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“क्या बांग्ला में बात करना अपराध है? शायद हाँ. इसी अपराध में हमें बांग्लादेशी करार देकर अपमानित और परेशान किया गया.”
यह कहना है पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद की मज़दूर बस्ती में रहने वाले अमीनुल हक़ का.
वो महाराष्ट्र के ठाणे में मज़दूरी करते थे. लेकिन वहाँ से पाँच मज़दूरों को जबरन बांग्लादेश भेजे जाने के बाद डर से वो बीते सप्ताह ही अपने गाँव लौट आए हैं.
इसी सप्ताह राजस्थान के अलवर में भी बांग्लादेशी होने के संदेह में राज्य के उत्तर दिनाजपुर ज़िले के क़रीब 300 मज़दूरों को पुलिस ने 10 घंटों तक हिरासत में रखा था.
हाल में होने वाली इन घटनाओं के कारण मुर्शिदाबाद की मज़दूर बस्ती में डर का माहौल है. अब कामकाज के लिए दूसरे राज्यों में जाने से पहले, यहाँ रहने वाले युवा हिंदी सीख रहे हैं. इसी तरह दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोग भी अब टूटी-फूटी ही सही, हिंदी में बात करने की कोशिश कर रहे हैं.
इस महीने की शुरुआत में महाराष्ट्र पुलिस ने पश्चिम बंगाल के सात मज़दूरों को बांग्लादेशी होने के संदेह में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) को सौंपा था, जिसके बाद इन मजदूरों को बांग्लादेश भेज दिया गया था..
बाद में राज्य सरकार के हस्तक्षेप के कारण वो लोग वापस लौट सके.
इस मुद्दे का ज़िक्र करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी विधानसभा में यही सवाल उठाया था कि क्या बांग्ला भाषा में बात करना अपराध है?
यहाँ इस बात का ज़िक्र प्रासंगिक है कि बीते कुछ महीनों से महाराष्ट्र, राजस्थान और असम समेत कुछ राज्यों में अवैध रूप से भारत में रहने वाले लोगों की पहचान के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चल रहा है.
इस सिलसिले में असम सरकार की ‘पुश बैक’ नीति भी विवादों में रही है.
ममता बनर्जी ने क्या दलील दी?
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बीते दिनों राजस्थान के अलवर में बंगाल के मज़दूरों को बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में लिया गया था. इस ख़बर के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत में सवाल किया, “क्या बांग्ला में बातचीत करना अपराध है? वैध काग़ज़ात होने के बावजूद बीजेपी शासित राज्यों में बंगाल के मज़दूरों को जबरन बांग्लादेशी करार दिया जा रहा है.”
उन्होंने ये भी कहा था कि वे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात करेंगी.
उनकी दलील थी कि बांग्ला भाषा को संवैधानिक तौर पर मान्यता मिली है और यह रबींद्रनाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद जैसे महान हस्तियों की भाषा है.
मुख्यमंत्री का कहना है कि ऐसी तमाम घटनाएं उन राज्यों में ही हो रही हैं, जहाँ बीजेपी की डबल इंजन की सरकार है. उनका कहना है कि यह महज़ संयोग नहीं है, उन राज्यों में बंगाल के मज़दूरों को जान-बूझकर निशाना बनाया जा रहा है.
उत्तर 24-परगना ज़िले में बागदा के रहने वाले फ़ज़र मंडल अपनी पत्नी तस्लीमा मंडल के साथ काम की तलाश में महाराष्ट्र गए थे.
लेकिन उनको पुलिस ने बांग्लादेशी होने के संदेह में गिरफ़्तार कर सीमा पार भेजने के लिए बीएसएफ़ को सौंप दिया था.
इससे पहले मुंबई पुलिस ने तीन अन्य मज़दूरों को बीएसएफ़ के ज़रिए जबरन बांग्लादेश भेज दिया था.
तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य समीरुल इस्लाम पश्चिम बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं.
वे बताते हैं, “हाल में बीएसएफ़ ने राज्य के सात मज़दूरों को जबरन सीमा पार भेज दिया था. बाद में राज्य सरकार के हस्तक्षेप से उनकी वापसी संभव हो सकी. इन तमाम लोगों के पास नागरिकता के वैध दस्तावेज़ थे. इन लोगों का अपराध यह था कि वे बांग्ला बोलते थे.”
उनका सवाल है कि महाराष्ट्र पुलिस ने आख़िर बंगाल सरकार को सूचित किए बिना उन लोगों को सीधे बीएसएफ़ को कैसे सौंप दिया?
उनका कहना है कि इसी तरह बीएसएफ़ ने भी उनकी पहचान की पुष्टि के लिए स्थानीय प्रशासन से संपर्क नहीं किया.
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समीरुल इस्लाम के मुताबिक़ यह बांग्ला भाषी प्रवासी मज़दूरों को परेशान करने की किसी बड़ी साज़िश का हिस्सा है.
राजस्थान के अलवर में जिन मज़दूरों को बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में लिया गया था, वो उत्तर दिनाजपुर ज़िले के ईटाहार के रहने वाले हैं. यह लोग स्थानीय आवासीय कॉलोनियों में काम करते हैं और रसोइया, घरेलू काम, ड्राइवर और दैनिक मज़दूरी का काम करते हैं.
इनमें से एक मज़हर शेख़ ने फ़ोन पर बताया, “हमें पुलिस ने मंगलवार सुबह छह बजे ही हिरासत में ले लिया था. उसके बाद आंबेडकर भवन ले जाकर घंटों पूछताछ की गई.”
वहाँ ड्राइवर के तौर पर काम करने वाले हमीदुर रहमान ने कहा, “हमने पहचान पत्र दिखाए. लेकिन पुलिस लगातार हमें बांग्लादेशी बताती रही. इसकी वजह यह थी कि हम बांग्ला में बात कर रहे थे. हमें डर था कि कहीं जबरन बांग्लादेश नहीं भेज दिया जाए.”
दूसरे राज्यों से घर लौट रहे हैं मजदूर
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इनमें से कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने परिजनों को इसकी सूचना दी थी. परिजनों ने ईटाहार के तृणमूल कांग्रेस विधायक मुशर्रफ़ हुसैन को इसकी जानकारी दी और उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस बारे में बताया.
उसके बाद राज्य सरकार सक्रिय हुई. ममता बनर्जी ने मुख्य सचिव मनोज पंत को राजस्थान सरकार के समक्ष यह मामला उठाने को कहा. राजस्थान सरकार के अधिकारियों से बातचीत के बाद क़रीब 10 घंटे बाद इन मज़दूरों को छोड़ा गया.
रहमान बताते हैं, “फ़िलहाल कोई दिक़्क़त तो नहीं है लेकिन अब हम आपस में भी बांग्ला में बात करने से डरते हैं. इसी वजह से हम टूटी-फूटी हिंदी में ही बात करने की कोशिश कर रहे हैं. यहां की पुलिस ख़ासकर अल्पसंख्यक समुदाय के बांग्ला भाषियों को संदेह की निगाह से देख रही है.”
ममता बनर्जी का दावा है कि बांग्ला बोलने के अपराध में लोगों को जबरन बांग्लादेश भेजा जा रहा है. ऐसी घटनाएँ बीजेपी शासित राज्यों में बार-बार हो रही हैं.
उनका सवाल है कि क्या तमिल बोलने की वजह से तमिलनाडु के किसी व्यक्ति को श्रीलंका, या दार्जिलिंग के गोरखा बोलने वालों को नेपाल भेज दिया जाएगा?
बहरमपुर के तृणमूल कांग्रेस सांसद यूसुफ़ पठान ने भी बीती मई में ओडिशा में बंगाल के प्रवासी मज़दूरों को लेकर हुई घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र भेजकर हस्तक्षेप की अपील की थी.
उसके बाद तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद समीरुल इस्लाम ने भी इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भेज कर प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने, उनके दस्तावेज़ों की जाँच करने और उनके ख़िलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई करने से पहले राज्य सरकार को इसकी सूचना देने का अनुरोध किया था.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि फिलहाल बंगाल के क़रीब 22 लाख मज़दूर दूसरे राज्यों में काम करते हैं.
उनका कहना है, “इसी तरह दूसरे राज्यों के क़रीब डेढ़ करोड़ लोग पश्चिम बंगाल में काम करते हैं, लेकिन बंगाल में उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता. हम अगर यहां अपनी भाषा बोलने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें तो क्या होगा.”
प्रवासी श्रमिक एकता मंच के प्रमुख आसिफ़ फ़ारूक़ कहते हैं, “इन राज्यों में वैध पहचान पत्र दिखाने के बावजूद बंगाल के मज़दूरों का उत्पीड़न किया जा रहा है. हमने केंद्र से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है. लेकिन अब तक कोई पहल नज़र नहीं आ रही है.”
इन घटनाओं से डरकर हाल के दिनों में सैकड़ों मज़दूर दूसरे राज्यों से अपने घर लौट आए हैं. अब यह लोग हिंदी सीखने की कोशिश कर रहे हैं.
जो ठेकेदार इन मज़दूरों को काम के लिए दूसरे राज्यों में ले जाते हैं, अब वही इन्हें कामचलाऊ हिंदी सिखाने का भी इंतज़ाम कर रहे हैं.
आसिफ़ फ़ारूक़ कहते हैं, “रोज़ी-रोटी के लिए विभिन्न राज्यों में जाने वाले प्रवासी मज़दूरों को उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है. भारतीय नागरिक होने के बावजूद धर्म और भाषा के आधार पर हमें बांग्लादेशी करार दिया जा रहा है.”
तमाम राज्यों में लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाओं की वजह से ही मुर्शिदाबाद ज़िले के सूती ब्लाक में हनीफ़, अकमल और रहमान जैसे मज़दूर अब हिन्दी सीख रहे हैं.
यह लोग कभी न कभी उत्पीड़न का शिकार हो चुके हैं.
जालंगी के रहने वाले जब्बार मंडल बताते हैं, “बरसों से दूसरे राज्यों में काम करता रहा हूँ. लेकिन कभी नहीं सोचा था कि एक दिन जान बचाने के लिए हिंदी सीखनी होगी. लेकिन अब ऐसा करना हमारी मजबूरी है.”
राजनीतिक विवाद
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इस मुद्दे पर राजनीतिक विवाद भी तेज़ हो गया है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी पर भाषा पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. उन्होंने केंद्र की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा है कि उसे इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए.
बीएसएफ़ की भूमिका पर भी उन्होंने सवाल उठाया है. ममता का कहना है कि आख़िर पहचान की पुष्टि किए बिना ही मज़दूरों को जबरन सीमा पार कैसे भेजा जा रहा है?
तृणमूल कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने भी इसके लिए बीजेपी को ज़िम्मेदार ठहराया है.
लेकिन प्रदेश बीजेपी इन घटनाओं के लिए तृणमूल कांग्रेस सरकार को ही ज़िम्मेदार बता रही है.
विधानसभा में बीजेपी विधायक दल के सचेतक शंकर घोष ने ममता के आरोपों के जवाब में विधानसभा में कहा, “बंगालियों की इस अपमान के लिए तृणमूल कांग्रेस ही ज़िम्मेदार है. तृणमूल सरकार ने राज्य में घुसपैठियों को पनाह दी है और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता फ़र्जी दस्तावेज़ बनाने में जुटे हैं. इसी वजह से दूसरे राज्यों में बंगालियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.”
बीजेपी सांसद खगेन मुर्मू का कहना था, “राज्य में रोज़गार की कमी के कारण ही मज़दूरों को दूसरे राज्यों में जाना पड़ रहा है. अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए ही तृणमूल कांग्रेस मज़दूरों के उत्पीड़न के आरोप लगा रही है.”
वहीं तृणमूल सांसद समीरुल इस्लाम सवाल है कि आख़िर ऐसी तमाम घटनाएँ बीजेपी के शासन वाले राज्यों में बंगाल के प्रवासी मज़दूरों के साथ ही क्यों हो रही हैं?
इसका जवाब देते हुए बीजेपी नेता शमीक भट्टाचार्य कहते हैं, “ग़ैर-बीजेपी शासित तमिलनाडु में भी बंगाली मज़दूरों के पहचान पत्रों की जाँच की जा रही है. टीएमसी के आरोपों में दम नहीं है.”
लेकिन क्या यह मुद्दा सिर्फ़ राजनीतिक है जैसा ममता बनर्जी और उनकी सरकार आरोप लगा रही है?
कोलकाता के रबींद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर और विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, “यह वोट बैंक की राजनीति है. इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठा कर अगले चुनाव से पहले ममता अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को अटूट रखने का प्रयास कर रही हैं.”
“दूसरी तरफ, बीजेपी इसके बहाने तृणमूल कांग्रेस पर घुसपैठ और फ़र्ज़ी नागरिकता दस्तावेज़ बनाने के आरोप लगा कर अपने वोट बैंक को एकजुट करने में जुटी है.”
प्रोफ़ेसर विश्वनाथ चक्रवर्ती का कहना है, “वोट बैंक और ध्रुवीकरण की राजनीति के तहत अभी आगे एनआरसी और नागरिकता अधिनियम जैसे कई मुद्दे देखने को मिल सकते हैं.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित