इमेज कैप्शन, बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के जगन्नाथ धाम की प्रसाद वितरण योजना पर राज्य सरकार पर निशाना साधा है….में
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते 30 अप्रैल को दीघा में ओडिशा के मशहूर जगन्नाथ पुरी मंदिर की तर्ज पर बने जगन्नाथ धाम का उद्घाटन किया था. उद्घाटन से पहले ही इसे लेकर शुरू होने वाला विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है.
राज्य सरकार ने इस मंदिर के निर्माण पर क़रीब ढाई सौ करोड़ रुपए खर्च किए थे. यह मंदिर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी के बीच विवाद का केंद्र बना हुआ हुआ है. अब इसका प्रसाद घर-घर पहुंचाने की सरकार की योजना पर भी विवाद हो रहा है.
इस मंदिर के उद्घाटन के मौक़े पर पहले इसके नाम पर विवाद हुआ. उसके बाद पुरी के मंदिर की लकड़ी से यहां की प्रतिमा बनाने के आरोप लगे.
ओडिशा सरकार ने भी नामकरण के मुद्दे पर राज्य सरकार को पत्र भेज कर आपत्ति जताई थी.
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क्या है विवाद
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इमेज कैप्शन, जगन्नाथ धाम के प्रसाद के एक पैकेट पर 20 रुपए की लागत आई है और इसे क़रीब 1.40 करोड़ घरों में पहुंचाने की योजना है
राजनीतिक हलकों में इस मंदिर को बीजेपी के उग्र हिंदुत्व की काट की ममता की रणनीति करार दिया गया था. हालांकि तृणमूल कांग्रेस इन आरोपों का खंडन करती रही है.
अब इस मंदिर के प्रसाद के वितरण और इस पर ख़र्च होने वाली रकम पर विवाद तेज हो रहा है.
दरअसल, ममता बनर्जी ने इस मंदिर का प्रसाद घर-घर पहुंचाने की बात कही थी. उसी के मुताबिक़ 17 जून से ही राशन दुकानों और सरकार की ‘दुआरे राशन योजना’ के तहत यह क़वायद शुरू हो गई है.
इस प्रसाद के एक पैकेट पर 20 रुपए की लागत आई है और करीब 1.40 करोड़ घरों में प्रसाद पहुंचाने की योजना है.
यह काम वेस्ट बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हिडको) के ज़रिए किया जा रहा है. हिडको ने ही जगन्नाथ धाम मंदिर का निर्माण कराया है.
राज्य की विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि एक ओर तो सरकार पैसे की कमी का रोना रो रही है और दूसरी ओर प्रसाद बांटने पर 42 करोड़ की रकम ख़र्च कर रही है.
बीजेपी ने दीघा के मुस्लिमों की दुकान से प्रसाद लेकर सभी धर्मों के लोगों में इसके वितरण को हिंदुओं की भावनाओं से खिलवाड़ क़रार दिया है.
बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा है, “यह हिंदू श्रद्धालुओं की भावनाओं पर आघात है. यह तृणमूल कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति का हिस्सा है.”
बीजेपी नेता दिलीप घोष ने भी कहा है कि स्थानीय दुकानदारों की मिठाई को मंदिर के प्रसाद के तौर पर बांटना हिंदू धर्म का अपमान है.
हर धर्म के लोग ले रहे हैं प्रसाद
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इमेज कैप्शन, जगन्नाथ धाम का प्रसाद ग्रहण करती हुई एक महिला
बीजेपी का आरोप है कि ममता इस प्रसाद वितरण के ज़रिए अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हिंदू वोटरों को लुभाने का प्रयास कर रही हैं.
लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इन आरोपों को निराधार बताया है.
हिडको के अध्यक्ष और टीएमसी के वरिष्ठ नेता और नगर विकास मंत्री फिरहाद हकीम का कहना है, “यह बीजेपी की ‘मतलबी सोच’ को दर्शाता है. प्रसाद के पैकेट जगन्नाथ मंदिर के ही हैं. इसे हर धर्म के लोगों को बांटा जा रहा है. राज्य के हर घर में इसे भिजवाने का इंतजाम किया गया है.”
हकीम कहते हैं, “भगवान सबके हैं और उनका प्रसाद भी सबके लिए है. बीजेपी धार्मिक मुद्दे को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है.”
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के उलट दीघा में सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश जैसी कोई पाबंदी नहीं है. हर धर्म के लोग मंदिर में दर्शन कर सकते हैं. इसी तरह प्रसाद वितरण में भी किसी धर्म विशेष को तवज्जो नहीं दी जा रही है.
इस विवाद से आम लोगों पर कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा है. हिंदुओं के अलावा काफ़ी तादाद में अल्पसंख्यक तबके के लोग भी यह प्रसाद ले रहे हैं.
हुगली जिले के सिंगूर के रहने वाले मोहम्मद सिराजुद्दीन कहते हैं, “राज्य सरकार की इस पहल की जानकारी मिलने पर मैंने प्रसाद लिया है. मेरे गांव के कई लोगों ने यह पैकेट लिया है.”
इसी तरह दक्षिण 24 परगना के भांगड़ में रहने वाली सबीना शेख़ के साथ उनके मोहल्ले के तमाम लोगों ने भी प्रसाद का पैकेट लिया है.
सबीना कहती हैं, “मैंने तो लिया है. मुझे विवाद से क्या मतलब. सरकार ने भिजवाया है तो हमें लेने में कोई आपत्ति नहीं है.”
कोलकाता में इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमण दास बताते हैं, “मंदिर में भगवान को अर्पित किया गया क़रीब तीन सौ किलो खोया राज्य के सभी जिलों में भेजा गया है. वहां उसमें और खोया मिलाकर मिठाई बनाई गई है. उसे ही पैकेट में भर कर घर-घर बांटा जा रहा है.”
सरकारी पैसे के धार्मिक इस्तेमाल का आरोप
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इमेज कैप्शन, राज्य सरकार के प्रसाद वितरण की योजना पर सीपीएम और कांग्रेस ने भी सवाल खड़े किए
पश्चिम बंगाल के सियासी गलियारों में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस मंदिर निर्माण को बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के मुक़ाबले का हथियार माना जा रहा है.
मंदिर के उद्घाटन से पहले बीजेपी ने इस परियोजना को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा था कि राज्य सरकार सार्वजनिक धन का इस्तेमाल किसी धार्मिक संस्थान के निर्माण के लिए नहीं कर सकती.
कांग्रेस और सीपीएम ने भी इसके लिए सरकार की खिंचाई की थी. लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने तब कहा था कि सरकार ने स्थानीय लोगों की इच्छा का सम्मान करते हुए ही दीघा में यह मंदिर बनवाया है.
तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष ने विपक्ष की आलोचना को खारिज करते हुए कहा था कि इतने भव्य मंदिर के निर्माण ने विपक्ष की नींद उड़ा दी है.
उनका कहना था, “ममता अपने पूरे राजनीतिक करियर में धर्मनिरपेक्ष रही हैं. ऐसे में उन पर हिंदुत्व की राजनीति करने या इसे बढ़ावा देने के विपक्ष के आरोप निराधार हैं.”
राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, “राज्य में हिंदुत्व की राजनीति लगातार तेज़ हो रही है. ममता ने अपनी छवि सुधारने और बीजेपी के आरोपों का जवाब देने के लिए ही इस मंदिर का निर्माण कराया है. लेकिन यह सवाल उठना भी स्वाभाविक है कि सरकार अस्पताल, स्कूल, रोज़गार और दूसरी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की दिशा में कितनी गंभीर है.”
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी कहती हैं, “अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इस मंदिर को बीजेपी के हिंदुत्ववादी एजेंडे की काट के लिए ममता का सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है.”
“वो ‘अल्पसंख्यकों की हितैषी’ वाली अपनी छवि से बाहर निकलने का प्रयास कर रही हैं. घर-घर प्रसाद वितरण भी इसी कवायद का हिस्सा है. दूसरी ओर, बीजेपी भी अपने हिंदुत्व के एजेंडे को और मजबूत करने में जुटी है. ऐसे में दोनों के बीच टकराव लाज़िमी है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित