
महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता अर्जुन खोतकर की मौज़ूदगी में शुक्रवार को पांगारकर को ये ज़िम्मेदारी दी गई.
इसके बाद अर्जुन खोतकर ने अपने आधिकारिक फे़सबुक पन्ने पर एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा, “श्रीकांत पांगारकर को शिवसेना के जालना विधानसभा प्रमुख के रूप में चुना गया है.”
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पार्टी के इस फ़ैसले की राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी आलोचना हुई.
जिसके बाद बीबीसी मराठी ने श्रीकांत पांगारकर पर लगे आरोपों, शिवसेना शिंदे गुट की भूमिका और विपक्षी दलों की आलोचना की समीक्षा की है.
इसके साथ ही बीबीसी मराठी टीम ने अर्जुन खोतकर से बात कर साल 2018 और 2024 में दिए उनके अलग-अलग बयानों के बारे में जाना.
विरोधी दलों की आलोचना
शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र गुट) समेत अन्य राजनीतिक दलों ने एकनाथ शिंदे की पार्टी के इस फ़ैसले की आलोचना की है.
शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता और विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे ने कहा, “जिस पार्टी का नेता राज्य का मुख्यमंत्री हो, उसके लिए अपराधियों को इस तरह बचाना गलत है. यह नैतिक रूप से सही नहीं है.”
पांगारकर को बड़ा पद देने के फ़ैसले को एनसीपी (शरद चंद्र गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने ‘बेहद चौंकाने वाली’ घटना बताया.
सुप्रिया सुले ने कहा, “अपराधियों को इस तरह से सामाजिक प्रतिष्ठा दिलाने में ख़ुद मौजूदा मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी सबसे आगे है. इस राज्य में क़ानून और व्यवस्था की स्थिति बदहाल होने के कई कारणों में से यह एक प्रमुख कारण है. जानीमानी पत्रकार गौरी लंकेश के हत्यारे को वर्तमान सरकार के घटक दल ने सम्मानित किया.”
सुले ने कहा, “महाराष्ट्र को ऐसी सरकार चाहिए जो वर्तमान सरकार को नकारे और क़ानून का सम्मान करने वाली हो.”
सुप्रिया सुले ने इसे लेकर सोशल मीडिया पर लिखा, “इस सरकार में न्याय के लिए कोई सम्मान नहीं है, सरकार क़ानून के शासन को दरकिनार कर अपरााधियों को बचा रही है. ”
वहीं कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने पूछा कि क्या किसी को इस बात पर थोड़ा भी आश्चर्य है कि पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में एक अभियुक्त को शिवसेना (शिंदे गुट) में शामिल कर लिया गया.
श्रीनेत ने यह भी कहा, “इतना ही नहीं श्रीकांत पांगारकर को जालना विधानसभा चुनाव का प्रभार भी दिया गया है.”
‘अपराधियों को खुलेआम पनाह’
मुंबई कांग्रेस ने भी एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट शेयर कर शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट की आलोचना की है.
मुंबई कांग्रेस ने लिखा, “अपराधियों को खुले तौर पर आश्रय दिया जा रहा है. महाराष्ट्र के प्रगतिशील चेहरे का अपराधीकरण करने का पाप गठबंधन कर रहा है.”
“2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के मामले में अभियुक्त श्रीकांत पांगारकर हाल ही में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हुए हैं. इसके बाद उन्हें जालना विधानसभा प्रमुख नियुक्त किया गया है. पांगारकर ने जालना विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की है.”
मुंबई कांग्रेस ने ये भी लिखा, “पांगारकर को तब गिरफ़्तार किया गया जब पता चला कि वो गौरी लंकेश हत्याकांड की जांच के दौरान अमोल काले के संपर्क में थे. वो नालासोपारा हथियार जमाखोरी मामले में भी शामिल थे. पांगारकर पहले जालना नगर परिषद के पार्षद थे.”
बीबीसी मराठी ने शीवसेना शिंदे गुट के नेता अर्जुन खोतकर से भी बात की, जिन्होंने श्रीकांत पांगारकर को जालना विधानसभा क्षेत्र प्रमुख नियुक्त किया.
गौरी लंकेश हत्याकांड में पांगारकर पर लगे आरोप के बारे में पूछे जाने पर खोतकर ने कहा, “यह मामला कर्नाटक का है. उन्हें इस मामले में फंसाया गया है और उनका कहना है कि वह निर्दोष हैं. वो मुख्य अभियुक्त नहीं हैं, वो अभियुक्त नंबर 16 हैं और सभी अभियुक्त ज़मानत पर हैं. फ़ैसला आने पर हम देखेंगे.”
अर्जुन खोतकर ने यह भी कहा, “श्रीकांत पांगारकर दो बार यानी 10 साल तक शिवसेना के पार्षद रहे. उन्होंने शिवसेना नहीं छोड़ी थी. वो अभी भी शिवसेना में थे. उन्हें केवल नियुक्ति पत्र दिया गया था.”
‘राजनीति में अपराध का सामान्यीकरण’
बीबीसी ने इस संबंध में मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील असीम सरोदे से बात की.
असीम सरोदे ने कहा, “कुछ साल पहले राजनीति में कम से कम अपराध को लेकर चर्चा होती थी. हालांकि, अब ये इतनी सामान्य हो गई है कि चर्चा लगभग बंद हो गई है. कई गैंगस्टरों ने केवल चुनावी योग्यता के आधार पर राजनीति में स्थिरता हासिल की है.”
“पहले एक संकेत था कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को सीधे राजनीतिक नियुक्तियां नहीं दी जानी चाहिए. हालांकि, कुछ पार्टियों ने ये सार्वजनिक शर्मिंदगी छोड़ दी है. उन्हें लगता है कि एक बार जब हम सत्ता में आ जाते हैं, तो लोग सब कुछ स्वीकार कर लेते हैं.”
उन्होंने कहा, “महात्मा गांधी ने कहा था कि सही लक्ष्य तक पहुंचने के लिए साधन शुद्ध होने चाहिए. लेकिन मौजूदा वक्त में ऐसा कोई सामंजस्य नहीं है.”
पांगारकर को लेकर अर्जुन खोतकर का ‘यू-टर्न’!
2018 में जब श्रीकांत पांगारकर को गिरफ़्तार किया गया था तब अर्जुन खोतकर महाराष्ट्र कैबिनेट में राज्य मंत्री हुआ करते थे और पांगारकर की गिरफ्तारी पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि श्रीकांत पांगारकर का अब शिवसेना से कोई लेना-देना नहीं है.
अर्जुन खोतकर ने कहा था, “2011 में उम्मीदवारी से इनकार किए जाने के बाद उनका पार्टी से कोई लेना-देना नहीं था. लाखों लोग चुनाव में काम करते हैं. हमें कैसे पता चलेगा कि यह व्यक्ति पार्टी के लिए काम कर रहा था या नहीं? मुझे आश्चर्य है कि वह किसके लिए काम कर रहा था, पता नहीं.”
2018 में अर्जुन खोतकर ने एबीपी माझा से कहा था, “श्रीकांत पांगारकर जब तक शिवसेना में थे तब तक ऐसी किसी स्थिति में नहीं थे. भगवान जाने पांगारकर शिवसेना छोड़ने के बाद कहां किसके साथ शामिल हो गए.”
रविवार को बीबीसी मराठी ने अर्जुन खोतकर से संपर्क किया और उनसे पूछा कि 2018 में पांगारकर को लेकर दी गई प्रतिक्रिया और आज की प्रतिक्रिया में अंतर क्यों है?
इस सवाल पर उन्होंने कहा, “उस समय मैंने कहा था कि श्रीकांत पांगारकर शिवसेना के नगरसेवक नहीं हैं. हालांकि मीडिया हमसे क्या प्रतिक्रिया लेता है और क्या छापता है, हमें पता भी नहीं चलता.”
गौरी लंकेश हत्याकांड से आख़िर क्या है श्रीकांत पांगारकर का कनेक्शन?
अगस्त 2018 में, आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने मुंबई के पास नालासोपारा से देशी बंदूकों सहित कई विस्फोटक ज़ब्त किये थे.
इस मामले की जांच के दौरान डॉ. दाभोलकर की हत्या में शामिल लोगों के बारे में जानकारी मिली.
एटीएस ने इसी मामले में शिवसेना के पूर्व जालना नगरसेवक श्रीकांत पांगारकर को भी गिरफ़्तार किया था.
पांगारकर पर आरोप है कि वो महाराष्ट्र के कई स्थानों पर हमले की साजिश के लिए वित्तीय सहायता पहुंचाने के लिए ज़िम्मेदार थे.
पांगारकर 2001 से 2011 के बीच दो बार जालना नगर पालिका के लिए पार्षद चुने गए. लेकिन पिछले दिनों वो अपने परिवार के साथ औरंगाबाद में रह रहे थे.
अगस्त 2018 में, नालासोपारा में एटीएस ऑपरेशन के बारे बीबीसी मराठी ने महेश बुल्गे से बातचीत की थी. महेश बुल्गे जालना के अख़बार ‘आनंदनगरी’ के पत्रकार हैं और कई सालों से पांगारकर के दोस्त हैं.
महेश बुल्गे ने कहा था, “पांगारकर के पिता बीजेपी में थे. लेकिन श्रीकांत शुरू से ही आक्रामक हिंदू थे, इसलिए वह शिवसेना में शामिल हो गए. दो बार पार्षद बनने के बाद उनका टिकट काट दिया गया. फिर उन्होंने अपनी पत्नी को निर्दलीय मैदान में उतारा. लेकिन वो भी हार गई थीं.”
अशोक पांगारकर, श्रीकांत पांगारकर के चचेरे भाई हैं और 2018 में जालना नगर पालिका में बीजेपी से पार्षद थे. उनके मुताबिक़ उनके भाई पर लगे आरोप झूठे हैं.
अपने भाई का पक्ष लेते हुए उन्होंने पूछा था, “उनकी अपनी वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, तो वो ऐसे काम के लिए वित्तीय सहायता कैसे पहुंचा सकते हैं?”
अशोक पांगारकर ने कहा था कि उनके भाई अभी भी शिवसेना के संपर्क में हैं.
उनका कहना था, “वो शुरू से ही हिंदू संस्कृति को बचाने के लिए काम करते रहे हैं. जहां जबरन अंतर-धार्मिक विवाह होते थे, वहां उन्होंने लड़कियों को वापस लाने के लिए भी कार्यक्रम आयोजित किए. वो रक्तदान शिविर भी आयोजित करते थे. तो यह कैसे कहा जा सकता है कि उन्होंने राजनीति छोड़ दी थी? साल 2014 उन्होंने चुनाव के दौरान अर्जुन खोतकर के साथ काम किया था.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित