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- Author, सिसिलिया बारिया, सैंटियागो वेनगैस और एंजेल बर्मुडेज़
- पदनाम, बीबीसी मुंडो
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‘हमारी मदद कीजिए’. एक कागज़ के टुकड़े पर पर ये संदेश लेकर पनामा सिटी के लग्ज़री डेकापोलिस होटल की खिड़कियों पर दो लड़कियां खड़ी हैं.
ये होटल अपने ग्राहकों को ऐसे कमरे मुहैया कराता है, जहां से समुद्र दिखता है. इसमें दो ख़ास रेस्तरां, एक स्वीमिंग पूल, एक स्पा है. प्राइवेट ट्रांसपोर्टेशन की भी सुविधा है.
लेकिन ये होटल अस्थायी ‘हिरासत केंद्र’ में बदल चुका है. यहां अमेरिका से वापस भेजे गए 299 प्रवासियों को रखा गया है. पनामा सरकार ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी.
यहां रखे गए कुछ प्रवासी अपनी बांह उठाकर उसे अपनी कलाइयों तक ले जाते हैं और एक ख़ास संकेत बना कर ये बताते हैं कि उनकी आज़ादी छिन गई है. कुछ लोग संकेत देकर ये कहना चाहते हैं, ”हम अपने देश में सुरक्षित नहीं हैं.”
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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान ही डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था वो अमेरिका में बगैर वैध दस्तावेज़ के रह रहे लोगों को वापस भेजने का बड़ा कार्यक्रम चलाएंगे और व्हाइट हाउस में आते ही उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी.
ट्रंप की इस नीति के तहत अमेरिका से भेजे गए ऐसे लोग पिछले सप्ताह तीन विमानों से पनामा पहुंचे.
पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलीनो हाल में इस बात पर सहमत हुए कि उनका देश अमेरिका से भेजे गए प्रवासियों के लिए एक ‘ब्रिज कंट्री’ बनेगा.
भारतीय प्रवासियों का हाल
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हालांकि भारत, चीन, उज़्बेकिस्तान, ईरान, वियतनाम, तुर्की, नेपाल, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और श्रीलंका के 299 में से सिर्फ 171 प्रवासी ही अपना देश वापस जाने के लिए तैयार हैं.
भारतीय दूतावास ने कहा कि भारतीय होटल में सुरक्षित हैं और उन्हें सभी जरूरी सुविधाएं मिली हुई हैं.
भारतीय दूतावास की टीम को कॉन्सुलर एक्सेस मिल गया है. भारतीय दूतावास उनकी सुरक्षा के मद्देनजर पनामा सरकार के साथ मिल कर काम कर रहा है.
लेकिन जो लोग अभी वहां से नहीं जाना चाहते हैं उनका भविष्य और भी अनिश्चित है.
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पनामा सरकार ने बताया कि इस समूह को डेरियन प्रांत के एक कैंप में भेज दिया जाएगा. यहां जंगल के रास्ते अमेरिका आने वाले लोगों को अस्थायी तौर पर ठहराया गया है.
सामान्य दिनों में पर्यटक इस होटल में आसानी से आ-जा सकते हैं, लेकिन यहां पनामा नेशनल एरोनेवल सर्विस के हथियारबंद लोग तैनात हैं और बिल्डिंग के बाहर और भीतर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था लागू की गई है.
गली से होटलों की तरफ देखने पर खिड़कियों पर कपड़े सूखते दिख जाते हैं. इन कपड़ों में एक पीली बास्केटबॉल जर्सी दिखती है जिस पर नंबर 24 लिखा है. 24 नंबर की जर्सी दिग्गज बास्केटबॉल खिलाड़ी कोब ब्रायंट पहनते हैं.
एक दूसरी खिड़की पर कुछ बड़े और बच्चे अपनी बांह उठाकर हथेलियों को अपने अंगूठे से सटाते हैं. ये मदद मांगने का अंतरराष्ट्रीय संकेत है. खिड़कियों के कांचों पर लाल अक्षरों में लिखा है- ‘हेल्प अस’.
दो नाबालिगों ने अपने चेहरे ढक रखे हैं. उन्होंने सफेद कागज़ का एक टुकड़ा पकड़ रखा है. खिड़कियों से सटाकर रखे गए इन कागज़ों पर लिखा है- ‘प्लीज सेव द अफ़ग़ान गर्ल्स’.
बुरी तरह डरे हुए हैं अमेरिका से वापस भेजे गए प्रवासी
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पनामा में कई साल रह चुकी एक ईरानी महिला ने बीबीसी को बताया कि वो होटल के अंदर रह रहे एक प्रवासी के संपर्क में हैं. उन्होंने बताया कि यहां रह रहे लोग बेहद डरे हुए हैं. उन्हें वापस ईरान भेजे जाने का डर सता रहा है.
ईरानी महिला ने बताया कि वो होटल में एक फारसी अनुवादक के तौर पर मदद देने के लिए गई थी. लेकिन होटल वालों ने कहा कि उनके पास पहले ही एक अनुवादक है. हालांकि होटल के सूत्रों ने उन्हें बताया कि ये सच नहीं है.
होटल के अंदर रह रहे लोगों को बाहर के लोगों से संपर्क की इजाज़त नहीं है. लिहाजा ईरानी महिला ने एक गुप्त फोन से इन लोगों से संपर्क किया था.
इस महिला के मुताबिक़ होटल में रह रहे लोगों ने बताया कि इसके अंदर कई ‘नाबालिग’ भी हैं. उनकी मदद के लिए कोई वकील मुहैया नहीं कराया गया है. उन्हें खाना खाने के लिए अपने कमरे से बाहर जाने की भी इजाज़त नहीं है.
मंगलवार को इन प्रवासियों की पहली बार मीडिया में ख़बर आते ही होटल की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी गई. प्रवासियों को मिली इंटरनेट सुविधा भी ख़त्म कर दी गई.
पनामा के मंत्री ने क्या बताया
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बीबीसी ने डेकापोलिस होटल और पनामा सरकार से इन प्रवासियों की स्थिति जानने के लिए सपंर्क किया लेकिन उसे अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.
हालांकि पनामा के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री फ्रैंक एबरेगो ने कहा प्रवासियों को होटल से बाहर जाने की इजाज़त नहीं है. क्योंकि पुलिस पर पनामा के लोगों को सुरक्षा और शांति मुहैया कराने का दायित्व है.
इस सप्ताहंत के दौरान सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में एक प्रवासी को फारसी में ये कहते हुए दिखाया गया कैसे उन लोगों को सीमा पार कर अमेरिका पहुंचते ही हिरासत में ले जाया गया.
पहले कहा गया है कि उन्हें टेक्सास ले जाया गया लेकिन अंत में पनामा पहुंचा दिया गया.
वीडियो में ये महिला प्रवासी बार-बार ये कह रही है कि अगर वो ईरान लौटीं तो उसकी ज़िंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी.
ईरान की सरकार उसके ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई कर सकती है. उसकी मंशा अमेरिका में राजनीतिक शरण मांगने की थी.
विश्लेषकों का कहना है कि बगैर वकीलों तक पहुंच के राजनीतिक शरण मांगने की प्रक्रिया कठिन है. अब पनामा में ये कठिन हो जाएगा क्योंकि यहां की सरकार ने कहा कि प्रवासियों को ये सुविधा नहीं दी जाएगी.
अस्थायी हिरासत
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एबरेगो ने मंगलवार को कहा कि ये प्रवासी अस्थायी तौर पर पनामा में ही रहेंगे. उन्हें इस देश की सुरक्षा मिलेगी.
उन्होंने कहा, ”हम अमेरिकी सरकार के साथ इस बात पर सहमत हैं. वे यहां अस्थायी हिरासत में रहेंगे. उनकी सुरक्षा के लिए ये ज़रूरी है.
उन्होंने कहा कि जो प्रवासी अपने देश में नहीं लौटना चाहते हैं उन्हें किसी तीसरे देश को चुनना होगा.
उन्होंने कहा कि ऐसे हालात में इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ माइग्रेशन और शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग यानी ‘यूएनएचसीआर’ उन्हें वापस भेजने के लिए जिम्मेदार होगा.
एबरेगो ने कहा कि प्रवासियों को इसलिए डेकापोलिस होटल में रखा गया क्योंकि इसी में इन्हें रखने की क्षमता थी.
एक दूसरे वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उन्हें ज्यादा प्रवासियों के आने की उम्मीद नहीं थी. क्योंकि उन्हें लाने के लिए विमानों की संख्या बढ़ाने की पर सहमति नहीं बनी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से पनामा नहर पर दोबारा दावे के बीच विदेश मंत्री मार्को रूबियो पनामा पहुंचे थे.
इस यात्रा के दौरान पनामा इस बात के लिए राजी हो गया था कि वह अमेरिका से वापस भेजे जाने वाले प्रवासियों के लिए ‘ब्रिज कंट्री’ की भूमिका निभाएगा.
इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन माइग्रेशन के एक प्रवक्ता ने बीबीसी से कहा कि अमेरिका से वापस भेजे गए लोगों को ज़रूरी मदद करने का ज़िम्मा इस संगठन पर है.
उन्होंने कहा, ”हम इन लोगों की मदद करने के लिए स्थानीय अधिकारियों से मिलकर काम कर रहे हैं. जो लोग मर्ज़ी से वापस लौटना चाहते हैं उनकी मदद कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि उनके लिए सुरक्षित विकल्प तलाशे जाएं.
‘अमेरिका ने पल्ला झाड़ा’
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अमेरिकी थिंक टैंक माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट में सीनियर रिसर्चर मुज़फ़्फ़र चिश्ती ने कहा कि कई प्रवासी ऐसे देशों से आए हैं जिनके मूल देश अब उन्हें वापस लेने के लिए तैयार नहीं हैं.
उन्होंने बीबीसी से कहा, ”इसका मतलब है कि उन देशों की सरकारों के साथ लगातार कूटनीतिक सौदेबाजी होती रहेगी.”
उन्होंने कहा, ” इन प्रवासियों को पनामा भेजकर अमेरिका अब तस्वीर से बाहर है. अब ये पनामा का सिरदर्द होगा कि प्रवासियों के मूल देश से बात कर उन्हें इन लोगों को वापस लेने के लिए राजी किया जाए.”
इस सप्ताह अमेरिका से प्रवासियों को लेकर एक और जहाज़ कोस्टारिका पहुंच सकता है. कोस्टारिका भी ऐसे प्रवासियों के लिए ब्रिज कंट्री बनने के लिए तैयार हो गया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित